Thursday 27 December 2018

तृतीय भाव का महत्व और विशेषताएँ

जन्म कुंडली में तृतीय भाव को वीरता और साहस का भाव कहा जाता है। यह हमारी संवाद शैली और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले प्रयासों को दर्शाता है। किसी भी तरह के कार्य को करने की इच्छाशक्ति का निर्धारण भी इस भाव से देखा जाता है। यह भाव आपके छोटे भाई-बहनों से भी संबंधित होता है। तृतीय भाव को विभिन्न माध्यमों से भी व्यक्त किया जाता है।



धैर्य भाव: बुरे विचार, स्तन, कान, विशेषकर दायां कान, वीरता, पराक्रम, भाई-बहन, मानसिक शक्ति
तृतीय भाव का महत्व और विशेषता तृतीय भाव भाई-बहन, बुद्धिमत्ता, पराक्रम, कम दूरी की यात्राएँ, पड़ोसी, नज़दीकी रिश्तेदार, पत्र और लेखन आदि का प्रतिनिधित्व करता है। तृतीय भाव से किसी भी व्यक्ति के साहस, पराक्रम, छोटे भाई-बहन, मित्र, धैर्य, लेखन, यात्रा और दायें कान का विचार किया जाता है। यह भाव दायें कान व स्तन, दृढता, वीरता और शौर्य को भी दर्शाता है। अष्टम भाव से अष्टम होने की वजह से तृतीय भाव जातक की आयु और चतुर्थ भाव से द्वादश होने के कारण माता की आयु का विचार भी इसी भाव से किया जाता है।


-: ज्योतिष में तृतीय भाव से क्या देखा जाता है? :-


    पराक्रम
    छोटे भाई-बहन
    कम दूरी की यात्राएँ
    लेखन कला
    मित्रता
    आयु

-: तृतीय भाव की ज्योतिषीय व्याख्या :- 

‘सत्याचार्य’ के अनुसार किसी व्यक्ति की मानसिक शक्ति, दृढ़ संकल्प और भाषा के बारे में जानने के लिए यह भाव देखा जाता है।

‘सर्वार्थ चिन्तामणि’ के अनुसार, यह भाव कुंडली में किसी भी व्यक्ति के लिए दवाई, मित्र, शिक्षा और कम दूरी की यात्राओं को दर्शाता है।

‘ऋषि पाराशर’ ने तृतीय भाव की व्याख्या करते हुए लिखा है कि, यह साहस और वीरता का भाव है। यह हमारी मानसिक क्षमता व स्थिरता, याददाशत और दिमागी प्रवृत्ति आदि को व्यक्त करता है। यह भाव मुख्य रूप से शिक्षा या ज्ञान प्राप्ति के लिए किये गये प्रयासों व झुकाव को दर्शाता है। काल पुरुष कुंडली में तृतीय भाव पर मिथुन राशि का नियंत्रण रहता है और इसका स्वामी बुध ग्रह होता है।

तृतीय भाव छोटे भाई-बहन, कजिन, प्रियजन, कर्ज से मुक्ति और पड़ोसियों के बारे में बताता है। सहज स्थान होने की वजह से यह भाव व्यक्ति को मिलने वाली मदद और अपने कार्य को पूरा करने के लिए मिलने वाली सहायता को दर्शाता है।

उत्तर कालामृत में कालिदास कहते हैं कि तृतीय भाव युद्ध, सड़क के किनारे वाला स्थान, मानसिक भ्रम की स्थिति, दुःख, सैनिक, कंठ, भोजन, कान, शुद्ध भोजन, संपत्ति का विभाजन, अंगुली और अंगूठे के बीच का स्थान, महिला सेवक, छोटे वाहन की यात्रा और धर्म को लेकर प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी को दर्शाता है।

‘जातक परिजात’ में कहा गया है कि, तृतीय भाव छोटे भाई-बहनों के कल्याण, प्रतिष्ठान, कान, चुनिंदा गहने, वस्त्र, स्थिरता, वीरता, शक्ति, जड़ युक्त खाद्य पदार्थ और फल आदि को दर्शाता है।

तृतीय भाव साहस, छोटी दूरी की यात्रा (साइकिल, ट्रेन, नदी, झील और वायु मार्ग के माध्यम से) का संकेत करता है। यह सभी प्रकार के पत्राचार, लेखन, अकाउंटिंग, गणित, समाचार, संचार के माध्यम जैसे- पोस्ट ऑफिस, लेटर बॉक्स, टेलीफोन, टेलीग्राफ, टेलीप्रिंट, टेलीविजन, टेली कम्युनिकेशन, रेडियो, रिपोर्ट, सिग्नल, एयर मेल आदि का प्रतिनिधित्व करता है।


तृतीय भाव किताब और प्रकाशन से संबंधित भी होता है, अतः इस भाव के प्रभाव से कोई भी व्यक्ति भविष्य में संपादक, रिपोर्टर, सूचना अधिकारी और पत्रकार बन सकता है। यह भाव निवास परिवर्तन, बेचैनी, बदलाव और परिवर्तन, पुस्तकालय, बुक स्टोर, भाव-राव, हस्ताक्षर (कॉन्ट्रेक्ट या समझौते पर) मध्यस्थता आदि का कारक भी होता है। इसके अलावा यह भाव हाथ, बांह, श्वसन और तंत्रिका तंत्र को भी दर्शाता है।

मेदिनी ज्योतिष के अनुसार तृतीय भाव परिवहन, टेलीकम्युनिकेशन, पोस्टल सर्विसेज, पड़ोसी देश और अन्य देशों के साथ संधियों को व्यक्त करता है।

वहीं नाड़ी ज्योतिष के अनुसार तृतीय भाव जातक के माता-पिता के पुनर्विवाह को भी दर्शाता है, यदि तृतीय भाव में एक से ज्यादा ग्रह स्थित हों।

प्रश्न ज्योतिष के अनुसार तृतीय भाव संचार के सभी माध्यमों को दर्शाता है। चाहे वह पत्र, पोस्टल डिलीवरी, टेलीफोन, फैक्स या इंटरनेट हो।

 
-: तृतीय भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध :-
वैदिक ज्योतिष में तृतीय भाव का संबंध संचार, संवाद, हाथों की मूवमेंट, शारीरिक पुष्टता, स्वयं के द्वारा की जाने वाली लंबी दूरी की यात्रा को दर्शाता है। यदि आप कोई काम अपने हाथों में लेकर उसे पूरा करते हैं, तो इसका बोध कुंडली में तृतीय भाव के माध्यम से किया जाता है। यह ड्राइविंग, कला, मीडिया, एंटरटेनमेंट, रोड, लेखन और आदेश, जो आप अपने नजदीकी रिश्तेदार या भाई-बहनों को संदेश के रूप में देते हैं। किसी भी कार्य को करने की क्षमता या यात्रा के बारे में तृतीय भाव से देखा जाता है।

यह भाव धन बढ़ोत्तरी के लिए किये जाने वाले प्रयासों को भी दर्शाता है। यह माता का भाव भी होता है। यद्यपि चतुर्थ भाव माता का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए कुंडली में तृतीय भाव से भी माता के संबंध में अध्ययन किया जाता है। यह भाव जीवन में खुशियों का अभाव या घर की खुशियों की कमी को भी दर्शाता है। यह आशा, कामना और बच्चों की इच्छा (विशेषकर पहली संतान), वृद्धि, सफलता, बच्चों को मिलने वाले पुरस्कार, जॉब, करियर, प्रशासनिक सेवा, बच्चों का व्यावसायिक लोन, वीरता और शत्रुओं से सामना करने का साहस, धर्म, गुरुजन और जीवनसाथी के सलाहकार को भी दर्शाता है।

तृतीय भाव बड़े परिवर्तन और ससुराल पक्ष में किसी की मृत्यु का बोध भी कराता है। यह अष्टम भाव से अष्टम पर स्थित होता है इसलिए मृत्यु जैसे विषयों का अनुभव कराता है। यह आपके जीवनसाथी के गुरु और जीवनसाथी के पिता का बोध भी कराता है। यह भाव कर्ज, बीमारी, आपके बड़े भाई-बहनों के बच्चे, आध्यात्मिक कर्मों के संचय को भी दर्शाता है। क्या आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी, क्या आप विदेश यात्रा पर जाएंगे, क्या आप अस्पताल में भर्ती होंगे आदि ये सभी बाते तृतीय भाव द्वारा व्यक्त की जाती है।

 
-: लाल किताब के अनुसार तृतीय भाव :- 
लाल किताब के अनुसार, तृतीय भाव भाई-बहन, संधि या समझौता, आपके हाथ, मजबूती, कलाई, युद्ध क्षेत्र, रिश्तेदार और घर की साज-सज्जा को दर्शाता है।

ज्योतिष ग्रन्थों के अनुसार, मंगल ग्रह तृतीय भाव का स्वामी होता लेकिन बुध ग्रह भी इस भाव को नियंत्रित करता है। इसलिए व्यक्ति पर इन दोनों ग्रहों का मिश्रित प्रभाव देखने को मिलता है। यह भाव नवम भाव के स्वामी और एकादश भाव के स्वामी के माध्यम से सक्रिय होते हैं। यदि ये दोनों भाव खाली होते है तो, तृतीय भाव निष्क्रिय या सामान्य रहता है। यह किसी भी प्रकार का फल प्रदान नहीं करता है।

Friday 21 December 2018

द्वितीय भाव का महत्व और विशेषताएँ


वैदिक ज्योतिष में द्वितीय भाव से धन, संपत्ति, कुटुंब परिवार, वाणी, गायन, नेत्र, प्रारंभिक शिक्षा और भोजन आदि बातों का विचार किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह भाव जातक के द्वारा जीवन में अर्जित किये गये स्वर्ण आभूषण, हीरे तथा अन्य बहुमूल्य पदार्थों के बारे में भी बोध कराता है। द्वितीय भाव को एक मारक भाव भी कहा जाता है।

              -: द्वितीय भाव से क्या देखा जाता है? :-  
द्वितीय भाव का कारक ग्रह बृहस्पति को माना गया है। इस भाव से धन, वाणी, संगीत, प्रारंभिक शिक्षा और नेत्र आदि का विचार किया जाता है। आर्थिक स्थिति: कुंडली में आमदनी और लाभ का विचार एकादश भाव के अलावा द्वितीय भाव से भी किया जाता है। जब द्वितीय भाव और एकादश भाव के स्वामी व गुरु मजबूत स्थिति में हों, तो व्यक्ति धनवान होता है। वहीं यदि कुंडली में इनकी स्थिति कमजोर हो तो, आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शुरुआती शिक्षा: चूंकि द्वितीय भाव का व्यक्ति की बाल्य अथवा किशोरावस्था से गहरा संबंध होता है इसलिए इस भाव से व्यक्ति की प्रारंभिक शिक्षा देखी जाती है। वाणी, गायन और संगीत: द्वितीय भाव का संबंध मनुष्य के मुख और वाणी से होता है। यदि द्वितीय भाव, द्वितीय भाव के स्वामी और वाणी का कारक कहे जाने वाले बुध ग्रह किसी प्रकार से पीड़ित हो, तो व्यक्ति को हकलाने या बोलने में परेशानी रह सकती है।  चूंकि द्वितीय भाव वाणी से संबंधित है इसलिए यह भाव गायन अथवा संगीत से भी संबंध को दर्शाता है।
नेत्र: द्वितीय भाव का संबंध व्यक्ति के नेत्र से भी होता है। इस भाव से प्रमुख रूप से दायें नेत्र के बारे में विचार करते हैं। यदि द्वितीय भाव में सूर्य अथवा चंद्रमा पापी ग्रहों से पीड़ित हों या फिर द्वितीय भाव व द्वितीय भाव के स्वामी पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो, तो व्यक्ति को नेत्र पीड़ा या विकार हो सकते हैं।
रूप-रंग और मुख: द्वितीय भाव मनुष्य के मुख और चेहरे की बनावट को दर्शाता है। यदि द्वितीय भाव का स्वामी बुध अथवा शुक्र हो और बलवान होकर अन्य शुभ ग्रहों से संबंधित हो, तो व्यक्ति सुंदर चेहरे वाला होता है, साथ ही व्यक्ति अच्छा बोलने वाला होता है।


-: वैदिक ज्योतिष के पुरातन ग्रन्थों में द्वितीय भाव :- 

उत्तर-कालामृत के अनुसार, द्वितीय भाव नाखून, सच और असत्य, जीभ, हीरे, सोना, तांबा और अन्य मूल्यवान स्टोन, दूसरों की मदद, मित्र, आर्थिक संपन्नता, धार्मिक कार्यों में विश्वास, नेत्र, वस्त्र, मोती, वाणी की मधुरता, सुंगधित इत्र, धन अर्जित करने के प्रयास, कष्ट, स्वतंत्रता, बोलने की बेहतर क्षमता और चांदी आदि को दर्शाता है। द्वितीय भाव आर्थिक संपन्नता, स्वयं द्वारा अर्जित धन या परिवार से मिले धन को दर्शाता है। यह भाव पैतृक, वंश, महत्वपूर्ण वस्तु या व्यक्ति आदि का बोध भी कराता है। कालपुरुष कुंडली में द्वितीय भाव की राशि वृषभ होती है जबकि इस भाव का स्वामी शुक्र को कहा जाता है।
प्रसन्नज्ञान में भट्टोत्पल कहते हैं कि द्वितीय भाव मोती, माणिक्य रत्न, खनिज पदार्थ, धन, वस्त्र और व्यवसाय को दर्शाता है।
मेदिनी ज्योतिष के अनुसार, द्वितीय भाव का आर्थिक मंत्रालय, राज्य की बचत, बैंक बेलैंस, रिजर्व बैंक की निधि या धन व आर्थिक मामलों से संबंध है।
प्रश्न ज्योतिष के अनुसार, द्वितीय भाव धन से जुड़े प्रश्न का निर्धारण करता है। इनमें लाभ या हानि, व्यवसाय से वृद्धि आदि बातें प्रमुख हैं।

      -: द्वितीय भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध :- 

 द्वितीय भाव कुंडली के अन्य भावों से भी अंतर्संबंध रखता है। यह भाव छोटे भाई-बहनों को हानि, उनके खर्च, छोटे भाई-बहनों से मिलने वाली मदद और उपहार,  जातक के हुनर और प्रयासों में कमी को दर्शाता है। द्वितीय भाव आपकी माँ के बड़े भाई-बहन, आपकी माँ को होने वाले लाभ और वृद्धि, समाज में आपकी माँ के संपर्क आदि को भी प्रकट करता है। वहीं द्वितीय भाव आपके बच्चों की शिक्षा, विशेषकर पहले बच्चे की, समाज में आपके बच्चों की छवि और प्रतिष्ठा का बोध कराता है।

द्वितीय भाव प्राचीन ज्ञान से संबंधित कर्म, मामा का भाग्य, उनकी लंबी यात्राएँ और विरोधियों के माध्यम से लाभ को दर्शाता है। यह आपके जीवनसाथी की मृत्यु, पुनर्जन्म, जीवनसाथी की संयुक्त संपत्ति, साझेदार से हानि या साझेदार के साथ मुनाफे की हिस्सेदारी का बोध कराता है।

द्वितीय भाव आपके सास-ससुर, आपके ससुराल पक्ष के व्यावसायिक साझेदार, ससुराल के लोगों से कानूनी संबंध, ससुराल के लोगों के साथ-साथ बाहरी दुनिया से संपर्क और पैतृक मामलों को दर्शाता है।

यह भाव स्वास्थ्य, रोग, पिता या गुरु की बीमारी, शत्रु, मानसिक और वैचारिक रूप से आपके विरोधी, निवेश, करियर की संभावना, शिक्षा, ज्ञान और आपके अधिकारियों की कलात्मकता को प्रकट करता है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में द्वितीय भाव बड़े भाई-बहनों की सुख-सुविधा, मित्रों का सुख, मित्रों के लिए आपका दृष्टिकोण, बड़े भाई-बहनों का आपकी माँ के साथ संबंध को दर्शाता है। यह भाव लेखन, आपकी दादी के बड़े भाई-बहन और दादी के बोलने की कला को भी प्रकट करता है। द्वितीय भाव गुप्त शत्रुओं की वजह से की गई यात्राओं पर हुए खर्च और प्रयासों को भी दर्शाता है।
लाल किताब के अनुसार द्वितीय भाव

लाल किताब के अनुसार द्वितीय भाव ससुराल पक्ष और उनके परिवार, धन, सोना, खजाना, अर्जित धन, धार्मिक स्थान, गौशाला, कीमती पत्थर और परिवार को दर्शाता है।

लाल किताब के अनुसार, कुंडली के द्वितीय भाव की सक्रियता के लिए नवम या दशम भाव में किसी ग्रह को उपस्थित होना चाहिए। यदि नवम और दशम भाव में कोई ग्रह नहीं रहता है तो द्वितीय भाव की निष्क्रियता बरकरार रहती है, फिर चाहें कोई शुभ ग्रह भी इस भाव में क्यों न बैठा हुआ हो।

कुंडली में द्वितीय भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। क्योंकि यह हमारे जीवन जीने की शैली, संपत्ति की खरीद, समाज में धन और भौतिक सुखों से मिलने वाली पहचान को दर्शाता है। द्वितीय भाव से यह निर्धारित होता है कि आपके द्वारा अर्जित धन से आप समाज में किस सम्मान के हकदार होंगे।

Wednesday 28 November 2018

लग्न का महत्व और विशेषताएँ


जब कोई भी व्यक्ति जन्म लेता है तो उस समय विशेष में आकाश में स्थित राशि,  नक्षत्र और ग्रहों की स्थिति के प्रभाव को ग्रहण करता है। दूसरे शब्दों में जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदय होती है, वही व्यक्ति का लग्न बन जाता है। लग्न के निर्धारण के बाद ही कुंडली का निर्माण होता है। जिसमें ग्रहों की निश्चित भावों, राशि और नक्षत्रों में स्थिति का पता चलता है। इसलिए बिना लग्न के जन्म कुंडली की कल्पना नहीं की जा सकती है। प्रथम भाव का कारक सूर्य को कहा जाता है। इस भाव से व्यक्ति की शारीरिक संरचना, रुप, रंग, ज्ञान, स्वभाव, बाल्यावस्था और आयु आदि का विचार किया जाता है। प्रथम भाव के स्वामी को लग्नेश का कहा जाता है। लग्न भाव का स्वामी अगर क्रूर ग्रह भी हो तो, वह अच्छा फल देता है। शारीरिक संरचना: प्रथम भाव से व्यक्ति की शारीरिक बनावट और कद-काठी के बारे में पता चलता है। यदि प्रथम भाव पर जलीय ग्रहों का प्रभाव अधिक होता है तो व्यक्ति मोटा होता है। वहीं अगर शुष्क ग्रहों और राशियों का संबंध लग्न पर अधिक रहता है तो जातक दुबला होता है। स्वभाव: किसी भी व्यक्ति के स्वभाव को समझने के लिए लग्न का बहुत महत्व है। लग्न मनुष्य के विचारों की शक्ति को दर्शाता है। यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थ भाव का स्वामी, चंद्रमा, लग्न व लग्न भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव होता है तो व्यक्ति दयालु और सरल स्वभाव वाला होता है। वहीं इसके विपरीत अशुभ ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति क्रूर प्रवृत्ति का होता है। आयु और स्वास्थ्य: प्रथम भाव व्यक्ति की आयु और सेहत को दर्शाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब लग्न, लग्न भाव के स्वामी के साथ-साथ सूर्य, चंद्रमा, शनि और तृतीय व अष्टम भाव और इनके स्वामी मजबूत हों तो, व्यक्ति को दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। वहीं यदि इन घटकों पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो या कमजोर हों, तो यह स्थिति व्यक्ति की अल्पायु को दर्शाती है। बाल्यकाल: प्रथम भाव से व्यक्ति के बचपन का बोध भी होता है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार यदि लग्न के साथ लग्न भाव के स्वामी और चंद्रमा पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो व्यक्ति को बाल्यकाल में शारीरिक कष्ट उठाने पड़ते हैं। वहीं शुभ ग्रहों के प्रभाव से बाल्यावस्था अच्छे से व्यतीत होती है। मान-सम्मान: प्रथम भाव मनुष्य के मान-सम्मान, सुख और यश को भी दर्शाता है। यदि लग्न, लग्न भाव का स्वामी, चंद्रमा, सूर्य, दशम भाव और इनके स्वामी बलवान अवस्था में हों, तो व्यक्ति को जीवन में मान-सम्मान प्राप्त होता है।
   -: वैदिक ज्योतिष के पुरातन ग्रन्थों में प्रथम भाव :-
 “उत्तर-कालामृत” के अनुसार, “प्रथम भाव मुख्य रूप से मनुष्य के शरीर के अंग, स्वास्थ्य, प्रसन्नता, प्रसिद्धि समेत 33 विषयों का कारक होता है।” प्रथम भाव को मुख्य रूप से स्वयं का भाव कहा जाता है। यह मनुष्य के शरीर और शारीरिक संरचना का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमारे शरीर के ऊपरी हिस्से जैसे चेहरे की बनावट, नाक-नक्शा, सिर और मस्तिष्क आदि को प्रकट करता है। काल पुरुष कुंडली में प्रथम भाव मेष राशि को दर्शाता है, जिसका स्वामी ग्रह मंगल है।
सत्याचार्य के अनुसार, कुंडली में प्रथम भाव अच्छे और बुरे परिणाम, बाल्यकाल में आने वाली समस्याएँ, हर्ष व दुःख और देश या विदेश में निवेश की संभावनाओं को प्रकट करता है।

नाम, प्रसिद्धि और सामाजिक प्रतिष्ठा का विचार भी लग्न से किया जा सकता है। उच्च शिक्षा, लंबी यात्राएँ, पढ़ाई के दौरान छात्रावास में जीवन, बच्चों के अनजान और विदेशी लोगों से संपर्कों (विशेषकर पहली संतान के) का बोध भी लग्न से किया जाता है।
‘प्रसन्नज्ञान’ में भट्टोत्पल कहते हैं कि जन्म, स्वास्थ्य, हर्ष, गुण, रोग, रंग, आयु और दीर्घायु का विचार प्रथम भाव से किया जाता है।

प्रथम भाव से मानसिक शांति, स्वभाव, शोक, कार्य की ओर झुकाव, दूसरों का अपमान करने की प्रवृत्ति, सीधा दृष्टिकोण, संन्यास, पांच इंद्रियां, स्वप्न, निंद्रा, ज्ञान, दूसरों के धन को लेकर नजरिया, वृद्धावस्था, पूर्वजन्म, नैतिकता, राजनीति, त्वचा, शांति, लालसा, अत्याचार, अहंकार, असंतोष, मवेशी और शिष्टाचार आदि का बोध होता है।
मेदिनी ज्योतिष में लग्न से पूरे देश का विचार किया जाता है, जो कि राज्य, लोगों और स्थानीयता को दर्शाता है। प्रश्न ज्योतिष में प्रथम भाव प्रश्न पूछने वाले को दर्शाता है। 

-: प्रथम भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध :-
प्रथम भाव अन्य भावों से भी अंतर्संबंध बनाता है। यह पारिवारिक धन की हानि को भी दर्शाता है। यदि आप विरासत में मिली संपत्ति को स्वयं के उपभोग के लिए इस्तेमाल करते हैं, अतः यह संकेत करता है कि आप अपने धन की हानि कर रहे हैं। इससे आपके स्वास्थ्य के बारे में भी पता चलता है, अतः आप विरासत में मिले धन को इलाज पर भी खर्च कर सकते हैं। यह मुख्य रूप से अस्पताल के खर्च, कोर्ट की फीस और अन्य खर्चों को दर्शाता है। यह भाव भाई-बहनों की उन्नति और स्वयं अपने प्रयासों, कौशल और संवाद के जरिये तरक्की करने का बोध कराता है। प्रथम भाव करियर, सम्मान, माता की सामाजिक प्रतिष्ठा, आपके बच्चों की उच्च शिक्षा, आपके बच्चों के शिक्षक, आपके बच्चों की लंबी दूरी की यात्राएँ, बच्चों का भाग्य, आपके शत्रुओं की हानि और उन पर आपकी विजय को प्रकट करता है। इसके अतिरिक्त यह कर्ज और बीमारी को भी दर्शाता है। यह भाव आपके जीवनसाथी और उसकी इच्छाओं के बारे में दर्शाता है। इसके अतिरिक्त यह भाव आपके ससुराल पक्ष के लोगों की सेहत और जीवनसाथी की सेहत को भी प्रकट करता है। ठीक इसी प्रकार प्रथम भाव पिता के व्यवसाय से जुड़ी संभावनाओं को दर्शाता, पिता के भाग्य, पिता के बच्चों (यानि आप) और उनकी शिक्षा के बारे में बताता है। लग्न भाव आपकी खुशियां और समाज में आपकी प्रतिष्ठा को भी दर्शाता है। वहीं कार्यस्थल पर अपने कौशल से वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मिलने वाली प्रशंसा को भी प्रकट करता है। यह बड़े भाई-बहनों के प्रयास और उनकी भाषा, स्वयं के प्रयासों द्वारा अर्जित आय का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह भाव धन संचय के अलावा व्यय को भी दर्शाता है।
-: लाल किताब के अनुसार प्रथम भाव :-
लाल किताब में प्रथम भाव को स्वास्थ्य, साहस, पराक्रम, कार्य करने की क्षमता, हर्ष, दुःख, शरीर, गला, शाही या सरकारी जीवन को दर्शाता है। लाल किताब में प्रथम भाव को सभी 12 भावों का राजा कहा गया है और सप्तम भाव को गृह मंत्री कहा जाता है। प्रथम भाव में एक से अधिक ग्रहों का स्थित रहना अच्छा नहीं माना जाता है। क्योंकि इसकी वजह से दिमाग में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। क्योंकि यदि यहां पर एक सेनापति के लिए एक से अधिक राजा हों तो, यह शुभ फल प्रदान नहीं करता है। वहीं अगर सप्तम भाव में एक से अधिक ग्रह और प्रथम भाव में केवल एक ही ग्रह हो, तो यह स्थिति जातक के लिए बहुत बेहतर होती है। लाल किताब में प्रथम भाव को राज सिंहासन कहा गया है। यदि कोई ग्रह प्रथम भाव में स्थित रहता है तो वह अपने शत्रु ग्रहों को हानि पहुंचाता है और उसके बाद अपनी स्थिति के अनुसार फल देता है। मान लीजिये, यदि कोई क्रूर ग्रह प्रथम भाव में गोचर कर रहा है, तो इस भाव में स्थित ग्रह उसे नष्ट कर देगा या उसके दुष्प्रभावों को कम कर देगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि प्रथम भाव हम सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि यह हमारे व्यक्तित्व, स्वभाव, शरीर, स्वास्थ्य और रूप, रंग आदि को प्रकट करता है, जिनका जीवन में बड़ा महत्व होता है।

Sunday 18 November 2018

धन-सम्पत्ति बंटवारे के लिए शुभ मुहुर्त

 

कहा जाता है कि दुनियां में संघर्ष का सबसे बड़ा कारण है सम्पत्ति। सभी व्यक्ति चाहते हैं, कि उनके हिस्से में अधिक से अधिक सम्पत्ति आए इसके लिए जब भी सम्पत्ति विभाजन की बात आती है, सभी हिस्सेदार अपने अपने स्वार्थ को साधने में जुट जाते हैं।

इस परिस्थिति में कई बार स्थिति ऐसी हो जाती है, कि आपस में कलह, विवाद एवं संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है और बात अदालत तक पहु्च जाती है। ज्योतिष के नज़रिये से देखें तो इस तरह की स्थिति तब पैदा होती है, जब धन-सम्पत्ति का अशुभ मुहुर्त में बंटवारा किया जाए। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब सम्पत्ति बंटवारा करना हो उससे पहले मुहुर्त का विचार अवश्य कर लें। मुहुर्त का विचार करके बंटवारा करने से शांतिपूर्ण तरीके से विभाजन होता है और इसमें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं आती है। सम्पत्ति के बंटवारे के लिए आपको मुहुर्त का विचार किस प्रकार से करना चाहिए आइये दखें 

1.नक्षत्र विचार :
जिस दिन सम्पत्ति का बंटवारा करना हो उस दिन यह देखें कि नक्षत्र कौन सा है। अगर उस दिन हस्त, अश्विनी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, स्वाती, पुनर्वसु, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, मृगशिरा, चित्रा और रेवती नक्षत्र हो तो यह बहुत ही शुभ होता है। इन नक्षत्रों को सम्पत्ति विभाजन के लिए श्रेष्ठ कहा गया है।
 

2.तिथि विचार :
किसी भी कार्य में मुहुर्त का आंकलन करने के लिए तिथि की शुभता का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। अगर तिथि शुभ नहीं हो तो परिणाम की अनुकूलता में आशंका रहती है, बात जब सम्पत्ति के बंटवारे की हो तो ध्यान रखना चाहिए कि जिस दिन बंटवारा करना हो उस दिन द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा में से कोई तिथि विराजमान हो। उपरोक्त तिथियों को इस संदर्भ में उत्तम माना गया है।
 

3.वार विचार :
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सम्पत्ति के बंटवारे के लिए वार का भी आंकलन जरूर कर लेना चाहिए । जिस दिन बताए गये नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो, उपरोक्त तिथियों में से कोई तिथि हो और रविवार, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार में से कोई वार हो उस दिन आपको सम्पत्ति का विभाजन करना चाहिए। 

इस विषय में ध्यान रखे कि जिस दिन आप सम्पत्ति का बंटवारा कर रहे है उस दिन मुहुर्त में लग्न शुभ हो । अगर स्थिति इस प्रकार की नहीं हो तो बंटवारा करने की न सोचें।

Saturday 3 November 2018

बृहस्पति और शुक्र व दाम्पत्य जीवन


बृहस्पति और शुक्र दो ग्रह हैं, जो पुरूष और स्त्री का प्रतिनिधित्व करते हैं.मुख्य रूप ये दो ग्रह वैवाहिक जीवन में सुख दु:ख, संयोग और वियोग का फल देते है।

सप्तम भाव जीवन साथी का घर होता है, इस घर में इन दोनों ग्रहों की स्थिति एवं प्रभाव के अनुसार विवाह एवं दाम्पत्य सुख का सुखद अथवा दुखद फल मिलता है। पुरूष की कुण्डली में शुक्र ग्रह पत्नी एवं वैवाहिक सुख का कारक होता है, और स्त्री की कुण्डली में बृहस्पति.ये दोनों ग्रह स्त्री एवं पुरूष की कुण्डली में जहां स्थित होते हैं,और जिन स्थानों को देखते हैं, उनके अनुसार जीवनसाथी मिलता है और वैवाहिक सुख प्राप्त होता है।

ज्योतिषशास्त्र का नियम है कि बृहस्पति जिस भाव में होता हैं उस भाव के फल को दूषित करता है। और जिस भाव पर इनकी दृष्टि होती है, उस भाव से सम्बन्धित शुभ फल प्रदान करते है। जिस स्त्री अथवा पुरूष की कुण्डली में गुरू सप्तम भाव में विराजमान होता हैं, उनका विवाह या तो विलम्ब से होता है, अथवा दाम्पत्य जीवन के सुख में कमी आती है। पति पत्नी में अनबन और क्लेश के कारण गृहस्थी में उथल पुथल मची  रहती है।
दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने में बृहस्पति और शुक्र का सप्तम भाव और सप्तमेश से सम्बन्ध महत्वपूर्ण होता है। जिस पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह शुक बृहस्पति से युत या दृष्ट होता है, उसे सुन्दर गुणों वाली अच्छी जीवनसंगिनी मिलती है। इसी प्रकार जिस स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह बृहस्पति शुक्र से युत या दृष्ट होता है। उसे सुन्दर और अच्छे संस्कारों वाला पति मिलता है।


शुक्र भी बृहस्पति के समान सप्तम भाव में सफल वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है। सप्तम भाव का शुक्र व्यक्ति को अधिक कामुक बनाता है। जिससे
विवाहोत्तर सम्बन्ध की संभावना प्रबल रहती है। विवाहोत्तर सम्बन्ध के कारण वैवाहिक जीवन में क्लेश के कारण गृहस्थ जीवन का सुख नष्ट होता है, बृहस्पति और शुक्र जब सप्तम भाव को देखते हैं अथवा सप्तमेश पर दृष्टि डालते हैं, तो इस स्थिति में वैवाहिक जीवन सफल और सुखद होता है। लग्न में बृहस्पति अगर पापकर्तरी योग से पीड़ित होता है, तो सप्तम भाव पर इसकी दृष्टि का शुभ प्रभाव नहीं होता है। ऐसे में सप्तमेश कमज़ोर हो या शुक्र के साथ हो तो दाम्पत्य जीवन सुखद और सफल रहने की संभावना कम हो जाती है।

Monday 29 October 2018

विवाह काल ज्ञात करने हेतु



विवाह काल ज्ञात करने हेतु सबसे पहले कुण्डली में विवाह के योग देखे जाते है। इसके लिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र से संबन्ध बनाने वाले ग्रहों का विश्लेषण किया जाता है। जन्म कुण्डली में जो भी ग्रह अशुभ या पापी ग्रह होकर इन ग्रहों से दृ्ष्टि, युति या स्थिति के प्रभाव से इन ग्रहों से संबन्ध बना रहा होता है, वह ग्रह विवाह में विलम्ब का कारण बन रहा होता है। इसलिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव जितना अधिक हो, उतना ही शुभ रहता है। तथा अशुभ ग्रहों का प्रभाव न होना भी विवाह का समय पर होने के लिये सही रहता है, क्योकि अशुभ/ पापी ग्रह जब भी इन तीनों को या इन तीनों में से किसी एक को प्रभावित करते है, तो विवाह की अवधि में देरी होती ही है।

जन्म कुण्डली में जब योगों के आधार पर विवाह की आयु निर्धारित हो जाये तो, उसके बाद विवाह के कारक ग्रह शुक्र व विवाह के मुख्य भाव व सहायक भावों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है. आईये देखे की दशाएं विवाह के समय निर्धारण में किस प्रकार सहयोग करती है:-


1. सप्तमेश की दशा- अन्तर्दशा में विवाह :- जब कुण्डली के योग विवाह की संभावनाएं बना रहे हों, तथा व्यक्ति की ग्रह दशा में सप्तमेश का संबन्ध शुक्र से हो तों इस अवधि में विवाह होता है। इसके अलावा जब सप्तमेश जब द्वितीयेश के साथ ग्रह दशा में संबन्ध बना रहे हों उस स्थिति में भी विवाह होने के योग बनते है।

2. सप्तमेश में नवमेश की दशा- अन्तर्द्शा में विवाह ग्रह दशा का संबन्ध :-  जब सप्तमेश व नवमेश का आ रहा हों तथा ये दोनों जन्म कुण्डली में पंचमेश से भी संबन्ध बनाते हों तो इस ग्रह दशा में प्रेम विवाह होने की संभावनाएं बनती है।

3. सप्तम भाव में स्थित ग्रहों की दशा में विवाह :- सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित हो या उनसे पूर्ण दृष्टि संबन्ध बना रहे हों, उन सभी ग्रहों की दशा - अन्तर्दशा में विवाह हो सकता है.  इसके अलावा निम्न योगों में विवाह होने की संभावनाएं बनती है:-
  • क)  सप्तम भाव में स्थित ग्रह, सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर शुभ भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह संबन्धित ग्रह दशा की आरम्भ की अवधि में विवाह होने की संभावनाएं बनाती है. या
  • ख) शुक्र, सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर अशुभ भाव या अशुभ ग्रह की राशि में स्थित होने पर अपनी दशा- अन्तर्दशा के मध्य भाग में विवाह की संभावनाएं बनाता है ।
  • ग) इसके अतिरिक्त जब अशुभ ग्रह बली होकर सप्तम भाव में स्थित हों या स्वयं सप्तमेश हों तो इस ग्रह की दशा के  अन्तिम भाग में विवाह संभावित होता है।
4. शुक्र का ग्रह दशा से संबन्ध होने पर विवाह :- जब विवाह कारक ग्रह शुक्र नैसर्गिक रुप से शुभ हों, शुभ राशि, शुभ ग्रह से युक्त, द्र्ष्ट हों तो गोचर में शनि, गुरु से संबन्ध बनाने पर अपनी दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने का संकेत करता है।

5. सप्तमेश के मित्रों की ग्रह दशा में विवाह :- जब किसी व्यक्ति कि विवाह योग्य आयु हों तथा महादशा का स्वामी सप्तमेश का मित्र हों, शुभ ग्रह हों व साथ ही साथ सप्तमेश या शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों, तो इस महाद्शा में व्यक्ति के विवाह होने के योग बनते है।

6. सप्तम व सप्तमेश से दृ्ष्ट ग्रहों की दशा में विवाह :- सप्तम भाव को क्योकि विवाह का भाव कहा गया है। सप्तमेश इस भाव का स्वामी होता है। इसलिये जो ग्रह बली होकर इन सप्तम भाव , सप्तमेश से दृ्ष्टि संबन्ध बनाते है, उन ग्रहों की दशा अवधि में विवाह की संभावनाएं बनती है।

7.  लग्नेश व सप्तमेश की दशा में विवाह :- लग्नेश की दशा में सप्तमेश की अन्तर्दशा में भी विवाह होने की संभावनाएं बनती है।

8. शुक्र की शुभ स्थिति :- किसी व्यक्ति की कुण्डली में जब शुक्र शुभ ग्रह की राशि तथा शुभ भाव (केन्द्र, त्रिकोण) में स्थित हों, तो शुक्र का संबन्ध अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर दशा से आने पर विवाह हो सकता है. कुण्डली में शुक्र पर जितना कम पाप प्रभाव कम होता है. वैवाहिक जीवन के सुख में उतनी ही अधिक वृ्द्धि होती है।

9. शुक्र से युति करने वाले ग्रहों की दशा में विवाह :- शुक्र से युति करने वाले सभी ग्रह, सप्तमेश का मित्र, अथवा प्रत्येक वह ग्रह जो बली हों, तथा इनमें से किसी के साथ द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों, उन सभी ग्रहों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है।

10. शुक्र का नक्षत्रपति की दशा में विवाह :- जन्म कुण्डली में शुक्र जिस ग्रह के नक्षत्र में स्थित हों, उस ग्रह की दशा अवधि में विवाह होने की संभावनाएं बनती है ।

Tuesday 9 October 2018

राजनीति में सफलता के लिये ज्योतिष योग


अन्य व्यवसायों एवं कैरियर की भांति ही राजनीति में प्रवेश करने वालों की कुंडली में भी ज्योतिष योग होते हैं।राजनीति में सफल रहे व्यक्तियों की कुंडली में ग्रहों का विशिष्ट संयोग देखा गया है।
1. आवश्यक भाव : छठा, सांतवा, दसवां व ग्यारहवां भाव
सफल राजनेताओं की कुण्डली में राहु का संबध छठे, सांतवें, दशवें व ग्यारहवें घर से देखा गया है. कुण्डली के दशवें घर को राजनीति का घर कहते है. सत्ता में भाग लेने के लिये दशमेश या दशम भाव में उच्च का ग्रह बैठा होना चाहिए,और गुरु नवम में शुभ प्रभाव में स्थिति होने चाहिए या दशम घर या दशमेश का संबध सप्तम घर से होने पर व्यक्ति राजनीति में सफलता प्राप्त करता है। छठे घर को सेवा का घर कहते है। व्यक्ति में सेवा भाव होने के लिये इस घर से दशम /दशमेश का संबध होना चाहिए।  सांतवा घर दशम से दशम है इसलिये इसे विशेष रुप से देखा जाता है ।

2. आवश्यक ग्रह: राहु, शनि, सूर्य व मंगल
राहु को सभी ग्रहों में नीति कारक ग्रह का दर्जा दिया गया है. इसका प्रभाव राजनीति के घर से होना चाहिए। सूर्य को भी राज्य कारक ग्रह की उपाधि दी गई है। सूर्य का दशम घर में स्वराशि या उच्च राशि में होकर स्थित हो व राहु का छठे घर, दसवें घर व ग्यारहवें घर से संबध बने तो यह राजनीति में सफलता दिलाने की संभावना बनाता है. इस योग में दूसरे घर के स्वामी का प्रभाव भी आने से व्यक्ति अच्छा वक्ता बनता है।
शनि दशम भाव में हो या दशमेश से संबध बनाये और इसी दसवें घर में मंगल भी स्थिति हो तो व्यक्ति समाज के लोगों के हितों के लिये काम करने के लिये राजनीति में आता है. यहां शनि जनता के हितैशी है तथा मंगल व्यक्ति में नेतृ्त्व का गुण दे रहा है, दोनों का संबध व्यक्ति को राजनेता बनने के गुण दे रहा है।

3. अमात्यकारक : राहु/ सूर्य
राहु या सूर्य के अमात्यकारक बनने से व्यक्ति रुचि होने पर राजनीति के क्षेत्र में सफलता पाने की संभावना रखता है। राहु के प्रभाव से व्यक्ति नीतियों का निर्माण करना व उन्हें लागू करने की ण्योग्यता रखता है। राहु के प्रभाव से ही व्यक्ति में स्थिति के अनुसार बात करने की योग्यता आती है। सूर्य अमात्यकारक होकर व्यक्ति को समाज में उच्च पद की प्राप्ति का संकेत देता है. नौ ग्रहों में सूर्य को राजा का स्थान दिया गया है।

4. नवाशं व दशमाशं कुण्डली
जन्म कुण्डली के योगों को नवाशं कुण्डली में देख निर्णय की पुष्टि की जाती है. किसी प्रकार का कोई संदेह न रहे इसके लिये जन्म कुण्डली के ग्रह प्रभाव समान या अधिक अच्छे रुप में बनने से इस क्षेत्र में दीर्घावधि की सफलता मिलती है। दशमाशं कुण्डली को सूक्ष्म अध्ययन के लिये देखा जाता है. तीनों में समान या अच्छे योग व्यक्ति को राजनीति की उंचाईयों पर लेकर जाते है।

5. अन्य योग
(क)  नेतृ्त्व के लिये व्यक्ति का लग्न सिंह अच्छा समझा जाता है. सूर्य, चन्द्र, बुध व गुरु धन भाव में हों व छठे भाव में मंगल, ग्यारहवे घर में शनि, बारहवें घर में राहु व छठे घर में केतु हो तो एसे व्यक्ति को राजनीति विरासत में मिलती है। यह योग व्यक्ति को लम्बे समय तक शासन में रखता है. जिसके दौरान उसे लोकप्रियता व वैभव की प्राप्ति होती है।

(ख) कर्क लग्न की कुण्डली में दशमेश मंगल दूसरे भाव में , शनि लग्न में, छठे भाव में राहु, तथा लग्नेश की दृष्टि के साथ ही सूर्य-बुध पंचम या ग्यारहवें घर में हो तो व्यक्ति को यश की प्राप्ति होती।

(ग) वृ्श्चिक लग्न की कुण्डली में लग्नेश बारहवे में गुरु से दृ्ष्ट हो शनि लाभ भाव में हो, राहु -चन्द्र चौथे घर में हो, शुक्र स्वराहि के सप्तम में लग्नेश से दृ्ष्ट हो तथा सूर्य ग्यारहवे घर के स्वामी के साथ युति कर शुभ स्थान में हो और साथ ही गुरु की दशम व दूसरे घर पर दृ्ष्टि हो तो व्यक्ति प्रखर व तेज नेता बनता है।

Tuesday 2 October 2018

जैमिनी ज्योतिष - 2



जैमिनी ज्योतिष ऋषि जैमिनी की देन है। जैमिनि ज्योतिष में मुख्य रूप से फलित करने के लिये कारक, राशियों की द्रष्टियां, राशियों कि दशाओं, तथा दशाओं का क्रम भी (सव्य, अपसव्य) हो सकता है। इसके साथ ही दशाओं की अवधि भी स्थिर नहीं है, यह बदलती रहती है। जैमिनी ज्योतिष में इसके अतिरिक्त फलित के लिये कारकांश का प्रयोग किया जाता है। जैमिनी ज्योतिष में पद या आरुढ लग्न भी फलित का एक महत्वपूर्ण भाग है।


कारक :- जैमिनी ज्योतिष सात कारको पर आधारित है। इन कारकों में राहू-केतु को छोडकर, अन्य सभी सात ग्रह अपने- अपने अंश -कला-विकला के अनुसार अवरोही क्रम में निम्नलिखित सात कारक बनते है। सात कारक निम्न है। 1. आत्मकारक 2. अमात्यकारक 3. भ्रातृकारक 4. मातृकारक 5. पुत्रकारक 6. ज्ञातिकारक 7. दाराकारक हैं। इसमें आत्मकारक-शरीर, अमात्यकारक-आजीविका, भ्रातृ्कारक - भाई / मित्र, मातृ्कारक - माता, पुत्रकारक- संतान, ज्ञातिकारक- रोग/ऋण, दाराकारक- जीवन साथी का प्रतिनिधित्व करता है।

दृष्टियां :- जैमिनी ज्योतिष में राशियों को दृष्टियां दी गई है। सभी चर राशियां अपने समीप की स्थिर राशि को छोडकर अन्य सभी स्थिर राशियों को देखती है। इसी प्रकार स्थिर राशियां अपने करीब की चर राशि को छोडकर अन्य सभी स्थिर राशियों को देखती है। परन्तु द्विस्वभाव राशियां केवल एक - दुसरे को देखती है।

दशाएं :- जैमिनी ज्योतिष में 12 राशियों पर आधारित 12 दशाएं होती है। जैसे मेष, वृ्षभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला.....,इसी प्रकार अन्य। जैमिनी ज्योतिष दशाओं का क्रम इन 12 राशियों में 06 राशियों की दशाओं का क्रम सव्य व शेष 06 राशियों का क्रम अपसव्य होता है। तथा दशा अवधि अधिकतम 12 वर्ष से 1 वर्ष के मध्य हो सकती है।

 कारकांश :- जैमिनी पद्वति में कारकांश के माध्यम से ही फलित किया जाता है। इसमें आत्मकारक (जिस ग्रह के सर्वाधिक अंश हों) वह ग्रह नवमांश कुण्डली में जिस राशि में स्थित हो, वह राशि कारकांश कहलाती है। इसका प्रयोग महत्वपूर्ण भविष्यवाणियां करने के लिये किया जाता है।

Thursday 20 September 2018

कालसर्प योग का प्रभाव


कालसर्प योग जन्म कुण्डली में राहु-केतु से निर्मित होने वाला योग है। राहु को कालसर्प का मुख माना गया है। अगर राहु के साथ कोई भी ग्रह उसी राशि और नक्षत्र में शामिल हो तो वह ग्रह कालसर्प योग के मुख में ही स्थित माना जाता है। वहीं यदि कोई ग्रह राहु की राशि में स्थित हो लेकिन राहु के नक्षत्र से अन्य किसी नक्षत्र में स्थित हो तो वह ग्रह कालसर्प के मुख में होकर भी कैसा फल देगा इस बात का निर्धारण करने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखने की आवश्यकता होती है।
* पहले इस बात को समझने की जरूरत है, की कालसर्प का मुख कुण्डली के किस भाव में स्थित है।
* दूसरा यह की कालसर्प के मुख में स्थित ग्रह का कारकत्व क्या है।
* कालसर्प के मुख में स्थित ग्रह क्या अन्य भावों का भी अधिपति है।

इन मुख्य बातों पर विचार करने के उपरान्त ही अन्य चीजों का निर्धारण आरंभ होता है. जन्म कुण्डली में राहु के साथ अशुभ ग्रह की स्थिति कालसर्प के मुख में विष उत्पन्न करने वाली होती है। ऐसे कालसर्प का मुख अर्थात राहु जिस भाव में स्थित होता है। इसके साथ ही संबंधित भाव के मिलने वाले फलों में भी उसे परेशानी ही प्राप्त होती है। अगर कालसर्प के मुख में शुभ ग्रह स्थित हो तो यह कालसर्प अशुभ प्रभाव नहीं देता और वह जिस भाव में स्थित हो उससे संबंधित बुरे फल भी नहीं मिलते।
          -:  विभिन्न ग्रहों का कालसर्प मुख का प्रभाव  :-
सूर्य का प्रभाव - सूर्य का कालसर्प के मुख में स्थित होना तथा लग्न भाव, द्वितीय भाव, तृतीय भाव, दशम भाव या द्वादश भाव में होना,साथ ही शुभ राशि ओर शुभ प्रभाव में होना अनुकूल माना जा सकता है। इसमें राज्य की ओर से व्यक्ति को पद प्राप्ती हो सकती है। प्रतिष्ठा प्राप्त होती है सामाजिक स्तर पर वह सक्रिय रह कर सम्मानित होता है। व्यक्ति अन्याय के खिलाफ विरोध करने वाला होता है। लेकिन यदि यह युति अशुभ राशि एवं अन्य किसी पाप ग्रह के प्रभाव में बन रही हो तो संघर्ष में भी प्रयासरत ही रहता है। भटकाव भी जीवन में बहुत होता है। कुंडली में यह युति अगर दूसरे भाव, चौथे भाव अथवा सातवें भाव में हो रही हो तो जीवन में पारिवारिक एवं दांपत्य सुख में कमी करने वाला होता है। व्यक्ति में अभिमान एवं स्वार्थ की भावना अधिक होती है। वाणी में कठोरता का भाव होता सत्यता की कमी होती है।
चंद्रमा का प्रभाव - यदि कालसर्प के मुख में चंद्रमा स्थित हो तो जातक को परिपक्व और बेहतर विचारधारा वाला बनाता है। व्यक्ति धैर्य के साथ परेशानियों का सामना करता है। समाज के हित में भी बेहतर कार्यों को करता है। साथ ही साथ सामाजिक रुप से भी व्यक्ति सक्रिय रहते हुए काम करता है। चंद्र अशुभ प्रभाव के कारण जातक को जीवन में संघर्ष की स्थिति भी प्रभावित होगी। जीवन में बाल्यावस्था समय जातक परेशानियों में रहेगा। असफलताएं आपको मानसिक रुप से अशांति प्राप्त हो सकती है।
मंगल का प्रभाव - मंगल का कालसर्प के मुंह में होना व्यक्ति को पराक्रमी बनाने वाला होता है। जातक पराक्रमी होता है। व्यक्ति को भाई बहनों का साथ ही संपूर्ण साथ मिलेगा। इस के साथ जीवन को असफलताएं का प्रभाव घेरे रह सकता है। इनके जीवन में बाल्यावस्था से कष्ट मिलता है। चोट का भय रहता है, हिंसक एवं असंतुष्ट रहता है। व्यभिचार का प्रभाव जातक को जल्द ही घेरे रह सकता है। वाद विवाद में व्यक्ति को परेशानियां रहती है। विवाहोत्तर संबंध अधिक रहते हैं।
बुध का प्रभाव - कालसर्प के मुख में बुध हो तथा शुभ स्थिति से प्रभावित होने पर व्यक्ति पर में ग्रहण की स्थिति बहुत अच्छे होती है। जल्द ही चीजों को अपने अनुरूप ढालने वाला होता है। किसी भी विषयों को ग्रहण करने के लिए इनमें बेहतर योग्यता होती है। ऐसे जातक व्यवहार कुशल होते हैं, काम निकलवाने में भी दक्ष होते हैं। अगर बुध कालसर्प के मुख में अशुभ प्रभाव में हो तो जातक में भ्रम की स्थिति अधिक होती है। किसी भी चीज को समझने में एकाग्रता की कमी भी परेशान करती है। बौद्धिकता पर असर पड़ता है, उचित निर्णयों को लेना कठिन ही होता है। स्मरणशक्ति भी कमजोर ही होती है। व्यवसाय के क्षेत्र में व्यक्ति को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हिस्टीरिया जैसे रोग भी व्यक्ति को प्रभावित करते  है।
बृहस्पति का प्रभाव - बृहस्पति यदि कुंडली में कालसर्प के मुख में स्थित हो तो शुभस्थ होता है। जातक को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। बुद्धिमता तीक्षण होती है. वैसे तो राहु और गुरु का संबंध गुरु चंडाल योग का निर्माण करने वाला होता है। इस कारण से इस योग को अच्छा नहीं माना जाता है। लेकिन बेहतर शुभस्थिति में होने पर यह योग व्यक्ति को प्रगति भी देता है। अशुभ स्थिति प्रभाव के चलते व्यक्ति धर्म विरोधी बनता है। अनैतिक कार्यों के प्रति उसका आकर्षण अधिक रहता है। रुढियों से हटकर काम करता है। उसका ज्ञान भी प्रभावित होता है, इसलिए ऐसे जातकों को अपने बड़े बूजुर्गों की सलाह अवश्य लेनी चाहिए तथा पाप कर्म से मुक्त रहना ही आपको सकारात्मकता दे सकता है।
शुक्र का प्रभाव - शुक्र की स्थिति मुख में होने पर शुभस्थ स्थिति हो तो यह भौतिक सुखों की प्राप्ति कराने वाला होता है। व्यक्ति को जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है। विवाह अचानक से होता है तथा विवाह आपके लिए सुख एवं समृद्धि लाने वाला होता है। अशुभ होने की स्तिथि में मनोकूल वैभव एवं भौतिक सुखों में कमी आती है। आर्थिक कष्ट रहते हैं। विवाह का सुख भी प्रभावित होता है, ऐसा जातक पथभ्रष्ट भी हो सकता है।
शनि का प्रभाव - कालसर्प के मुख में शनि के होने पर जातक व्यवहारिक अधिक होता है। उसमें परिपक्कता एवं प्रौढ़ता होती है। गुढ़ विषयों पर पकड़ अच्छी होती है, व्यक्ति में दूरदर्शिता का भाव भी अच्छा होता है। वह संस्था को चलाने में सक्षम होता है। जातक की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती है। अशुभ प्रभाव में होने पर स्थिति विपरीत होती है। कार्यक्षेत्र में बाधाओं का एवं शत्रुओं का सामना अधिक होता है। व्यक्ति का स्वभाव भी कठोर होता है। कर्ज की स्थिति बहुत रहती है। धार्मिक क्षेत्र में भी पिछड़ा हुआ होता है।

Tuesday 11 September 2018

यमघंटक योग


कुछ अशुभ योगों की गिनती में यमघंटक योग का नाम भी आता है। यह वह योग है जो अच्छे कार्यों में त्याज्य होता है। इस योग में व्यक्ति के किए गए शुभ कार्यों में असफलता की संभावना बढ़ जाती है। ज्योतिष में इन्हीं कुछ योगों को अशुभ योगों की श्रेणी में रखा जाता है। इन योग में यमघंटक का नाम भी प्रमुख रुप से आता है।

इस योग में शुभ एवं मांगलिक कामों को न करने की बात कही गई है। मंगल कार्यों को करने के लिए त्याज्य माने गए इन योगों का निर्धारण करने के कुछ नियम बताए हैं। जहां पर इन के होने की स्थिति को बताया गया है, अत: शुभ कामों को करने के लिए इन अशुभ योगों को त्यागना चाहिए। यात्रा, बच्चों के लिए किए जाने वाले शुभ कार्य तथा संतान के जन्म समय में भी इस योग का विचार किया जाता है।

वसिष्ठ ऋषि द्वारा कहा गया है कि, दिवसकाल में यदि यमघंटक नामक दुष्ट योग हो तो मृत्युतुल्य कष्ट हो सकता है, परंतु साथ ही रात्रिकाल में इसका फल इतना अशुभ नहीं माना जाता।
                      -: यमघंटकयोग के
नियम :-
* रविवार के दिन जब मघा नक्षत्र का संयोग बनता है, तो यमघंटक योग का निर्माण होता है, जो कि अच्छा नहीं होता है।
* सोमवार का दिन हो और उस दिन विशाखा नक्षत्र होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।
* मंगलवार के दिन आर्द्रा नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।
* बुधवार के दिन जब मूल नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।
* बृहस्पतिवार के दिन कृतिका नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।
* शुक्रवार के दिन रोहिणी नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।
* शनिवार के दिन हस्त नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।


किसी भी कार्य को करने हेतु एक अच्छे समय की आवश्यकता होती है। हर शुभ समय का आधार तिथि, नक्षत्र, चंद्र स्थिति, योगिनी दशा और ग्रह स्थिति के आधार पर किया जाता है। शुभ कार्यों के प्रारंभ में भद्राकाल से बचना चाहिये। चर, स्थिर व द्विस्वभाव लग्नों का ध्यान रखना चाहिए। जिस कार्य के लिए जो समय निर्धारित किया गया है, यदि उस समय पर उक्त कार्य किया जाए तो मुहूर्त्त के अनुरूप कार्य सफलता को प्राप्त करता है।

योगों में जीवन का सारांश छुपा होता है, जिसे पढ़कर व्यक्ति भूत, भविष्य और वर्तमान के संदर्भ में अनेक बातों को जान सकता है। ज्योतिष में अनेक योगों का निर्माण होता है, कुछ शुभ योग होते हैं और कुछ अशुभ योग होते हैं। कौन सा योग किस प्रकार के फल देगा इस बात को तभी समझा जा सकता है। जब हम उसके नियमों को समझ सकें ।

Thursday 6 September 2018

कुंडली में भाग्य स्थान का महत्व

जन्म कुंडली में किसी भी व्यक्ति के लिए उसका भाग्य बली होना शुभ माना जाता है। भाग्य के बली होने पर ही व्यक्ति जीवन में ऊंचाईयों को छू पाने में सफल रहता है। यदि भाग्य ही निर्बल हो जाए तब अत्यधिक प्रयास के बावजूद व्यक्ति को संतोषजनक परिणाम नहीं मिलते हैं। किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में उसका भाग्य भाव, भाग्येश, तथा भाग्य भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह महत्व रखते हैं। जन्म कुंडली में नवम भाव से भाग्य का आंकलन किया जाता है।

किसी भी जन्म कुण्डली में जन्म लग्न से नौवीं राशि व चंद्र लग्न से नौंवी राशि महत्वपूर्ण होती है। क्योकि यह राशि भाग्य भाव अर्थात नवम भाव में आती है। जन्म लग्न अथवा चंद्र लग्न में से जो लग्न बली होता है। उससे भाग्य भाव की गणना की जानी चाहिए। जन्म कुंडली में भाग्य भाव का स्वामी किस भाव में गया है, आदि बातों का विचार करना चाहिए। भाग्येश का केन्द्र, अथवा त्रिकोण आदि भावों में जाना शुभ प्रदान करने वाला माना गया है, भाग्येश चाहे बली हो अथवा अल्पबली हो तब भी वह योगकारक ही कहा जाता है।

नवम भाव अथवा नवमेश का संबंध किसी भी तरह से केन्द्र, त्रिकोण, धन भाव आदि से बन रहा हो तब इसे अत्यधिक शुभ माना गया है। यह उत्तम अवस्था होती है, 3 व 11 भाव से नवम भाव का संबंध बनने पर यह मध्यम स्थिति बनती है और छठे, आठवें व बारहवें भाव से नवम भाव का संबंध बनने पर सबसे खराब स्थिति मानी गई है. एक बात लेकिन तय है कि भाग्येश अति शुभ या अति अशुभ हो, वह सदा शुभ फल देने वाला ही माना जाता है।


                                          -: भाग्योदय स्थान :-
 
* हर व्यक्ति के भाग्योदय का स्थान अलग होता है, कोई अपने जन्म स्थान पर ही भाग्य का उदय पाता है, तो किसी का अपने जन्म स्थान के नजदीक भाग्य का उदय होता है, तो किसी का जन्म स्थान से बहुत दूर लेकिन अपने ही देश में होता है और कुछ लोगों का भाग्योदय अपने देश से बाहर विदेशो में होने की संभावना बनती है।
 * मुनियों के अनुसार, भाग्य भाव पर अपने स्वामी ग्रह की ही दृष्टि हो अथवा भाग्य भाव में ही भाग्येश स्थित हो तब व्यक्ति का भाग्योदय उसके अपने ही देश में होता है।
 * यदि भाग्य भाव पर उसके स्वामी की दृष्टि ना हो, योग भी ना हो अथवा अन्य किसी भी ग्रह की दृष्टि ना हो तब व्यक्ति का भाग्योदय अपने जन्म स्थान से दूर परदेश में होता है।
* यदि कोई बली कारक ग्रह तृतीय भाव में स्थित होकर नवम भाव को देखे या लग्न अथवा पंचम भाव में स्थित होकर नवम भाव को देखे तब व्यक्ति के भाग्य में विशेष रुप से वृद्धि होती है, लग्न अथवा पंचम से तो केवल बृहस्पति ही नवम भाव को दृष्ट करेगा।

Tuesday 4 September 2018

बुध गृह से संबंधित कार्य


बुध के कारक तत्वों में जातक को कई अनेक प्रकार के कार्यो एवं व्यवसायों की प्राप्ति दिखाई देती है। बुध एक पूर्ण वैश्य रूप का ग्रह है, व्यापार से जुडे़ होने वाला एक ग्रह है, जो जातक को उसके कारक तत्वों से पुष्ट करने में सहायक बनता है। इसी के साथ व्यक्ति को अपनी बौधिकता का बोध भी हो पाता है, और उसे सभी दृष्टियों से कार्यक्षेत्र में व्यापार करने वाला बनाता है।
बुध छवि राजकुमार है, अत: काम में भी यही भाव भी दिखाई देता है। किसी के समक्ष भी यह जातक को कम नहीं होने देता है। अपने काम में व्यक्ति को स्वतंत्रता प्राप्त होती है, और जातक किसी के अधीन बंधे नहीं रहना चाहता है। यदि इस ओर अधिक ध्यान दिया जाए तो व्यक्ति को स्वतंत्र विचारधारा वाला बनाता है। जातक अपने ज्ञान कर्म में अधिक सृजनशील होता है और पहल करने में भी आगे रहता है।

    * यदि कुण्डली में बुध ग्रह दूसरे, पांचवें और नवम भाव [ इत्यादि बुद्धि स्थानों ] का स्वामी हो तथा व्यवसाय का प्रतिनिधित्व करे अर्थात लग्न-लग्नेश को चंद्रमा और सूर्य को प्रभावित करता हो, तो व्यक्ति बुद्धिजीवी होता है, जातक शिक्षा द्वारा धनोपार्जन करता है।
    * बुध को वाणी का कारक कहा गया है, अत: दूसरे स्थान या पंचम स्थान में बुध की स्थिति उत्तम हो तो व्यक्ति अपनी वाणी द्वारा कार्य-क्षेत्र अथवा सामाजिक क्षेत्र दोनों में ही दूसरों द्वारा प्रशंसित होता है, और लोगों को अपनी वाक कुशला से प्रभावित करता है । व्यक्ति वकील, कलाकार, सलाहकार, प्रवक्ता इत्यादि कामों द्वारा अनुकूल फल प्राप्त करने में सफल रहता है।
    * बुध व्यक्ति के काम में व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है। अगर कुण्डली में बुध ग्रह शनि व शुक्र जैसे व्यापार से प्रभावित ग्रहों के साथ संबंध बनाता है। तो जातक व्यापार के क्षेत्र में अच्छे काम करने की चाह रख सकता है। बुध की प्रबलता जातक को इन ग्रहों के साथ मिलकर प्रभावित करने में सक्षम होती है।
    * बुध और शुक्र दोनों बलवान हों तो जातक को वस्त्र उद्योग में अच्छी सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
    * बुध लेखन का कार्य भी देता है। यदि यह सूर्य जो राज्य से संबंधित होता है, उससे प्रभावित हो तो जातक अवश्य ही किसी लेखन संस्था से जुड़ सकता है। बुध अधिक बली हो तो आशुलिपिक या लेखा अधिकारी भी बना सकता है। बुध यदि तीसरे स्थान का स्वामी होकर दशम से संबंध बनाता है अथवा लग्न लग्नेश अपना प्रभाव डालता है, तो जातक लेखक बनकर धनोपार्जन कर सकता है।
    * जन्म कुण्डली में यदि बुध मंगल के साथ बली अवस्था में स्थित हो तथा कर्म स्थल का द्योतक बनता है तो व्यक्ति गणित के क्षेत्र में अथवा यान्त्रिक विभाग में कार्यरत होता है।
    * बुध विनोद प्रिय है, इसलिए जब कुण्डली में यह चतुर्थेश, पंचमेश या शुक्र से संबंध बनाता हुआ दशम भाव को प्रभावित करता है तो जातक मनोविनोद के कार्यों व कलात्मक अभिव्यक्ति से आजीविका कमा सकता है।
    * बुध एक सलाहकार व मध्यस्थ व एजेंट की भांति भी कार्य करने में तत्पर रहता है, यदि बुध दशम भाव को प्रभावित करते हुए चतुर्थेश और मंगल से प्रभावित होता है, तो जातक भूमि भवन का एजेन्ट हो सकता है।
    * बुध बुद्धि का कारक ग्रह है, अत: व्यक्ति ऎसे क्षेत्रों में अधिक देखा जा सकता है, जहां पर बुद्धिजीवीयों का स्थान होता है, वहां यह अपना स्थान बनाता है। इसी के साथ साथ यदि जातक को अपनी शैक्षिक संस्था का निर्माण करने की चाह हो तो गुरू और बुध का संबंध होने पर यह सहायक बनता है।
    * व्यवसाय के दृष्टिकोण में बुध एक बहुत अच्छा व्यवसायी होता है। इसके संदर्भ में व्यक्ति को वाक कुशलता और बुद्धि चातुर्य मिलता है। कुण्डली में बुध की स्थिति उत्तम होने पर जातक को इसके दूरगामी परिणाम प्राप्त होते हैं।
    * बुध के प्रभाव से जातक न्याय प्रिय होता है, और किसी के साथ बुरा न करने की कोशिश करता है। यदि कुण्डली में बुध की स्थिति उच्चता को पाती है, तो व्यक्ति मौलिक गुणों को बढा़ने में सहयोग करता है। जातक की वाणी में ओज रहता है। जिसकी मदद से वह भावों की  अभिव्यक्त करने में भी सहयोगी रहता है। ऐसा जातक वाचाल होता है, सामने वाले की हर बात का जवाब इनके पास रहता है, ऐसा जातक भाषण देने में भी काफी प्रभावशाली रहता  है।

Thursday 30 August 2018

जैमिनी ज्योतिष व व्यक्तित्व विचार

जैमिनी ज्योतिष की मान्यता है, कि प्राणपद लग्न कर्क राशि में स्थित होने पर व्यक्ति में दिखावे की प्रवर्ति होती है। चन्द्रमा अथवा राहु पांचवे घर में स्थित हो अथवा उनमें दृष्टि सम्बन्ध बन रहे हों तो व्यक्ति उदासीन एवं निराशावादी होता है।

चन्द्रमा और राहु लग्न अथवा आत्मकारक से नौवें घर में स्थित होने से व्यक्ति कमजोर होता है। लग्न स्थान मंगल द्वारा दृष्ट होने पर व्यक्ति का स्वभाव क्रोधी होता है, वह छोटी-छोटी बातों पर उग्र हो उठता है। व्यक्ति की राशि में कारकांश ग्रह मीन राशि में होने पर व्यक्ति गुणवान होता है, और दूसरों के लिए आदर्श स्वरूप होता है जबकि केतु का सम्बन्ध कारकांश से होने पर व्यक्ति में धर्माचरण की कमी होती है। लेकिन अपने अच्छे होने का दिखावा ज्यादा करता है. सूर्य और राहु कारकांश में हो तथा उन्हें मंगल देख रहा हो तो यह इस बात का संकेत होता है, कि व्यक्ति क्रोधी होगा. कारकांश से दसवें घर में बुध स्थित हो तथा उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति काफी बुद्धिमान होता है।


जैमिनी ज्योतिष यह भी कहता है कि जिस व्यक्ति की कुण्डली में कारकांश से तीसरे घर में अशुभ ग्रह होता है। वह आत्मविश्वासी होता है। उनमें उर्जा व साहस भी भरपूर रहता है, वे अपने बल पर अपना भविष्य स्वयं बनाने वाले होते हैं। जबकि, अशुभ ग्रह कारकांश से पांचवें और नवमें घर में स्थित होता है, तथा उसे कोई अशुभ ग्रह देखता है, तो व्यक्ति का जीवन सामान्य रहता है। उन लोगों को जनसमूह एवं रैली से घबराहट महसूस होती है, जिनकी कुण्डली में शनि कारकांश अथवा इससे पांचवें घर में होता है।  जिन लोगों की कुण्डली में केतु कारकांश से दूसरे घर में होता है, और अशुभ ग्रह उसे देखते हैं, वह साफ और स्पष्ट बोलने की बजाय बातों को छुपाने की कोशिश करते हैं. आमतौर पर वह लोग बुद्धिमान होते हैं जिनकी कुण्डली में पांचवें घर के स्वामी का आत्मकारक अथवा लग्न से दृष्टि सम्बन्ध बनता है। वे लोग गम में भी मुस्कुराने वाले होते हैं। जिनकी जन्मपत्री में लग्न एवं आत्मकारक से चौथे घर के स्वामी की दृष्टि लग्न तथा आत्मकारक पर होती है, इनका चरित्र भी ऊँचा रहता है। आत्मकारक एवं लग्न से बारहवें घर के स्वामी की दृष्टि लग्न एवं आत्मकारक पर होना यह बताता है कि व्यक्ति खुले हाथों से खर्च करने वाला होगा।


जैमिनी ज्योतिष में व्यक्ति के शारीरिक गठन, लक्षण तथा रंग-रूप का विचार नवमांश, कारकांश एवं वरन्दा लग्न  के स्वामी से किया जात है। वरन्दा लग्न को व्यक्ति के रूप-रंग के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस ज्योतिषीय विधि में बताया गया है कि अगर केतु और शनि लग्न में हो, नवमांश लग्न, कारकांश या वरन्दा लग्न में हो तो व्यक्ति की त्वचा का रंग लालिमा लिये होता है. जबकि शनि की युति शुक्र या राहु से होने पर व्यक्ति दिखने में सांवला होता है, उन लोगों की त्वचा निली आभा लिये होती है जिनकी कुण्डली में शनि के साथ बुध की युति बनती है। अगर आपकी कुण्डली में मंगल व शनि की युति लग्न, नवमांश लग्न, कारकांश या वरन्दा लग्न में बन रही है तो आपकी त्वचा का रंग लाल और पीली आभा लिए होगी। वहीं गुरू के साथ शनि की युति होने से आप अत्यंत गोरे हो सकते हैं। चन्द्र के साथ शनि की युति होने से भी आपकी त्वचा निखरी होती है।


कन्या लग्न में प्राणपद होने से व्यक्ति बाहर से रूखा नज़र आता है लेकिन हृदय से दयालु व नम्र होता है। खान-पान में मीठा इन्हें अधिक पसंद होता है। प्राणपद मकर राशि में होने पर व्यक्ति की त्वचा का रंग साफ व लालिमा लिये होता है। सिंह राशि में प्राणपद होने से व्यक्ति व्यक्ति दिखने में बहुत आकर्षक नहीं होता है। इसी प्रकार का परिणाम तब भी मिलता है। जब उपपद से दूसरे घर में शनि होता है, एवं उपपद से सातवें घर का स्वामी लग्न में होता है, वे लोग अपनी उम्र से अधिक नज़र आते हैं। जिनकी कुण्डली में केतु अरूधा लग्न से दूसरे घर में विराजमान होता है। जिनकी कुण्डली में बुध एवं शुक्र की स्थिति दूसरे अथवा पांचवें घर में होती है। उनके होंठ एवं जबड़े दिखने में अच्छे नहीं होते हैं, जिससे उनकी मुस्कान में आकर्षण की कमी रहती है।

Thursday 9 August 2018

रक्षा बंधन: स्नेह की अटूट डोर

*************रक्षा बंधन: स्नेह की अटूट डोर*************

श्रावण मास की पूर्णिमा में भद्रा रहित समय में रक्षा की प्रतिक राखी बांधना विशेष शुभ रहता है | इस अवधि में ही रक्षा बंन्धन का पर्व पारम्परिक रुप से मनाने का विधान है | रक्षा बंधन में संक्रान्ति दिन और ग्रहण पूर्वकाल का विचार नहीं किया जाता है |
वेद शास्त्रों के अनुसार रक्षिका को आज के आधुनिक समय में राखी के नाम से जाना जाता है. रक्षा सूत्र को सामान्य बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है. इसका अर्थ रक्षा करना, रक्षा को तत्पर रहना या रक्षा करने का वचन देने से है.

श्रावण मास की पूर्णिमा का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है, कि इस दिन पाप पर पुण्य, कुकर्म पर सत्कर्म और कष्टों के उपर सज्जनों का विजय हासिल करने के प्रयासों का आरंभ हो जाता है। जो व्यक्ति अपने शत्रुओं या प्रतियोगियों को परास्त करना चाहता है, उसे इस दिन वरूण देव की पूजा करनी चाहिए |

दक्षिण भारत में इस दिन न केवल हिन्दू वरन् मुसलमान, सिक्ख और ईसाई सभी समुद्र तट पर नारियल और पुष्प चढ़ाना शुभ समझा जाता है | नारियल को भगवान शिव का रुप माना गया है, नारियल में तीन आंखे होती है | तथा भगवान शिव की भी तीन आंखे है  |


रक्षाबंधन  मुहूर्त :  इस वर्ष रक्षा बंधन 26th अगस्त 2018, रविवार को मनाया जाएगा। 
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त = 05:59 से 17:25 तक। 
मुहूर्त  की अवधि = 11 घंटे 26 मिनट।
                                रक्षा बंधन में अपराह्न मुहूर्त = 13:39 से 16:12 तक। 
                        मुहूर्त  की अवधि = 02 घंटे 33 मिनट। 
                 रक्षा बंधन के दिन भद्रा सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाएगी।
           सावन माह की पूर्णिमा तिथि 25th अगस्त 2018, शनिवार 15:16 से प्रारंभ होगी।
           जिसका समापन 26th अगस्त 2018, रविवार 17:25 पर होगा। 

अर्थात :- इस दिन धनिष्ठा नक्षत्र दोपहर 12.35 बजे तक रहेगा। रक्षाबंधन का मुहूर्त 26 अगस्त को प्रातः 7.43 से दोपहर 12.28 बजे तक रहेगा। इसके बाद दोपहर 2.03 से 3.38 बजे तक रहेगा। सायं 5.25 पर पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जाएगी, " लेकिन सूर्योदय व्यापिनी तिथि मानने के कारण रात्रि में भी राखी बांधी जा सकेगी "।

शुभ समय : 
* प्रातः 7:43 से 9:18 तक चर
* प्रातः 9:18 से 10:53 तक लाभ 
*प्रातः10:53 से 12:28 तक अमृत 
*दोपहर: 2:03 से 3:38 तक शुभ
* सायं: 6:48 से 8:13 तक शुभ 
*रात्रि: 8:13 से 9:38 तक अमृत
* रात्रि: 9:38 से 11:03 तक चर

;अशुभ समय :
*राहु काल प्रातः 5:13 से 6:48
* यम घंटा दोप. 12:28 से 2:03 
*गुली काल दोप. 3:38 से 5:13 
*काल चौघड़िया दोप. 12:28 से 2:03

धागे से जुडे अन्य संस्कार : हिन्दू धर्म में प्रत्येक पूजा कार्य में हाथ में कलावा ( धागा ) बांधने का विधान है | यह धागा व्यक्ति के उपनयन  संस्कार से लेकर उसके अन्तिम संस्कार तक सभी संस्करों में बांधा जाता है |  राखी का धागा भावनात्मक एकता का प्रतीक है | स्नेह व विश्वास की डोर है | धागे से संपादित होने वाले संस्कारों में उपनयन संस्कार, विवाह और रक्षा बंधन प्रमुख है।
पुरातन काल से वृक्षों को रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा है। बरगद के वृक्ष को स्त्रियां धागा लपेटकर रोली, अक्षत, चंदन, धूप और दीप दिखाकर पूजा कर अपने पति के दीर्घायु होने की कामना करती है। आंवले के पेड़ पर धागा लपेटने के पीछे मान्यता है कि इससे उनका परिवार धन धान्य से परिपूर्ण होगा।
वह भाइयों को इतनी शक्ति देता है कि वह अपनी बहन की रक्षा करने में समर्थ हो सके। श्रवण का प्रतीक राखी का यह त्यौहार धीरे-धीरे राजस्थान के अलावा अन्य कई प्रदेशों में भी प्रचलित हुआ और सोन, सोना अथवा सरमन नाम से जाना गया।



रक्षा बंधन संस्कार : इस दिन बहनें  प्रातः उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि करके नए कपड़े पहनती हैं। इसके बाद पीतल की थाली तैयार करती है। जिसमे राखी के साथ-साथ कुमकुम, हल्दी, चावल, मिठाई और कुछ पैसे भी होते है। सर्वप्रथम देवताओ की पूजा की जाती है, और उसके बाद भाई के माथे पर हल्दी और कुमकुम से टीका लगाकर उनपर चावल लगाए जाते है और थोड़े से अक्षत फेंकते हुए मंत्र पढ़ती हैं, और उसकी दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है। थाली में रखे पैसो को भाई पर न्योछावर करके गरीबो में दान कर दिया जाता है। इस पुरे कार्यक्रम के समाप्त होने तक बहनें अन्न ग्रहण नही करती है। हिन्दुओ में रिवाज है जब तक बहन अपने भाई की कलाई पर राखी न बांध ले उसे उपवास रखना होता है। इसके बाद भाई अपनी क्षमता अनुसार बहन को उपहार या धन देता है। 

 

रक्षा बंधन मंत्र :

 
राखी बांधते समय बहनें निम्न मंत्र का उच्चारण करें, इससे भाईयों की आयु में वृ्द्धि होती है |


    " ऊं येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महा
       तेन त्वां प्रति बध्नामि, रक्षे मा चल मा चल  "
 
   


इसका अर्थ है –>  जिस प्रकार राजा बलि में रक्षा सूत्र से बंधकर विचलित हुए बिना अपना सब कुछ दान कर दिया, उसी प्रकार हे रक्षा! आज मैं तुम्हें बांधता हूं, तू भी अपने उद्देश्य से विचलित न होना और दृढ़ बना रहना ।     

Sunday 8 July 2018

विद्यारम्भ मुहुर्त



मानव को मानव इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके पास बुद्धि और ज्ञान होता है। ज्ञान और बुद्धि में निखार लाने के लिए हम मानव, शिक्षा ग्रहण करते हैं। शिक्षा से हमारे संस्कार, विचार और सोचने का तरीका बदलता है और हम सुसंस्कृत बनते हैं जिससे समाज और राष्ट्र के विकास में हम सक्रिय रूप से योगदान दे पाते हैं।
हमारे शास्त्र बताते है कि बच्चे जब शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाएं तब विद्यारम्भ संस्कार आयोजित किया जाना चाहिए, इस संस्कार में गुरू बच्चे को पहली बार अक्षर से परिचय कराते हैं। आइये इस संस्कार के विषय में कुछ और भी जानें और यह मालूम करें कि यह किस मुहुर्त में किया जाना चाहिए।

विद्यारम्भ संस्कार में सबसे पहले गणेश जी, गुरू, देवी सरस्वती और पारिवारिक इष्ट की पूजा की जाती है । इन देवी देवताओं का आशीर्वाद लेने के बाद गुरू बच्चे को अक्षर का ज्ञान देते हैं। इस संस्कार में गुरू पूरब की ओर और शिष्य पश्चिम की ओर मुख करके बैठते हैं। संस्कार के अंत में गुरू को वस्त्र, मिठाई एवं दक्षिणा दी जाती है और गुरू बालक को आशीर्वाद देते हैं। विद्यारम्भ संस्कार जन्म के पांचवे वर्ष उत्तरायण में किया जाता है.


नक्षत्र :
विद्यारम्भ संस्कार के लिए मुहुर्त ज्ञात करते समय सबसे पहले नक्षत्र का विचार किया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हस्त, अश्विनी, पुष्य और अभिजीत, पुनर्वसु, स्वाती, श्रवण, रेवती, चित्रा, अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्र को विद्यारम्भ संस्कार के लिए बहुत ही अच्छा माना गया है।


तिथि :
इस संस्कार के लिए ज्योतिषशास्त्र कहता है कि द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्टी, दशमी, एकादशी, द्वादशी तिथि अनुकूल होती है। आप इनमें से किसी भी तिथि को यह संस्कार कर सकते हैं।


वार :
बात करें वार कि तो इस संस्कार के लिए सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को बहुत ही शुभ माना जाता है। माता पिता अपनी संतान का विद्यारम्भ इन वारों में से किसी भी वार को कर सकते हैं।


लग्न :
विद्यारम्भ संस्कार के लिए मुहुर्त ज्ञात करते समय लग्न की स्थिति कैसी होनी चाहिए आइये इसे देखें। वृष, मिथुन, सप्तम में हों एवं दशम भाव में शुभ ग्रह हों व अष्टम भाव खाली हों तो यह उत्तम होता है


निषेध :
ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि चन्द्र व तारा दोष होने पर विद्यारम्भ नहीं करना चाहिए। तारा और चन्द्र दोष से मुक्त होने पर ही इस संस्कार की शुरूआत करनी चाहिए।

Sunday 1 July 2018

करण एवं जातक स्वभाव



ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचांग से समय का आंकलन किया जाता है। किसी कार्य के लिए समय शुभ है अथवा नहीं यह भी पंचांग से देखा जाता है क्योंकि पंचांग बताता है कि ग्रह, नक्षत्र की स्थिति कैसी है और उसका परिणाम कैसा होने वाला है। पंचांग को लेकर हमारे मन में कई बार यह उत्सुकता जगती है कि पंचांग को पंचांग क्यों कहा जाता है। ज्योतिर्विद बताते हैं कि पंचांग के पांच अंग अर्थात तत्व होने से इसे पंचांग कहा जाता है। हम यहां इन्हीं पांच अंगों में से एक अंग करण के विषय में बात करने जा रहे हैं, आइये इस अंग के विषय में विस्तार से जानें.......।
ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार एक योग दो करण से मिलकर बनता है। एक करण आधे योग से बनता है। करण की संख्या मूल रूप से 11 है।


1.बव करण :
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति धार्मिक स्वभाव का होता है। इस करण का व्यक्ति शुभ कार्यों में मन लगाते हैं और अपने कार्य में निरन्तर स्थायी रूप से लगे रहना पसंद करते हैं। अनैतिक और धर्म विरूद्ध कार्यों से ये दूर ही रहते हैं। इनकी बुद्धि तीक्ष्ण होती है जिससे ये भ्रम में नहीं उलझते हैं। अपने कार्य एवं व्यवहार से समाज में काफी मान सम्मान प्राप्त करते हैं।


2.बालव :
बालव करण, व्यक्ति को धार्मिक स्वभाव प्रदान करता है। इस कारण में जन्म लेने वाला व्यक्ति धर्म कर्म में अटूट विश्वास रखता है तथा धर्मयात्रा एवं तीर्थयात्रा के द्वारा अपने जीवन को सफल बनाने का प्रयास करता है। इस करण के जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करते हैं। ये जीवन में काफी धन अर्जित करते हैं और धन धान्य से पूर्ण, सुखी जीवन व्यतीत करते हैं।


3.कौलव :
कौलव करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव मिलनसार होता है। इस करण मे जन्म लेने वाले व्यक्ति सबसे प्रेमपूर्ण और स्नेहयुक्त व्यवहार रखते हैं। इनके मित्रों की संख्या बहुत अधिक होती है और मित्रों से इन्हें समय समय पर अनुकूल सहयोग और लाभ भी प्राप्त होता है। इस करण के जातक बहुत ही स्वाभिमानी होते हैं और किसी भी हाल में अपने स्वाभिमान पर आंच नहीं आने देते हैं।


4.तैतिल :
ज्योतिषशास्त्री मानते हैं कि तैतिल करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति बहुत ही सौभाग्यशाली होता है। इस करण के जातक के पास काफी मात्रा में धन होता है। इनके जीवन में प्रेम का विशेष महत्व होता है, ये सभी को स्नेह की दृष्टि से देखते हैं। ये उत्तम मकान व सम्पत्ति के स्वामी होते हैं।


5.गर :
ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार गर करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति काफी परिश्रमी होता है। यह भाग्य से अधिक कर्म पर विश्वास रखता है तथा जिन वस्तुओं की कामना करता है उसे अपनी मेहनत से प्राप्त कर लेता है। कृषि से सम्बन्धित कार्यों एवं घर के कार्यों में तत्पर रहता है।


6.वणिज :
वणिज करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति तेज बुद्धि का स्वामी होता है। इस करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति व्यापार में निपुण होने के कारण वाणिज्य कर्म से आजीविका कमाने वाला होता है। ये यात्रा के भी काफी शौकीन होते हैं, व्यापार के उद्देश्य से ये काफी यात्रा करते हैं और लाभ प्राप्त करते हैं। इसके जातक पूर्णत: व्यावसायिक बुद्धि के होते हैं।


7.विष्टि :
ज्योतिषशास्त्र में विष्टि करण शुभ नहीं माना जाता है। इस करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर विष्टि करण का अशुभ प्रभाव रहता है जिसके कारण इसके जातक का आचरण संदिग्ध रहता है। इनका मन अनुचित कार्यों में लगता है। ये परायी स्त्री के प्रति मोहित रहते हैं। इस करण के जातक का एक विशिष्ट स्वभाव यह है कि अगर ये शत्रु से बदला लेने की सोचें तो किसी भी हद तक जा सकते हैं।


8.शकुनी :
शकुनी करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति न्याय करने वाला होता है। ये विवाद को सुलझाने में तत्पर रहते हैं अर्थात अगर इनके आस पास कहीं विवाद उत्पन्न हो तो उसे अपनी बुद्धि से शांत कर देते हैं। ये दवाईयों के भी अच्छे जानकार होते हैं तथा इनसे सम्बन्धित कार्यों में लाभ प्राप्त करते हैं।


9.चतुष्पद :
चतुष्पद करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति शुभ संस्कारों से युक्त ब्राह्मणों का सम्मान करने वाला धर्म-कर्म में विश्वास रखने वाला तथा गायों की सेवा करने वाला होता है। ये पशुओं से विशेष प्रेम रखते हैं। इन्हें पशुओं की चिकित्सा का भी ज्ञान होता है और ये पशुचिकित्सक भी बन सकते हैं।


10.नाग :
नाग करण को ज्योतिषशास्त्र में अशुभ माना गया है। इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है उन्हें दुर्भाग्यशाली माना जाता है। इनका जीवन संघर्षमय होता है तथा इन्हें भाग्य की अपेक्षा कर्म का फल प्राप्त होता है। इनके नेत्र चंचल होते हैं अत: किसी भी कार्य में स्थिरचित्त नहीं रह पाते हैं, इससे इन्हें जीवन में सफलता मिलना इनके लिए कठिन होता है।


11.किंस्तुघ्न :
किंस्तुघ्न करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है। ये सदैव शुभ कार्यों में संलग्न रहते हैं, इन्हें सभी प्रकार के सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं। ये उत्तम शिक्षा एवं धन से परिपूर्ण होकर सभी प्रकार से आनन्दपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।


Wednesday 27 June 2018

नक्षत्र के अनुसार व्यक्तित्व



ज्योतिष शास्त्र में २७ नक्षत्रों के विषय में बतलाया गया है ,तथा ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार हर नक्षत्र का अपना-अपना  प्रभाव होता है। जिस नक्षत्र में व्यक्ति का जन्म होता है उसके अनुरूप उसका व्यक्तित्व, व्यवहार और आचरण होता है। आईये जानते  हैं प्रत्येक नक्षत्र के अनुसार व्यक्तित्व पर उसका प्रभाव.....,

1. अश्विनी नक्षत्र का जातक : ज्योतिषशास्त्र में अश्विनी नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्रों के अन्तर्गत रखा गया है। इस नक्षत्र का स्वामी केतु होता है। इस नक्षत्र में उत्पन्न होने वाले व्यक्ति बहुत ही उर्जावान होते हैं। ये सदैव सक्रिय रहना पसंद करते हैं इन्हें खाली बैठना अच्छा नहीं लगता, ये हमेशा कुछ न कुछ करते रहना पसंद करते हैं। इस नक्षत्र के जातक उच्च महत्वाकांक्षा से भरे होते हैं, छोटे-मोटे काम से ये संतुष्ट नहीं होते, इन्हें बड़े और महत्वपूर्ण काम करने में मज़ा आता है। अश्विनी नक्षत्र में जिनका जन्म होता है वे रहस्यमयी होते हैं। इन्हें समझपाना आमजनो के लिए काफी मुश्किल होता है। ये कब क्या करेंगे इसका अंदाज़ा लगाना भी कठिन होता है। ये जो भी हासिल करने की सोचते हैं उसे पाने के लिए किसी भी हद तक जाने से नहीं डरते। ये इस प्रकार के कार्य कर जाते हैं जिसके बारे में कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा पाता। इनके स्वभाव और व्यक्तित्व की एक बड़ी कमी है कि इनमें उतावलापन बहुत होता है। ये किसी बात पर बहुत जल्दी गुस्सा करने लग जाते हैं। इनके व्यक्तित्व की एक बड़ी कमी यह है कि ये काम को करने से पहले नहीं सोचते अपितु बाद में उस पर विचार करते हैं। जो भी इनसे शत्रुता करता है उनसे बदला लेने में ये पीछे नहीं हटते, अपने दुश्मनों को पराजित करना इन्हें अच्छी तरह आता है। इस नक्षत्र के जातक को दबाव या ताकत से वश में नहीं किया जा सकता। ये प्रेम एवं अपनत्व से ही वश में आते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति उत्तम एवं आदर्श मित्र होते हैं। ये छल कपट से दूर रहते हैं तथा सच्ची मित्रता निभाते हैं, ये अपने मित्र के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। ये यूं तो बाहर से सख्त दिखते हैं परंतु भीतर से कोमल हृदय के होते हैं। इन व्यक्तियों का बचपन संघर्ष में गुजरता है। ये अपनी धुन के पक्के होते हैं, जो भी तय कर लेते हैं उसे पूरा करके दम लेते हैं।  

2.  भरणी नक्षत्र का जातक : नक्षत्रों की कड़ी में भरणी को द्वितीय नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र ग्रह होता है। जो व्यक्ति भरणी नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे सुख सुविधाओं एवं ऐसो आराम चाहने वाले होते हैं। इनका जीवन भोग विलास एवं आनन्द में बीतता है। ये देखने में आकर्षक व सुन्दर होते हैं।  इनका स्वभाव भी सुन्दर होता है जिससे ये सभी का मन मोह लेते हैं। इनके जीवन में प्रेम का स्थान सर्वोपरि होता है। इनके हृदय में प्रेम तरंगित होता रहता है ये विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति आकर्षण एवं लगाव रखते हैं। भरणी नक्षत्र के जातक उर्जा से परिपूर्ण रहते हैं। ये कला के प्रति आकर्षित रहते हैं और संगीत, नृत्य, चित्रकला आदि में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। ये दृढ़ निश्चयी एवं साहसी होते हैं। इस नक्षत्र के जातक जो भी दिल में ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। आमतौर पर ये विवाद से दूर रहते हैं फिर अगर विवाद की स्थिति बन ही जाती है तो उसे प्रेम और शान्ति से सुलझाने का प्रयास करते हैं। अगर विरोधी या विपक्षी बातों से नहीं मानता है तो उसे अपनी चतुराई और बुद्धि से पराजित कर देते हैं। जो व्यक्ति भरणी नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे विलासी होते हैं। अपनी विलासिता को पूरा करने के लिए ये सदैव प्रयासरत रहते हैं और नई नई वस्तुएं खरीदते हैं। ये साफ सफाई और स्वच्छता में विश्वास करते हैं। इनका हृदय कवि के समान होता है। ये किसी विषय में दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं। ये नैतिक मूल्यों का आदर करने वाले और सत्य का पालन करने वाले होते हैं। ये रूढ़िवादी नहीं होते हैं और न ही पुराने संस्कारों में बंधकर रहना पसंद करते हें। ये स्वतंत्र प्रकृति के एवं सुधारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले होते हैं। इन्हें झूठा दिखावा व पाखंड पसंद नहीं होता। इनका व्यक्तित्व दोस्ताना होता है और मित्र के प्रति बहुत ही वफादार होते हैं। ये विषयों को तर्क के आधार पर तौलते हैं जिसके कारण ये एक अच्छे समालोचक होते हैं। इनकी पत्नी गणवंती और देखने व व्यवहार मे सुन्दर होती हैं। इन्हें समाज में मान सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है।

 3.  कृतिका नक्षत्र का जातक :  नक्षत्रों का व्यक्तित्व पर प्रभाव की कड़ी में हम यहां नक्षत्रों की गणना में तीसरे स्थान पर रहने वाले नक्षत्र कृतिका की बात करते हैं। सूर्य को कृतिका नक्षत्र का स्वामी माना जाता है। इन नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर सूर्य का प्रभाव रहता है। सूर्य के प्रभाव के कारण ये आत्म गौरव से परिपूर्ण होते हैं। ये स्वाभिमानी होंते हैं और तुनक मिज़ाज भी, छोटी-छोटी बातों पर ये उत्तेजित हो उठते हैं और गुस्से से लाल पीले होने लगते हैं। इस नक्षत्र के जातक उर्जा से परिपूर्ण होते हैं और दृढ़ निश्चयी होते हैं जो बात मन में ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। कृतिका नक्षत्र में पैदा लेने वाले मनुष्य लगनशील होते हैं, जिस काम को भी अपने जिम्मे लेते हैं उसमें परिश्रम पूर्वक जुटे रहते हैं। ये नियम के पक्के होते हैं, किसी भी स्थिति में नियम और सिद्धांत से हटना पसंद नहीं करते। इस नक्षत्र के जातक सरकारी क्षेत्र में प्रयास करते हैं तो इन्हें अच्छी सफलता मिलती है। शारीरिक रूप से ये स्वस्थ और सेहतमंद रहते हैं। ये व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी में अधिक कामयाब होते हैं। इनके जीवन में इनका सिद्धांन्त, जीवनमूल्य काफी अहम होता है। अपने सिद्धांत और आदर्शवादिता के कारण समाज में इन्हें काफी मान सम्मान मिलता है। ये समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में आदर प्राप्त करते हैं। जो व्यक्ति इस नक्षत्र में पैदा होते हैं वे महत्वाकांक्षी होते हैं। ये नौकरी में हों अथवा व्यवसाय में अपना प्रभुत्व बनाये रखते हें, इस नक्षत्र के जातक अगर सरकारी नौकरी में होते हैं तो पूरे दफ्तर पर नियंत्रण बनाये रखते हैं। इनकी मित्रता का दायरा बहुत छोटा होता है क्योंकि ये लोगों से अधिक घुलते मिलते नहीं हैं परंतु जिनसे मित्रता करते हैं उनकी मित्रता को दिलोजान से निभाते हैं। शत्रुओं के प्रति इनका व्यवहार काफी सख्त़ होता है। ये जीवन में कभी भी हार नहीं मानते हैं और शत्रुओं को पराजित करने की क्षमता रखते हैं।ये प्रेम सम्बन्धों के मामले से दूर रहना पसंद करते हैं। इनकी संतान कम होती है, परंतु पहली संतान गुणवान व यशस्वी होती है। पत्नी से इनके सम्बन्ध सामान्य रहते हैं।

4.  रोहिणी नक्षत्र का जातक : ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार रोहिणी चारों चरणों में वृषभ राशि में होता है। चन्द्रमा को रोहिणी नक्षत्र का स्वामी कहा जाता है। इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है वे कल्पना की ऊंची उड़ान भरने वाले होते हैं। वे अपनी कल्पना की दुनियां में खुश रहना पसंद करते हैं। इनका मन हिरण के समान चंचल होता है, किसी विषय पर देर तक विचार करना और मुद्दे पर कायम रहना इनके लिए कठिन होता है। कला के प्रति इनमें गहरी अभिरूचि होती है ये संगीत, नृत्य, चित्रकारी, शिल्पकला आदि में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। इनका स्वभाव मधुर और प्रेम से ओत प्रोत रहता है। इनका जीवन सुखमय रहता है, ये सभी प्रकार के सांसारिक सुखों का आनन्द लेते हैं। अगर ये प्रयास करें तो जीवन में निरंतर आगे की ओर बढ़ते रहते हैं। ये जिस विभाग या क्षेत्र में होते हैं उसमें उच्च पद तक जाते हैं। विपरीत लिंग वालों के प्रति इनमें विशेष आकर्षण देखा जाता है, इनका जीवन रोमांस से भरपूर होता है। रोहिणी नक्षत्र के जातक सरकारी विभाग में हों या व्यवसाय में दोनों ही जगहों पर ये प्रसिद्धि और यश प्राप्त करते हैं . इन्हें माता से पूरा सहयोग मिलता है और प्रेम प्राप्त होता है, मां के साथ इस नक्षत्र के जातक का विशेष लगाव रहता है। ये हृदय से भावुक और संवदेनशील होते हैं, भावनाओं पर नियंत्रण रखना इनके लिए अच्छा रहता है। ये जितने कल्पनाशील होते हैं, उसके अनुरूप अगर कल्पना को यथार्थ बनाने का प्रयास करें तो काफी आगे जा सकते हैं अन्यथा कल्पना रेत के महल बनकर रह जाते हैं। इनके जीवन में स्थायित्व की कमी पायी जाती है क्योंकि ये चींजों में परिवर्तन करते रहते हैं। इन्हे यात्रा करना, सैर सपाटा करना काफी अच्छा लगता है, परंतु अपने घर के प्रति भी बहुत लगाव रखते हैं। जीवन साथी के प्रति आकर्षण और हृदय से लगाव रहने के कारण इनका वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखमय और आनन्दमय रहता है। ये अपने मन पर बोझ लेकर नहीं चलते हैं इसलिए हमेशा प्रसन्न और खुश रहते हैं। इनके बच्चे समझदार और नेक गुणों वाले होते हैं। अपने नेक और सुन्दर व्यवहार के कारण ये समाज और अपने परिवेश में आदर व सम्मान प्राप्त करते हैं।

5.  मृगशिरा नक्षत्र का जातक : जो व्यक्ति मृगशिरा नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनपर मंगल का प्रभाव देखा जाता है यही कारण है कि इस नक्षत्र के जातक दृढ़ निश्चयी होते हैं। ये स्थायी काम करना पसंद करते हैं, ये जो काम करते हैं उसमें हिम्मत और लगन पूर्वक जुटे रहते हैं। ये आकर्षक व्यक्तित्व और रूप के स्वामी होते हैं।ये हमेशा सावधान एवं सचेत रहते हैं। ये सदा उर्जा से भरे रहते हैं, इनका हृदय निर्मल और पवित्र होता है। अगर कोई इनके साथ छल करता है तो ये धोखा देने वाले को सबक सिखाये बिना दम नहीं लेते। इनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है लोग इनसे मित्रता करना पसंद करते हैं। ये मानसिक तौर पर बुद्धिमान होते और शारीरिक तौर पर तंदरूस्त होते हैं। इनके स्वभाव में मौजूद उतावलेपन के कारण कई बार इनका बनता हुआ काम बिगड़ जाता है या फिर आशा के अनुरूप इन्हें परिणाम नहीं मिल पाता है। ये संगीत के शौकीन होते हैं, संगीत के प्रति इनके मन में काफी लगाव रहता है। ये स्वयं भी सक्रिय रूप से संगीत में भाग लेते हैं परंतु इसे व्यवसायिक तौर पर नहीं अपनाते हैं। इन्हें यात्रओं का भी शौक होता है, इनकी यात्राओं का मूल उद्देश्य मनोरंजन होता है। कारोबार एवं व्यवसाय की दृष्टि से यात्रा करना इन्हें विशेष पसंद नहीं होता है। व्यक्तिगत जीवन में ये अच्छे मित्र साबित होते हैं, दोस्तों की हर संभव सहायता करने हेतु तैयार रहते हैं। ये स्वाभिमानी होते हैं और किसी भी स्थिति में अपने स्वाभिमान पर आंच नहीं आने देना चाहते। इनका वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखमय होता है क्योंकि ये प्रेम में विश्वास रखने वाले होते हैं। ये धन सम्पत्ति का संग्रह करने के शौकीन होते हैं। इनके अंदर आत्म गौरव भरा रहता है। ये सांसारिक सुखों का उपभोग करने वाले होते हैं। मृगशिरा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बहादुर होते हैं ये जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव को लेकर सदैव तैयार रहते हैं। 

 6. आर्दा नक्षत्र का जातक  : इस नक्षत्र की राशि मिथुन होती है। जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनपर जीवनभर राहु और बुध का प्रभाव रहता है। राहु और बुध के प्रभाव के कारण व्यक्ति का जीवन, स्वभाव और व्यक्तित्व किस प्रकार होता है चलिए इसकी खोज करते हैं। शायद आपको पता होगा कि राहु राजनीतिक दांव पेंच में माहिर होता है और कूटनीतिक चालें भी चलना जानता है। इस नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति को राहु का यह गुण स्वभाविक रूप से मिलता है फलत: जातक राजनीति में अव्वल होते है और चतुराई से अपना मकसद पूरा करना जानते है। ये किसी से भी अपना काम आसानी से निकाल लेते हैं। अपनी मधुर वाणी और वाक्पटुता से ये लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इनकी सफलता और कामयाबी का एक बड़ा राज है, इनमें वक्त की नब्ज़ को पकड़ने की क्षमता का होना व उनके अनुसार अपने आप को तैयार कर लेना। यह अपने सामने वाले व्यक्ति को भी पढ़ना जानते हैं जिससे आसानी से कोई इन्हें मात नहीं दे पाता। इस नक्षत्र के जातक का मस्तिष्क हमेशा क्रियाशील और सक्रिय रहता है ये एक बार जिस काम को करने की सोचते हैं उसमें जी-जान से जुट जाते हैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ये पूरी ताकत झोंक देते हैं, सफलता हेतु साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति भी खुल कर अपनाते हैं। ये राजनीति में जितने पारंगत होते हैं उतने ही आध्यत्म में रूचि रखते है। ये स्वयं अध्यात्म को अपनाते हैं और दूसरो को भी इस दिशा में प्रेरित करते हैं। अपने गुणों और क्षमताओं के कारण इनमें अहम की भावना भी कभी कभी दृष्टिगोचर होती है. इस नक्षत्र के जातक कभी खाली बैठना पसंद नहीं करते, इनके दिमाग में हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है। ये आम तौर पर प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में सक्रिय रहते हैं और अगर प्रत्यक्ष रूप से न भी रहें तो अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक हलकों में इनकी अच्छी पकड़ रहती है, ये राजनेताओं से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति निजी लाभ के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं, ये अपने लाभ के लिए नैतिकता को ताक पर रखने से भी नहीं चूकते हैं। इनके स्वभाव की इस कमी के कारण समाज में इनकी छवि बहुत अच्छी नहीं रहती और लोग इनके लिए नकारात्मक विचार रखने लगते हैं। आर्द्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने से विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति विशेष लगाव रखते हैं। ये सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए काफी लालायित रहते हैं।

7. पुनर्वसु नक्षत्र का जातक  : इस नक्षत्र के विषय में मान्यता है कि जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनमें कुछ न कुछ दैवी शक्ति होती है। इस नक्षत्र के जातक में और क्या गुण होते हैं और उनका व्यक्तित्व कैसा होता है आइये चर्चा करें: ज्योतिषशास्त्र मे कहा गया है कि जो व्यक्ति पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म् लेते हैं उनका हृदय कोमल होता है, उनकी वाणी में कोमलता व मधुरता रहती है। इनका शरीर भारी भड़कम होता है, इनकी स्मरण क्षमता काफी अच्छी होती है, ये एक बार जिस चीज़ को देख या पढ़ लेते हैं उसे लम्बे समय तक अपनी यादों में बसाये रखते हैं। पुनर्वसु के जातक की अन्तदृष्टि काफी गहरी होती है। इनका स्वभाव एवं व्यवहार सरल और नेक होता है जिसके कारण समाज में इनको काफी मान सम्मान एवं आदर प्राप्त होता है। पुनर्वसु नक्षत्र में जिस व्यक्ति का जन्म होता है वे काफी मिलनसार होते हैं, ये सभी के साथ प्रेम और स्नेह के साथ मिलते है, इनका व्यवहार सभी के साथ दोस्ताना होता है। इनके ऊपर दैवी कृपा बनी रहती है। जब भी इनपर कोई संकट या मुश्किल आती है अदृश्य शक्तियां स्वयं इनकी मदद करती हैं। ये आर्थिक मामलों के अच्छे जानकार होते हैं, वित्त सम्बन्धी मामलों में ये सफलता प्राप्त करते हैं। अंग्रेजी साहित्य में रूचि रखते हैं, और इस भाषा के अच्छे जानकार होते हैं। इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है वे उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करते हैं, अपनी शिक्षा के बल पर ये उच्च पद पर आसीन होते हैं। इन्हें सरकारी क्षेत्र में भी उच्च पद प्राप्त होता है। ये समाज और राजनीति से जुड़े बड़े बड़े लोगों से सम्पर्क बनाए रखते है। ये राजनीति में भी सक्रिय होते हैं, अगर राजनीति में न हों तो अप्रत्यक्ष रूप से नेताओं से निकटता बनाए रखते हैं। इस नक्षत्र के जातक अगर सक्रिय राजनीति में भाग लें तो इन्हें सत्ता सुख प्राप्त होता है. इनका पारिवारिक और वैवाहिक जीवन अत्यंत सुखद होता है। इनके बच्चे शिक्षित, समझदार होते हैं, ये जीवन में कामयाब होकर उच्च स्तर का जीवन प्राप्त करते हैं। पुनर्वसु नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति के पास काफी मात्रा में धन होता है। ये अपने व्यवहार और स्वभाव के कारण समाज में बेहतर मुकाम हासिल करते हैं।

 8. पुष्य नक्षत्र का जातक  :  पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि ग्रह होता है। ज्योतिषशास्त्र में पुष्य नक्षत्र को बहुत ही शुभ माना गया है। वार एवं पुष्य नक्षत्र के संयोग से रवि-पुष्य जैसे शुभ योग का निर्माण होता है। इस नक्षत्र में जिसका जन्म होता है वे दूसरों की भलाई के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, इन्हें दूसरों की सेवा एवं मदद करना अच्छा लगता है। इन नक्षत्र के जातक को बाल्यावस्था में काफी मुश्किलों एवं कठिनाईयों से गुजरना पड़ता है। कम उम्र में ही विभिन्न परेशानियों एवं कठिनाईयों से गुजरने के कारण युवावस्था में कदम रखते रखते परिपक्व हो जाते हैं। इस नक्षत्र के जातक मेहनत और परिश्रम से कभी पीछे नहीं हटते और अपने काम में लगन पूर्वक जुटे रहते हैं। ये अध्यात्म में काफी गहरी रूचि रखते हैं और ईश्वर भक्त होते हैं। इनके स्वभाव की एक बड़ी विशेषता है कि ये चंचल मन के होते हैं। ये अपने से विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति काफी लगाव व प्रेम रखते हैं। ये यात्रा और भ्रमण के शौकीन होते हैं। ये अपनी मेहनत से जीवन में धीरे-धीरे तरक्की करते जाते हैं। पुष्य नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति अपनी मेहनत और लगन से जीवन में आगे बढ़ते हैं। ये मिलनसार स्वभाव के व्यक्ति होते हैं। ये गैर जरूरी चीज़ों में धन खर्च नहीं करते हैं, धन खर्च करने से पहले काफी सोच विचार करने के बाद ही कोई निर्णय लेते हैं। ये व्यवस्थित और संयमित जीवन के अनुयायी होते हैं। अगर इनसे किसी को मदद चाहिए होता है तो जैसा व्यक्ति होता है उसके अनुसार उसके लिए तैयार रहते हैं और व्यक्तिगत लाभ की परवाह नहीं करते। ये अपने जीवन में सत्य और न्याय को महत्वपूर्ण स्थान देते हैं। ये किसी भी दशा में सत्य से हटना नही चाहते, अगर किसी कारणवश इन्हें सत्य से हटना पड़ता है तो, ये उदास और खिन्न रहते हैं। ये आलस्य को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते, व एक स्थान पर टिक कर रहना पसंद नहीं करते।

9.आश्लेषा नक्षत्र का जातक : शास्त्रों का मानना है कि यह नक्षत्र विषैला होता है। प्राण घातक कीड़े मकोड़ो का जन्म भी इसी नक्षत्र में होता है। ऐसी मान्यता है कि इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है व उनमें विष का अंश पाया जाता है। ज्यातिषशास्त्र कहता है आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बहुत ही ईमानदार होते हैं परंतु मौकापरस्ती में भी पीछे नहीं रहते यानी ये लोगों से तब तक बहुत अधिक घनिष्ठता बनाए रखते हैं जबतक इनको लाभ मिलता है। इनका स्वभाव हठीला होता है, ये अपने जिद आगे किसी की नहीं सुनते हैं। भरोसे की बात करें तो ये दूसरे लोगों पर बड़ी मुश्किल से यकीन करते हैं। आश्लेषा नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होते हैं और अपनी बुद्धि व चतुराई से प्रगति की राह में आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। ये अपनी वाणी की मधुरता का भी लाभ उठाना खूब जानते हैं। ये शारीरिक मेहनत की बजाय बुद्धि से काम निकालना जानते है। ये व्यक्ति को परखकर उसके अनुसार अपना काम निकालने में होशियार होते हैं। ये खाने पीने के भी शौकीन होते हैं, परंतु इनके लिए नशीले पदार्थ का सेवन हितकर नहीं माना जाता है। ज्योतिषशास्त्र की मानें तो यह कहता है, जो लोग इस नक्षत्र में पैदा लेते हैं वे व्यवसाय में काफी कुशल होते हैं। ये नौकरी की अपेक्षा व्यापार करना अच्छा मानते हैं, यही कारण है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अधिक समय तक नौकरी नहीं करते हैं, अगर नौकरी करते भी हैं तो साथ ही साथ किसी व्यवसाय से भी जुड़े रहते हैं। इसका कारण यह है कि ये पढ़ाई लिखाई में तो ये सामान्य होते हैं परंतु वाणिज्य विषय में अच्छी पकड़ रखते हैं। ये भाषण कला में प्रवीण होते हैं, जब ये बोलना शुरू करते है तो अपनी बात पूरी करके ही शब्दों को विराम देते हैं। इनमें अपनी प्रशंसा सुनने की भी बड़ी ख्वाहिश रहती है। इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है वे अच्छे लेखक होते हैं। अगर ये अभिनय के क्षेत्र में आते हैं तो सफल अभिनेता बनते हैं। ये सांसारिक और भौतिक दृष्टि से काफी समृद्ध होते हैं एवं धन दौलत से परिपूर्ण होते हैं। इनके पास अपना वाहन होता है, ये व्यवसाय के उद्देश्य से काफी यात्रा भी करते है। इनमें अच्छी निर्णय क्षमता पायी जाती है। इनके व्यक्तित्व की एक बड़ी कमी यह है कि अगर अपने उद्देश्य में जल्दी सफलता नहीं मिलती है तो ये अवसाद और दु:ख से भर उठते हैं। अवसाद और दु:ख की स्थिति में ये साधु संतों की शरण लेते हैं। इस नक्षत्र के जातक का साथ कोई दे न दे परंतु भाईयों से पूरा सहयोग मिलता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाली स्त्री के विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि ये रंग रूप में सामान्य होते हैं, लेकिन स्वभाव एवं व्यवहार से सभी का मन मोह लेने वाली होती है। जो स्त्री इस नक्षत्र के अंतिम चरण में जन्म लेती हैं वे बहुत ही भाग्यशाली होती हैं ये जिस घर में जाती हैं वहां लक्ष्मी बनकर जाती हैं अर्थात धनवान होती हैं। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि जिनका जन्म इस नक्षत्र में हुआ है उन्हें गण्डमूल नक्षत्र की शांति करवानी चाहिए व भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।

10.मघा नक्षत्र का जातक : ज्योतिषशास्त्रियों की दृष्टि में जो व्यक्ति मघा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे प्रभावशाली होते हैं। ये  जहां भी रहते हैं अपना दबदबा बनाकर रखते हैं इस नक्षत्र के जातक समझदार होते हैं परंतु क्रोधी भी बहुत होते हैं ये छोटी छोटी बातों पर नाराज़ हो जाते हैं। ये उर्जावान और कर्मठ होते हैं जिस काम का जिम्मा लेते हैं उसे जल्दी से जल्दी पूरा करने की कोशिश करते हैं। इनका दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता है। मघा नक्षत्र के जातकों के विषय में यह कहा जाता है कि ये कभी कभी ऐसा कार्य कर जाते हैं जिससे देखने वाले अचम्भित रह जाते हैं। इनमें स्वाभिमान की भावना प्रबल रहती है, अपने स्वाभिमान के साथ ये कभी समझौता नहीं करते। अपने मान सम्मान को बनाए रखने के लिए ये हर संभव प्रयास करते हैं और सोच विचार कर कार्य करते हैं। जबकि इनके बारे में लोग यह सोचते हैं कि व्यक्ति जल्दबाज है और कोई भी निर्णय सोच समझकर नहीं लेते। इनका ईश्वर में पूर्ण विश्वास होता है। ये ईश्वर में गहरी आस्था रखते हैं। ये सरकार और सरकारी तंत्र से निकट सम्बन्ध बनाकर रखते हैं तथा समाज में भी उच्च वर्ग के लोगों से अच्छे सम्बन्ध बनाए रखते हैं। इन सम्बन्धों के कारण इन्हें काफी लाभ भी मिलता है। ये पूर्ण सांसारिक सुखों का उपभोग करने वाले होते हैं तथा इनके पास कई काम करने वाले होते हैं। धन सम्पत्ति के मामले में ये काफी समझदारी और अक्लमंदी दिखाते है। आर्थिक लाभ का जब मामला होता है तब उसमें पूरी क्षमता लगा देते हैं फलत: सफलता इनके कदमों पर होती है। जहां तक मित्रता का प्रश्न है, इस नक्षत्र के जातकों के बहुत अधिक मित्र नहीं होते हैं, लेकिन जो भी मित्र होते है उनसे अच्छी मित्रता और प्रेम रखते हैं। ये यात्रा के बहुत शौकीन नहीं होते हैं, अगर यात्रा आवश्यक हो तभी सफर पर निकलते हैं अन्यथा घर पर रहना ही पसंद करते हैं। कार्य क्षेत्र में भी ये स्थायित्व को पसंद करते हैं अर्थात स्थिर कार्य करना पसंद करते हैं। बार बार काम में बदलाव लाना इन्हें पसंद नहीं होता। मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या के विषय में कहा जाता है कि ये स्पष्टवादी होती हैं, इनके मन में जो आता है वे नि:संकोच बोलती हैं। ये हिम्मतवाली होती हैं और इनकी आकांक्षाएं बहुत ऊँची होती हैं.

11. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का जातक  : जो व्यक्ति पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे संगीत एवं कला के दूसरे क्षेत्र व साहित्य के अच्छे जानकार होते हैं क्योंकि इनमें इन विषयों के प्रति बचपन से ही लगाव रहता है। ये ईमानदार होते हैं व नैतिकता एवं सच्चाई के रास्ते पर चलकर जीवन का सफर तय करते हैं। इनके जीवन में प्रेम का स्थान सर्वोपरि होता है, ये प्रेम को अपने जीवन का आधर मानते हैं। इस नक्षत्र के जातक मार पीट एवं लड़ाई झगड़े से दूर रहना पसंद करते हैं। ये शांति पसंद होते हैं, कलह और विवाद होने पर बातों से समाधान निकालने की कोशिश करते हैं। पूर्वाफाल्गुनी के जातक शांत विचारधारा के होते हैं परंतु जब मान सम्मान पर आंच आने लगता है तो विरोधी को परास्त करने से पीछे नहीं हटते चाहे इसके लिए इन्हे कुछ भी करना पड़े। मित्रों एवं अच्छे लोगों का स्वागत दिल से करते हैं और प्यार से मिलते हैं। इनकी वाणी में मधुरता रहती है तथा अपनी जिम्मेवारियों का निर्वहन करना बखूबी जानते हैं। इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति नौकरी से अधिक व्यवसाय में सफल होते हैं। ये स्वतंत्र विचारधारा के व्यक्ति होते हैं ये किसी के दबाव या अधीन रहकर कार्य करना पसंद नहीं करते हैं। इनपर शुक्र पर गहरा प्रभाव होता है, शुक्र के प्रभाव के कारण ये सांसारिक सुखों के प्रति काफी लगाव रखते हैं। ये अपने से विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति विशेष लगाव रखते हैं। विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति लगाव रहने के कारण इनके प्रेम सम्बन्ध भी काफी चर्चित होते हैं। ये साफ-सफाई व सुन्दर के चाहने वाले होते हैं फलत: ये जीवन में हर वस्तु को व्यवस्थित रूप से रखते हैं। ये अपनी रोजमर्रा की चीजों यथा वस्त्र, पुस्तक एवं अन्य सामान के साथ घर को भी व्यवस्थित और सजा संवार कर रखते हैं। ये मित्र बनाने में निपुण होते हैं फलत: इनकी दोस्ती का दायरा काफी बड़ा होता है। इनके पास काफी मात्रा में धन होता है, और ये हर प्रकार के भौतिक सुखों का आनन्द लेते हैं। इस नक्षत्र में पैदा हाने वाली महिलाओं के विषय में माना जाता है कि वे सुन्दर होती हैं, इनका स्वभाव कोमल होता है परंतु दिखावा और तारीफ सुनना इनके स्वभाव का एक हिस्सा होता है। इनके स्वभाव में चंचलता और अहं का भी समावेश होता है।

12.उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का जातक  :  नक्षत्र मंडल में उत्तराफाल्गुनी 12 वां नक्षत्र होता है। इस नक्षत्र के स्वामी सूर्य होते हैं । यह नक्षत्र नीले रंग का होता है। इस नक्षत्र में जो लोग जन्म लेते हें उनके स्वभाव, व्यक्तित्व एवं जीवन के सम्बन्ध में ज्योतिषशास्त्र क्या कहता आइये इस विषय पर विचार करें। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के जातक उर्जावान होते हैं, ये अपना काम चुस्त फुर्ती से करते हैं। हमेशा सक्रिय रहना इनके व्यक्तित्व की विशेषता होती है। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के जातक बुद्धिमान एवं होशियार कहे जाते हैं। ये भविष्य सम्बन्धी योजना बनाने एवं रणनीति तैयार करने में कुशल होते हैं। इनके चरित्र की इस विशेषता के कारण अगर ये राजनीति के क्षेत्र में आते हैं तो काफी सफल होते हैं। राजनीतिक सफलता दिलाने में इनकी कुटनीतिक बुद्धि का प्रबल हाथ होता है। इनके विषय में यह कहा जाता है कि ये बहुत ही महत्वाकांक्षी होते हैं और अपनी महत्वाकांक्षा पूरा करने के लिए हर संभाव प्रयास करते हैं। ये अपना जो लक्ष्य तय कर लेते हैं उसे हर हाल में हासिल करने की चेष्टा करते हैं। उच्च महत्वाकांक्षा होने के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति छोटा मोटा काम करना पसंद नहीं करते हैं। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति सरकारी क्षेत्र में प्रयास करते हैं तो इन्हें जल्दी और बेहतर सफलता मिलती है। इनके लिए व्यापार एवं व्यवसाय या अन्य निजि कार्य करना लाभप्रद नहीं होता है। जो व्यक्ति उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र  में पैदा होते हैं वे स्थायित्व में यकीन रखते हैं, इन्हें बार बार काम बदलना पसंद नहीं होता है। ये जिस काम में एक बार लग जाते हैं उस काम में लम्बे समय तक बने रहते हैं। मित्रता के सम्बन्ध में भी इनके साथ यह बातें लागू होती हैं, ये जिनसे दोस्ती करते हैं उसके साथ लम्बे समय तक मित्रता निभाते हैं। इनके स्वभाव की विशेषता होती है कि ये स्वयं सामर्थवान होते हुए भी दूसरों से सीखने में हिचकते नहीं हैं। अपने स्वभाव की इस विशेषता के कारण ये निरंतन प्रगति की राह पर आगे बढ़ते हैं। इस राशि के जातक आर्थिक रूप से सामर्थवान होते हैं क्योंकि दृढ़विश्वास एवं लगन के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करने हेतु तत्पर रहते हैं। पारिवारिक जीवन के सम्बन्ध में देखा जाए तो ये अपनी जिम्मेवारियों का पालन अच्छी तरह से करते हैं। अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए ये हर संभव सहयोग एवं प्रयास करते हैं। दूसरों पर दबाव बनाने की आदत के कारण गृहस्थ जीवन में तनाव की स्थिति रहती है। सामाजिक तौर पर इनकी काफी प्रतिष्ठा रहती है और ये अपने आस पास के परिवेश में सम्मानित होते हैं। शारीरिक तौर पर ये सेहतमंद और स्वस्थ रहते हैं।

13. हस्त नक्षत्र का जातक : ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस नक्षत्र  में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर चन्द्र का प्रभाव रहता है, चन्द्र के प्रभाव के कारण व्यक्ति शांत स्वभाव का होता है, परंतु इनका मन चंचल होता है। दूसरों की सहायता करना इन्हें अच्छा लगता है और इसमें बढ़ चढ़ कर आगे आते हैं। इनका व्यक्तित्व आकर्षक और प्रभावशाली होता है। इस नक्षत्र  के जातक पर कन्या राशि का प्रभाव होता है जिसके कारण इनकी बौद्धिक क्षमता अच्छी होती है। इनके मस्तिष्क में नई नई योजनाएं उभरती रहती हैं। ये पढ़ने लिखने में तेज होने के साथ ही शब्दों के भी जादूगर होते हैं, अपनी बातों से अपना सिक्का जमा लेते हैं। किसी भी विषय को आसानी से समझ लेने की क्षमता इनमें बचपन से रहती है, आपकी वाणी में मधुरता और चतुराई का समावेश होता है। बौद्धिक क्षमता प्रबल होने के बावजूद एक कमी होती है कि आप किसी विषय में तुरंत निर्णय नहीं ले पाते हैं। आप शांति पसंद होते हैं, कलह और विवाद की स्थिति से आप दूर रहना पसंद करते हैं। आपके मन में एक झिझक रहती है फिर आप नये नये मित्र बना लेते हैं। आप मित्रों से काम निकालना भी खूब अच्छी तरह से जानते हैं। अवसर आने पर जिधर लाभ दिखाई देता है उस पक्ष की ओर हो लेते हैं। इस नक्षत्र के जातक नौकरी की अपेक्षा व्यवसाय करना पसंद करते हैं। व्यवसाय के प्रति लगाव के कारण ये इस क्षेत्र में काफी तेजी से प्रगति करते हैं। आर्थिक रूप से इनकी स्थिति अच्छी रहती है। इनके पास काफी मात्रा में धन होता है। ये हर प्रकार के सांसारिक सुखों का आनन्द लेते हैं और सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं। इनका पारिवारिक जीवन सुखमय और आनन्दमय रहता है। जीवन साथी से इन्हें पूर्ण सहयोग एवं सहायता प्राप्त होती है। अपने कार्यों से ये समाज में मान सम्मान एवं आदर प्राप्त करते हैं। कई मौंकों पर अपने स्वार्थ को प्रमुखता देने के कारण कुछ लोग इन्हें स्वार्थी भी कहने लगते हैं। ये लोगों के कहने पर विशेष ध्यान नहीं देते हैं और जो अपने मन में होता है वही करते हैं, ये अपनी धुन में रहने वाले होते हैं। इन्हें जीवन में कभी भी आर्थिक तंगी या परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है क्योंकि ये अपनी बुद्धि का इस्तेमाल धनोपार्जन में बखूबी कर पाते हैं। अपनी बुद्धि से अर्जित धन के कारण इन्हें कभी भी आर्थिक रूप से परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।

14. चित्रा नक्षत्र का जातक  : चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर मंगल ग्रह का और इसके राशियों का भी प्रभाव देखा जाता है। म्रगल और राहु के कारण चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव, व्यवहार और व्यक्तित्व कैसा होता है आइये इस विषय पर हम आप चर्चा में भाग लें। ज्योतिषशास्त्र के मतानुसार जिस व्यक्ति का जन्म चित्रा नक्षत्र में होता है वह व्यक्ति मिलनसार होता है अर्थात वह सभी के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाये रखते हैं व जो भी लोग इनके सामने आते हैं उनके साथ खुलकर मिलते हैं। ये उर्जा से भरे होते हैं और इनमें साहस कूट कूट कर भरा होता है ये किसी भी काम में पीछे नहीं हटते हैं और अपनी उर्जा शक्ति से कार्य को पूरा करते हैं। ये विपरीत स्थितियों से घबराते नहीं हैं बल्कि उनका साहस पूर्वक सामना करते हैं और कठिनाईयों पर विजय हासिल करके आगे की ओर बढ़ते रहते हैं। आपके स्वभाव में व्यवहारिकता का पूर्ण समावेश होता है। व्यावहारिकता का दामन थाम कर आगे बढ़ने के कारण आप जीवन में निरन्तर सफलता की राह में आगे बढ़ते रहते हैं। ये काम में टाल मटोल नहीं करते हैं, जो भी काम करना होता है उसे जल्दी से जल्दी पूरा करके निश्चिन्त हो जाना चाहते हैं। आपके व्यवहार और स्वभाव में मानवीय गुण स्पष्ट दिखाई देता है। अपने मानवीय गुणों के कारण आप आदर प्राप्त करते हैं। इनके स्वभाव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है और ये किसी बात पर तुरंत उत्तेजित हो जाते हैं। इस नक्षत्र के जातक अगर संयम से काम लें तो इनके लिए बहुत ही अच्छा रहता है। जिन व्यक्तियों का जन्म चित्रा नक्षत्र में होता है वे लोग नौकरी से अधिक व्यवसाय को महत्व देते हैं। व्यवसायिक मामलों में इनकी बुद्धि खूब चलती है, अपनी बुद्धि से ये व्यवसाय में काफी तरक्की करते हैं। इस नक्षत्र के जातक बोलने की कला में भी प्रवीण होते हैं जिसके कारण वकील के रूप में भी सफल होते हैं। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि इस नक्षत्र के जातक की सबसे बड़ी ताकत है "परिश्रम",  अपनी इस ताकत के कारण ये जिस काम में भी हाथ लगाते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। चित्रा नक्षत्र का एक महत्वपूर्ण गुण है आशावाद। यह इनका गुण भी है और इनकी ताकत भी, यही कारण है कि ये जल्दी किसी बात से निराश नहीं होते हैं। इनके जीवन में सांसारिक सुखों की कमी नहीं रहती है। ये हर प्रकार के सांसारिक एवं भौतिक सुखों का उपभोग करते हैं ये काफी धनवान होते हैं क्योंकि ये धन दौलत जमा करने के शौकीन होते हैं। आपके पास सवारी के लिए अपना वाहन होता है। इनका पारिवारिक जीवन सुखमय और खुशहाल होता है, आपको अपने जीवनसाथी से पूर्ण सहयोग एवं सुख मिलता है। संतान की दृष्टि से भी आप काफी भाग्यशाली होते हैं, आपकी संतान काफी समझदार और होशियार होती है, अपनी बुद्धि और समझदारी से जीवन में उन्नति कती है। चित्रा नक्षत्र के जातकों को मित्रों एवं रिश्तेदारों से भी समर्थन एवं सहयोग मिलता है। कुल मिलाकर कहा जाय तो चित्रा नक्षत्र में जिनका जन्म होता है उनका जीवन खुशहाल और और सुखमय होता है।

 15.स्वाति नक्षत्र का जातक  : बंसलोचन और केले में पड़े में कर्पूर बन जाता है। यानी देखा जाय तो यह नक्षत्र गुणों को बढ़ाने वाला व्यक्तित्व में निखार लाने वाला होता है। इस नक्षत्र के विषय में यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस नक्षत्र में पैदा लेते हैं वे मोती के समान उज्जवल होते हैं।  इसकी राशि तुला होती है। इन सभी के प्रभाव के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति में सात्विक और तामसी गुणों का समावेश होता है। ये अध्यात्म में गहरी आस्था रखते हैं। आपका जन्म स्वाति नक्षत्र में हुआ है तो आप परिश्रमी होंगे और अपने परिश्रम के बल पर सफलता हासिल करने का ज़ज्बा रखते होंगे। आप राहु के प्रभाव के कारण कुटनीतिज्ञ बुद्धि के होते है, राजनीति में आपकी बुद्धि खूब चलती हैं, राजनीतिक दांव पेंच और चालों को आप अच्छी तरह समझते हैं यही कारण है कि आप सदैव सतर्क और चौकन्ने रहते हैं। आप राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से हों अथवा नहीं परंतु अपका व्यवहार आपको राजनैतिक व्यक्तित्व प्रदान करता है। आप अपना काम निकालना खूब जानते हैं। आप परिश्रम के साथ चतुराई का भी इस्तेमाल बखूबी करना जानते हैं। आप इस नक्षत्र के जातक हैं और सक्रिय राजनीति में हैं तो इस बात की संभावना प्रबल है कि आप सत्ता सुख प्राप्त करेंगे। सामाजिक तौर पर देखा जाए तो लोगों के साथ आपके बहुत ही अच्छे सम्बन्ध होते हैं क्योंकि आपक स्वभाव अच्छा होता है। आपके स्वभाव की अच्छाई एवं रिश्तों में ईमानदारी के कारण लोग आपके प्रति विश्वास रखते हैं। आपके हृदय में दूसरों के प्रति सहानुभूति और दया की भावना रहती है। लोगों के प्रति अच्छी भावना होने के कारण आपको जनता का सहयोग प्राप्त होता है और आपकी छवि उज्जवल रहती है। आप स्वतंत्र विचारधारा के व्यक्ति होते हैं अत: आप दबाव में रहकर काम करने में विश्वास नहीं रखते हैं। आप जो भी कार्य करना चाहते है उसमें पूर्ण स्वतंत्रता चाहते हैं। नौकरी, व्यवसाय एवं आजीविका की दृष्टि से इनकी स्थिति काफी अच्छी रहती है। आप चाहे नौकरी करें अथवा व्यवसाय दोनों ही में कामयाबी हासिल करते हैं। आप काफी महत्वाकांक्षी होते हैं और सदैव ऊँचाईयों पर पहुंचने की आकांक्षा रखते हैं। आर्थिक मामलों में भी स्वाति नक्षत्र के जातक भाग्यशाली होते हैं, अपनी बुद्धि और चतुराई से काफी मात्रा में धन सम्पत्ति प्राप्त करते हैं। स्वाति नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति पारिवारिक दायित्व को निभाना बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। अपने परिवार के प्रति काफी लगाव व प्रेम रखते हैं। आप सुख सुविधाओं से परिपूर्ण जीवन का आनन्द लेते हें। आपके व्यक्तित्व की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि आप अपने प्रतिद्वंद्वी को सदा पराजित करते हैं और विजयी होते हैं।

16.विशाखा नक्षत्र का जातक  : इस नक्षत्र के स्वामी देवगुरू बृहस्पति होते हैं। ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार जो व्यक्ति विशाखा नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनकी वाणी मीठी होती है, ये किसी से भी कटुतापूर्वक नहीं बोलते हैं। शिक्षा की दृष्टि से इनकी स्थिति अच्छी रहती है, बृहस्पति के प्रभाव से ज्ञान प्राप्ति के लिए बाल्यकाल से इनके अंदर एक उत्सुकता बनी रहती है। ये पठन-पाठन में अच्छे होते हैं जिससे उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति के विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि ये शारीरिक श्रम करने में पीछे रहते हैं जबकि बुद्धि का उपयोग अधिक करते हैं। समाजिक दृष्टि से देखा जाय तो इनका सामाजिक दायरा काफी विस्तृत होता है। ये बहुत ही मिलनसार व्यक्ति होते हैं, लोगों के साथ बहुत ही प्रेम और आदर से मिलते हैं। अगर किसी को इनकी जरूरत होती है तो मदद करने में ये पीछे नहीं रहते हैं यही कारण है कि जब भी इन्हें किसी की मदद की आवश्यक्ता होती है लोग इनकी मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति की विशेषता होती है कि ये किसी भी स्तर के हों परंतु सामजिक सेवा से सम्बन्धित संस्थानों से जुडे़ रहते हैं। पारिवारिक दृष्टिकोण से देखा जाय तो इन्हें संयुक्त परिवार में रहना पसंद होता है। इन्हें अपने परिवार से काफी लगाव व प्रेम होता है एवं अपने पारिवारिक जिम्मेवारियों का निर्वाह करना ये बखूबी जानते हैं। इस नक्षत्र के जातक की कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक समय अपने परिवार के साथ व्यतीत हो। इनके अंदर घर के प्रति विशेष लगाव रहता है। आजीविका के संदर्भ में बात करें तो इस नक्षत्र के जातक को नौकरी करना ज्यादा अच्छा लगता है व्यवसाय करने से। सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए ये भरपूर चेष्टा करते हैं। इस नक्षत्र के जातक व्यवसाय भी करते हैं तो किसी न किसी रूप में सरकार से सम्बन्ध बनाये रखते हैं। इनके व्यक्तित्व में विशेष आकर्षण होता है और हृदय विशाल होता है। इनमें मानवीय संस्कार और गुण वर्तमान होते हैं। आर्थिक रूप से विशाखा नक्षत्र के जातक भाग्यशाली कहे जाते हैं, इन्हें अचानक धन का लाभ होता है, ये लॉटरी के माध्यम से भी धन प्राप्त करते हैं। ये धन संग्रह करने के भी शौकीन होते हैं जिसके कारण काफी धन संचय कर पाते हैं। इन्हें जीवन में कभी भी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है, अगर कभी धन की कमी भी महसूस होती है तो वह अस्थायी होती है। विशाखा नक्षत्र के जातक के विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि ये बहुत ही महत्वाकांक्षी होते हैं। अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए ये भरपूर परिश्रम करते हैं फलत: इन्हें सफलता मिलती है और ये उच्च पद को प्राप्त करते हैं।

17.अनुराधा नक्षत्र का जातक  : जो व्यक्ति अनुराधा नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनमें संयम की कमी होती है अर्थात वे अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाते हैं और छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लग जाते हैं। ये बातों को दिल में नहीं रखते हैं जो भी मन में होता है स्पष्ट बोलते हैं। इनके इस तरह के व्यवहार के कारण लोग इन्हें कटु स्वभाव का समझते हैं। अनुराधा नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति दूसरों पर अपना प्रभाव बनाने की कोशिश करते हैं। जब ये किसी की सहायता करने की सोचते हैं तो दिल से उनकी सहायता करते हैं परंतु जुबान में तीखापन होने के कारण लोग इनसे मन ही मन ईर्ष्या और द्वेष की भावना रखते हैं। इनके जीवन की एक बड़ी विशेषता यह है कि ये जीवन में काफी उतार-चढ़ाव का सामना करते हुए सफलता की राह में आगे बढ़ते हैं। ये मुश्किलों के बावजूद भी सफलता प्राप्त करते हैं क्योंकि ये लक्ष्य के प्रति गंभीर होते हैं और जो भी अवसर इनके सामने आता है उसका पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं। इनकी सफलता का एक और भी महत्वपूर्ण कारण यह है कि ये परिश्रमी होते हैं और वक्त़ का पूरा पूरा सदुपयोग करते हैं। अनुराधा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति नौकरी से अधिक व्यवसाय में रूचि रखते हैं। ये व्यवसाय के प्रति काफी गंभीर होते हैं फलत: व्यवस्थित रूप से अपने व्यापार को आगे ले जाते हैं। इस नक्षत्र के जातक नौकरी करते हैं तो प्रभुत्व वाले पदों पर होते हैं। ये अपने कार्य और जीवनशैली में अनुशासन बनाये रखते हैं। ये जीवन में सिद्धांतों को सबसे अधिक महत्व देते हैं। इनकी अनुशासनप्रियता के कारण लोग इनसे एक निश्चित दूरी बनाये रखना पसंद करते हैं। सिद्धांतवादी होने के कारण इनके गिने चुने मित्र होते हैं, अर्थात इनका सामाजिक दायरा बहुत ही छोटा होता है। इनके इस स्वभाव के कारण भी परिवार में तनाव और विवाद की स्थिति बनी रहती है। ये जीवन का अनुभव अपने संघर्षमय जीवन से प्राप्त करते हैं। जो लोग इनके व्यक्तित्व के गुणों को पहचानते हैं वे इनसे सलाह लेते हैं क्योंकि ये काफी अनुभवी होते हैं। धन सम्पत्ति की स्थिति से विचार किया जाए तो अनुराधा नक्षत्र के जातक के पास काफी धन होता है। ये सम्पत्ति, ज़मीन में धन निवेश करने के शौकीन होते हैं। निवेश की इस प्रवृति के कारण ये सम्पत्तिशाली होते हैं।

18.ज्येष्ठा नक्षत्र का जातक : ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे तुनक मिजाजी होते है जिसके कारण छोटी छोटी बातों पर लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। ये काफी फुर्तीले होते हैं और अपने काम को जल्दी से जल्दी निपटा लेते हैं। ये समय की क़ीमत जानतें हैं अत: व्यर्थ समय नहीं गंवाते हैं। इनके व्यक्तित्व की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि जो भी काम ये करते हैं उसे पूरी तनम्यता और कुशलता के साथ करते हैं। जो व्यक्ति ज्येष्ठा नक्षत्र में पैदा होते हैं वे खुले मस्तिष्क के व्यक्ति होते हैं, ये संकुचित विचारधाराओं में बंधकर नहीं रहते हैं। ये काफी बुद्धिमान होते हैं जिससे किसी भी विषय को तुरंत समझ लेते हैं। बुद्धिमान होने के बावजूद इनके एक बड़ी कमी है जल्दबाज़ होना। जल्दबाजी में ये कई बार ग़लती भी कर बैठते हैं। इनके व्यक्तित्व की दूसरी कमी है इनका स्पष्टवादी होना और वाणी में मधुरता की कमी रहना अर्थात कटु बोलना। व्यक्तित्व की इन कमियों के कारण इस नक्षत्र के जातक का सामाजिक दायरा काफी सीमित होता है। सामाजिक दायरा सीमित रहने के बावजूद ये समाज में मान सम्मान प्राप्त करते हैं तथा प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार जो व्यक्ति ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे नौकरी में हों अथवा व्यवसाय मे दोनों ही में इन्हें कामयाबी मिलती है। नौकरी करने वाले उच्चपद पर आसीन होते हें एवं कई लोग इनके निर्देशन में काम करते हैं। इस नक्षत्र के जो जातक व्यवसाय करते हैं वे व्यवसायिक रूप से काफी सफल होते हैं, इनका व्यवसाय सफलता की राह में आगे बढ़ता रहता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में जब प्रतियोगिता की बात आती है तब ये अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे होते हैं। ज्येष्ठा नक्षत्र के जातक का अपने परिवार के साथ काफी लगाव रहता है। ये अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों को दिल से निभाते हैं। इनके पास काफी मात्रा में धन होता है। ये अनेकानेक स्रोतों से धन लाभ प्राप्त करते हैं। ये ज़मीन ज़ायदाद ख़रीदने के शौकीन होते हैं। इस नक्षत्र के जातक अगर प्रोपर्टी के कारोबार में हाथ डालते हैं तो बहुत बड़े प्रोपर्टी डीलर अथवा बिल्डर बनते हैं। ज्योतिषशास्त्र कहता है कि जो व्यक्ति ज्येष्ठा नक्षत्र  में जन्म लेते हैं वे राजसी ठाठ बाठ के साथ जीवन बीताते हैं। ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को मूल शांति करा लेनी चाहिए यही ज्योतिष शास्त्र की सलाह है।

 19. मूल नक्षत्र का जातक  : ज्योतिषशास्त्र कहता है जो व्यक्ति मूल नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे ईमानदार होते हैं। इनमें ईश्वर के प्रति आस्था होती है। ये बुद्धिमान होते हैं। ये न्याय के प्रति विश्वास रखते हैं। लोगों के साथ मधुर सम्बन्ध रखते हैं और इनकी प्रकृति मिलनसार होती है। स्वास्थ्य के मामले में ये भाग्यशाली होते हैं, ये सेहतमंद होते हैं। ये मजबूत व दृढ़ विचारधारा के स्वामी होते हैं। ये सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। ये अपने गुणों एवं कार्यो से काफी प्रसिद्धि हासिल करते हैं। मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के कई मित्र होते हैं क्योंकि इनमें वफादारी होती है। ये पढ़ने लिखने में अच्छे होते हैं तथा दर्शन शास्त्र में इनकी विशेष रूचि होती है। इन्हें विद्वानों की श्रेणी में गिना जाता है। ये आदर्शवादी और सिद्धान्तों पर चलने वाले व्यक्ति होते हैं अगर इनके सामने ऐसी स्थिति आ जाए जब धन और सम्मान मे से एक को चुनना हो तब ये धन की जगह सम्मान को चुनना पसंद करते हैं। जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे व्यवसाय एवं नौकरी दोनों में ही सफल होते हैं, परंतु व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी करना इन्हें अधिक पसंद है। ये जहां भी होते हैं अपने क्षेत्र में सर्वोच्च होते हैं। ये शारीरिक श्रम की अपेक्षा बुद्धि का प्रयोग करना यानी बुद्धि से काम निकालना खूब जानते हैं। अध्यात्म में विशेष रूचि होने के कारण धन का लोभ इनके अंदर नहीं रहता। ये समाज में पीड़ित लोगों की सहायता के लिए कई कार्यक्रमों में सक्रिय भाग लेते हैं। समाज में इनका काफी सम्मान होता है तथा ये प्रसिद्ध होते हैं। इनका सांसारिक जीवन खुशियों से भरा होता है। ये सुख सुविधाओं से युक्त जीवन जीने वाले होते हैं। समाज के उच्च वर्गों से इनकी मित्रता रहती है। ये ईश्वरीय सत्ता में हृदय से विश्वास रखते हैं। इस नक्षत्र के जातक को मूल शांति करा लेनी चाहिए, इससे उत्तमता में वृद्धि होती है और अशुभ प्रभाव में कमी आती है।

20. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का जातक : ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति ईमानदार होते हैं। इनका हृदय विशाल और उदार होता है, इनके हृदय में सभी के प्रति प्रेमभाव रहता है। व्यक्तित्व के इस गुण के कारण समाज में इन्हें काफी आदर और सम्मान मिलता है। ये आशावादी होते हैं जीवन में कठिन से कठिन स्थिति के आने पर भी आशा का दामन नहीं छोड़ते हैं व सदैव प्रसन्न एवं खुश रहने की कोशिश करते हैं। ये स्वभाव से विनम्र होते हैं और विभिन्न कलाओं एवं अभिनय में रूचि रखते हैं। इन्हें साहित्य का भी शौक होता है। ये इनमें से किसी विषय के अच्छे जानकार होते हैं। ये सत्य का आचरण करने वाले होते हैं और शुद्ध हृदय के व्यक्ति होते हैं। इन्हें आदर्श मित्र माना जाता है क्योंकि ये जिनसे मित्रता करते हैं उनसे आखिरी सांस तक मित्रता निभाते हैं। ये अपने वचन के पक्के होते हैं जो भी कहते हैं उसे पूरा करते हैं। आजीविका की दृष्टि से ये जिस क्षेत्र से सम्बन्ध रखते हैं उसमें उच्च पद पर होते हैं। इनके पास काफी मात्रा में धन होता है। ये सुख सुविधाओं से परिपूर्ण आरामदायक जीवन का आनन्द लेते हैं। ये इस धरती पर रहकर स्वर्ग के समान सुख का आनन्द लेते हैं। इनमें अध्यात्म के प्रति रूझान रहता है परंतु ये इसमें गहराई से नहीं उतर पाते हैं क्योंकि ये सुख की कामना करने वाले होते हैं और सांसारिकता में डूबे रहते हैं। इनके उल्लासपूर्ण जीवनशैली के कारण लोग इन्हें जिन्दादिल इंसान की संज्ञा देते हैं। ये ग़म को अपने उपर हावी नहीं होने देते हैं इसलिए इन्हें जोशीला इंसान भी कहा जाता है।

 21. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का जातक  : उत्तराषाढ़ा को त्रिपादी नक्षत्र कहते हैं क्योंकि इसके एक चरण धनु में और तीन चरण मकर में होते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर उपरोक्त स्थिति का क्या प्रभाव होता है और कैसे पहचाना जा सकता है कि किसी व्यक्ति का जन्म उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में हुआ है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे खुशमिज़ाज होते हैं और इन्हें हंसी मजाक बहुत ही पसंद होता है। अपने हंसी मजाक के स्वभाव के कारण ये जहां भी रहते हैं अपने आस पास के माहौल को खुशनुमा और दिलकश बना देते हैं। ये सभ्य और संस्कारी होते हैं। ये स्थापित नियमों का पालन करने वाले होते हैं तथा कानून में इनकी पूरी पूरी निष्ठा रहती है इसलिए ग़लत दिशा में कभी कदम उठाने की कोशिश नहीं करते हैं। ये आशावादी होते हैं, किसी भी स्थिति में परिस्थितियों से हार नहीं मानते हैं व सामने आने वाली चुनौतियों का सामना पूरी हिम्मत से करते हैं। शिक्षा के दृष्टिकोण से विचार किया जाए तो ये पढाई लिखाई में काफी होशियार होते हैं,  शिक्षा और अध्ययन में इनकी गहरी रूचि होती है। इस रूचि के कारण ये कुछ विषयों में गहरी जानकारी रखते हैं और विषय विशेष के विद्वान कहलाते हैं। आजीविका की दृष्टि से देखें तो इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति नौकरी एवं व्यवसाय दोनों ही में सफल और कामयाब होते हैं, इनके लिए नौकरी एवं व्यवसाय दोनों ही अनुकूल होते हैं। मुश्किल स्थितियों का सामना मुस्कुराते हुए करने का दम खम ये रखते हैं, जिसके कारण निराशा का भाव इनके चेहरे पर कभी नहीं दिखाई देता है। ये हर इंसान से प्रेम भाव एवं अपनापन रखते हैं। अपने चरित्र के इस गुण के कारण ये सामाजिक कार्यक्रमों में भागीदारी करते हैं और जनसेवा में सहयोग देते हैं। अपने इस व्यवहार एवं स्वभाव के कारण इनको समाज में गरिमापूर्ण स्थान मिलता है। ये समाज में सम्मानित व प्रमुख लोगों में होते हैं। इनकी मित्रता का दायरा काफी बड़ा होता है। ये मित्रता को दिल से निभाते हैं जिसके कारण मित्रों से परस्पर सहयोग और सहायता इन्हें मिलती है।
आर्थिक मामलों पर गौर करें तो इनके पास काफी धन होता है, ये धन सम्पत्ति से परिपूर्ण होते हैं। इन्हें अपने जीवन में धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। अगर कभी धनाभाव भी होता है तो अपनी बुद्धिमानी एवं हिम्मत के बल पर इन पर काबू पा लेते हैं और आर्थिक संकट से निकल आते हैं।


 22. श्रवण नक्षत्र का जातक  : ज्योतिषशास्त्र में नक्षत्रों की महत्ता का बखान मिलता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उस नक्षत्र का प्रभाव व्यक्ति पर जीवन भर रहता है । जन्म नक्षत्र, नक्षत्र स्वामी और उसकी राशि एवं राशि स्वामी से व्यक्ति सदा प्रभावित रहता है। यहां देखते हैं कि श्रवण नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर इसका प्रभाव होने पर व्यक्ति का व्यक्तित्व, स्वभाव एवं व्यवहार कैसा होता है।
धर्मशास्त्र में इस नक्षत्र को बहुत ही शुभ माना गया है। इस नक्षत्र का नाम मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार के नाम पर पड़ा है। इस नक्षत्र का स्वामी चन्द्रमा होता है और इस नक्षत्र के चारों चरण मकर राशि में होते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति में सेवाभाव होता है, ये माता पिता के भक्त होते हैं। इनके व्यवहार में सभ्यता और सदाचार झलकता है। श्रवण मास में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने कर्तव्य को जिम्मेवारी पूर्वक निभाते हैं। ये विश्वास के पात्र समझे जाते हैं क्योंकि अनजाने में भी ये किसी के विश्वास को तोड़ना नहीं चाहते। ये ईश्वर में आस्था रखते हैं और सत्य की तलाश में रहते हैं। पूजा-पाठ एवं अध्यात्म के क्षेत्र में ये काफी नाम अर्जित करते हैं। ये इस माध्यम से काफी धन भी प्राप्त करते हैं। इनके चरित्र की विशेषता होती है कि ये सोच समझकर कोई भी कार्य करते हैं इसलिए सामान्यत: कोई ग़लत कार्य नहीं करते हैं। इस मास में जो लोग पैदा होते हैं उनकी मानसिक क्षमता अच्छी होती है, ये पढ़ाई में अच्छे होते हैं। ये अपनी बौद्धिक क्षमता से योजना का निर्माण एवं उनका कार्यान्वयन करना बखूबी जानते हैं। इनके साथी एक कमी यह रहती है कि छुपे हुए शत्रुओं के भय से कई योजनाओं को इन्हें बीच में ही छोड़ना पड़ता है। इनके अंदर सहनशीलता व स्वाभिमान भरा रहता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले साहसी और बहादुर होते हैं। ये किसी बात को मन में नहीं रखते, जो भी इन्हें महसूस होता है या इन्हें उचित लगता है मुंह पर बोलते हैं यानी ये स्पष्टवादी होते हैं। आजीविका की दृष्टि से इस नक्षत्र के जातक के लिए नौकरी और व्यवसाय दोनों ही लाभप्रद और उपयुक्त होता है। ये इन दोनों में से जिस क्षेत्र में होते हैं उनमें तरक्की और कामयाबी हासिल करते हैं। इन्हें चिकित्सा, तकनीक, शिक्षा एवं कला आदि में काफी रूचि रहती है। इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है क्योंकि ये अनावश्यक खर्च नहीं करते हैं। इनके इस स्वभाव के कारण लोग इन्हें कंजूस भी समझने लगते हैं। अपने नेक एवं सरल स्वभाव के कारण समाज में इनका मान सम्मान काफी होता है और ये आदर पात्र करते हैं।


23. घनिष्ठा नक्षत्र का जातक :  इस नक्षत्र के स्वामी मंगल हैं, इस नक्षत्र में जो व्यक्ति जन्म लेते हैं उनका व्यवहार, उनकी जीवनशैली एवं उनका स्वभाव सभी कुछ जन्म नक्षत्र उसके स्वामी एवं राशि स्वामी पर निर्भर करता है। आइये जानें कि इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है उनका स्वभाव, व्यवहार एवं व्यक्तित्व कैसा होता है। ज्योतिषशास्त्र के कथनानुसार जो व्यक्ति घनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे काफी उर्जावान रहते हैं और हर समय कुछ न कुछ करते रहना चाहते हैं। अपनी लगन एवं क्रियाशीलता के कारण ये अपनी मंजिल प्राप्त करने में सफल होते हैं। ये काफी महत्वाकांक्षी होते हैं और जो कुछ मन में ठान लेते हैं उसके प्रति निश्चय पूर्वक तब तक जुटे रहते हैं जबतक की कार्य सफल न हो जाएं। इस नक्षत्र के जातक अधिकार जमाने में काफी आगे रहते। इन्हें लोगों पर अपना प्रभाव बनाये रखना पसंद होता है। ये जो भी कार्य करते हें उसमें सावधानी का ख्याल रखते हैं और हमेशा सचेत रहते हैं। इनके अंदर स्वाभिमान की भावना भरी होती है। आमतौर पर ये कलह एवं विवाद की स्थिति से दूर रहते हैं परंतु जब विवाद को टालना मुश्किल हो जाता है तब ये उग्र हो जाते हैं, अपनी उग्रता में ये हिंसक भी हो सकते हैं। घनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता अच्छी होती है। ये किसी भी विषय में तुरंत निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। इसमें इन्हें किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं महसूस होती है। अपनी निर्णयात्मक क्षमता से ये जीवन में अच्छी सफलता हासिल करते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति नौकरी को व्यवसाय से अधिक तरजीह देते हैं अर्थात नौकरी करना इन्हें अधिक पसंद होता है। ये नौकरी में हों या व्यवसाय में दोनों में ही उच्च स्थिति में रहते हैं। इनके लिए अभियंत्रिकी यानी इंजीनियरिंग व हार्ड वेयर का क्षेत्र अधिक अनुकूल रहता है। व्यवसाय की दृष्टि से इनके लिए प्रोपर्टी का काम अधिक लाभप्रद होता है। इनके विषय में कहा जाता है कि ये बहुत ही पराक्रमी होते हैं, अपने पराक्रम से जीवन में आने वाली परेशानियों एवं विपरीत परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करते हैं। ये अपने मान सम्मान को जीवन में सबसे अधिक महत्व देते हैं, इन्हें जब भी यह एहसास होता है कि इनके मान सम्मान को ठेस लगने वाला है ये उग्र हो उठते हैं। निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि ये शांतिपूर्ण तरीके से जीने की इच्छा रखते हैं। ये किसी भी प्रकार के विवादों से दूर रहना चाहते हैं। ये बहुत अधिक महत्वाकांक्षी नहीं होते हैं। संगीत से इन्हें बहुत लगाव रहता है।

24. शतभिषा नक्षत्र का जातक  : ज्योतिषशास्त्र के मतानुसार इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति हिम्मती होते हैं व इनके अंदर साहस भरा होता है। इनके इरादे काफी मजबूत और बुलंद होंते हैं जो एक बार तय कर लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। इनके अंदर जिम्मेवारियों का भी एहसास होता है अत: अपनी जिम्मेवारी को पूरी तरह निभाने की कोशिश करते हैं। इनकी सोच राजनीति से प्रेरित होती है और ये राजनीतिक दांव पेच में माहिर होते हैं। ये शारीरिक श्रम में विश्वास नहीं करते हैं अर्थात शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि का इस्तेमाल करने में भरोसा करते हैं। इस नक्षत्र में जो लोग पैदा होते हैं उनके विषय में माना जाता है कि ये स्वच्छंद विचारधारा के होते है अत: साझेदारी की अपेक्षा स्वतंत्र रूप से कार्य करना पसंद करते हैं। इनके स्वभाव में आलस्य का समावेश रहता है ये मौज मस्ती करना पसंद करते हैं, ये आराम तलब होते हैं। जिन्दग़ी को मशीन की तरह जीना इन्हें अच्छा नहीं लगता है बल्कि ये उन्मुक्त रूप से अपने अंदाज़ में जीवन का लुत्फ़ लेना चाहते हैं। शतभिषा नक्षत्र में जो लोग जन्म लेते हैं वे किसी भी स्थिति में घबराते नहीं हैं बल्कि परिस्थितियों एवं परेशानियों का डटकर मुकाबला करना पसंद करते हैं। इनके अन्दर का विश्वास और ताकत इन्हें बल प्रदान करता है जिससे ये कठिन से कठिन स्थिति पर विजय प्राप्त करते हैं। इनके व्यक्तित्व की एक विशेषता यह भी है कि अगर कोई इनसे शत्रुता करता है तो ये उनको पराजित कर देते हैं। इनका सामाजिक दायरा बहुत बड़ा नहीं रहता है क्योंकि ये समाज में लोगों से अधिक मेलजोल रखना पसंद नहीं करते। इनके मित्रों की संख्या भी सीमित रहती है। इस नक्षत्र के जातक अपने काम से मतलब रखने वाले होते हैं अत: अपने सहकर्मियों से अधिक मेल जोल रखना पसंद नहीं करते हैं। इनकी आर्थिक स्थिति इनकी बुद्धि की देन होती है यानी ये अपनी बुद्धि के द्वारा धनोपार्जन करते हैं। ये अपनी बुद्धि से कभी कभी ऐसे कार्य कर जाते हैं जिससे देखने वाले और सुनने वाले चकित रह जाते हैं।
      
 25.पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का जातक  : ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है वे सत्य का आचरण करने वाले एवं सच बोलने वाले होते हैं। ये ईमानदार होते हैं अत: छल कपट और बेईमानी से दूर रहते हैं। ये आशावादी होते हैं यही कारण है कि ये किसी भी स्थिति में उम्मीद का दामन नहीं छोड़ते हैं।
पूर्वाभाद्रपद में जिनका जन्म होता है वे व्यक्ति परोपकारी होते हैं। ये दूसरों की सहायता करने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। जब भी कोई कष्ट में होता है उसकी मदद करने से ये पीछे नहीं हटते हैं। ये व्यवहार कुशल एवं मिलनसार होते हैं, ये सभी के साथ प्रेम एवं हृदय से मिलते हैं। मित्रता में ये समझदारी एवं ईमानदारी का पूरा ख्याल रखते हैं। इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति शुद्ध हृदय के एवं पवित्र आचरण वाले होते हैं। ये कभी भी व्यक्ति का अहित करने की चेष्टा नहीं करते हैं। इनके व्यक्तित्व की इस विशेषता के कारण इनपर विश्वास किया जा सकता है। शिक्षा एवं बुद्धि की दृष्टि से देखा जाए तो इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति काफी बुद्धिमान होते हैं। इनकी रूचि साहित्य में रहती है। साहित्य के अलावा ये विज्ञान, खगोलशास्त्र एवं ज्योतिष में पारंगत होते हैं एवं इन विषयों के विद्वान होते हैं। ये अध्यात्म सहित भिन्न भिन्न विषयों की अच्छी जानकारी रखते हैं तथा ज्योतिषशास्त्र के भी अच्छे जानकार होते हैं। ये आदर्शवादी होते हैं, ये ज्ञान को धन से अधिक महत्व देते हैं। आजीविका की दृष्टि से नौकरी एवं व्यवसाय दोनों ही इनके लिए अनुकूल होता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी करना विशेष रूप से पसंद करते हैं। ये नौकरी में उच्च पद पर आसीन होते हैं। अगर ये व्यवसाय करते हैं तो पूरी लगन और मेहनत से उसे सींचते हैं। इन्हें साझेदारी में व्यापार करना अच्छा लगता है। इनमें जिम्मेवारियों का पूरा एहसास होता है। ये अपने कर्तव्य का निर्वाह ईमानदारी से करते हैं। नकारात्मक विचारों को ये अपने ऊपर हावी नहीं होने देते तथा आत्मबल एवं साहस से विषम परिस्थिति से बाहर निकल आते हैं।


26.उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का जातक  : उत्तराभाद्रपद में जन्म लेने वाले व्यक्ति हवाई किले नहीं बनाते हैं अर्थात ये यथार्थ और सच में विश्वास रखते हैं। चारित्रिक रूप से ये काफी मजबूत होते हैं, ये विषय वासनाओं की ओर आकर्षित नहीं होते, ये अपनी बातों पर कायम रहते हैं जो कहते हैं वही करते हैं। इनके हृदय में दया की भावना रहती है। जब भी कोई कमज़ोर या लाचार व्यक्ति इनके सामने आता है ये उसकी मदद करने हेतु तैयार रहते हैं। इनके मन में धर्म के प्रति आस्था रहती है व धार्मिका कार्यों से भी ये जुडे रहते हैं। जो भी इनके सम्पर्क में रहता है उन्हें ये सेवा एवं धर्म के प्रति प्रेरित करते हैं। जो व्यक्ति इस नक्षत्र में पैदा होते हैं वे ज्योतिषशास्त्र के अनुसार काफी परिश्रमी होते हैं अत: मेहनत करने से पीछे नहीं हटते हैं। इनमें साहस भी रहता है इसलिए परिस्थितयों से भयभीत नहीं होते बल्कि आने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए डटे रहते हैं। ये सिद्धांत को तरजीह नहीं देते हैं बल्कि व्यवहारिकता में विश्वास रखते हैं। ये व्यापार करें अथवा नौकरी दोनों ही स्थिति में सफल होते हैं, सफलता का कारण है इनका कर्मयोगी होना यानी कर्म में विश्वास रखना। अपनी मेहनत और कर्म से ये ज़मीं से आसमां का सफर तय करते हैं यानी सफलता की सीढियों पर पायदान दर पायदान चढ़ते जाते हैं। ये अपनी मेहनत और लगन से सांसारिक सुखों का अर्जन करते हैं और उनका उपभोग करते है। जिनका जन्म उत्तराभाद्रपद में होता है वे अध्यात्म, दर्शन एवं रहस्यमयी विद्याओं में गहरी रूचि रखते हैं। समाज में इनकी गिनती भक्त और विद्वान के रूप में की जाती है। ये सामजिक संस्थाओं से सम्बन्ध रखते हुए भी एकान्त में रहना पसंद करते हैं। ये त्यागी प्रवृति के होते हैं तथा दान देने में विश्वास रखते हैं। समाज में अपने व्यक्तित्व के कारण काफी सम्मान एवं आदर प्राप्त करते हैं इनकी वृद्धावस्था सुख एवं आनन्द से व्यतीत होती है। आर्थिक रूप से ये काफी सम्पन्न रहते हैं क्योंकि धन का संचय समझदारी एवं अक्लमंदी से करते हैं।

27. रेवती नक्षत्र का जातक  : रेवती नक्षत्र का स्वामी बुध होता है और राशि स्वामी बृहस्पति होता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर इस नक्षत्र के स्वामी और राशि एवं राशि स्वामी का स्पष्ट प्रभाव होता है।
जो व्यक्ति रेवती नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे ईमानदार होते हैं। ये किसी को धोखा देने की प्रवृति नहीं रखते हैं। इनके स्वभाव की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि ये अपनी मान्यताओं पर एवं निश्चयो पर कायम रहते हैं अर्थात दूसरों की बातों को जल्दी स्वीकार नहीं करते हैं। मान्यताओं के प्रति जहां ये दृढ़निश्चयी होते हैं वहीं व्यवहार में लचीले भी होते हैं अर्थात अपना काम निकालने के लिए ये नरम रूख अपनाते हैं। व्यक्तित्व की इस विशेषता के कारण ये कामयाबी की राह पर आगे बढ़ते हैं। ये चतुर व होशियार होते हैं। इनकी बुद्धि प्रखर होती है। इनकी शिक्षा का स्तर ऊँचा होता है। अपनी बुद्धि के बल पर ये किसी भी काम को तेजी से सम्पन्न कर लेते हैं। इनमें अद्भूत निर्णय क्षमता पायी होती है। ये विद्वान होते हैं व इनकी वाणी में मधुरता रहती है, दूसरों के साथ इनका व्यवहार अच्छा रहता है। इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति अच्छे मित्र साबित होते हैं तथा जीवन की सभी बाधाओं को पार कर आगे की ओर बढ़ते रहते हैं। सामाजिक क्षेत्र में इस नक्षत्र में पैदा होने वाले व्यक्ति काफी सम्मानित होते हैं। समाज में एकता और लोगो के बीच प्रेम व सौहार्द बनाये रखने में ये कुशल होते हैं। समाज में इनकी गिनती प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में होती है। ये अध्यात्म में गहरी रूचि रखते हैं। इनमें गहरी आस्था होती है और ये भक्त के रूप में समाज में जाने जाते हैं।  इनमें नौकरी के प्रति विशेष लगाव होता है यानी ये नौकरी करना पसंद करते हैं। अपनी मेहनत, बुद्धि एवं लगन से ये नौकरी में उच्च पद को प्राप्त करते हैं। अगर इस नक्षत्र के जातक व्यापार करते हैं तो इस क्षेत्र में भी इन्हें अच्छी सफलता मिलती है और व्यवसायिक रूप से कामयाब होते हैं। रेवती नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति सुख की इच्छा रखने वाले होते हैं। इनका जीवन सुख और आराम में व्यतीत होता है। ये आर्थिक रूप से काफी सम्पन्न और सुखी होते हैं।