Monday 29 October 2018

विवाह काल ज्ञात करने हेतु



विवाह काल ज्ञात करने हेतु सबसे पहले कुण्डली में विवाह के योग देखे जाते है। इसके लिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र से संबन्ध बनाने वाले ग्रहों का विश्लेषण किया जाता है। जन्म कुण्डली में जो भी ग्रह अशुभ या पापी ग्रह होकर इन ग्रहों से दृ्ष्टि, युति या स्थिति के प्रभाव से इन ग्रहों से संबन्ध बना रहा होता है, वह ग्रह विवाह में विलम्ब का कारण बन रहा होता है। इसलिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव जितना अधिक हो, उतना ही शुभ रहता है। तथा अशुभ ग्रहों का प्रभाव न होना भी विवाह का समय पर होने के लिये सही रहता है, क्योकि अशुभ/ पापी ग्रह जब भी इन तीनों को या इन तीनों में से किसी एक को प्रभावित करते है, तो विवाह की अवधि में देरी होती ही है।

जन्म कुण्डली में जब योगों के आधार पर विवाह की आयु निर्धारित हो जाये तो, उसके बाद विवाह के कारक ग्रह शुक्र व विवाह के मुख्य भाव व सहायक भावों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है. आईये देखे की दशाएं विवाह के समय निर्धारण में किस प्रकार सहयोग करती है:-


1. सप्तमेश की दशा- अन्तर्दशा में विवाह :- जब कुण्डली के योग विवाह की संभावनाएं बना रहे हों, तथा व्यक्ति की ग्रह दशा में सप्तमेश का संबन्ध शुक्र से हो तों इस अवधि में विवाह होता है। इसके अलावा जब सप्तमेश जब द्वितीयेश के साथ ग्रह दशा में संबन्ध बना रहे हों उस स्थिति में भी विवाह होने के योग बनते है।

2. सप्तमेश में नवमेश की दशा- अन्तर्द्शा में विवाह ग्रह दशा का संबन्ध :-  जब सप्तमेश व नवमेश का आ रहा हों तथा ये दोनों जन्म कुण्डली में पंचमेश से भी संबन्ध बनाते हों तो इस ग्रह दशा में प्रेम विवाह होने की संभावनाएं बनती है।

3. सप्तम भाव में स्थित ग्रहों की दशा में विवाह :- सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित हो या उनसे पूर्ण दृष्टि संबन्ध बना रहे हों, उन सभी ग्रहों की दशा - अन्तर्दशा में विवाह हो सकता है.  इसके अलावा निम्न योगों में विवाह होने की संभावनाएं बनती है:-
  • क)  सप्तम भाव में स्थित ग्रह, सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर शुभ भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह संबन्धित ग्रह दशा की आरम्भ की अवधि में विवाह होने की संभावनाएं बनाती है. या
  • ख) शुक्र, सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर अशुभ भाव या अशुभ ग्रह की राशि में स्थित होने पर अपनी दशा- अन्तर्दशा के मध्य भाग में विवाह की संभावनाएं बनाता है ।
  • ग) इसके अतिरिक्त जब अशुभ ग्रह बली होकर सप्तम भाव में स्थित हों या स्वयं सप्तमेश हों तो इस ग्रह की दशा के  अन्तिम भाग में विवाह संभावित होता है।
4. शुक्र का ग्रह दशा से संबन्ध होने पर विवाह :- जब विवाह कारक ग्रह शुक्र नैसर्गिक रुप से शुभ हों, शुभ राशि, शुभ ग्रह से युक्त, द्र्ष्ट हों तो गोचर में शनि, गुरु से संबन्ध बनाने पर अपनी दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने का संकेत करता है।

5. सप्तमेश के मित्रों की ग्रह दशा में विवाह :- जब किसी व्यक्ति कि विवाह योग्य आयु हों तथा महादशा का स्वामी सप्तमेश का मित्र हों, शुभ ग्रह हों व साथ ही साथ सप्तमेश या शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों, तो इस महाद्शा में व्यक्ति के विवाह होने के योग बनते है।

6. सप्तम व सप्तमेश से दृ्ष्ट ग्रहों की दशा में विवाह :- सप्तम भाव को क्योकि विवाह का भाव कहा गया है। सप्तमेश इस भाव का स्वामी होता है। इसलिये जो ग्रह बली होकर इन सप्तम भाव , सप्तमेश से दृ्ष्टि संबन्ध बनाते है, उन ग्रहों की दशा अवधि में विवाह की संभावनाएं बनती है।

7.  लग्नेश व सप्तमेश की दशा में विवाह :- लग्नेश की दशा में सप्तमेश की अन्तर्दशा में भी विवाह होने की संभावनाएं बनती है।

8. शुक्र की शुभ स्थिति :- किसी व्यक्ति की कुण्डली में जब शुक्र शुभ ग्रह की राशि तथा शुभ भाव (केन्द्र, त्रिकोण) में स्थित हों, तो शुक्र का संबन्ध अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर दशा से आने पर विवाह हो सकता है. कुण्डली में शुक्र पर जितना कम पाप प्रभाव कम होता है. वैवाहिक जीवन के सुख में उतनी ही अधिक वृ्द्धि होती है।

9. शुक्र से युति करने वाले ग्रहों की दशा में विवाह :- शुक्र से युति करने वाले सभी ग्रह, सप्तमेश का मित्र, अथवा प्रत्येक वह ग्रह जो बली हों, तथा इनमें से किसी के साथ द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों, उन सभी ग्रहों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है।

10. शुक्र का नक्षत्रपति की दशा में विवाह :- जन्म कुण्डली में शुक्र जिस ग्रह के नक्षत्र में स्थित हों, उस ग्रह की दशा अवधि में विवाह होने की संभावनाएं बनती है ।

Tuesday 9 October 2018

राजनीति में सफलता के लिये ज्योतिष योग


अन्य व्यवसायों एवं कैरियर की भांति ही राजनीति में प्रवेश करने वालों की कुंडली में भी ज्योतिष योग होते हैं।राजनीति में सफल रहे व्यक्तियों की कुंडली में ग्रहों का विशिष्ट संयोग देखा गया है।
1. आवश्यक भाव : छठा, सांतवा, दसवां व ग्यारहवां भाव
सफल राजनेताओं की कुण्डली में राहु का संबध छठे, सांतवें, दशवें व ग्यारहवें घर से देखा गया है. कुण्डली के दशवें घर को राजनीति का घर कहते है. सत्ता में भाग लेने के लिये दशमेश या दशम भाव में उच्च का ग्रह बैठा होना चाहिए,और गुरु नवम में शुभ प्रभाव में स्थिति होने चाहिए या दशम घर या दशमेश का संबध सप्तम घर से होने पर व्यक्ति राजनीति में सफलता प्राप्त करता है। छठे घर को सेवा का घर कहते है। व्यक्ति में सेवा भाव होने के लिये इस घर से दशम /दशमेश का संबध होना चाहिए।  सांतवा घर दशम से दशम है इसलिये इसे विशेष रुप से देखा जाता है ।

2. आवश्यक ग्रह: राहु, शनि, सूर्य व मंगल
राहु को सभी ग्रहों में नीति कारक ग्रह का दर्जा दिया गया है. इसका प्रभाव राजनीति के घर से होना चाहिए। सूर्य को भी राज्य कारक ग्रह की उपाधि दी गई है। सूर्य का दशम घर में स्वराशि या उच्च राशि में होकर स्थित हो व राहु का छठे घर, दसवें घर व ग्यारहवें घर से संबध बने तो यह राजनीति में सफलता दिलाने की संभावना बनाता है. इस योग में दूसरे घर के स्वामी का प्रभाव भी आने से व्यक्ति अच्छा वक्ता बनता है।
शनि दशम भाव में हो या दशमेश से संबध बनाये और इसी दसवें घर में मंगल भी स्थिति हो तो व्यक्ति समाज के लोगों के हितों के लिये काम करने के लिये राजनीति में आता है. यहां शनि जनता के हितैशी है तथा मंगल व्यक्ति में नेतृ्त्व का गुण दे रहा है, दोनों का संबध व्यक्ति को राजनेता बनने के गुण दे रहा है।

3. अमात्यकारक : राहु/ सूर्य
राहु या सूर्य के अमात्यकारक बनने से व्यक्ति रुचि होने पर राजनीति के क्षेत्र में सफलता पाने की संभावना रखता है। राहु के प्रभाव से व्यक्ति नीतियों का निर्माण करना व उन्हें लागू करने की ण्योग्यता रखता है। राहु के प्रभाव से ही व्यक्ति में स्थिति के अनुसार बात करने की योग्यता आती है। सूर्य अमात्यकारक होकर व्यक्ति को समाज में उच्च पद की प्राप्ति का संकेत देता है. नौ ग्रहों में सूर्य को राजा का स्थान दिया गया है।

4. नवाशं व दशमाशं कुण्डली
जन्म कुण्डली के योगों को नवाशं कुण्डली में देख निर्णय की पुष्टि की जाती है. किसी प्रकार का कोई संदेह न रहे इसके लिये जन्म कुण्डली के ग्रह प्रभाव समान या अधिक अच्छे रुप में बनने से इस क्षेत्र में दीर्घावधि की सफलता मिलती है। दशमाशं कुण्डली को सूक्ष्म अध्ययन के लिये देखा जाता है. तीनों में समान या अच्छे योग व्यक्ति को राजनीति की उंचाईयों पर लेकर जाते है।

5. अन्य योग
(क)  नेतृ्त्व के लिये व्यक्ति का लग्न सिंह अच्छा समझा जाता है. सूर्य, चन्द्र, बुध व गुरु धन भाव में हों व छठे भाव में मंगल, ग्यारहवे घर में शनि, बारहवें घर में राहु व छठे घर में केतु हो तो एसे व्यक्ति को राजनीति विरासत में मिलती है। यह योग व्यक्ति को लम्बे समय तक शासन में रखता है. जिसके दौरान उसे लोकप्रियता व वैभव की प्राप्ति होती है।

(ख) कर्क लग्न की कुण्डली में दशमेश मंगल दूसरे भाव में , शनि लग्न में, छठे भाव में राहु, तथा लग्नेश की दृष्टि के साथ ही सूर्य-बुध पंचम या ग्यारहवें घर में हो तो व्यक्ति को यश की प्राप्ति होती।

(ग) वृ्श्चिक लग्न की कुण्डली में लग्नेश बारहवे में गुरु से दृ्ष्ट हो शनि लाभ भाव में हो, राहु -चन्द्र चौथे घर में हो, शुक्र स्वराहि के सप्तम में लग्नेश से दृ्ष्ट हो तथा सूर्य ग्यारहवे घर के स्वामी के साथ युति कर शुभ स्थान में हो और साथ ही गुरु की दशम व दूसरे घर पर दृ्ष्टि हो तो व्यक्ति प्रखर व तेज नेता बनता है।

Tuesday 2 October 2018

जैमिनी ज्योतिष - 2



जैमिनी ज्योतिष ऋषि जैमिनी की देन है। जैमिनि ज्योतिष में मुख्य रूप से फलित करने के लिये कारक, राशियों की द्रष्टियां, राशियों कि दशाओं, तथा दशाओं का क्रम भी (सव्य, अपसव्य) हो सकता है। इसके साथ ही दशाओं की अवधि भी स्थिर नहीं है, यह बदलती रहती है। जैमिनी ज्योतिष में इसके अतिरिक्त फलित के लिये कारकांश का प्रयोग किया जाता है। जैमिनी ज्योतिष में पद या आरुढ लग्न भी फलित का एक महत्वपूर्ण भाग है।


कारक :- जैमिनी ज्योतिष सात कारको पर आधारित है। इन कारकों में राहू-केतु को छोडकर, अन्य सभी सात ग्रह अपने- अपने अंश -कला-विकला के अनुसार अवरोही क्रम में निम्नलिखित सात कारक बनते है। सात कारक निम्न है। 1. आत्मकारक 2. अमात्यकारक 3. भ्रातृकारक 4. मातृकारक 5. पुत्रकारक 6. ज्ञातिकारक 7. दाराकारक हैं। इसमें आत्मकारक-शरीर, अमात्यकारक-आजीविका, भ्रातृ्कारक - भाई / मित्र, मातृ्कारक - माता, पुत्रकारक- संतान, ज्ञातिकारक- रोग/ऋण, दाराकारक- जीवन साथी का प्रतिनिधित्व करता है।

दृष्टियां :- जैमिनी ज्योतिष में राशियों को दृष्टियां दी गई है। सभी चर राशियां अपने समीप की स्थिर राशि को छोडकर अन्य सभी स्थिर राशियों को देखती है। इसी प्रकार स्थिर राशियां अपने करीब की चर राशि को छोडकर अन्य सभी स्थिर राशियों को देखती है। परन्तु द्विस्वभाव राशियां केवल एक - दुसरे को देखती है।

दशाएं :- जैमिनी ज्योतिष में 12 राशियों पर आधारित 12 दशाएं होती है। जैसे मेष, वृ्षभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला.....,इसी प्रकार अन्य। जैमिनी ज्योतिष दशाओं का क्रम इन 12 राशियों में 06 राशियों की दशाओं का क्रम सव्य व शेष 06 राशियों का क्रम अपसव्य होता है। तथा दशा अवधि अधिकतम 12 वर्ष से 1 वर्ष के मध्य हो सकती है।

 कारकांश :- जैमिनी पद्वति में कारकांश के माध्यम से ही फलित किया जाता है। इसमें आत्मकारक (जिस ग्रह के सर्वाधिक अंश हों) वह ग्रह नवमांश कुण्डली में जिस राशि में स्थित हो, वह राशि कारकांश कहलाती है। इसका प्रयोग महत्वपूर्ण भविष्यवाणियां करने के लिये किया जाता है।