क्योंकि भाग्य, धर्म व प्रतिष्ठा का पतन हो जाने से मनुष्य का नाश हो जाता है| फारसी में अष्टम भाव को मौतखाने, उमरखाने व हस्तमखाने कहते हैं| अष्टम भाव से आयु की अंतिम सीमा, मृत्यु का स्वरूप, मृत्युतुल्य कष्ट, आदि का विचार किया जाता है| इसके अतिरिक्त यह भाव वसीयत से लाभ, पुरातत्व, अपयश, गंभीर व दीर्घकालीन रोग, चिंता, संकट, दुर्गति, अविष्कार, स्त्री का मांगल्य(सौभाग्य), स्त्री का धन व दहेज़, गुप्त विज्ञान व पारलौकिक ज्ञान, ख़ोज, किसी विषय में अनुसंधान, समुद्री यात्राएं, गूढ़ विज्ञान, तंत्र-मंत्र-ज्योतिष व कुण्डलिनी जागरण आदि विषयों से भी जुड़ा हुआ है| भावत भावम सिद्धांत के अनुसार किसी भी भाव का स्वामी यदि अपने भाव से अष्टम स्थान में हो या किसी भाव में उस भाव से अष्टम स्थान का स्वामी आकर बैठ जाए अथवा कोई भी भावेश अष्टम स्थान में स्थित हो तो उस भाव के फल का नाश हो जाता है| मनुष्य को जीवन में पीड़ित करने वाले स्थाई प्रकृति के घातक रोग भी अष्टम भाव से देखे जाते हैं| आकस्मिक घटने वाली गंभीर दुर्घटनाओं का विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है| अष्टम भाव तथा अष्टमेश की कल्पना ही मनुष्य के मन में अशुभता का भाव उत्पन्न कर देती है| परंतु ऐसी बात नहीं है अष्टम भाव के कुछ विशिष्ट लाभ भी हैं| किसी भी स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव का सर्वाधिक महत्व होता है| क्योंकि यह भाव उस नारी को विवाहोपरांत प्राप्त होने वाले सुखों का सूचक है| इस भाव से एक विवाहित स्त्री के मांगल्य(सौभाग्य) अर्थात उसके पति की आयु कितनी होगी तथा वैवाहिक जीवन की अवधि कितनी लंबी होगी, इसका विचार किया जाता है| यही कारण है कि इस भाव को मांगल्य स्थान भी कहा जाता है| इसके अलावा अध्यात्मिक क्षेत्र में सक्रिय व्यक्तियों के लिए भी अष्टम भाव एक वरदान से कम नहीं है| क्योंकि यह भाव गूढ़ व परालौकिक विज्ञान, तंत्र-मंत्र-योग आदि विद्याओं से भी संबंधित है इसलिए बलवान अष्टम भाव व अष्टमेश की कृपा बिना कोई भी व्यक्ति इन क्षेत्रों में महारत हासिल नहीं कर सकता| यही कारण है कि जो लोग सच्चे अर्थों में अध्यात्मिक व संत प्रवृति के हैं उनकी पत्रिका में अष्टम भाव, अष्टमेश तथा शनि काफी बली स्थिति में होते हैं| इस भाव का कारक ग्रह शनि है जो कि वास्तविक रूप में एक सच्चा सन्यासी व तपस्वी ग्रह है| रहस्य, सन्यास, त्याग, तपस्या, धैर्य, योग-ध्यान व मानव सेवा आदि विषय बिना शनिदेव की कृपा के मनुष्य को प्राप्त हो ही नहीं सकते| इसके अतिरिक्त जो लोग ख़ोज व अनुसंधान के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं उनके लिए भी अष्टम भाव एक निधि(ख़ज़ाने) से कम नहीं है| इससे यह सिद्ध हो जाता है कि ज्योतिष में कोई भी भाव व ग्रह बुरा नही होता बल्कि हरेक भाव व ग्रह की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं| कोई भी भाव व ग्रह मनुष्य के पूर्व कर्मों के अनुसार ही उसे अच्छा या बुरा फल देने के लिए बाध्य होता है|
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Thursday 9 May 2019
अष्टम भाव का महत्व व विशेषता
क्योंकि भाग्य, धर्म व प्रतिष्ठा का पतन हो जाने से मनुष्य का नाश हो जाता है| फारसी में अष्टम भाव को मौतखाने, उमरखाने व हस्तमखाने कहते हैं| अष्टम भाव से आयु की अंतिम सीमा, मृत्यु का स्वरूप, मृत्युतुल्य कष्ट, आदि का विचार किया जाता है| इसके अतिरिक्त यह भाव वसीयत से लाभ, पुरातत्व, अपयश, गंभीर व दीर्घकालीन रोग, चिंता, संकट, दुर्गति, अविष्कार, स्त्री का मांगल्य(सौभाग्य), स्त्री का धन व दहेज़, गुप्त विज्ञान व पारलौकिक ज्ञान, ख़ोज, किसी विषय में अनुसंधान, समुद्री यात्राएं, गूढ़ विज्ञान, तंत्र-मंत्र-ज्योतिष व कुण्डलिनी जागरण आदि विषयों से भी जुड़ा हुआ है| भावत भावम सिद्धांत के अनुसार किसी भी भाव का स्वामी यदि अपने भाव से अष्टम स्थान में हो या किसी भाव में उस भाव से अष्टम स्थान का स्वामी आकर बैठ जाए अथवा कोई भी भावेश अष्टम स्थान में स्थित हो तो उस भाव के फल का नाश हो जाता है| मनुष्य को जीवन में पीड़ित करने वाले स्थाई प्रकृति के घातक रोग भी अष्टम भाव से देखे जाते हैं| आकस्मिक घटने वाली गंभीर दुर्घटनाओं का विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है| अष्टम भाव तथा अष्टमेश की कल्पना ही मनुष्य के मन में अशुभता का भाव उत्पन्न कर देती है| परंतु ऐसी बात नहीं है अष्टम भाव के कुछ विशिष्ट लाभ भी हैं| किसी भी स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव का सर्वाधिक महत्व होता है| क्योंकि यह भाव उस नारी को विवाहोपरांत प्राप्त होने वाले सुखों का सूचक है| इस भाव से एक विवाहित स्त्री के मांगल्य(सौभाग्य) अर्थात उसके पति की आयु कितनी होगी तथा वैवाहिक जीवन की अवधि कितनी लंबी होगी, इसका विचार किया जाता है| यही कारण है कि इस भाव को मांगल्य स्थान भी कहा जाता है| इसके अलावा अध्यात्मिक क्षेत्र में सक्रिय व्यक्तियों के लिए भी अष्टम भाव एक वरदान से कम नहीं है| क्योंकि यह भाव गूढ़ व परालौकिक विज्ञान, तंत्र-मंत्र-योग आदि विद्याओं से भी संबंधित है इसलिए बलवान अष्टम भाव व अष्टमेश की कृपा बिना कोई भी व्यक्ति इन क्षेत्रों में महारत हासिल नहीं कर सकता| यही कारण है कि जो लोग सच्चे अर्थों में अध्यात्मिक व संत प्रवृति के हैं उनकी पत्रिका में अष्टम भाव, अष्टमेश तथा शनि काफी बली स्थिति में होते हैं| इस भाव का कारक ग्रह शनि है जो कि वास्तविक रूप में एक सच्चा सन्यासी व तपस्वी ग्रह है| रहस्य, सन्यास, त्याग, तपस्या, धैर्य, योग-ध्यान व मानव सेवा आदि विषय बिना शनिदेव की कृपा के मनुष्य को प्राप्त हो ही नहीं सकते| इसके अतिरिक्त जो लोग ख़ोज व अनुसंधान के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं उनके लिए भी अष्टम भाव एक निधि(ख़ज़ाने) से कम नहीं है| इससे यह सिद्ध हो जाता है कि ज्योतिष में कोई भी भाव व ग्रह बुरा नही होता बल्कि हरेक भाव व ग्रह की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं| कोई भी भाव व ग्रह मनुष्य के पूर्व कर्मों के अनुसार ही उसे अच्छा या बुरा फल देने के लिए बाध्य होता है|
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