बहुत से जातक ऎसे हैं जो मांगलिक होते हैं, किंतु यह उनके लिए योग कारक है अथवा दोष कारक, उन्हें इस विषय में पता नहीं होता | वैसे तो मंगल की शुभ अशुभता पर निर्भर करता है कि वह योगकारक है अथवा दोषकारक, इसके साथ साथ सूर्य व चंद्र की शुभता तथा इनके द्वारा मंगल को सहायता ( दृष्टि या राशि परिवर्तन द्वारा ) भी मंगल के शुभ व अशुभता पर अपना प्रभाव डालती है |
मांगलिक के प्रकार :- यह पाँच प्रकार का होता है, - लग्न मांगलिक (प्रथम मांगलिक ), चतुर्थ मांगलिक, सप्त मांगलिक, अष्ट मांगलिक व द्वादश मांगलिक |
इनके प्रभाव :- 1 = लग्न मांगलिक ( प्रथम मांगलिक ), का प्रभाव जातक के स्वास्थ्य, आयु, व्यवहार, सुख शांति, संपत्ति, माता के सुख, जीवन साथी व उसके स्वास्थ्य पर पूर्ण रूप से पड़ता है |
2 = चतुर्थ मांगलिक जातक के सुख व आयु, जातक की माता की आयु व उनका स्वास्थ्य, संपत्ति, जीवनसाथी के स्वास्थ्य व आयु, जातक के कर्म, नौकरी अथवा कार्य, जातक के पिता और उनकी मेहनत, तथा जातक के जीवन में सभी प्रकार के लाभ को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है |
3 = सप्त मांगलिक, जातक के स्वास्थ्य, जीवनसाथी के स्वास्थ्य व आयु, जातक व उसके पिता के कर्मो को, धन व जातक की वाणी को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है |
4 = अष्ट मांगलिक, जातक के आयु स्वास्थ्य, गुदा द्वार, व्यवहार, जीवन में प्राप्त होने वाले लाभ, वाणी, कुटुम्ब, व छोटे भाई को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है |
5 = द्वादश मांगलिक, जातक के व्यय, ससुराल, छोटे भाई, दोनों बाजूएं, प्रतिरोधक शक्ति, शत्रुओं व कर्जा, जीवनसाथी के स्वास्थ्य व आयु, किसी भी प्रकार की साझेदारी को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है |
विवाह के मामले में यह अति आवश्यक है कि मांगलिक व्यक्ति का विवाह मांगलिक कन्या से ही हो, या मांगलिक कन्या का मांगलिक व्यक्ति से | किन्तु कई परिस्थितिओं में मांगलिक जातक को विवाह हेतु अन्य मांगलिक जातक नहीं प्राप्त हो पाता, ऎसी स्थिति में मांगलिक योग अथवा दोष का उपचार करना अति आवश्यक हो जाता है, ताकि जातक या उसके जीवनसाथी को विवाह के उपरान्त किसी भी प्रकार के कष्ट अथवा हानि न हो |
मांगलिक दोष /योग के लिए उपाय :-
1 : वास्तव में जब ऎसा जातक शुध्दता का ध्यान रखे, सात्विक भोजन करे व नशे इत्यादि से दूर रहे तो यह उनके लिए योग कारक सिद्ध होता है, जिसमे इन्हे यश, मान सम्मान प्राप्त होता है, अतः इसी कारण से ऎसे जातक अपनी वास्तविक आयु से छोटे भी प्रतीत होते हैं | इसके विपरीत, यह तब ज्यादा अशुभ हो जाता है जब ऎसा जातक तला भुना गरिष्ठ भोजन करता है तथा मांस मदिरा व नशे का उपयोग करता है, अकारण ही सब पर क्रोध करता है व दूसरों को हानि पहुंचाता है, जातक कम आयु में वृद्ध समान दिखता है, उसे कई व्याधियां घेर लेती हैं, और अशुभ मंगल सभी प्रकार के मंगल कार्यों में अवरोध उत्पन्न कर देता है | अतः जातक को इससे बचना चाहिए |
2 : प्रतिदिन 10 मिनट तक ध्यान अवश्य करें |
3 : चांदी की वर्गाकार डिब्बी में शहद भरकर अपने घर अथवा मंदिर में रखें |
4 : अपने घर में छोटे भाई अथवा मित्रों के साथ मिलकर भोजन करें व उन्हे मीठा खाने को दें |
5 : घर पर मंगल यंत्र ( भौम यंत्र ) स्थापित करें और उसे नित्य धूप दीपक दिखाएं व " ॐ भौमाये नमः" मंत्र का 108 बार जप करें |
6 : किसी भी शुक्ल पक्ष के दूसरे मंगलवार से 7 मंगलवार तक 1 मीठा पान किसी दक्षिण मुखी हनुमान प्रतिमा को चढ़ाएं |
7 : 43 दिन लगातार तांबे के बर्तन में जल भरकर उसमे लाल चंदन, चीनी या शहद व थोड़े से चावल डालकर, उस जल को किसी गूलर के पौधे पर चढ़ाएं |
8 : सप्ताह में एक दिन नमक का त्याग करें |
9 : जब मंगल कार्य में अधिक अवरोध उत्पन्न हो रहे हो तो, किसी भी मंगलवार के दिन, तांबे के पात्र में जल भरकर उसमें मंगल यंत्र डाले और उसे किसी भी हनुमान मंदिर में चढ़ाएं अथवा दान करें व ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा स्वेच्छा अनुसार दक्षिणा दें |
10 : किसी विद्वान ज्योतिषी से अपनी कुण्डली दिखवाकर शुद्ध मूंगा रत्न तांबे में जड़वाकर ,अपने सीधे हाथ की अनामिका अंगुली में, मंगलवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करें |
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