Saturday 30 November 2019

वृष लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग

 

किसी भी राशि से जुड़े ,चिन्ह उस राशि विशेष के सम्बन्ध में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी लिए होते हैं । वृष राशि का चिन्ह बैल है । बैल स्वभाव से शांत रहता है, बहुत अधिक पारिश्रमी और वीर्यवान होता है! आमतौर पर वो शांत ही रहता है, किन्तु एक बार यदि उसे क्रोध आ जाये वह उग्र रूप धारण कर लेता है । वृष राशि के जातक में ये सभी गुण सहज ही प्रकट होते हैं! इस राशि के स्वामी शुक्र देवता होते हैं । शुक्र एक सौम्य ग्रह हैं । अतः वृष राशि भी सौम्य राशि की श्रेणी में आती है।पृथ्वी तत्त्व राशि होने व् स्थिर स्वभाव की राशि होने से इस राशि के जातकों में ठहराव देखने को मिलता है । ये लोग जल्दबाजी पसंद नहीं करते हैं । वृष राशि के जातकों को क्रोध अपेक्षाकृत कम ही आता है ,परन्तु एक बार आ जाये तो ये बैल की भांति ही व्यवहार कर सकते हैं और आसानी से शांत नहीं होते । वॄष राशि का विस्तार राशि चक्र के 30 अंश से 60 अंश के बीच पाया जाता है ।


वृष लग्न के जातक का व्यक्तित्व और विशेषताएँ :-
वृष राशि का स्वामी शुक्र होने से ऐसे जातक को विलासी जीवन सहज ही आकर्षित करता है । ऐसे जातक प्रस्सन रहना चाहते हैं व् दूसरों को भी प्रस्सन रखना पसंद करते हैं । भोजन के शौकीन ऐसे जातक आदर सत्कार में किसी प्रकार की कमी नहीं रखना चाहते हैं । बार बार परिवर्तन से इन्हें चिढ होती है ।
वृष राशि कॄत्तिका नक्षत्र के तीन चरण,रोहिणी के चारों चरण, और मॄगसिरा के प्रथम दो चरण से बनती है ।

लग्न स्वामी : शुक्र
तत्व: पृथ्वी
लिंग: स्त्री
शुभ ग्रह : शनि (भाग्येश व राज्येश), सूर्य (चतुर्थेश) बुध (पंचमेश)
अशुभ ग्रह : चंद्रमा (तृतीयेश), बृहस्पति (अष्टमेश व आयेश)
तटस्थ गृह : शुक्र (लग्नेश, षष्ठेश), मंगल (सप्तमेश, व्ययेश)

शुभ रत्न : नीलम, माणिक, पन्ना
(शनि आदि ग्रहों की शुभता हेतु)

शुभ रंग : हरा, नीला, काला
शुभ वार : शनिवार, रविवार
अराध्य/इष्ट : माँ दुर्गा


वृष लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह :–
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक ग्रह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक ग्रह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे , आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
शुक्र वृष लग्न की कुंडली में छठे घर का मालिक भी है , परन्तु लग्नेश होने से कुंडली का शुभ ग्रह बनता है । अतः वृष लग्न की कुंडली में कारक ग्रह माना जाता है ।

बुध दुसरे व् पांचवें घर का स्वामी है, अतः इस लग्न कुंडली में कारक ग्रह है ।

शनि नवें व् दसवें घर के स्वामी होने से इस लग्न कुंडली में अति योग कारक ग्रह होते हैं ।
सूर्य चतुर्थ का स्वामी है व् लग्नेश का अति शत्रु है अतः सम ग्रह है ।

वृष लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह –
चंद्र तीसरे घर का स्वामी है , अतः मारक है ।

सातवें व् बारहवें घर का स्वामी होने से वृष लग्न कुंडली में मारक ग्रह बनता है ।
गुरु आठवें , ग्यारहवें का स्वामी है । अतः मारक है ।