Tuesday 26 May 2020

वृश्चिक लग्न और कुछ मह्त्वपूर्ण योग

वृश्चिक राशि भचक्र की आठवे स्थान पर आने वाली राशि है, भचक्र में इस राशि का विस्तार 210 अंश से 240 अंश तक फैला हुआ है |  वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल है अतः इस लग्न में जन्मे जातक में क्रोध की अधिकता रहती है. मंगल के प्रभाव के कारण इस लग्न में जन्मा जातक दबंग , हठी एवं स्पष्टवादी होता है. अपनी बात को सदा निभाने वाला तथा बिना परवाह किये अपने सम्मान के लिए लड़ जाना वृश्चिक लग्न के जातकों की पहचान है. इस लग्न में उत्पन्न जातक सामान्यतः स्वस्थ एवं बलवान होता है. वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले जातक मंझले कद के, गठे हुए शरीर के तथा खिलते हुए गोरे वर्ण के होते हैं। इनके  केश सघन नही होती, बल्कि छितराई हुई होती है। चमकदार नेत्र होना इनकी विशेष पहचान है। इनका स्वभाव कुछ गरम अवश्य होता है, किन्तु इन्हें क्रूर एवं निर्दयी नहीं कहा जा सकता। यह अलग बात है कि किन्हीं ग्रहों के प्रभाव से ये ऐसे हो जायें। इनके कमर से निचला भाग उपर वाले भाग के अनुपात में छोटा रहता है, दांत कुछ बड़े होते हैं।, जिससे जबड़ा चैड़ा दिखाई देता है.
वृश्चिक लग्न का जातक परिश्रम एवं लगन के द्वारा अपने कार्यों को पूरा करते हुए जीवन में सफलता अर्जित करता है. विभिन्न विषयों में रूचि होने के कारण अनेको विषयों का ज्ञाता होता है वृश्चिक लग्न का जातक. परिवार एवं अपने कुल में श्रेष्ठ एवं विद्वानों में आपकी गणना होती है.मित्रों एवं भाई बहनों के प्रिय वृश्चिक लग्न के जातक महत्वाकाक्षी होते हैं. आत्मशक्ति की इनमे प्रधानता रहती है तथा जीवन में अधिक से अधिक धन संचय की इच्छा सदैव रहती है.  स्त्री सूचक लग्न के कारण मन ही मन घबराना  परन्तु दूसरों के समक्ष कठोर बने रहना आपका स्वभाव है.  बहुत अधिक क्रोध आने पर आप कभी कभी अपशब्द भी कह देते हैं परन्तु बाद में पछताते भी है. वृश्चिक लग्न के जातक स्वभाव से कर्मठ एवं साहसी होते हैं. बहुत तेज़  बुद्धि तथा दृढ इच्छाशक्ति के कारण जीवन में आई अनेक कठिनाइयों को आप चुप चाप धैर्य से पार कर लेते हैं तथा अपनी गति को बिना रोके मंजिल तक अवश्य पहुँचते हैं.
बिच्छु के समान अनेक नेत्रों से किसी भी वस्तु का बारीकी से अवलोकन करना आपकी विशेषता है. विषय की बारीकी को सहजता से पकड़ना और अपने लायक उसमे से ग्रहण करना आपका स्वभाव है. आप स्वभाव से तेज़ नित्य ही क्रियाशील एवं शीघ्र बदला लेने वाले होते हैं. सामने वाले की असावधानी से अपना फायदा उठाना कोई आपसे सीखे. आपका प्राम्भिक जीवन साधारण तथा अप्रभावशाली रहता है परन्तु जीवन के अंतिम दिनों में आप समाज में प्रभावशाली  तथा सर्व प्रभुत्व संपन्न बन जाते हैं. वृश्चिक लग्न के जातक क्रोध आने पर और कोई विपरीत बात सुनने पर सामने वाले को क्षमा नहीं करते है. आपके मन में क्रोध घर किये रहता है यद्यपि आप ऊपर से सामान्य दिखलाई पड़ते हैं परन्तु बदले की भावना आपके अन्दर भयानक रूप से रहती है. आप अपने शत्रु को क्रूरता और निर्दयता से हानि पहुंचाने में भी नहीं चूकते है.  वृश्चिक लग्न के जातक कम भावुक होते हैं तथा अपने सारे सम्बन्ध और कार्य बुद्धि द्वारा ही संपन्न करते हैं. धर्म के प्रति आपके मन में श्रद्धा  रहेगी तथा समय समय पर धार्मिक स्थलों का भ्रमण आप अपने मन की शांति के लिए करेंगे. वृश्चिक लग्न के जातकों की आयु प्रायः कम होती है, कोई भी दुर्घटना या बदलते घटनाक्रम का शिकार आप शीघ्र ही हो जाते हैं. खाने में आपको खट्टा स्वाद बहुत पसंद इसलिए आपके भोजन में नींबू का प्रयोग अधिक होता है.
वृश्चिक लग्न में धन योग: वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिये धनदायक ग्रह गुरु है क्योंकि यह दूसरे भाव का स्वामी है। आपके संचित धन की स्थिति भी यही बृहस्पति बतायेंगे। धन आये यही महत्वपूर्ण नहीं अपितु धन का सही उपयोग, सही समय पर होना व स्थायी रूप से रहना भी अनिवार्य है।
वृश्चिक लग्न के साथ-साथ बुध और चंद्रमा की स्थिति भी शुभ होना आर्थिक दृष्टिकोण से आनिवार्य है। वृश्चिक लग्न वालों के आर्थिक सुख, समृद्धि, यश व वैभव की स्थिति लग्नेश मंगल, द्वितीयेश व पंचमेश बृहस्पति नवमेश चंद्रमा, आयेश बुध इन ग्रहों की स्थिति बतायेंगे।
बुध व मंगल इनके लिये अशुभ ग्रह भी माने जाते हैं क्योंकि बुध यहां अष्टम भाव के भी स्वामी हैं और मंगल लग्नेश होने के साथ हैं। वृश्चिक लग्न वालों के लिये कुछ धनदायी योग।
1 वृश्चिक लग्न में यदि द्वितीय अपने ही स्थान दूसरे भाव में हो, पंचम भाव में मीन राशि हो अथवा भाग्य स्थान कर्क राशि में हो तो ऐसे व्यक्ति को सदा धन प्राप्त होता रहता है। जीवन में धन का अभाव नहीं होता।
2 लग्नेश स्वयं आपका परिचायक है यदि यहां लग्नेश मंगल भाग्येश चंद्रमा के साथ आय के स्थान में हो और द्वितीयेश बृहस्पति पंचम भाव में अपनी ही राशि में हो तो ‘’महालक्ष्मी योग’’ बनता है। ऐसे व्यक्ति अखण्ड धन-संपत्ति प्राप्त करता है। भाग्यवान होता है।
3 इसी प्रकार बृहस्पति पंचम में व बुध 11वें भाव में उच्च के हों चूंकि बुध अष्टमेश भी हैं इसी कारण ऐसा व्यक्ति शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है व अपने साहस व पराक्रम से खूब धन-संपत्ति पाता है।
4 जन्मपत्री में द्वितीयेश व आयेश यदि परस्पर स्थान परिवर्तन करें अर्थात यहां द्वितीयेश गुरु 11वें भाव में और 11वें भाव के स्वामी बुध दूसरे भाव में जाये तो भी व्यक्ति धनवान व भाग्यशाली होता है।
5 आयकारक बृहस्पति यदि बुध व शुक्र के साथ युति बनायें अथवा दृष्ट हों तो व्यक्ति राजा की तरह धन, ऐश्वर्य व भौतिक सुखों को पाता है।
6 वृश्चिक लग्न वालों के लिये यह योग शुभ है जब चंद्रमा वृष राशि अथवा स्वराशि (कर्क) में हो तो थोड़े प्रयत्न से ही अधिक लाभ मिलता है। व्यक्ति थोड़े परिश्रम से ही उससे अधिक धन प्राप्त करता है।
7 वृश्चिक लग्न में लग्नेश मंगल, चतुर्थेश शनि, शुक्र व बुध के साथ हों तो व्यक्ति महाधनी होता है।
8 वृश्चिक लग्न में यह योग करोड़पति बनाता है जब लग्नेश, धनेश, भाग्येश और दशमेश अर्थात मंगल, गुरु, चंद्रमा व सूर्य यदि सभी ग्रह वृश्चिक लग्न में उच्च के हैं अथवा अपनी-अपनी स्वराशि में हैं। यह अतिधनवान योग भाग्यशाली लोगों की पत्री में मिलता है।
9 वृश्चिक लग्न में यदि लग्नेश और आयेश परस्पर स्थान परिवर्तन करें तो व्यक्ति अपने बल व सामर्थ से ही धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति भाग्यवान है। 33 वर्ष के बाद भाग्य साथ देता है।
10 वृश्चिक लग्न में यदि लग्नेश मंगल, आयेश बुध, सप्तमेशव व्ययेश शुक्र और तृतीयेश और चतुर्थेश शनि ये सभी ग्रह लग्न में आ जायें तो व्यक्ति करोड़पति होता है। उसके जीवन में काफी धन, समृद्धि आती है।
11 यदि इन्हीं ग्रहों की युति मंगल, बुध, शुक्र व शनि की युति 11वें भाव में हो तो व्यक्ति अरबपति होता है। यहां साथ में राहु अचानक ऊंचाइयों को देता है।
12 अष्टम भाव भूमि के अंदर गहराइयों का है। धन कारक गुरु ग्रह अष्टम भाव में व अष्टमेश सूर्य लग्न में भूमि में गड़े हुये धन का स्वामी बनाता है। व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से भी धनी होता है।

शुभ ग्रह : चंद्रमा नवमेश, सूर्य दशमेश व बृहस्पति पंचमेश होकर बेहद शुभ होते हैं। इनकी दशा-महादशा बेहद लाभदायक होती है, अत: कुंडली में इनका शुभ होना आवश्यक है।

अशुभ ग्रह : बुध अष्टमेश, शुक्र व्ययेश और शनि तृतीयेश होकर अशुभ हो जाते हैं। इनकी दशा-महादशा कठिनाई से निकलती है विशेषकर शुक्र में शनि का अंतर मृत्युतुल्य कष्ट देता है। अत: उपाय, जप दान कराते रहें।

तटस्थ ग्रह : मंगल इस लग्न के लिए स्थिर या तटस्थ हो जाता है।
इष्ट देव : हनुमानजी
रंग : सफेद, पीला-नारंगी
संख्‍या : 3, 5, 9
वार : सोमवार, बृहस्पतिवार
रत्न : माणिक, पुखराज