Sunday 8 July 2018

विद्यारम्भ मुहुर्त



मानव को मानव इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके पास बुद्धि और ज्ञान होता है। ज्ञान और बुद्धि में निखार लाने के लिए हम मानव, शिक्षा ग्रहण करते हैं। शिक्षा से हमारे संस्कार, विचार और सोचने का तरीका बदलता है और हम सुसंस्कृत बनते हैं जिससे समाज और राष्ट्र के विकास में हम सक्रिय रूप से योगदान दे पाते हैं।
हमारे शास्त्र बताते है कि बच्चे जब शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाएं तब विद्यारम्भ संस्कार आयोजित किया जाना चाहिए, इस संस्कार में गुरू बच्चे को पहली बार अक्षर से परिचय कराते हैं। आइये इस संस्कार के विषय में कुछ और भी जानें और यह मालूम करें कि यह किस मुहुर्त में किया जाना चाहिए।

विद्यारम्भ संस्कार में सबसे पहले गणेश जी, गुरू, देवी सरस्वती और पारिवारिक इष्ट की पूजा की जाती है । इन देवी देवताओं का आशीर्वाद लेने के बाद गुरू बच्चे को अक्षर का ज्ञान देते हैं। इस संस्कार में गुरू पूरब की ओर और शिष्य पश्चिम की ओर मुख करके बैठते हैं। संस्कार के अंत में गुरू को वस्त्र, मिठाई एवं दक्षिणा दी जाती है और गुरू बालक को आशीर्वाद देते हैं। विद्यारम्भ संस्कार जन्म के पांचवे वर्ष उत्तरायण में किया जाता है.


नक्षत्र :
विद्यारम्भ संस्कार के लिए मुहुर्त ज्ञात करते समय सबसे पहले नक्षत्र का विचार किया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हस्त, अश्विनी, पुष्य और अभिजीत, पुनर्वसु, स्वाती, श्रवण, रेवती, चित्रा, अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्र को विद्यारम्भ संस्कार के लिए बहुत ही अच्छा माना गया है।


तिथि :
इस संस्कार के लिए ज्योतिषशास्त्र कहता है कि द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्टी, दशमी, एकादशी, द्वादशी तिथि अनुकूल होती है। आप इनमें से किसी भी तिथि को यह संस्कार कर सकते हैं।


वार :
बात करें वार कि तो इस संस्कार के लिए सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को बहुत ही शुभ माना जाता है। माता पिता अपनी संतान का विद्यारम्भ इन वारों में से किसी भी वार को कर सकते हैं।


लग्न :
विद्यारम्भ संस्कार के लिए मुहुर्त ज्ञात करते समय लग्न की स्थिति कैसी होनी चाहिए आइये इसे देखें। वृष, मिथुन, सप्तम में हों एवं दशम भाव में शुभ ग्रह हों व अष्टम भाव खाली हों तो यह उत्तम होता है


निषेध :
ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि चन्द्र व तारा दोष होने पर विद्यारम्भ नहीं करना चाहिए। तारा और चन्द्र दोष से मुक्त होने पर ही इस संस्कार की शुरूआत करनी चाहिए।

Sunday 1 July 2018

करण एवं जातक स्वभाव



ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचांग से समय का आंकलन किया जाता है। किसी कार्य के लिए समय शुभ है अथवा नहीं यह भी पंचांग से देखा जाता है क्योंकि पंचांग बताता है कि ग्रह, नक्षत्र की स्थिति कैसी है और उसका परिणाम कैसा होने वाला है। पंचांग को लेकर हमारे मन में कई बार यह उत्सुकता जगती है कि पंचांग को पंचांग क्यों कहा जाता है। ज्योतिर्विद बताते हैं कि पंचांग के पांच अंग अर्थात तत्व होने से इसे पंचांग कहा जाता है। हम यहां इन्हीं पांच अंगों में से एक अंग करण के विषय में बात करने जा रहे हैं, आइये इस अंग के विषय में विस्तार से जानें.......।
ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार एक योग दो करण से मिलकर बनता है। एक करण आधे योग से बनता है। करण की संख्या मूल रूप से 11 है।


1.बव करण :
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति धार्मिक स्वभाव का होता है। इस करण का व्यक्ति शुभ कार्यों में मन लगाते हैं और अपने कार्य में निरन्तर स्थायी रूप से लगे रहना पसंद करते हैं। अनैतिक और धर्म विरूद्ध कार्यों से ये दूर ही रहते हैं। इनकी बुद्धि तीक्ष्ण होती है जिससे ये भ्रम में नहीं उलझते हैं। अपने कार्य एवं व्यवहार से समाज में काफी मान सम्मान प्राप्त करते हैं।


2.बालव :
बालव करण, व्यक्ति को धार्मिक स्वभाव प्रदान करता है। इस कारण में जन्म लेने वाला व्यक्ति धर्म कर्म में अटूट विश्वास रखता है तथा धर्मयात्रा एवं तीर्थयात्रा के द्वारा अपने जीवन को सफल बनाने का प्रयास करता है। इस करण के जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करते हैं। ये जीवन में काफी धन अर्जित करते हैं और धन धान्य से पूर्ण, सुखी जीवन व्यतीत करते हैं।


3.कौलव :
कौलव करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव मिलनसार होता है। इस करण मे जन्म लेने वाले व्यक्ति सबसे प्रेमपूर्ण और स्नेहयुक्त व्यवहार रखते हैं। इनके मित्रों की संख्या बहुत अधिक होती है और मित्रों से इन्हें समय समय पर अनुकूल सहयोग और लाभ भी प्राप्त होता है। इस करण के जातक बहुत ही स्वाभिमानी होते हैं और किसी भी हाल में अपने स्वाभिमान पर आंच नहीं आने देते हैं।


4.तैतिल :
ज्योतिषशास्त्री मानते हैं कि तैतिल करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति बहुत ही सौभाग्यशाली होता है। इस करण के जातक के पास काफी मात्रा में धन होता है। इनके जीवन में प्रेम का विशेष महत्व होता है, ये सभी को स्नेह की दृष्टि से देखते हैं। ये उत्तम मकान व सम्पत्ति के स्वामी होते हैं।


5.गर :
ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार गर करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति काफी परिश्रमी होता है। यह भाग्य से अधिक कर्म पर विश्वास रखता है तथा जिन वस्तुओं की कामना करता है उसे अपनी मेहनत से प्राप्त कर लेता है। कृषि से सम्बन्धित कार्यों एवं घर के कार्यों में तत्पर रहता है।


6.वणिज :
वणिज करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति तेज बुद्धि का स्वामी होता है। इस करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति व्यापार में निपुण होने के कारण वाणिज्य कर्म से आजीविका कमाने वाला होता है। ये यात्रा के भी काफी शौकीन होते हैं, व्यापार के उद्देश्य से ये काफी यात्रा करते हैं और लाभ प्राप्त करते हैं। इसके जातक पूर्णत: व्यावसायिक बुद्धि के होते हैं।


7.विष्टि :
ज्योतिषशास्त्र में विष्टि करण शुभ नहीं माना जाता है। इस करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर विष्टि करण का अशुभ प्रभाव रहता है जिसके कारण इसके जातक का आचरण संदिग्ध रहता है। इनका मन अनुचित कार्यों में लगता है। ये परायी स्त्री के प्रति मोहित रहते हैं। इस करण के जातक का एक विशिष्ट स्वभाव यह है कि अगर ये शत्रु से बदला लेने की सोचें तो किसी भी हद तक जा सकते हैं।


8.शकुनी :
शकुनी करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति न्याय करने वाला होता है। ये विवाद को सुलझाने में तत्पर रहते हैं अर्थात अगर इनके आस पास कहीं विवाद उत्पन्न हो तो उसे अपनी बुद्धि से शांत कर देते हैं। ये दवाईयों के भी अच्छे जानकार होते हैं तथा इनसे सम्बन्धित कार्यों में लाभ प्राप्त करते हैं।


9.चतुष्पद :
चतुष्पद करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति शुभ संस्कारों से युक्त ब्राह्मणों का सम्मान करने वाला धर्म-कर्म में विश्वास रखने वाला तथा गायों की सेवा करने वाला होता है। ये पशुओं से विशेष प्रेम रखते हैं। इन्हें पशुओं की चिकित्सा का भी ज्ञान होता है और ये पशुचिकित्सक भी बन सकते हैं।


10.नाग :
नाग करण को ज्योतिषशास्त्र में अशुभ माना गया है। इस नक्षत्र में जिनका जन्म होता है उन्हें दुर्भाग्यशाली माना जाता है। इनका जीवन संघर्षमय होता है तथा इन्हें भाग्य की अपेक्षा कर्म का फल प्राप्त होता है। इनके नेत्र चंचल होते हैं अत: किसी भी कार्य में स्थिरचित्त नहीं रह पाते हैं, इससे इन्हें जीवन में सफलता मिलना इनके लिए कठिन होता है।


11.किंस्तुघ्न :
किंस्तुघ्न करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है। ये सदैव शुभ कार्यों में संलग्न रहते हैं, इन्हें सभी प्रकार के सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं। ये उत्तम शिक्षा एवं धन से परिपूर्ण होकर सभी प्रकार से आनन्दपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।