Thursday 27 December 2018

तृतीय भाव का महत्व और विशेषताएँ

जन्म कुंडली में तृतीय भाव को वीरता और साहस का भाव कहा जाता है। यह हमारी संवाद शैली और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले प्रयासों को दर्शाता है। किसी भी तरह के कार्य को करने की इच्छाशक्ति का निर्धारण भी इस भाव से देखा जाता है। यह भाव आपके छोटे भाई-बहनों से भी संबंधित होता है। तृतीय भाव को विभिन्न माध्यमों से भी व्यक्त किया जाता है।



धैर्य भाव: बुरे विचार, स्तन, कान, विशेषकर दायां कान, वीरता, पराक्रम, भाई-बहन, मानसिक शक्ति
तृतीय भाव का महत्व और विशेषता तृतीय भाव भाई-बहन, बुद्धिमत्ता, पराक्रम, कम दूरी की यात्राएँ, पड़ोसी, नज़दीकी रिश्तेदार, पत्र और लेखन आदि का प्रतिनिधित्व करता है। तृतीय भाव से किसी भी व्यक्ति के साहस, पराक्रम, छोटे भाई-बहन, मित्र, धैर्य, लेखन, यात्रा और दायें कान का विचार किया जाता है। यह भाव दायें कान व स्तन, दृढता, वीरता और शौर्य को भी दर्शाता है। अष्टम भाव से अष्टम होने की वजह से तृतीय भाव जातक की आयु और चतुर्थ भाव से द्वादश होने के कारण माता की आयु का विचार भी इसी भाव से किया जाता है।


-: ज्योतिष में तृतीय भाव से क्या देखा जाता है? :-


    पराक्रम
    छोटे भाई-बहन
    कम दूरी की यात्राएँ
    लेखन कला
    मित्रता
    आयु

-: तृतीय भाव की ज्योतिषीय व्याख्या :- 

‘सत्याचार्य’ के अनुसार किसी व्यक्ति की मानसिक शक्ति, दृढ़ संकल्प और भाषा के बारे में जानने के लिए यह भाव देखा जाता है।

‘सर्वार्थ चिन्तामणि’ के अनुसार, यह भाव कुंडली में किसी भी व्यक्ति के लिए दवाई, मित्र, शिक्षा और कम दूरी की यात्राओं को दर्शाता है।

‘ऋषि पाराशर’ ने तृतीय भाव की व्याख्या करते हुए लिखा है कि, यह साहस और वीरता का भाव है। यह हमारी मानसिक क्षमता व स्थिरता, याददाशत और दिमागी प्रवृत्ति आदि को व्यक्त करता है। यह भाव मुख्य रूप से शिक्षा या ज्ञान प्राप्ति के लिए किये गये प्रयासों व झुकाव को दर्शाता है। काल पुरुष कुंडली में तृतीय भाव पर मिथुन राशि का नियंत्रण रहता है और इसका स्वामी बुध ग्रह होता है।

तृतीय भाव छोटे भाई-बहन, कजिन, प्रियजन, कर्ज से मुक्ति और पड़ोसियों के बारे में बताता है। सहज स्थान होने की वजह से यह भाव व्यक्ति को मिलने वाली मदद और अपने कार्य को पूरा करने के लिए मिलने वाली सहायता को दर्शाता है।

उत्तर कालामृत में कालिदास कहते हैं कि तृतीय भाव युद्ध, सड़क के किनारे वाला स्थान, मानसिक भ्रम की स्थिति, दुःख, सैनिक, कंठ, भोजन, कान, शुद्ध भोजन, संपत्ति का विभाजन, अंगुली और अंगूठे के बीच का स्थान, महिला सेवक, छोटे वाहन की यात्रा और धर्म को लेकर प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी को दर्शाता है।

‘जातक परिजात’ में कहा गया है कि, तृतीय भाव छोटे भाई-बहनों के कल्याण, प्रतिष्ठान, कान, चुनिंदा गहने, वस्त्र, स्थिरता, वीरता, शक्ति, जड़ युक्त खाद्य पदार्थ और फल आदि को दर्शाता है।

तृतीय भाव साहस, छोटी दूरी की यात्रा (साइकिल, ट्रेन, नदी, झील और वायु मार्ग के माध्यम से) का संकेत करता है। यह सभी प्रकार के पत्राचार, लेखन, अकाउंटिंग, गणित, समाचार, संचार के माध्यम जैसे- पोस्ट ऑफिस, लेटर बॉक्स, टेलीफोन, टेलीग्राफ, टेलीप्रिंट, टेलीविजन, टेली कम्युनिकेशन, रेडियो, रिपोर्ट, सिग्नल, एयर मेल आदि का प्रतिनिधित्व करता है।


तृतीय भाव किताब और प्रकाशन से संबंधित भी होता है, अतः इस भाव के प्रभाव से कोई भी व्यक्ति भविष्य में संपादक, रिपोर्टर, सूचना अधिकारी और पत्रकार बन सकता है। यह भाव निवास परिवर्तन, बेचैनी, बदलाव और परिवर्तन, पुस्तकालय, बुक स्टोर, भाव-राव, हस्ताक्षर (कॉन्ट्रेक्ट या समझौते पर) मध्यस्थता आदि का कारक भी होता है। इसके अलावा यह भाव हाथ, बांह, श्वसन और तंत्रिका तंत्र को भी दर्शाता है।

मेदिनी ज्योतिष के अनुसार तृतीय भाव परिवहन, टेलीकम्युनिकेशन, पोस्टल सर्विसेज, पड़ोसी देश और अन्य देशों के साथ संधियों को व्यक्त करता है।

वहीं नाड़ी ज्योतिष के अनुसार तृतीय भाव जातक के माता-पिता के पुनर्विवाह को भी दर्शाता है, यदि तृतीय भाव में एक से ज्यादा ग्रह स्थित हों।

प्रश्न ज्योतिष के अनुसार तृतीय भाव संचार के सभी माध्यमों को दर्शाता है। चाहे वह पत्र, पोस्टल डिलीवरी, टेलीफोन, फैक्स या इंटरनेट हो।

 
-: तृतीय भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध :-
वैदिक ज्योतिष में तृतीय भाव का संबंध संचार, संवाद, हाथों की मूवमेंट, शारीरिक पुष्टता, स्वयं के द्वारा की जाने वाली लंबी दूरी की यात्रा को दर्शाता है। यदि आप कोई काम अपने हाथों में लेकर उसे पूरा करते हैं, तो इसका बोध कुंडली में तृतीय भाव के माध्यम से किया जाता है। यह ड्राइविंग, कला, मीडिया, एंटरटेनमेंट, रोड, लेखन और आदेश, जो आप अपने नजदीकी रिश्तेदार या भाई-बहनों को संदेश के रूप में देते हैं। किसी भी कार्य को करने की क्षमता या यात्रा के बारे में तृतीय भाव से देखा जाता है।

यह भाव धन बढ़ोत्तरी के लिए किये जाने वाले प्रयासों को भी दर्शाता है। यह माता का भाव भी होता है। यद्यपि चतुर्थ भाव माता का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए कुंडली में तृतीय भाव से भी माता के संबंध में अध्ययन किया जाता है। यह भाव जीवन में खुशियों का अभाव या घर की खुशियों की कमी को भी दर्शाता है। यह आशा, कामना और बच्चों की इच्छा (विशेषकर पहली संतान), वृद्धि, सफलता, बच्चों को मिलने वाले पुरस्कार, जॉब, करियर, प्रशासनिक सेवा, बच्चों का व्यावसायिक लोन, वीरता और शत्रुओं से सामना करने का साहस, धर्म, गुरुजन और जीवनसाथी के सलाहकार को भी दर्शाता है।

तृतीय भाव बड़े परिवर्तन और ससुराल पक्ष में किसी की मृत्यु का बोध भी कराता है। यह अष्टम भाव से अष्टम पर स्थित होता है इसलिए मृत्यु जैसे विषयों का अनुभव कराता है। यह आपके जीवनसाथी के गुरु और जीवनसाथी के पिता का बोध भी कराता है। यह भाव कर्ज, बीमारी, आपके बड़े भाई-बहनों के बच्चे, आध्यात्मिक कर्मों के संचय को भी दर्शाता है। क्या आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी, क्या आप विदेश यात्रा पर जाएंगे, क्या आप अस्पताल में भर्ती होंगे आदि ये सभी बाते तृतीय भाव द्वारा व्यक्त की जाती है।

 
-: लाल किताब के अनुसार तृतीय भाव :- 
लाल किताब के अनुसार, तृतीय भाव भाई-बहन, संधि या समझौता, आपके हाथ, मजबूती, कलाई, युद्ध क्षेत्र, रिश्तेदार और घर की साज-सज्जा को दर्शाता है।

ज्योतिष ग्रन्थों के अनुसार, मंगल ग्रह तृतीय भाव का स्वामी होता लेकिन बुध ग्रह भी इस भाव को नियंत्रित करता है। इसलिए व्यक्ति पर इन दोनों ग्रहों का मिश्रित प्रभाव देखने को मिलता है। यह भाव नवम भाव के स्वामी और एकादश भाव के स्वामी के माध्यम से सक्रिय होते हैं। यदि ये दोनों भाव खाली होते है तो, तृतीय भाव निष्क्रिय या सामान्य रहता है। यह किसी भी प्रकार का फल प्रदान नहीं करता है।

Friday 21 December 2018

द्वितीय भाव का महत्व और विशेषताएँ


वैदिक ज्योतिष में द्वितीय भाव से धन, संपत्ति, कुटुंब परिवार, वाणी, गायन, नेत्र, प्रारंभिक शिक्षा और भोजन आदि बातों का विचार किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह भाव जातक के द्वारा जीवन में अर्जित किये गये स्वर्ण आभूषण, हीरे तथा अन्य बहुमूल्य पदार्थों के बारे में भी बोध कराता है। द्वितीय भाव को एक मारक भाव भी कहा जाता है।

              -: द्वितीय भाव से क्या देखा जाता है? :-  
द्वितीय भाव का कारक ग्रह बृहस्पति को माना गया है। इस भाव से धन, वाणी, संगीत, प्रारंभिक शिक्षा और नेत्र आदि का विचार किया जाता है। आर्थिक स्थिति: कुंडली में आमदनी और लाभ का विचार एकादश भाव के अलावा द्वितीय भाव से भी किया जाता है। जब द्वितीय भाव और एकादश भाव के स्वामी व गुरु मजबूत स्थिति में हों, तो व्यक्ति धनवान होता है। वहीं यदि कुंडली में इनकी स्थिति कमजोर हो तो, आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शुरुआती शिक्षा: चूंकि द्वितीय भाव का व्यक्ति की बाल्य अथवा किशोरावस्था से गहरा संबंध होता है इसलिए इस भाव से व्यक्ति की प्रारंभिक शिक्षा देखी जाती है। वाणी, गायन और संगीत: द्वितीय भाव का संबंध मनुष्य के मुख और वाणी से होता है। यदि द्वितीय भाव, द्वितीय भाव के स्वामी और वाणी का कारक कहे जाने वाले बुध ग्रह किसी प्रकार से पीड़ित हो, तो व्यक्ति को हकलाने या बोलने में परेशानी रह सकती है।  चूंकि द्वितीय भाव वाणी से संबंधित है इसलिए यह भाव गायन अथवा संगीत से भी संबंध को दर्शाता है।
नेत्र: द्वितीय भाव का संबंध व्यक्ति के नेत्र से भी होता है। इस भाव से प्रमुख रूप से दायें नेत्र के बारे में विचार करते हैं। यदि द्वितीय भाव में सूर्य अथवा चंद्रमा पापी ग्रहों से पीड़ित हों या फिर द्वितीय भाव व द्वितीय भाव के स्वामी पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो, तो व्यक्ति को नेत्र पीड़ा या विकार हो सकते हैं।
रूप-रंग और मुख: द्वितीय भाव मनुष्य के मुख और चेहरे की बनावट को दर्शाता है। यदि द्वितीय भाव का स्वामी बुध अथवा शुक्र हो और बलवान होकर अन्य शुभ ग्रहों से संबंधित हो, तो व्यक्ति सुंदर चेहरे वाला होता है, साथ ही व्यक्ति अच्छा बोलने वाला होता है।


-: वैदिक ज्योतिष के पुरातन ग्रन्थों में द्वितीय भाव :- 

उत्तर-कालामृत के अनुसार, द्वितीय भाव नाखून, सच और असत्य, जीभ, हीरे, सोना, तांबा और अन्य मूल्यवान स्टोन, दूसरों की मदद, मित्र, आर्थिक संपन्नता, धार्मिक कार्यों में विश्वास, नेत्र, वस्त्र, मोती, वाणी की मधुरता, सुंगधित इत्र, धन अर्जित करने के प्रयास, कष्ट, स्वतंत्रता, बोलने की बेहतर क्षमता और चांदी आदि को दर्शाता है। द्वितीय भाव आर्थिक संपन्नता, स्वयं द्वारा अर्जित धन या परिवार से मिले धन को दर्शाता है। यह भाव पैतृक, वंश, महत्वपूर्ण वस्तु या व्यक्ति आदि का बोध भी कराता है। कालपुरुष कुंडली में द्वितीय भाव की राशि वृषभ होती है जबकि इस भाव का स्वामी शुक्र को कहा जाता है।
प्रसन्नज्ञान में भट्टोत्पल कहते हैं कि द्वितीय भाव मोती, माणिक्य रत्न, खनिज पदार्थ, धन, वस्त्र और व्यवसाय को दर्शाता है।
मेदिनी ज्योतिष के अनुसार, द्वितीय भाव का आर्थिक मंत्रालय, राज्य की बचत, बैंक बेलैंस, रिजर्व बैंक की निधि या धन व आर्थिक मामलों से संबंध है।
प्रश्न ज्योतिष के अनुसार, द्वितीय भाव धन से जुड़े प्रश्न का निर्धारण करता है। इनमें लाभ या हानि, व्यवसाय से वृद्धि आदि बातें प्रमुख हैं।

      -: द्वितीय भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध :- 

 द्वितीय भाव कुंडली के अन्य भावों से भी अंतर्संबंध रखता है। यह भाव छोटे भाई-बहनों को हानि, उनके खर्च, छोटे भाई-बहनों से मिलने वाली मदद और उपहार,  जातक के हुनर और प्रयासों में कमी को दर्शाता है। द्वितीय भाव आपकी माँ के बड़े भाई-बहन, आपकी माँ को होने वाले लाभ और वृद्धि, समाज में आपकी माँ के संपर्क आदि को भी प्रकट करता है। वहीं द्वितीय भाव आपके बच्चों की शिक्षा, विशेषकर पहले बच्चे की, समाज में आपके बच्चों की छवि और प्रतिष्ठा का बोध कराता है।

द्वितीय भाव प्राचीन ज्ञान से संबंधित कर्म, मामा का भाग्य, उनकी लंबी यात्राएँ और विरोधियों के माध्यम से लाभ को दर्शाता है। यह आपके जीवनसाथी की मृत्यु, पुनर्जन्म, जीवनसाथी की संयुक्त संपत्ति, साझेदार से हानि या साझेदार के साथ मुनाफे की हिस्सेदारी का बोध कराता है।

द्वितीय भाव आपके सास-ससुर, आपके ससुराल पक्ष के व्यावसायिक साझेदार, ससुराल के लोगों से कानूनी संबंध, ससुराल के लोगों के साथ-साथ बाहरी दुनिया से संपर्क और पैतृक मामलों को दर्शाता है।

यह भाव स्वास्थ्य, रोग, पिता या गुरु की बीमारी, शत्रु, मानसिक और वैचारिक रूप से आपके विरोधी, निवेश, करियर की संभावना, शिक्षा, ज्ञान और आपके अधिकारियों की कलात्मकता को प्रकट करता है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में द्वितीय भाव बड़े भाई-बहनों की सुख-सुविधा, मित्रों का सुख, मित्रों के लिए आपका दृष्टिकोण, बड़े भाई-बहनों का आपकी माँ के साथ संबंध को दर्शाता है। यह भाव लेखन, आपकी दादी के बड़े भाई-बहन और दादी के बोलने की कला को भी प्रकट करता है। द्वितीय भाव गुप्त शत्रुओं की वजह से की गई यात्राओं पर हुए खर्च और प्रयासों को भी दर्शाता है।
लाल किताब के अनुसार द्वितीय भाव

लाल किताब के अनुसार द्वितीय भाव ससुराल पक्ष और उनके परिवार, धन, सोना, खजाना, अर्जित धन, धार्मिक स्थान, गौशाला, कीमती पत्थर और परिवार को दर्शाता है।

लाल किताब के अनुसार, कुंडली के द्वितीय भाव की सक्रियता के लिए नवम या दशम भाव में किसी ग्रह को उपस्थित होना चाहिए। यदि नवम और दशम भाव में कोई ग्रह नहीं रहता है तो द्वितीय भाव की निष्क्रियता बरकरार रहती है, फिर चाहें कोई शुभ ग्रह भी इस भाव में क्यों न बैठा हुआ हो।

कुंडली में द्वितीय भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। क्योंकि यह हमारे जीवन जीने की शैली, संपत्ति की खरीद, समाज में धन और भौतिक सुखों से मिलने वाली पहचान को दर्शाता है। द्वितीय भाव से यह निर्धारित होता है कि आपके द्वारा अर्जित धन से आप समाज में किस सम्मान के हकदार होंगे।