Thursday 9 May 2019

अष्टम भाव का महत्व व विशेषता


अष्टम भाव से व्यक्ति की आयु व मृत्यु के स्वरुप का विचार किया जाता है| इस दृष्टि से अष्टम भाव का महत्व किसी भी प्रकार से कम नही है| क्योंकि यदि मनुष्य दीर्घजीवी ही नही तो वह जीवन के समस्त विषयों का आनंद कैसे उठा सकता है? अष्टम भाव त्रिक(6, 8, 12) भावों में सर्वाधिक अशुभ स्थान माना गया है| वैसे भी षष्ठ भाव(रोग, शत्रु, ऋण का भाव) से तृतीय(भ्राता) होने के कारण इसे अशुभता में षष्ठ भाव का भ्राता(भाई) ही समझिये| अष्टम भाव तो अशुभ है ही, कोई भी ग्रह इसका स्वामी होने पर अशुभ भावेश हो जाता है| नवम भाव(भाग्य, धर्म व यश) से द्वादश(हानि) होने के कारण अष्टम भाव मृत्यु या निधन भाव माना गया है| 
क्योंकि भाग्य, धर्म व प्रतिष्ठा का पतन हो जाने से मनुष्य का नाश हो जाता है| फारसी में अष्टम भाव को मौतखाने, उमरखाने व हस्तमखाने कहते हैं| अष्टम भाव से आयु की अंतिम सीमा, मृत्यु का स्वरूप, मृत्युतुल्य कष्ट, आदि का विचार किया जाता है| इसके अतिरिक्त यह भाव वसीयत से लाभ, पुरातत्व, अपयश, गंभीर व दीर्घकालीन रोग, चिंता, संकट, दुर्गति, अविष्कार, स्त्री का मांगल्य(सौभाग्य), स्त्री का धन व दहेज़, गुप्त विज्ञान व पारलौकिक ज्ञान, ख़ोज, किसी विषय में अनुसंधान, समुद्री यात्राएं, गूढ़ विज्ञान, तंत्र-मंत्र-ज्योतिष व कुण्डलिनी जागरण आदि विषयों से भी जुड़ा हुआ है| भावत भावम सिद्धांत के अनुसार किसी भी भाव का स्वामी यदि अपने भाव से अष्टम स्थान में हो या किसी भाव में उस भाव से अष्टम स्थान का स्वामी आकर बैठ जाए अथवा कोई भी भावेश अष्टम स्थान में स्थित हो तो उस भाव के फल का नाश हो जाता है| मनुष्य को जीवन में पीड़ित करने वाले स्थाई प्रकृति के घातक रोग भी अष्टम भाव से देखे जाते हैं| आकस्मिक घटने वाली गंभीर दुर्घटनाओं का विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है| अष्टम भाव तथा अष्टमेश की कल्पना ही मनुष्य के मन में अशुभता का भाव उत्पन्न कर देती है| परंतु ऐसी बात नहीं है अष्टम भाव के कुछ विशिष्ट लाभ भी हैं| किसी भी स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव का सर्वाधिक महत्व होता है| क्योंकि यह भाव उस नारी को विवाहोपरांत प्राप्त होने वाले सुखों का सूचक है| इस भाव से एक विवाहित स्त्री के मांगल्य(सौभाग्य) अर्थात उसके पति की आयु कितनी होगी तथा वैवाहिक जीवन की अवधि कितनी लंबी होगी, इसका विचार किया जाता है| यही कारण है कि इस भाव को मांगल्य स्थान भी कहा जाता है| इसके अलावा अध्यात्मिक क्षेत्र में सक्रिय व्यक्तियों के लिए भी अष्टम भाव एक वरदान से कम नहीं है| क्योंकि यह भाव गूढ़ व परालौकिक विज्ञान, तंत्र-मंत्र-योग आदि विद्याओं से भी संबंधित है इसलिए बलवान अष्टम भाव व अष्टमेश की कृपा बिना कोई भी व्यक्ति इन क्षेत्रों में महारत हासिल नहीं कर सकता| यही कारण है कि जो लोग सच्चे अर्थों में अध्यात्मिक व संत प्रवृति के हैं उनकी पत्रिका में अष्टम भाव, अष्टमेश तथा शनि काफी बली स्थिति में होते हैं| इस भाव का कारक ग्रह शनि है जो कि वास्तविक रूप में एक सच्चा सन्यासी व तपस्वी ग्रह है| रहस्य, सन्यास, त्याग, तपस्या, धैर्य, योग-ध्यान व मानव सेवा आदि विषय बिना शनिदेव की कृपा के मनुष्य को प्राप्त हो ही नहीं सकते| इसके अतिरिक्त जो लोग ख़ोज व अनुसंधान के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं उनके लिए भी अष्टम भाव एक निधि(ख़ज़ाने) से कम नहीं है| इससे यह सिद्ध हो जाता है कि ज्योतिष में कोई भी भाव व ग्रह बुरा नही होता बल्कि हरेक भाव व ग्रह की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं| कोई भी भाव व ग्रह मनुष्य के पूर्व कर्मों के अनुसार ही उसे अच्छा या बुरा फल देने के लिए बाध्य होता है|

-: अष्टम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है :-

  • आयुष्य का निर्णय- अष्टम भाव का मनुष्य की आयु से घनिष्ठ संबंध है| आयु का निर्णय प्रधान रूप से अष्टम भाव व अष्टमेश से किया जाता है| इसके अतिरिक्त लग्न, लग्नेश, तृतीय भाव, तृतीयेश, चन्द्र व शनि जैसे ग्रह आदि भी आयुनिर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| किसी भी व्यक्ति की आयु उसके पूर्व व इस जन्म के कर्मों से प्रभावित होती है अर्थात मनुष्य जैसा कर्म करके आता है और इस जन्म में जैसा कर्म कर रहा होता है उसका प्रभाव मनुष्य की आयु पर निश्चित रूप से पड़ता है| इसलिए आयु का निर्णय करना एक जटिल विषय है| फिर भी मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि यदि किसी भी पत्रिका में लग्न, लग्नेश, तृतीय भाव, तृतीयेश, अष्टम भाव, अष्टमेश तथा चन्द्र व शनि ग्रह बली अवस्था में हो तो व्यक्ति को दीर्घायु प्राप्त होती है| इसके विपरीत इन घटकों के कमजोर अवस्था में होने से व्यक्ति अल्पायु होता है|
  • मृत्यु का स्वरुप अर्थात मरण विधि- व्यक्ति की मृत्यु किस प्रकार और कहाँ होगी इसका विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है| यदि लग्नेश, तृतीयेश, एकादशेश तथा सूर्य आदि निजत्व(Self) के प्रतीक ग्रहों का प्रभाव अष्टम भाव तथा अष्टमेश पर पड़ता हो तो मनुष्य आत्मघात(Suicide) कर लेता है| यदि षष्ठेश, एकादशेश तथा मंगल का प्रभाव अष्टम भाव व उसके अधिपति पर हो तो चोट अथवा दुर्घटना आदि के द्वारा व्यक्ति की मृत्यु होती है| अष्टम भाव व अष्टमेश पर पाप व क्रूर ग्रहों का प्रभाव किसी दुर्घटना, चोट, व आकस्मिक कष्ट के कारण मृत्यु को बताता है जबकि इन घटकों पर शुभ ग्रहों के प्रभाव से मनुष्य की मृत्यु शांतिपूर्ण ढंग से होती है|
  • अष्टम भाव तथा विपरीत राजयोग- अष्टम भाव एक सर्वाधिक अशुभ भाव है| इसके साथ साथ छठा, बारहवां भाव भी अशुभ माने गए हैं| यदि अष्टम भाव का स्वामी छठे अथवा बाहरवें भाव में बैठा हो और केवल पाप ग्रहों से प्रभावित हो तो विपरीत राजयोग का निर्माण करता है| जिसके फलस्वरूप मनुष्य को अत्यंत धन-संपति की प्राप्ति होती है| इसके पीछे गणित का यह तर्क है कि जब दो नकारात्मक चीजें मिलती हैं तो वह शुभ फलदायी हो जाती हैं|
  • कर्कश जीवनसाथी- अष्टम भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से द्वितीय(वाणी) है अर्थात यह जीवनसाथी की वाणी तथा उसके बोलने के व्यवहार को दर्शाता है| यदि अष्टम भाव का स्वामी पाप ग्रह होकर अन्य पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो मनुष्य का जीवनसाथी कर्कश(कठोर व कड़वी) वाणी बोलने वाला होता है| इसके विपरीत यदि इन घटकों पर शुभ ग्रह का प्रभाव हो तो जीवनसाथी शिष्ट तथा मधुर वचन बोलने वाला होता है|
  • विदेश यात्रा- अष्टम स्थान “समुद्र” का है| समुद्र पार की यात्रा विदेश यात्रा मानी जाती है| जब अष्टम भाव तथा अष्टमेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तब समुद्र पार विदेश यात्रा करने का योग बनता है|
  • गूढ़ ख़ोज, शोध व अनुसंधान- अष्टम भाव गूढ़ रहस्य, ख़ोज व अनुसंधान से संबंधित भाव है| तृतीय भाव अष्टम भाव से अष्टम है, अतः यह भी गूढ़ ख़ोज तथा अनुसंधान से जुड़ा भाव है| पंचम भाव व्यक्ति की बुद्धि को दर्शाता है| इसलिए जब भी तृतीयेश तथा अष्टमेश का पंचम भाव तथा पंचमेश से संबंध बनता है तो व्यक्ति महान अविष्कारक, गूढ़ ख़ोज करने वाला, उच्च कोटि का अनुसंधानकर्ता होता है| यह अनुसंधान ग्रहों की प्रकृति के अनुरूप भौतिक या अध्यात्मिक जगत के किसी भी क्षेत्र से जुड़ा हो सकता है|
  • अष्टम भाव तथा असाध्य रोग- अष्टम भाव का गंभीर व असाध्य रोगों से भी संबंध है| जो रोग असाध्य तथा दीर्घकालीन होते हैं उनका विचार अष्टम भाव से ही किया जाता है| यदि अष्टम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति को नेत्र, हृदय तथा हड्डियों से संबंधित रोग होता है| यदि चन्द्र अष्टम भाव में हो तो मनुष्य को रक्त विकार, टी. बी., मनोरोग आदि होता है| मंगल अष्टम भाव में हो तो बवासीर, पट्ठे का रोग(atrophy of muscles), गुप्त रोग, गुप्त अंगों की शल्य चिकित्सा आदि होती है| यदि बुध अष्टम भाव में हो दमा, श्वास,वाणी, त्वचा, मस्तिष्क संबंधी विकार होते हैं| गुरु यदि अष्टम भाव में हो तो जिगर(लीवर), तिल्ली(Spleen) आदि से संबंधित रोग होते हैं| यदि शुक्र अष्टम भाव में हो तो मनुष्य को वीर्य व काम शक्ति संबंधित रोग होते हैं| शनि अष्टम भाव में हो तो मनुष्य को दीर्घायु प्रदान करता है, परंतु उसे स्नायु तथा वायु संबंधित रोग होते हैं| यदि राहु-केतु अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति को गुप्त रोग, गुप्त अंगों की शल्य चिकित्सा, मुख के रोग तथा कैंसर आदि असाध्य रोग होते हैं|
  • अष्टम भाव तथा नाश- अष्टम भाव एक नाश स्थान है इसलिए इसे निधन भाव भी कहते हैं| जिस भाव का स्वामी इस भाव में आ जाता है, उस भाव संबंधित विषयों को हानि पहुँचती है| जैसे पंचम भाव(संतान) का स्वामी यदि अष्टम भाव में आ जाए तो व्यक्ति को संतान संबंधित कष्ट होता है| इसी प्रकार यदि एकादशेश(ज्येष्ठ भ्राता व भगिनी) अष्टम भाव में बैठ जाए तो बड़े भाई-बहन की मृत्यु होती है|
  • अष्टम स्थान तथा दाम्पत्य सुख- अष्टम स्थान सप्तम स्थान(विवाह) से द्वितीय(घर तथा कुटुंब सुख) है| अतः इसका संबंध विवाहोपरांत मिलने वाले सुखों से भी है| स्त्री के लिए यह उसके पति की आयु तथा उसके कुटुंब(ससुराल) से प्राप्त होने वाले सुखों को दर्शाता है| अतः यदि अष्टम भाव तथा अष्टमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो स्त्री का पति दीर्घायु होता है तथा ससुराल पक्ष से भी उस स्त्री को पूर्ण सुख मिलता है|
  • दुर्घटना तथा आकस्मिक आघात- अष्टम भाव दुर्घटनाओं के अलावा आकस्मिक आघात का भी है| व्यक्ति के साथ होने वाली गंभीर दुर्घटना अथवा आकस्मिक शारीरिक आघात इसी भाव से देखे जाते हैं|
  • उत्तराधिकार व अनार्जित धन- वसीयत या पैत्रिक संपति का विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है| एकादश भाव लाभ का सूचक होता है जबकि द्वितीय तथा चतुर्थ भाव पैत्रिक धन-संपति तथा जायदाद के सूचक होते हैं| जब भी एकादशेश, द्वितीयेश तथा चतुर्थेश का संबंध अष्टम भाव व अष्टमेश से बनता है तब मनुष्य को अपने पूर्वजों की विरासत, पैत्रिक धन संपति व जायदाद प्राप्त होती है| सप्तम भाव(पत्नी) से द्वितीय स्थान(धन) होने के कारण अष्टम भाव स्त्री के धन तथा ससुराल पक्ष से मिलने वाले धन(दहेज़) का प्रतीक भी है क्योंकि आखिरकार दहेज़ अनार्जित धन का ही तो रूप है|
  • असामाजिक संबंध- अष्टम भाव एक छुपा हुआ भाव है अर्थात इसका संबंध रहस्यों से है| इसलिए कोई भी ऐसा कार्य अथवा संबंध जो असामाजिक हो इसी भाव से देखा जाता है| यदि अष्टम भाव तथा अष्टमेश पर पाप व क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहने, तस्करी या चोरी करने अथवा असामाजिक तत्वों के साथ लिप्त रहने जैसा कार्य कर सकता है| दशम भाव(कर्म) के स्वामी का अष्टम भाव(असामाजिक कार्य या संबंध) से संबंधित होकर पाप प्रभाव द्वारा पीड़ित होना व्यक्ति को चोर, डाकू, लुटेरा यहाँ तक कि हत्यारा तक बना सकता है|