मनुष्य स्वभाव से ही जिज्ञासु प्राणी है,द्र्श्य एवं अद्र्श्य गतिविधियों को जानने के लिये मानव मस्तिष्क मे सदैव उत्सुकता रहती है,क्यों कैसे और क्या हो रहा है और क्या होगा आदि,उसकी यह जिज्ञासा प्रवृत्ति उसके सामने अनेक प्रश्नों को उत्पन्न करती है,जिस बात को जानने की उसकी प्रबल इच्छा रहई है,उसके बारे में पूरी जानकारी हो जाने पर उसे असीम आनन्द मिलता है। यद्यपि मन-मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली इच्छा आकांक्षा उत्सुकता शंका या चिन्ता का ज्ञान और समाधान करना दु:साध्य है तथापि हमारे पूर्वजों महाऋषिओं और आचार्यों ने मानव की इस स्वाभाविक जिज्ञासा की पूर्ति के लिये प्रश्न-शास्त्र की रचना की। ईशा की पांचवीं शताब्दी से लेकर आजतकिस विषय में सकडों मौलिक ग्रंथों की रचना हुयी,भाषा एवं अपनी शास्त्रीय जटिलता के कारण यद्यपि ये ग्रन्थ आज जनसाधारण के लिये रहस्य बने हुये है,तथापि इनमे मनुष्य की जिज्ञासा और ज्ञान पिपासा को शान्त करने के लिये पर्याप्त सामग्री विद्यमान है।
प्रश्न शास्त्र -
प्रश्न शास्त्र ज्योतिष विद्या का एक महत्वपूर्ण अंग है,यह तत्काल फ़ल बतलाने वाला शास्त्र है,इसमे हम तत्कालिक लग्न एवं ग्रह स्थिति के आधार पर व्यक्ति के मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले प्रश्न और उनके शुभाशुभ फ़ल का विचार करते है। केरल रमल और स्वरशास्त्र इसके अंग है,इन शाखाओं में प्रश्नाक्षर अंक एवं स्वर के आधार पर प्रश्न के शुभ या अशुभ फ़ल का निश्चय किया जाता है। इस शास्त्र में मुख्यत: तीन सिद्धान्तों का प्रचलन है:-
१.प्रश्न लगन सिद्धान्त
२.प्रश्नाक्षर सिद्धान्त
३.स्वर सिद्धान्त
इसके अलावा अंक तथा चर्चा चेष्टा या हाव भाव के द्वारा भी मनोगत भावों का सूक्षम विश्लेषण किया जाता है,उपर्युक्त सभी सिद्धान्तों के अन्दर लगन सिद्धान्त ग्रह स्थिति का कथन करता है,और ग्रह सिद्धान्त द्र्श्य भी है,उसकी गति भी निश्चित है,इसलिये ही ग्रह सिद्धान्त सबसे लोकप्रिय सिद्धान्त माना जाता है।
प्रश्न विचार -
जिस समय कोई प्रश्न पूंछने आये,उस समय का इष्टकाल बनाकर लगन स्पष्ट भाव स्पष्ट और नवमांश के आधार पर प्रश्न कुन्डली भावचलित चक्र और नमांश कुन्डली बना लेनी चाहिये,बहुधा देखा गया है कि ज्योतिषी आलस्यवश पंचाग से लगन के आधार पर कुन्डली बनाकर फ़लादेश करने लगते है,किन्तु फ़ल का निश्चय करने की क्रिया में लगन आदि भाव एवं नवमांश भी निर्णायक होते हैं,अत: इनकी उपेक्षा करने से निर्णय एक पक्षीय हो जाता है,और प्रश्न का फ़ल या परिणाम यथार्थ रूप से प्रकट नही घटता अस्तु।
द्वादश भाव -
प्रश्न कुन्डली में लगन से प्रारम्भ करके १२ भावों की गणना की जाती है,यह १२ भाव इस प्रकार है:-
१.तनु या प्रथम भाव
इस भाव से शरीर शरीर का रूप शरीर में चिन्ह शरीर के सुख दुख शरीर का स्वभाव शरीर के अन्दर विवेक शरीर में मस्तिष्क की क्रियाशीलता आदि का विचार किया जाता है,इस भाव में मिथुन कन्या तुला और कुम्भ राशियां बलवान होती है,और इस भाव का परिणाम बताने वाला सूर्य ही कारक होता है।
२. धन या द्वितीय भाव
इस भाव से जो शक्ति शरीर के अन्दर होती है,या शरीर को बाहर की दुनिया से मिलती है,और जिस शक्ति से शरीर को इस संसार में निर्वाह करने की क्षमता मिलती है उसका भाव मिलता है,परिवार की शक्ति,आंखों की शक्ति नाक की शक्ति वाणी की शक्ति वाणी में आवाज की शक्ति शरीर में रूप की शक्ति गाने की शक्ति हावभाव प्रकट करने की शक्ति प्रेम करने की शक्ति संसार द्वारा प्रदान किये गये भोगों की शक्ति,चल सम्पत्ति की शक्ति जिसके अन्दर सोना चांदी रुपया हीरे जवाहारात खरीदने और बेचने की कला आदि की शक्ति को जानने के कारक मिलते है,इस भाव का मालिक गुरु होता है,और गुरु जो इन सबके बारे में ज्ञान देने का कारक है,को देखकर इस भाव की शक्तियों का महत्व जाना जाता है।
३.सहज या तीसरा भाव
शरीर को इस संसार में प्रकट करने के लिये और संसार में अपना पराक्रम प्रकट करने का प्रभाव इस भाव से देखा जाता है,भाई बहिनों का साथ,जो छोटे है और और शरीर की आज्ञानुसार काम करते है,शरीर की ताकत का प्रभाव जिसके द्वारा संसार के सामने समस्याओं से लडने की ताकत होती है,आभूषणों का पहिनना और अपने बारे में शरीर के द्वारा अपनी सभ्यता कला और संस्कृति को प्रकट करना,सेवा कार्य करने की हिम्मत शरीर में होना,हिम्मत और धैर्य की मात्रा का होना,किसी भी प्रकार की आय को प्राप्त करने की शिक्षा का होना,पढाई के द्वारा ली जाने वाली डिग्री डिप्लोमा,कार्य और पराक्रम को प्रकट करने के लिये कम दूरी की यात्रायें करना,शरीर के अन्दर बल नही होने से और दिमाग में साधनों को प्राप्त करने की चालाकी और छल का होना,अपने द्वारा साहस को दिखाना,मीडिया और लेखन द्वारा अपनी योग्यता को प्रकट करना,तरह तरह से शरीर को बनाकर उसके द्वारा लोगों का मनोरंजन करना,शरीर के अवयवों का कमाल दिखाना,आदि इसी भाव के अन्दर आजाते है।
४.सुह्रद या चौथा भाव
इस शरीर के प्रकट करने का स्थान चौथा भाव कहलाता है,पिता की वीर्य और माता की कोख,जिसके द्वारा इस शरीर की प्राप्ति सम्भव हुयी,पैदा होने के बाद इस शरीर को धारण करने का स्थान यानी माता की गोद,और पालने वाली माता या दाई की गोद,शरीर के बडा होने के बाद शरीर की गर्मी,सर्दी और बरसात से रक्षा करने का स्थान यानी रहने वाला मकान,मकान को धारण करने वाला गांव और गांव को धारण करने वाला शहर और शहर को धारण करने वाला प्रांत और प्रांत को धारण करने वाला देश,उस देश की सीमा,विस्तार,और देश की राजनीतिक हालत,शरीर को पालने के लिये प्रयोग किये जाने वाले अन्न,और उस अन्न को पैदा करने का स्थान,शरीर की पालना में अन्य प्रयोग होने वाले कारक जैसे फ़ल सब्जियां दूध दही चावल पानी और रस आदि,शरीर में अच्छे पानी की मात्रा होने से शरीर का निरोगी होना और निरोगी होने के बाद मिलने वाले सुख,शरीर में गंदे पानी का होना और शरीर के बीमार रहने के बाद मिलने वाले दुख,शरीर की पानी की मात्रा के अनुसार शरीर के ह्रदय की हालत,सांस के अन्दर जाने वाली नमी की मात्रा,और शरीर से बाहर छोडी जाने वाली सांस के साथ जाने वाली पानी की मात्रा तथा उस सांस को छानकर वापस शरीर के अन्दर जाने वाली हवा की मात्रा,शरीर के अन्दर पानी की साफ़ मात्रा के अनुसार शरीर में मिलने वाली दया,जो अन्य किसी को भी अपने अनुसार सुखी देखने की कल्पना,दूसरों को अपने द्वारा दिये जाने वाली सहायतायें,शरीर मे गंदे पानी के प्रवाह से मस्तिष्क में प्रकत होने वाले छल कपट,दोस्तों और बडे भाई के द्वारा किये जाने वाले कर्जा दुश्मनी और बीमारी के प्रभाव,माता की पहिचान पिता की वैवाहिक स्थिति,छोटे भाई बहिनो का धन, शिक्षा के प्रति किये जाने वाले खर्चे, बीमारियों का लेखा जोखा,जीवन साथी के पिता का हाल,जीवन साथी के द्वारा किये जाने वाले अपने कैरियर के लिये प्रयास,आदि का विचार इस भाव से किया जाता है,इस भाव में कर्क मकर और मीन राशियां बलवान होते है,बुध और चन्द्रमा इस भाव का संदेशा देते है।
५.पुत्र या पंचम भाव
विद्या बुद्धि मंत्र की सिद्धि विनय नीति व्यवस्था प्रशासन देव भक्ति अचानक धन लाभ गर्भ और गर्भिणी का हाल,सन्तान की संख्या,पेट में अन्न या भोजन को पचाने की शक्ति,स्त्रियों के अन्दर गर्भाशय का विचार इस भाव से किया जाता है,इस भाव का मालिक भी गुरु होता है,और गुरु के अनुसार ही शरीर में इस भाव का ज्ञान मिलता है।
६.रिपु या छठा भाव
विरोध देर होना दुश्मन माया चिन्ता शंका रोग दुर्घटना चोट षडयन्त्र विपत्ति और शारीरिक दुर्बलता का विचार किया जाता है,इस भाव का कारक मंगल और शनि को माना जाता है।
इसी प्रकार से अन्य भावों का विवेचन किया जाता है।…..