Thursday 24 May 2018

मांगलिक योग / दोष

       

बहुत से जातक ऎसे हैं जो मांगलिक होते हैं, किंतु यह उनके लिए योग कारक है अथवा दोष कारक, उन्हें इस विषय में पता नहीं होता | वैसे तो मंगल की शुभ अशुभता पर निर्भर करता है कि वह योगकारक है अथवा दोषकारक, इसके साथ साथ सूर्य व चंद्र की शुभता तथा इनके द्वारा मंगल को सहायता ( दृष्टि या राशि परिवर्तन द्वारा ) भी मंगल के शुभ व अशुभता पर अपना प्रभाव डालती है |

मांगलिक के प्रकार  :- यह पाँच प्रकार का होता है, - लग्न मांगलिक (प्रथम मांगलिक ), चतुर्थ मांगलिक, सप्त मांगलिक, अष्ट मांगलिक व द्वादश मांगलिक |

इनके प्रभाव :- 1 = लग्न मांगलिक ( प्रथम मांगलिक ), का प्रभाव जातक के स्वास्थ्य, आयु, व्यवहार, सुख शांति, संपत्ति, माता के सुख, जीवन साथी व उसके स्वास्थ्य पर पूर्ण रूप से पड़ता है |

2 = चतुर्थ मांगलिक जातक के सुख व आयु, जातक की माता की आयु व उनका स्वास्थ्य, संपत्ति, जीवनसाथी के स्वास्थ्य व आयु, जातक के कर्म, नौकरी अथवा कार्य, जातक के पिता और उनकी मेहनत, तथा जातक के जीवन में सभी प्रकार के लाभ को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है |

3 = सप्त मांगलिक, जातक के स्वास्थ्य, जीवनसाथी के स्वास्थ्य व आयु, जातक व उसके पिता के कर्मो को, धन व जातक की वाणी को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है |

4 = अष्ट मांगलिक, जातक के आयु स्वास्थ्य, गुदा द्वार, व्यवहार, जीवन में प्राप्त होने वाले लाभ, वाणी, कुटुम्ब, व छोटे भाई को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है |

5 = द्वादश मांगलिक, जातक के व्यय, ससुराल, छोटे भाई, दोनों बाजूएं, प्रतिरोधक शक्ति, शत्रुओं व कर्जा, जीवनसाथी के स्वास्थ्य व आयु, किसी भी प्रकार की साझेदारी को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है |


विवाह के मामले में यह अति आवश्यक है कि मांगलिक व्यक्ति का विवाह मांगलिक कन्या से ही हो, या मांगलिक कन्या का मांगलिक व्यक्ति से | किन्तु कई परिस्थितिओं में मांगलिक जातक को विवाह हेतु अन्य मांगलिक जातक नहीं प्राप्त हो पाता, ऎसी स्थिति में मांगलिक योग अथवा दोष का उपचार करना अति आवश्यक हो जाता है, ताकि जातक या उसके जीवनसाथी को विवाह के उपरान्त किसी भी प्रकार के कष्ट अथवा हानि न हो |

 मांगलिक दोष /योग के लिए उपाय  :- 
: वास्तव में जब ऎसा जातक शुध्दता का ध्यान रखे, सात्विक भोजन करे व नशे इत्यादि से दूर रहे तो यह उनके लिए योग कारक सिद्ध होता है, जिसमे इन्हे यश, मान सम्मान प्राप्त होता है, अतः इसी कारण से ऎसे जातक अपनी वास्तविक आयु से छोटे भी प्रतीत होते हैं | इसके विपरीत, यह तब ज्यादा अशुभ हो जाता है जब ऎसा जातक तला भुना गरिष्ठ भोजन करता है तथा मांस मदिरा व नशे का उपयोग करता है, अकारण ही सब पर क्रोध करता है व दूसरों को हानि पहुंचाता है, जातक कम आयु में वृद्ध समान दिखता है, उसे कई व्याधियां घेर लेती हैं, और अशुभ मंगल सभी प्रकार के मंगल कार्यों में अवरोध उत्पन्न कर देता है | अतः जातक को इससे बचना चाहिए |
: प्रतिदिन 10 मिनट तक ध्यान अवश्य करें |
: चांदी की वर्गाकार डिब्बी में शहद भरकर अपने घर अथवा मंदिर में रखें |
: अपने घर में छोटे भाई अथवा मित्रों के साथ मिलकर भोजन करें व उन्हे मीठा खाने को दें |
: घर पर मंगल यंत्र ( भौम यंत्र ) स्थापित करें और उसे नित्य धूप दीपक दिखाएं व " ॐ भौमाये नमः" मंत्र का 108 बार जप करें |
: किसी भी शुक्ल पक्ष के दूसरे मंगलवार से 7 मंगलवार तक 1 मीठा पान किसी दक्षिण मुखी हनुमान प्रतिमा को चढ़ाएं |
: 43 दिन लगातार तांबे के बर्तन में जल भरकर उसमे लाल चंदन, चीनी या शहद व थोड़े से चावल डालकर, उस जल को किसी गूलर के पौधे पर चढ़ाएं |
: सप्ताह में एक दिन नमक का त्याग करें |
: जब मंगल कार्य में अधिक अवरोध उत्पन्न हो रहे हो तो, किसी भी मंगलवार के दिन, तांबे के पात्र में जल भरकर उसमें मंगल यंत्र डाले और उसे किसी भी हनुमान मंदिर में चढ़ाएं अथवा दान करें व ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा स्वेच्छा अनुसार दक्षिणा दें |
10  : किसी विद्वान ज्योतिषी से अपनी कुण्डली दिखवाकर शुद्ध मूंगा रत्न तांबे में जड़वाकर ,अपने सीधे हाथ की अनामिका अंगुली में, मंगलवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करें  |
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Friday 18 May 2018

सूर्य ग्रह

                    

आज हम ग्रहों के राजा सूर्य देव के बारे में जानेंगे | ग्रहों के राजा सूर्य की एक विशेषता यह है कि ये कभी भी स्वयं अशुभ अथवा नीच प्रभाव नहीं देते अपितु साथ बैठे ग्रह अथवा भाव में अपना नीच प्रभाव डाल देते हैं, जिस कारण यह अधिक दुष्प्रभाव देने वाले व पापी ग्रह की श्रेणी में भी गिने जाते हैं, इसलिए जिस जातक पर इनका दुष्प्रभाव होगा वह अपना जीवन तो खराब करता ही है, साथ ही दूसरे की जिन्दगी भी नष्ट कर देता है | आईये जानते हैं क्या प्रभाव रहता है जातक के जीवन और भाग्य में, ग्रहों के राजा का |

शुभ अवस्था में हों तो  :-  जन्म से 8 वर्ष की आयु तक जातक को थोड़ी बहुत रोग व व्याधियां सहनी पड़ती है, बाद में जातक निरोगी जीवन ही जीता है | ऎसा जातक सत्यनिष्ठ, अत्मविश्वास से भरा, न किसी के बारे में बुरा कहता है न ही सुनना पसंद करता है, ऎसे जातक शत्रुओं को ठीक से जवाब देना बखूबी जानते हैं | पाचन तंत्र उत्तम होता है, जिस कारण वे शायद ही अपने जीवन में कभी मोटे हो पाएं, इनको यदि घी के बर्तन भी डाल दिया जाए तो भी इनको न इनके शरीर को कोई फर्क पड़े, इसलिए शास्त्रों के अनुसार इनको सूखे बादाम की संज्ञा दी गई है, क्योंकि वह दिखने में रस रहित होता है किन्तु गुणों में उत्तम, ऎसे जातक प्रेम के मामले में जरा रूखे स्वभाव के होते हैं लेकिन हृदय से सबका भला चाहने वाले होते हैं | एक जगह टिककर काम करना, मान सम्मान व अत्मसम्मान, यश, 22-25 व 28-32 वर्ष में ख्याति को प्राप्त करना, अपने पिता से उत्तम सुख प्राप्त करने वाला, आदर्श परिवार, उत्तम स्वास्थ्य, प्रतिष्ठित व्यक्ति, सरकारी नौकरी, प्रतिष्ठित पद, तेजस्वी, नियमानुसार रहने वाला, आलस्य रहित, स्वयं कमा कर धनी बनना, किसी से भी सहायता की आशा न करना, औरों की सहायता को तत्पर रहना, वृद्धावस्था में अचानक मृत्यु होना ( हृदयघात ), संस्कारों को मानने वाला, राजा समान व्यक्तित्व, यह सभी लक्षण शुभ सूर्य के हैं |

अशुभ अवस्था में हों तो  :-  जातक बाल्यकाल से ही रोगी रहता है, पाचन तंत्र कमजोर, छोटी छोटी बातों पर उत्तेजित होना, 12 महीने में 12 बार वेद्य ( डॉक्टर ) के पास जाने वाला, आँखो की रोशनी में व्याधि होना, दिमाग में गर्मी चढ़े रहना, लिवर का कमजोर होना या रोग होना, पिता से मिलने वाले सुख में कमी, दूसरों का भला करने पर बुरा सुनने को मिले, अत्मविश्वास में कमी, चिड़चिड़ा स्वभाव, 42 वर्ष के बाद बदनामी व अपमान, गृहस्थी जीवन तनावयुक्त, नियम का पालन न करना, आलस्य अर्थात अधिक सोने वाला, दूसरों की बुराई करने में आनंद करना व स्वयं की बुराई में मारपीट करने वाला, शत्रुओं से परास्त या हारा हुआ, एक जगह टिककर काम न करने वाला या अधूरा छोड़कर दूसरा काम पकड़ लेना, पिता से कष्ट और स्वयं पिता को कष्ट देने वाला, अधिक नमक खाने वाला, नशा करने वाला,बोलते समय अथवा सोते समय मूँह से थूक आता हो, शरीर या शरीर का कोई अंग सुन्न या नकारा हो गया हो, पूर्व दिशा में गन्दगी व शौचालय का होना, तामसिक भोजन करना, घर के चूल्हे पर गन्दगी फैलाना, झूठे इल्जाम लगना | यह सभी लक्षण व कर्म सूर्य की अशुभता को दर्शाते हैं |

उपाय  :-   नित्य गायत्री मंत्र का जाप करें, उगते सूर्य के समक्ष शुद्ध जल से अथवा नदी में स्नान करें और उन्हें प्रणाम करें, गुड़ का दान करें, पिता को कष्ट हो या पिता से न बनती हो, तो तांबे की अंगूठी में सवा पांच रत्ती माणिक जड़वाकर पिता को दें, सरकारी संस्था या विद्यालय में अपने वजन के जितना गेहूँ या 7 प्रकार का अनाज दान करें,अधिक नमक का सेवन न करें, सप्ताह में एक बार नमक का सेवन त्याग दें, अपना चरित्र उत्तम बनाएं, किसी पर झूठा आरोप न लगाएं, घर की पूर्व दिशा को साफ रखें, बेल के पौधे को जल से सीचे | जीवन साथी से मतभेद की स्थिति में, रात को चूल्हे की अग्नि में अपने भोजन का पहला ग्रास डाले अथवा अहुति दें, पति - पत्नी में से कोई एक गुड़ खाना छोड़ दें या गुड़ खाने के तुरंत बाद पानी पीएं | पेट के गंभीर रोग होने अथवा बार बार ऑपरेशन के योग बनने की स्थिति में, कृतिका नक्षत्र में कहीं से बेल की जड़ लाए,उसे गंगाजल व कच्चे दूध से शुध्द करके तांबे या सोने के ताबीज में भरकर लाल डोरे में पिरोकर धारण करें | यदि शरीर पीला पड़ रहा हो अथवा पीलिया रोग हो गया हो या ठीक नहीं हो रहा हो, तो ऎसी स्थिति में उपरोक्त जड़ धारण करें तथा 27 बेल के पके हुए फल खरीदे या लाए, उनपर एक तरफ श्री राम का नाम लिखें और दूसरी तरफ स्वास्तिक का चिह्न बनाए, उन्हें माथे से लगाकर जल प्रवाह करें | सूर्योदय से पहले व सूर्यास्त के बाद दान न करें | अपने पिता के साथ रहें, उनकी सेवा करें | लाभ प्राप्त होगा, और जीवन में सभी अरिष्टओं से मुक्ति मिलेगी |
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Thursday 17 May 2018

चन्द्र ग्रह

              

आज का विषय चन्द्र ग्रह पर आधारित है, इसे माता का दर्जा प्राप्त है | जिस प्रकार माँ रात्रि के समय स्वयं उठकर अपनी संतान को लोरी सुनाकर सुलाती है, उसी प्रकार चन्द्र भी रात्रि के समय अपनी संतानों के लिए प्रकाश कर उन्हें भयहीन निद्रा प्रदान करता है | क्या असर होता है इसका प्रत्येक व्यक्ति के जीवन पर,..

शुभ अवस्था में हों तो  :-  जातक को अपने जीवनकाल माता दादी मौसी का पूर्ण सुख व लाभ प्राप्त होता है, शीतल, सौम्य, संस्कारी, धार्मिक प्रवर्ति, शांतिप्रिय, उत्तम ध्यान क्षमता, किसी भी परिस्थिति में ढल जाने वाला, जबान व वचन का पक्का, मन - हृदय - घर पर सुख शांति, विवाहित स्त्री या धनी स्त्री अथवा दोनों का आश्रय प्राप्त करने वाला व उनका प्रिय, 24 वा वर्ष शुभ, विवाह के पश्चात भाग्योदय, बच्चों के साथ बच्चा व बूढ़ों के साथ बूढ़ा बन जाने वाला, मातृ भाषा में उत्तम ज्ञान, आर्थिक स्थिति व जीवन सामान्य, विश्वासपात्र, अधिक किसी से मतलब न रखने वाला, ज्ञानवान, सादगी में भी सम्मोहित कर देने वाला अथवा वाली, ऎसी स्त्रियाँ अथवा महिला की सुन्दरता देखते ही बनती है ( बगैर कोई सौंदर्य प्रसाधन इस्तेमाल किए ), सबको समान रूप से देखने वाला, अपने जन्मस्थान अथवा जन्म स्थल (  जिस मकान में जनम हुआ हो या नामकरण हुआ हो )में निवास करने वाला , दूध व उससे निर्मित उत्पादों को प्रिय मानने वाला तथा उपभोग करने वाला , घर पर चन्द्र की वस्तुओं की कमी न होना ( दूध, चावल, जल, कपास, मोती ), दुधारू पशु को पालना उसकी सेवा करना, पशु पालने में अधिक रूचि लेने वाला, मकान व वाहन आदि का सुख प्राप्त होना, मन व हृदय से स्वस्थ, सुंदर और मजबूत | स्थिर बुद्धि का स्वामी, सभी इन्द्रियों को अपने वश में रखने वाला, बहुत विचार कर निर्णय लेने वाला, शुभ चन्द्र का जातक कहलाता है |

अशुभ होने की अवस्था में  :-  जातक को माता-मौसी-दादी का सुख प्राप्त नहीं होता या इनके द्वारा कष्ट भोगना पड़ता है, ऎसा जातक छोटी छोटी बातों पर गुस्सा करने वाला होता है, मन व हृदय में अधिकतर अशान्ति रहती है, अपने घर अथवा जन्‍म स्थान से दूर रहने वाला, विधवा स्त्रियों को नीच दृष्टि से देखने वाला व कष्ट पहुंचाने वाला, बांयी आँख का खराब होना अथवा व्याधि होना, विवाह के बाद व्यवहार में तुरंत परिवर्तन आना, हर सुख के तुरंत बाद दुख आना (  उदहारण :- कोई ख़ुशी के अवसर पर मनहूस खबर का सुनना या दुखद घटना का घटित होना ), माता का अपमान करना, दूसरों की बात को ना सुनकर अपनी रट लगाना, दूध को जलाना - फाड़ना अथवा बर्बाद करना, दुधारू पशुओं को मारना या कष्ट पहुँचाना, स्त्रियों में रजस्व का अनियमित होना, माता व नवजात शिशु को कष्ट होना, मानसिक व्याधियों का होना, संतान उत्पन्न करने की शक्ति कम अथवा खत्म होना, 24 वा वर्ष दुर्भाग्यपूर्ण होना, मन व हृदय का कमजोर होना या डरपोक, अपनी इन्द्रियों को काबू न कर पाने वाला, ध्यान की कमी अथवा चंचल स्वभाव, नीच कर्म करने वाला, तालाब-कुआँ का सूख जाना, जल में डूबने से मृत्यु होना, महसूस करने की शक्ति खत्म हो जाए | यह सभी अशुभ व पीड़ित चंद्र के प्रभाव हैं | स्त्री जातक पर अशुभ चन्द्र का प्रभाव पुरुष जातक की अपेक्षा ज्यादा रहता है, माता पिता के खिलाफ जाना, उन्हें दुख पहुँचाना इसका प्रमुख कारण है |

उपाय  :-  शिव की पूजा करें,  शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाएं, माता अथवा विधवा स्त्री की सेवा करें, किसी भी सोमवार को सफेद कपड़े में 400 ग्राम मिश्री बाँधकर जल प्रवाह करें,रात्रि में सिरहाने जल रख कर सोएं और सुबह कीकर ( बबूल ) की जड़ में डालें | माता-पुत्र को कष्ट की स्थिति में एक सफेद खरगोश पालें (  खरगोश के मरने व खोने की स्थिति में 24 घंटे के अंदर दूसरा ले आएं ) | अपने जीवन में एक बार किसी भी श्मशान में एक मन अथवा 8 कुंतल लकड़ी दान करें | हर सुख के बाद दुख मिलने की स्थिति में, 1200 ग्राम चावल दूध से धोकर जल प्रवाह करें | 24 वे वर्ष में विवाह न करें अन्यथा जीवनभर आंसू व दुख भोगने पड़ेंगे ( विशेषकर स्त्री जातक ) | इन सभी उपायों से उत्तम लाभ की प्राप्ति होगी, और भगवान शिव की कृपा दृष्टि आप पर बनी रहेगी |
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मंगल ग्रह

                     

आज का विषय मंगल ग्रह पर आधारित है | ज्योतिष के अनुसार यह ग्रह सूर्य की शुभ अशुभता पर निर्भर करता है, यदि जातक की कुंडली में सूर्य शुभ है तो मंगल भी शुभफलकारी होगा | सूर्य हमें प्रकाश देता है किन्तु उससे जो गर्मी निकलती है वही मंगल है | इसलिए सूर्य का प्रकाश जितना तेज होगा, गर्मी भी उतनी ही ज्यादा होगी | इसका रंग ठीक वैसा ही है जैसा सुलगते हुए कोयले का होता है | आइये जानते हैं कैसा फल प्राप्त होता है शुभ अशुभ के समय | 

शुभ होने की स्थिति में :-  जातक बाल्यकाल से ही स्वस्थ होता है, यदि कोई व्याधि उत्पन्न होगी भी तो उदर (  पेट ) में होगी जो ज्यादा पीड़ादायक या लंबे समय तक न रहेगी | ऎसे जातक को अपने छोटे भाई व मित्रों से पूर्ण लाभ मिलता है | ऎसा जातक अपने भाई व मित्रों के लिए अपनी जान तक देने को तैयार रहता है, और उनसे सुख प्राप्त करता है | लालीमा वर्ण, सेना नायक, सेनापति, प्रबन्धक, लीडर, नेता, शस्त्र विद्या, भाईओं व मित्रों का सुख, बलिष्ठ शरीर, धीर गंभीर, नियम से रहने वाला, दक्षिण द्वार वाला मकान, साहसी, तेजवर्ण, क्षत्रीय, किसी से भी भिड़ जाने वाला, पहरेदार, सतर्क, साझेदारी, किसी को भी धोखा न देने वाला, विश्वासपात्र, 28-33 वर्ष में भाग्योदय, संतान का पूर्ण सुख मिले, भूमिपति, लाल नेत्र, गर्मी अधिक लगना, लंगोट का पक्का | ये सभी गुण शुभ मंगल के हैं |

अशुभ होने की स्थिति में :-    बाल्यकाल से ही पेट का रोगी, जिद्दी व शैतान, भाईयों व मित्रों से हानि, कष्ट अथवा अल्‍पसुख, गलत संगत, शरीर अथवा चेहरे में अधिक मात्रा में जले व कटे के निशान, अविश्वासी, वहमी, साझेदारी से नुकसान, छोटी छोटी बातों पर मारपीट करने वाला - झगड़ालू, बैडोल शरीर, चेहरे में दाग धब्बे व फुंसीयां, रक्त पेट व गुर्दे के विकार से पीड़ित, बवासीर की बीमारी, शरीर में जगह जगह गांठ का होना, मंगल कार्य न होना अथवा हर मंगल कार्य में बाधा पहुँचाना, मंगल कार्य के बाद क्लेश करना, गैर कानूनी हथियार रखना, घर पर रोज क्लेश व मारपीट होना, नशे का आदी होना, हथियार से मृत्यु, मांस अंडे का अधिक सेवन करना, अधार्मिक होना, अहंकारी होना, हर आदेश के विपरीत कार्य करना, चोरी या डाका डालना, पेट में वात व कब्ज का रहना अथवा आंतो में सूजन रहना, अत्यधिक तैलिय व मसालेदार भोजन करना, मांस बेचने वाला अथवा व्यापार करने वाला, रंजिश करने वाला, संतान का उत्पन्न होकर नष्ट होते जाना | यह सभी लक्षण अशुभ मंगल के हैं |

उपाय :-  यदि मंगल बहुत अशुभ हो रहा हो तो दक्षिण द्वार वाले मकान से अशुभता में वृद्धि होगी, इसलिए दक्षिण द्वार को वहां से हटा दें, या वह मकान छोड़ दें | मीठी रोटी तंदूर में सेककर कुत्ते और कौवे को दें | हनुमान मंदिर में जाकर मीठा पान चढ़ाएं, 10- 15 मिनट तक ध्यान करें, नशे के सेवन से बचें, मिर्च मसाला व तैलिय भोजन से परहेज करें, शराब मांस अंडे को त्यागे,  साझेदारी से बचें | घर पर दोस्तों को बुलाकर मीठा भोजन कराएं | सेहत के लिहाज से मंगल का बुध के साथ युति शुभ नहीं होती, इसलिए हरी सब्जी, मटर व कच्चे फलों से परहेज करें | साबुत लाल मिर्च के उपयोग से नाभी के रोग उत्पन्न हो सकते हैं इसलिए इसका त्याग करें | पेट की कमजोरी व विकार की स्थिति में, 43 दिन लगातार दूध में मीठा डालकर, बड. के पेड़ पर डालें तथा उसकी गीली मिट्टी का तिलक अपने माथे पर लगाएं, चाँदी धारण करें, व शिव की उपासना करें |  जन्‍मदिन अथवा वर्ष में एक बार 400 ग्राम मसूर की दाल धर्म स्थान पर दें |  28 - 33 के मध्य विवाह न करें | लाल गाय को अपने वजन के बराबर हरा चारा दें, ध्यान रहे कि गाय अंगविहीन न हो | घर पर सभी साथ मिलकर भोजन करें | ऎसा करने से मंगल की कृपा प्राप्त होगी |
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Wednesday 16 May 2018

बुध ग्रह

                            

आज हम सौरमंडल में सूर्य के सबसे करीबी ग्रह बुध पर चर्चा करेंगे | कुण्डली में जब भी यह अन्य ग्रहों के साथ होता है तो उनके प्रभाव व शक्ति को बड़ा अथवा घटा देता है, जिससे उस ग्रह की शुभता अथवा अशुभता मे वृद्धि हो जाती है | सूर्य के करीब रहने के कारण अधिकतर कुण्डलीयों सूर्य के साथ ही पाया जाता है व हर तीसरी कुण्डली में सूर्य, बुध, शुक्र तीनों साथ ही पाये जाते हैं | अकेला बुध निष्पक्ष, निर्लिप्त होता है, चंद्र को छोड़, न किसी से शत्रुता रखता है और न ही मित्रता | स्त्री की कुण्डली में बहन-बुआ-बेटी व सहेली को दर्शाता है |
आइए जानते हैं, इसका क्या प्रभाव रहता है जातक के जीवन में, 


यदि शुभ हो तो  :-  कबूतर जैसी आँख, बिल्ली जैसी चाल, डरपोक, जातक के व्यवहार में शुमार होता है | चतुराई, बुद्धिमान, बोल कर काम निकाल लेने वाला, सब में घुलमिल जाने वाला, नारद मुनि, आसानी से फल की प्राप्ति होना, सब की नकल उतारने वाला, हर बात पर होंठों पर जीभ फेरने वाला, किसी भी घटना की जड़ तक जाने वाला, जुआ सट्टा लॉटरी से लाभ , पुश्तैनी या स्वयं उत्तम दर्जे का व्यापारी, बहन-बुआ-बेटी का पूर्ण सुख व लाभ ऎसे जातक को अपने जीवन में प्राप्त होता है | लड़ाई झगड़े से दूर रहने वाला, बेपेंदे लोटे की तरह कही भी घूम जाने वाला, सभी तरह के वाद्य यंत्र रखना व उनसे लाभ कमाना, सीप - कौड़ी - शंख से घर को सजाने वाला, युवावस्था में भी आवाज में मासूमियत या स्त्री जैसी जुबान ( आवाज ), नृत्य - संगीत में हुनर व इससे लाभ कमाने वाला, चमकीले नाखून - दांत, आवाज का जादू, चमकदार रोमरहित त्वचा, चमकीले काँच या काँच के बर्तनों का शौकीन, औषधि का ज्ञान, चिकित्सक, पूरे 32 दाँत वाला ( शुभ व भाग्यवान, जो कहदे वह अवश्य होगा ), आर्थिक स्थिति उत्तम, चौड़े पत्ते वाले पौधे व वृक्ष, ज्योतिषी, प्रबंधन का ज्ञान, विवेक से काम लेना | ये सभी गुण शुभ बुध को इंगित करते हैं |

अशुभ होने की स्थिति में :-  नसों व मांसपेशियों के विकार या व्याधि, दांतो के विकार अथवा सामने के दांत झड़ना, आंतो का कमजोर होना, बहन-बुआ-बेटी का सुख न मिलना या इनके कारण क्लेश का होना अथवा जमीन जायदाद के मामलों में विवाद कर देना - भाईयों या सगे संबंधियों मे लड़ाई झगड़ा करवा देना - भाइयों से वादाखिलाफी करना (  कई मामलों में ऎसा भी देखा गया है कि जातक को इनके कारण अपने जीवन में अपयश, हानि व अत्यधिक अपमान झेलना पड़ता है ) नाखून - दांत - त्वचा का रूखा अथवा विकृति होना, बहन बुआ बेटी का जीवन भी दुखमय होना, स्त्री जातक को उसकी सहेली या सहेलियों द्वारा विश्वाशघात करना, किन्नरों का अपमान करना, 99 पर काम अटकना, अपनी मेहनत का फल किसी और को मिलना, गंध अथवा सूंघने की शक्ति का खतम हो जाना, बाजुओं का कमजोर होना, मानसिक रोग होना, अविवेकी, व्यापार - जुआ - शेयर - लॉटरी - सट्टा में हानि होना, गलत औषधि के सेवन से शरीर में नुकसान होना, खाली जेब रईस दिखना (  ऎसा जातक कंगाल होकर भी अमीर दिखता है ), कंधे व गर्दन पर दर्द या खराब होना, व्यापार करने की बुद्धि न होना, कर्जे में डूबना या न चुका पाना, बिना वजह शत्रुता होना | यह सभी अशुभ बुध की निशानी है |


उपाय :-  घर से ऊन निवार के गोले को खोलकर बाहर फ़ेक दें या दान करें, घर से सभी पुराने वाद्ययंत्रों व सीप कौड़ी शंख की मालाओं को हटाएं, फिटकरी के पानी से कुल्ला करें, कांसे के बर्तन में देसी घी-कपूर-शककर डालकर पानी में बहा कर कांसे का बर्तन धोकर वापिस ले आएं | किन्नरों की सेवा करें, उन्हें हरे रंग में सुहाग का सामान व साड़ी दान करें | कन्या पूजन करें, अपना नाक छेदन करवाएं | चौड़े पत्ते वाले पौधों को घर से हटा दें | किसी भी फकीर से शंख, भबूत, ताबीज इत्यादि न लें, पीतल के पुश्तैनी बर्तनों को खाली न रखें, साली को अपने साथ न रखें | गुरुवार को हरी साग व बुधवार को हल्दीयुक्त भोजन का परहेज करें, अपना चरित्र उत्तम बनाएं रखें |
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शुक्र ग्रह

                 

आज हम सौरमंडल के सबसे चमकीले "शुक्र ग्रह" के बारे में जानेंगे, इसका क्या प्रभाव रहता है जातक के जीवन में |

जब कुण्डली में शुभ अवस्था में हों तो  :-   ऎसे जातक को बचपन से ही ब्रांडेड, यूनिक या लक्ज़री वस्तुएं प्राप्त करने को मिलती हैं | बुद्धि और चतुराई  इनमें कूट कूट कर भरी होती है | ऎसे जातक सदैव वर्तमान में जीते हैं, आकर्षक दिखना, पहनावा व वस्तुओं का प्रयोग भी बखूबी करते हैं | ऎसे जाताकों का आर्थिक स्तर का आंकलन करना मुश्किल होता है, क्यूंकी वे महंगे प्रसाधन का उपयोग करते हैं, चाहे घर की आर्थिक स्थिति कमजोर ही क्यों न हो | शीशे के आगे खड़े होकर खुद को सवारना व आकर्षक दिखना ही इन्हें प्रसन्नचित्त करता है | 24 घंटों में 50 बार आईना देखना, एक दिन में 6 बार कपड़े बदलना, खुश्बूदार इत्र का प्रयोग करना, सौन्दर्य संसाधनओं का प्रयोग करना ( स्त्री संसाधन का भी प्रयोग करते हुए देखे जा सकते हैं ), सुव्यवस्थित कपड़े, घर व सामान, शरीर में संतुलित ऊर्जा का पूर्ण प्रवाह, विपरीत लिंग को अपनी ओर आकर्षित करना, अपनी गर्लफ्रेंड को खुश करना, ऎसे जातकों को बखूबी आता है | ऎसे जातक अपनी वास्तविक आयु से छोटा प्रतीत होता है और अपने जीवनकाल में सभी प्रकार की वस्तुओं का भोग करते हैं (  ब्रांडेड शराब, वाइन, सिगरेट आदि का प्रयोग भी करते हैं, किन्तु इसके आदी नहीं बनते ), नक्काशी वाले पत्थर, जेवर, हीरा, फ़ैशन डिज़ाइनिंग, कॉस्मेटिक सामान, इत्र पर्फ्यूम, मिट्टी खाद, ब्रांडेड फैशनेबल कपड़े, 25 - 27 वर्ष में विदेश यात्रा एवं भाग्योदय शुभ शुक्र का संकेत है | ऎसे जातक सभी विषय का ज्ञान रखते हैं (  पूरा ज्ञान नहीं ), ये पुराने रीति रिवाज को नहीं अपनाते ( असंस्कारी कहना गलत होगा ), परिवार में स्त्रियों को पूर्ण मान सम्मान मिलता है, गृह स्थान पर काली अथवा जर्सी गाय को पालना या सेवा करना भी शुक्र के शुभ होने के लक्षण हैं |

जब अशुभ अवस्था में हों तो  :-  जन्म के समय से ही घर पर अव्यवस्था फैल जाती है, दायीं आंख का कमजोर होना, स्नान न करना, साफ सफाई न करना, विपरीत लिंग के प्रति नीच अथवा बुरी सोच रखना, स्त्रियों को कष्ट देना उनकी निंदा करना, चौपाई जानवर विशेषकर काली गाय का मरना, मरवाना या खोना, हाथ के अंगूठे का सुन्न या नकारा होना, शरीर में ऊर्जा की कमी, नशे का आदी होना, बुरी बातों को अधिक सोचना, कटाक्ष लेखन करना, गन्दगी में रहना, स्त्री अथवा जीवनसाथी की हत्या करना, रूढ़ीवादी सोच रखना, गुप्त रोग होना, नाक में किसी प्रकार का रोग होना, किसी भी प्रकार के बदलाव से घृणा करना, ऎसे परिवार में स्त्रिओं की हालत मंदी होती है, धन - एश्वर्य का सुख न मिलना, अशुभ शुक्र के लक्षण हैं | जिसे उपाय द्वारा जातक को ठीक कर लेना चाहिए |

 उपाय :-  वर्ष में एक बार अपने वजन के बराबर हरा चारा गाय को दें | अपना चरित्र उत्तम बनाये रखें | नित्य स्नान करें व साफ सुथरे कपड़े प्रैस करके पहने | इत्र का प्रयोग करें | साफ सफाई रखें, स्त्रिओं को सम्मान दें, माँ लक्ष्मी की अराधना करें, मिट्टी के लोटे में दही रखकर उसमें मक्खन डालकर धर्मस्थान में दें | बड़ी इलायची को उबालकर उसके पानी को स्नान के पानी में मिलाकर स्नान करें और ॐ शुक्रवे नमः का जाप करें |
25 - 27 वर्ष की आयु में विवाह न करें | गौ दान करने से अशुभ प्रभाव में कमी आएगी | किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहें | मिट्टी, गाय, कपड़े, जेवर आदि का व्यापार न करें |
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Tuesday 15 May 2018

बृहस्पति ग्रह

                   
बृहस्पति ग्रह, वह ग्रह है, जिसे शिक्षा व संस्कार का कारक ग्रह माना जाता है, तथा पुत्र संतान के विषय में भी इंगित करता है | धर्म स्थान व शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है |

जब ये व्यक्ति की कुण्डली में शुभ अवस्था में हों  :- 
ऎसे जातक को बचपन से ही अपने दादा का पूर्ण रूप से सुख प्राप्त होता है ( जन्म से लेकर कम से कम 16 वर्ष की आयु तक ) , व उनके साथ ही रहता है, घर की आर्थिक स्थिति मध्यम होती है, लाभ पूर्ण रूप से बचता है, धन का भी पूर्ण रूप से सही जगह इस्तेमाल होता है, घर पर धार्मिक- स्थल, पुस्तकों व शास्त्रों का अध्ययन, नियम संस्कारों को मानने वाले तथा मंदिरों के दर्शन हेतु जाते रहना इन्हें प्रसन्नता प्रदान करता है | ऎसे जातक प्रायः शास्त्र अथवा श्लोकों की पंक्ति गुनगुनाते हुए देखे जा सकते हैं |
ऎसे जातक को किसी के प्रति विशेष आकर्षण न होगा, और न ही किसी से कोई लाभ मिलता है | जातक को अपने जीवन में कभी भी छाती, फेफड़ों व हृदय से संबंधित विकार न होगा | किसी विषय विशेष का पूर्ण ज्ञान, गुरुओं की सेवा, उनका आदर सत्कार करना, बड़ो के आगे नतमस्तक होना | ये गुण शुभ गुरु को दर्शाते हैं |
ऎसे जातकों में धैर्य व स्टेमिना प्रचुर मात्रा में पाया जाता है | तथा धर्म स्थानों व गुरुओं के द्वारा भाग्योदय होता है | संतान पक्ष मजबूत होता है और संतान ( विशेषकर पुत्र ) से लाभ प्राप्त होता है |


जब ये व्यक्ति की कुण्डली में अशुभ अवस्था में हों  :-
जातक को अपने दादा का सुख प्राप्त नहीं होता, उसके जन्म से पहले ही या जन्म लेने के बाद 12 वर्षों के अंदर ही उसके पितामाह (  दादाजी ) की मृत्यु हो जाती है | जातक स्वयं जन्म से ही बीमार रहता है, खासकर छाती, फेफड़ों व हृदय संबंधित रोगों से पीड़ित होता है | 

कुमार अवस्था से ही जातक जिद्दी व हठी होता है, उसमें संस्कारों व धैर्य की कमी होती है, गुरुओं, धर्म स्थलों, शास्त्रों, अपने से बड़ों, कुल पुरोहित व ब्राह्मणों का अनादर करना, उनकी निंदा करना ( कुल पुरोहित को बार बार बदलना ), पीपल के वृक्ष को कटवाना, कोई भी धर्मस्थल को तुड़वाना या गिराना, सर में चोटी के स्थान से बाल झड़ जाना, सोना खो जाना, चोरी होना, चोरी करना या करवाना अथवा दान में लेना, झूठी अफवाहों का फेलना, शिक्षा का बंद होना या रुक जाना, सांस की बीमारी, नियम संस्कारों का पालन न करना, अपना धर्म परिवर्तन करना, लाभ का न बचपाना, धन का दुरुपयोग होना, पुत्र संतान को कष्ट होना अथवा पुत्रों द्वारा कष्ट देना | यदि इनमें से अधिकतम लक्षण अपको लगें या घटित हुए हों, तो निश्चित ही कुण्डली में गुरु अशुभ अथवा पीड़ित हैं |

उपाय :-  घर पर बड़े - बुज़ुर्गों की सेवा करें, उन्हें सम्मान दें | अपने दादा जी की चारपाई का उपयोग शुभफलकारी होगा | ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें अथवा हर वर्ष 1200 ग्राम चने की दाल व पीला वस्त्र, दक्षिणा सहित दान करें | केसर का तिलक लगाएँ या उपभोग करें | अपने कानो में सोना धारण करें, नियम संस्कारों का पूर्ण रूप से पालन करें | अपने विचारों को शुद्ध रखें, पूजा स्थल पर शुद्ध आसन का प्रयोग करें, अपनी नाक साफ रखें | लाभ न बचने अथवा धन का दुरूपयोग होने की स्थिति में, 8 साबुत हल्दी की गांठ 43 दिन लगातार मंदिर में दें | संतान को कष्ट अथवा संतान द्वारा कष्ट मिलने की स्थिति में 48 दिन लगातार 3 केले मंदिर में दान करें | शिक्षा रुकने की स्थिति में 1 काला सफेद अथवा दो रंगा कम्बल, अपने व परिवार के माथे से लगाकर मंदिर में चढ़ाएं, ब्राह्मण को न दें | नित्य नहाने के पानी में 3 चम्मच हल्दी डालकर स्नान करें और ओम् गुरूवे नमः मंत्र का जप करें | श्वाश ( सांस ) सम्बंधित रोग अथवा हृदय विकार की स्थिति में 400 ग्राम जौ कच्चे दूध का छींटा मारकर  जल प्रवाह करें | ईश्वर में आस्था रखे | ऎसा करने से गुरु का शुभ फल प्राप्त होगा, एवं पाप प्रभाव से मुक्ति मिलेगी |
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शनि ग्रह

                

यह सौर मंडल के वह अध्यापक हैं जो जातक को उसके जीवन में संघर्ष, ईमानदारी, मेहनत, ज्ञान आदि का पाठ अपनी दशा में कराते हैं | जीवन को सुधारना व उसे सोने की तरह कुंदन बनाना, इन्ही की देन है |
आज हम कर्म देव शनि ग्रह के बारे में जानेंगे, इसका क्या प्रभाव रहता है जातक के जीवन और भाग्य में | 

कुण्डली में शुभ अवस्था में हों तो  :-   ऎसा जातक कभी भी किराए के मकान में पैदा नहीं होता या संयुक्त परिवार में ही जन्म लेता है, जातक का स्वरूप काला अथवा सांवला होता है या शरीर में अधिक रोम ( बाल ) अथवा रोमरहित वाले होते हैं | बाल्यकाल में जातक का स्वास्थ्य उत्तम होता है, 16 वर्ष की आयु से उसे रोग आदि घेर लेते हैं, ऎसे जातक को अपने चाचा अथवा ताऊ का पूर्ण रूप से सुख प्राप्त होगा | मकान, वाहन, नौकर, लोहा, लकड़ी, चमड़ा, शराब (  स्वयं अथवा किराए में लगाकर ) आदि से लाभ कमाता है, जातक की तरक्की शुरुवात में धीमी गति से होती है व 39 वर्ष की आयु के बाद उत्तम गति से लाभ अर्जित करता है, तय समय पर कार्य को पूरा करना इन जताकों की विशेषता को दर्शाता है | शास्त्रों के अनुसार ऎसे जातक कम से कम 3 विषयों का पूर्ण ज्ञान रखते हैं | इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी होती है, लेकिन जीवन में संघर्ष और मेहनत भी शनि ग्रह इनसे खूब करवाते हैं | ऎसे जातक की बाल्यावस्था से कुमारअवस्था मध्यम, कुमारअवस्था से युवावस्था निम्न तथा युवावस्था से वृद्धावस्था उत्तम रहती है | 42 वर्ष से शनि जातक पर अपना पूर्ण प्रभाव डालता है, यह भी कहा जाता है कि इस समय शनि जातक को उसके कर्मों का फल देता है |
मेहमानों का घर में आते रहना , घर पर भैंस या भैंसा को पलाना अथवा सेवा करना भी शनि के शुभ होने का संकेत है | शास्त्रों के अनुसार, संतान पक्ष के मामले में शनि शुभ नहीं कहे जाते, इनकी कृपा से अधिकतर इकलौती संतान ही होती है ( पुत्र या पुत्री ) वह भी देर से |


जब अशुभ अवस्था में हों या साढ़ेसाती का अशुभ प्रभाव हो तो  :-  मेहमानों अथवा सगे रिश्तेदारों का आना- जाना बंद हो जाए, नाखून झड़ना, आवाज का कर्कश होना, जातक की बातें दूसरों को पत्थर की तरह लगना, घर में गंदी महक का आना, आंखों में व्याधि अथवा कमजोर होना, मकान बनाते ही चारों ओर से मुसीबत का पड़ना या एक्सिडेंट होना ,सांपों को मरना , भैंस का खोना, चोरी होना, मरना या मरवाना, मजदूरों को कष्ट देना, उनके घर, जमीन, हथियाना या बर्बाद करना, घुटनों व जोड़ों के रोग अथवा कष्ट होना, घर का गिरना, सीलन व दरारें आना, अंडे - मांस - मदिरा का अत्यधिक सेवन करना, इश्क बाजी करते रहना, सर्पों द्वारा काटना अथवा सर्पदंश से मृत्यु होना ,कान में व्याधि होना, काले जूते खोते रहना या चोरी होते जाना, घर पर अथवा छत पर भीगता हुआ लोहा और बांस का होना, अधिकतम नलों का खराब होना अथवा टपकना, आवश्यक कार्य को टालते रहना ,शनि से संबंधित कार्यों में अधिक हानि का होना, घर पर क्लेश की स्तिथि रहना, मकान बिक जाए या तंगहाली आ जाए, नाते रिश्तेदारों से नाता टूट जाए | तो समझ जाना चाहिए कि कुण्डली में शनि अशुभ अथवा नीच अवस्था में हैं |

उपाय  :- मजदूरों की सेवा करें, उन्हें बादाम आदि कुछ न कुछ खाने को दें, शनिवार के दिन तैल, तिल और उड़त के लड्डू बनाकर उस जमीन में दबाएं जहां हल न चला हो, बबूल की दातुन करें, तिल के तेल का छाया पात्र दान करें, कुत्ते - कौवे - भैंस - मछलियों को कुछ न कुछ खाने को देते रहें, मीट अंडा मदिरा आदि का सेवन न करें, मंदिर में दर्शन हेतु जाया करें, हनुमान जी के सम्मुख धूप जलाये,घर में साफ सफाई रखें व छत को भी साफ रखें, शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और शिव गायत्री का जाप करें |  रिश्तेदारों से कष्ट मिल रहे हो या उनसे नाता टूट जाने की स्थिति में 43 दिन लगातार 60 ग्राम सूरमा घर से दूर घास वाली जमीन पर दबाएं, अपने परिवार के साथ रहें |
मकान बिकने व तंगहाली की स्थिति में तथा शरीर भी व्याधियों से घिर जाए तो, 43 दिन लगातार शनि की पोटली सिर से 7 बार वार कर जल प्रवाह करें | शनि की पोटली :- 1×1 मीटर का काला कपड़ा, 7 दाने साबुत उड़त के, 7 दाने साबुत काले चने के, 7 कोयले पत्थर वाले और थोड़े से काले तिल |
ऎसा करने से शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलेगी, और शुभ फल प्राप्त होगा |
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Monday 14 May 2018

केतु ग्रह

                      

आज का विषय छाया ग्रह 'केतु' पर अधारित है | इस संसार में सभी जीवों की संतान ( बच्चे ), जो इस धरती पर सबसे खूबसूरत हैं, केतु ग्रह को इंगित करते हैं | गुरु की शुभ अशुभता के अनुसार ही केतु की शुभ अशुभता निर्भर करती है | क्या प्रभाव रहता है जातक के जीवन पर इस छाया ग्रह का, आइए जानते हैं | 

जब शुभ अवस्था में हो तो  :-   ऎसा जातक बाल्यकाल से ही स्फूर्तिमान होता है, हर कार्य को पहले ख़त्म करने की कोशिश करता है, छोटी उम्र से ही पिता की सहायता  करना व घर की जिम्मेदारी उठाना इनको प्रिय होता है, स्वयं धनोपार्जन करना, किसी से आर्थिक सहायता न लेना, मित्रों की संगत व उनके साथ भ्रमण, एय्याश, खुले विचारों वाला, जल्दी तरक्की करने वाला, अधिक भ्रमण का शौकीन, संतान से उत्तम सुख प्राप्त करने वाला, पोता दोहता-पुत्र - भांजा देख कर जाने वाला, मामा परिवार की स्थिति, रोग - ऋण - रिपू ( शत्रुओं ) से बचाव, सभी प्रकार के द्रव्यों का उपभोग करने वाला, सभी तरह की सवारी करने वाला, बड़ी भोये और कान, बलिष्ठ शरीर, मजबूत जोड़, पुजारी, खोजी प्रवर्ती ( विशेषकर भूमि के नीचे अथवा दबी हुई वस्तुओं की खोजबीन ), हरफ़नमौला, घर पर ध्वजा फहराना, गूढ़ रहस्य व ज्ञान की प्राप्ति, अंतिम समय तक साथ देने वाला, सलाहकार व परामर्शदाता, 18-36-48-56 वर्ष जीवन के भाग्योदय सूचक, संस्कारी, ग्रंथों को पढ़ने व अध्ययन करने वाला, पदोन्नति करने वाला, अशुभ घटनाओं को पहले ही भांप लेने वाला अथवा महसूस कर लेने वाला, अपनी मृत्यु को पहले ही ज्ञात कर लेने वाला, कफन दान करने वाला, यह सभी शुभ केतु के गुण दर्शाते हैं | 


अशुभ होने की स्थिति में :-  जातक  को  बाल्यकाल से ही सूखा रोग लग जाता है, शरीर के साथ साथ चेहरा व नेत्र भी पीले प्रतीत होते हैं, जातक कमजोर, सन्‌की प्रवर्ती का होता है, उसे कई बार भूत प्रेत बाधा का भी सामना करना पड़ता है, पेट के रोग, मूत्र रोग, कमर टाँग के रोग, गठिया रोग, पित्त रोग, पत्थरी के रोग, संतान का नष्ट होना या ऑपरेशन द्वारा होना, अवन्नति को प्राप्त होने वाला, संतान द्वारा कष्ट, मामा परिवार में अशुभ घटनाओं का घटना, वफादार जानवरों को कष्ट देना, उन्हे मारना अथवा मरवाना, ग्रंथों का अपमान करना, हाथ पेरों में कंपन्न होना, जोड़ों व रीढ़ की हड्डी का कमजोर होना अथवा टूटना,फलरहित यात्रा व यात्रा द्वारा कष्ट मिलना, दुर्घटना घटित होना, घर पर स्त्रियों द्वारा क्लेश होना, पाप कर्म करना, तंत्र मंत्र मे रूचि लेने वाला व उससे किसी का अहित करना, स्वप्नों मे सूखा, खण्डहर, श्मशान, कब्रिस्तान, मुर्दे से बात करते देखना | शास्त्र के अनुसार, यदि किसी जातक को अपने जीवन काल में, श्वान (  कुत्तों ) द्वारा 3 या उससे अधिक बार काटा हो तो कुण्डली में केतु की स्थिति को अशुभ जानना चाहिए |

उपाय  :-  जातक को पैर, कमर व मूत्र रोग होने की स्थिति में, अपने दोनों पैरों के अंगूठों पर चांदी का छल्ला अथवा तार डाले | कुत्ते की सेवा करें उसे कुछ न कुछ खाने को दें, घर पर गोटा किनारे वाला ध्वज लगाए, गुरु की सेवा करें उनसे अशीर्वाद प्राप्त करें, भगवान श्री गणेश जी की आराधना करें, नियम धर्म का पालन करें, ग्रन्थों का अध्ययन करें | किसी भी यात्रा पर जाने से पहले गुरु अथवा किसी बुजुर्ग से आशीर्वाद लें |
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Sunday 13 May 2018

राहु ग्रह

                       

आज का विषय छाया ग्रह 'राहु' पर अधारित है, इस ग्रह से संबंधित जितना भी लिखा जाए वह कम ही होगा | सम्पूर्ण ब्रह्मांड, जिसका कोई अंत नहीं, सम्पूर्ण पराशक्तियाँ जिसका पूर्ण ज्ञान अभी तक हुआ नहीं, ऎसी बीमारियां जिसका इलाज अभी तक मिला नहीं ( जैसे सर्दी, जुकाम, बुखार, विषाणुओं से फैलने वाली सभी बीमारियाँ  ), इनसे सिर्फ राहत प्राप्त करने के लिए औषधि का प्रयोग किया जाता है, किन्तु यह अपनी अवधि में ही ठीक होती है, अन्यथा हमेशा लगी रहती है | दोनों ही छाया ग्रहों ( राहु, केतु ) की अपनी कोई राशि व भाव नहीं है, इसलिए कुण्डली देखकर इसकी शुभता अशुभता आसानी से ज्ञात कर पाना असंभव है | यह कब क्या करदे या करवादे, कुछ नहीं कहा जा सकता, सुबह कुछ होता है और शाम कुछ, जितनी शक्ति से ऊँचा पद दिलवाता है उतनी ही शक्ति से छीन भी लेता है | इसका बस चले तो चीटी बनकर हाथी को मार दे, तिनका बनकर नदी पार करवा दे,  संभव को भी असंभव कर दे व असंभव को संभव | आइए जानते हैं कि क्या प्रभाव रहता है इसका जातक के जीवनकाल में |

जब शुभ हो तो  :-  ऎसा जातक जन्म लेने से पहले ही अपना प्रभाव व शक्तियां दिखला देता है, ऎसे जातक का जन्म असामान्य होता है, बाल्यकाल से ही वह विलक्षण प्रतीत होता है, ऎसे जातक के साथ घटनाए भी विचित्र घटित होती है ( पराशक्तियों से संबंधित अथवा बल, बुद्धि, धन से संबंधित या कुछ ऎसा जिसे बयान करना कठिन हो ), किसी भी अदृश्य जीव अथवा भविष्य को देख लेना, फूंक मार कर हर बीमारी को उड़ा देने वाला, मर कर भी जिंदा हो जाने वाला, अनपढ़ होते हुए भी पढे लिखे का गुरु, ऊँचे सिंहासन पर विराजित करने वाला, छोटी उम्र में अपने से बड़ों को सलाह देने वाला, एक शब्द में ही लोगों का भाग्य बदल देने वाला, टेलीविजन व मीडिया से संबंधित कार्य, धार्मिक यात्रा करने वाला, शुद्ध कपूर - औषधि - धूप - हवन का धुआं, धर्म गुरु, विख्यात कर देने वाला, मोटापा किन्तु स्वस्थ और लचीला, पहलवानी,शौर्य, साहस, योग गुरु, मोक्ष की प्राप्ति , बिजली से संबंधित कार्य, नयी खोज या अविष्कार, हाथी को पालना उसकी सेवा, महावत, रंक को राजा बनाने वाला, अपनी किसी प्रिय वस्तु या भोजन का जीवनकाल तक त्याग करने वाला ,ससुराल एवं दूर के रिश्तेदारों से उत्तम सुख व लाभ प्राप्त करने वाला, पूरी दुनिया को झुका देने वाला, कार्य पूरा होने तक ना सोने वाला ( सन्‌की ), आकाश का ज्ञान, किसी विचित्र प्रकार की बीमारी अथवा व्याधि जो कभी पकड़ में न आए (  जातक के लिए हानिकारक नहीं ), देवताओं से संपर्क या उनकी शक्ति को महसूस करना, स्वप्न में या खुली आँखो से प्रभु के दर्शन, नियम संस्कारों का पालन करने वाला, प्रकृति की शक्ति, सर्प मणि, मिट्टी को भी सोना बना देने वाला, गरीब कोड़ी लाचार की सेवा व सहायता करने वाला, 42 वर्ष के बाद भाग्योदय व राजयोग कारक, निरोगी जीवन व पूर्ण आयु | इस प्रकार के कर्म, लक्षण व प्रभाव शुभ राहु की ओर इंगित करते हैं |

अशुभ अवस्था में हों तो :-  प्रकृति जनित बीमारियों का लगा रहना, मानसिक विकार ( जैसे पागलपन, खुद से बड़बड़ाना अथवा विकृति ), नशे की ओर आकर्षित होना या नशे द्वारा अपनी व्याधि को दूर करने का प्रयास करना, अल्पायु या बाल्यकाल में ही मृत्यु को प्राप्त होने वाला, भूत प्रेत बाधा से पीड़ित, ससुराल व दूर के रिश्तेदारों से क्लेश व हानि, असाध्य रोगों से पीड़ित, घर पर गन्दगी का होना, घर की चौखट से गंदी नाली का निकास होना या बहना, युवावस्था में ही शरीर की ऊर्जा का खत्म होना, कोड़ी अथवा विक्षिप्त को कष्ट देना, भूत प्रेतों से किसी लालच के लिए संपर्क करना अथवा पूजना, करंट लगने से मृत्यु को प्राप्त होना, मृत्यु के पश्चात मृत्यु के कारणों या शरीर (  लाश ) का पता न चल पाना, धर्म की आड़ में पाप कर्म करना, 42 साल की उम्र में किसी असाध्य रोग का लगना ( केंसर, मधुमेह, आदि ),मोटापा ( रोगी व आलसी ), जिद अथवा जोश में आकर योग या अन्य गतिविधि करके अपना अंग भंग कर लेना, दुखी रहना, घर पर बीमारियों का घूमते रहना, शरीर का गुरुत्वाकर्षण का बिगड़ जाना, औषधि अथवा दवाई का शरीर पर कोई असर न पड़ना, बिजली के खराब उपकरण इकठ्ठा कर रखने वाला, नशा बांटना, पवित्र स्थान, जल व नदियों का अपमान करना उसमे मल मूत्र का त्याग करना, नशे कोयले व कचरे का धुंआ, अधिक मात्रा में एसिड का प्रयोग, शक करने का आदी या शक्की प्रवृत्ति, गन्दगी में रहना, लंबे समय तक स्नान न करना, घर पर पूर्णतया अंधकार रखना, आसमानी बिजली के गिरने से हानि होना, सोने को भी नशे के लिए बेचने वाला, हाथी के अंगों की तस्करी के लिए उसे मारना, बिल्लियों का रोना, मकान की छत का अकारण ही अवाज करना या कंपन्न करना | यह सभी अशुभ राहु के लक्षण हैं |

उपाय  :-   चांदी का कड़ा धारण करें, रसोई घर में बैठकर ही भोजन करें, किसी के खिलाफ झूठी गवाही न दें, कोड़िओं की सेवा करें | बीमारी के समय, 2 दिन लगातार दली हुई मसूर की दाल व रुपया पैसा ( 11,21,51 या 101 ) मरीज के सिर से पैर तक 7 बार वारकर कोड़ी या सफाई कर्मचारी को दें, 43 दिन लगातार जौ रात को भिगोकर प्रातः जानवर या पक्षियों को डालें | जब दवाई असर न कर रही हो, तो अपने वजन के बराबर जौ, गौ मूत्र से धोकर जल प्रवाह करें | शिव की अराधना करें, माँ सरस्वती के मन्त्रओं का जाप करें, शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाएं | सरकारी झगड़े उत्पन्न हो गये हो तो, अपने वजन के बराबर कच्चे कोयले जल प्रवाह करें | अपने घर से सभी प्रकार के खराब विद्युत उपकरण हटा दे | अपना चरित्र उत्तम बनाए रखें |

दो पंक्तियों में राहु के प्रभाव का वर्णन !
शुभ :-  जिसे राहु तारे, उसे दुनिया में कौन मारे  |
अशुभ :-  जिसे राहु मारे, उसे दुनिया में कौन तारे  |
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विवाह संबंधी

                     
 
आज का विषय उन जताकों से सम्बंधित है, जिनका किसी न किसी कारण से विवाह नहीं हो पा रहा अथवा विवाह में विलंब अथवा बाधाएं उत्पन्न हो रही हों | ऎसे जातक ( स्त्री व पुरुष ) का जीवन दुखमय व निराशा से भर जाता है, ऎसे जताकों को अपनी मनोकामना के लिए उपाय अवश्य ही करने चाहिए | वैसे विवाह संबंधी उपाय तो बहुत हैं, किंतु इनमे से 3 प्रभावशाली उपाय मै आपको यहां बतलाने जा रहा हूँ यह उपाय दोनों ( जिन स्त्री, पुरुषों का विवाह नहीं हो पा रहा है ) ही कर सकते हैं | उम्मीद है आपको भी इनसे लाभ मिले....

1  :-  किसी भी शुक्ल पक्ष के दूसरे गुरुवार के दिन से माँ पार्वती के मंदिर जाएं ( यदि घर के मंदिर में, माँ पार्वती का चित्र है तो उत्तम ),उनके समक्ष 7 सुपारी, 7 जनेऊ, 7 साबुत हल्दी, 7 गुड़ की डली, 7 पीले फूल, 70 ग्राम चने की दाल, 70 × 70 cm का पीला कपड़ा, 7 पीले सिक्के या पीतल के टुकड़े और एक पंद्रह यंत्र अर्पित करें , तथा उनका ध्यान करें व अपने लिए सुयोग्य जीवनसाथी के प्राप्ति की मनोकामना करें  और इन सब सामग्री को पीले कपड़े में बांधकर अपने घर में रख लें | अतः 45 दिन तक माँ पार्वती से अपने विवाह व सुयोग्य जीवन साथी की प्राप्ति के लिए आराधना करें ( घर पर भी कर सकते हैं ) | ऎसा करने से शीघ्र ही घर पर रिश्ता अयेगा व सुयोग्य जीवन साथी प्राप्त होगा |

2  :-  किसी शुक्ल पक्ष के दूसरे सोमवार के दिन से शिव पार्वती के मंदिर जाएं, वहां शिव लिंग पर ( शक्ति अथवा योनि धारा पर ) लाल चंदन का तिलक लगाएं व अपनी मनोकामना बोलते हुए शिवलिंग पर धीरे धीरे जल चढ़ाएं और उस पानी को प्रसाद स्वरूप अपने घर पर लाएं | यह क्रिया 48 दिन लगातार करें, आपको लाभ प्राप्त होगा व शीघ्र ही शुभ समाचार प्राप्त होगा |

3  :-  पूरे श्रवण मास ( सावन के महीने ) मे कहीं से बेल पत्र लाएं, उसके हर पत्ते पर लाल तिलक लगाएं और शिव मंदिर जाकर , वहां शिवलिंग पर अपनी मनोकामना बोलते हुए बेल पत्र चढ़ाएं, ऎसा नित्य ( पूरे श्रावण मास ) करने से शीघ्र ही मनोकामना फलित होगी |

यदि यह उपाय जातक स्वयं करे तो शीघ्र ही उत्तम फल प्राप्ति होगी, इस उपाय को करने के लिए स्वछता व शुद्धि का ध्यान रखें | यदि किसी कारणवश उपाय छूट जाए, करना भूल जाएं या ना कर पाएं तो, जितने दिन के उपाय छूट गए हैं वह बचे हुए दिनो को अगले शुक्ल पक्ष मे पूरा कर सकते हैं |
इन उपायों को करते हुए किसी अन्य उपाय अथवा मंत्र को न करें ऎसा करने से दोनों में से किसी का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता | इसलिए इन उपायों का पूर्ण होने तक अन्य उपाय से परहेज अवश्य करें |
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Tuesday 1 May 2018

नीच भंग राज योग

             
ग्रह अगर नीच राशि में बैठा हो या शत्रु भाव में तो आम धारणा यह होती है कि जब उस ग्रह की दशा आएगी तब वह जिस घर में बैठा है उस घर से सम्बन्धित विषयों में नीच का फल देगा. लेकिन इस धारणा से अगल एक मान्यता यह है कि नीच में बैठा ग्रह भी कुछ स्थितियों में राजगयोग के समान फल देता है. इस प्रकार के योग को नीच भंग राजयोग के नाम से जाना जाता है.
नीच भंग राजयोग के लिए आवश्यक स्थितियां :
ज्योतिषशास्त्र के नियमों में बताया गया है कि नवमांश कुण्डली में अगर ग्रह उच्च राशि में बैठा हो तो जन्म कुण्डली में नीच राशि में होते हुए भी वह नीच का फल नहीं देता है. इसका कारण यह है कि इस स्थिति में उनका नीच भंग हो जाता है.

जिस राशि में नीच ग्रह बैठा हो उस राशि का स्वामी ग्रह उसे देख रहा हो अथवा जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी स्वगृही होकर साथ में बैठा हो तो स्वत: ही ग्रह का नीच भंग हो जाता है. नीच भंग के संदर्भ में एक नियम यह भी है कि नीच राशि में बैठा ग्रह अगर अपने सामने वाले घर यानी अपने से सातवें भाव में बैठे नीच ग्रह को देख रहा है तो दोनों नीच ग्रहों का नीच भंग हो जाता है.
अगर आपकी कुण्डली में ये स्थितियां नहीं बनती हों तो इन नियमों से भी नीच भंग का आंकलन कर सकते हैं जैसे जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठे हों उस राशि के स्वामी अपनी उच्च राशि में विराजमान हों तो नीच ग्रह का दोष नहीं लगता है. एक नियम यह भी है कि जिस राशि में ग्रह नीच का होकर बैठा है उस ग्रह का स्वामी जन्म राशि से केन्द्र में विराजमान है साथ ही जिस राशि में नीच ग्रह उच्च का होता है उस राशि का स्वामी भी केन्द्र में बैठा हो तो सर्वथा नीच भंग राज योग बनता है. अगर यह स्थिति नहीं बनती है तो लग्न भी इस का आंकलन किया जा सकता है यानी जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा उस राशि का स्वामी एवं जिस राशि में नीच ग्रह उच्च का होता है उसका स्वामी लग्न से कहीं भी केन्द्र में स्थित हों तो नीच भंग राज योग का शुभ फल देता है.
अगर आपकी कुण्डली में ग्रह नीच राशियों में बैठे हैं तो इन स्थितियों को देखकर आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि आपकी कुण्डली में नीच राशि में बैठा ग्रह नीच का फल देगा अथवा यह नीच भंग राजयोग बनकर आपको अत्यंत शुभ फल प्रदान करेगा.
नीच भंग राजयोग का फल :
नीच भंग राज योग कुण्डली में एक से अधिक होने पर भी उसी प्रकार फल देता है जैसे एक नीच भंग राज योग होने पर .! आधुनिक परिवेश में ज्योतिषशास्त्री मानते है कि ऐसा नहीं है कि इस योग के होने से व्यक्ति जन्म से ही राजा बनकर पैदा लेता है. यह योग जिनकी कुण्डली में बनता है उन्हें प्रारम्भ में कुछ मुश्किल हालातों से गुजरना पड़ता है जिससे उनका ज्ञान व अनुभव बढ़ता है तथा कई ऐसे अवसर मिलते हैं जिनसे उम्र के साथ-साथ कामयाबी की राहें प्रशस्त होती जाती हैं.

यह योग व्यक्ति को आमतौर पर राजनेता, चिकित्सा विज्ञान एवं धार्मिक क्षेत्रों में कामयाबी दिलाता है जिससे व्यक्ति को मान-सम्मान व प्रतिष्ठा मिलती है. वैसे, इस योग के विषय में यह धारणा भी है कि जिस व्यक्ति की कुण्डली में जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा है उस राशि का स्वामी एवं उस ग्रह की उच्च राशि का स्वामी केन्द्र स्थान या त्रिकोण में बैठा हो तो व्यक्ति महान र्धमात्मा एवं राजसी सुखों को भोगने वाला होता है. इसी प्रकार नवमांश में नीच ग्रह उच्च राशि में होने पर भी समान फल मिलता है.

रत्नों से संबंधित गलत धारणाएं

             
दुनिया भर में लोगों के द्वारा रत्न धारण करने का प्रचलन बहुत पुराना है तथा प्राचीन समयों से ही दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोग इनके प्रभाव के बारे में जानने अथवा न जानने के बावज़ूद भी इन्हें धारण करते रहे हैं। आज के युग में भी रत्न धारण करने का प्रचलन बहुत जोरों पर है तथा भारत जैसे देशों में जहां इन्हें ज्योतिष के प्रभावशाली उपायों और यंत्रों की तरह प्रयोग किया जाता है वहीं पर पश्चिमी देशों में रत्नों का प्रयोग अधिकतर आभूषणों की तरह किया जाता है। वहां के लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के रत्नों की सुंदरता से मोहित होकर इनके प्रभाव जाने बिना ही इन्हें धारण कर लेते हैं। किन्तु भारत में रत्नों को अधिकतर ज्योतिष के उपाय के तौर पर तथा ज्योतिषियों के परामर्श के अनुसार ही धारण किया जाता है। किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के अनुसार उसके लिए उपयुक्त रत्न चुनने को लेकर दुनिया भर के ज्योतिषियों में अलग-अलग तरह के मत एवम धारणाएं प्रचलित हैं। तो आइए आज इन धारणाओं के बारे में तथा इनकी सत्यता एवम सार्थकता के बारे में चर्चा करते हैं।
सबसे पहले पश्चिमी देशों में प्रचलित धारणा के बारे में चर्चा करते हैं जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति की सूर्य राशि को देखकर उसके लिए उपयुक्त रत्न निर्धारित किए जाते हैं। इस धारणा के अनुसार एक ही सूर्य राशि वाले लोगों के लिए एक जैसे रत्न ही उपयुक्त होते हैं जो कि व्यवहारिकता की दृष्टि से बिल्कुल भी ठीक नहीं है। सूर्य एक राशि में लगभग एक मास तक स्थित रहते हैं तथा इस धारणा के अनुसार किसी एक मास विशेष में जन्में लोगों के लिए शुभ तथा अशुभ ग्रह समान ही होते हैं। इसका मतलब यह निकलता है कि प्रत्येक वर्ष किसी माह विशेष में जन्में लोगों के लिए शुभ या अशुभ फलदायी ग्रह एक जैसे ही होते हैं जो कि बिल्कुल भी व्यवहारिक नहीं है क्योंकि कुंडलियों में ग्रहों का स्वभाव तो आम तौर पर एक घंटे के लिए भी एक जैसा नहीं रहता फिर एक महीना तो बहुत लंबा समय है। इसलिए मेरे विचार में इस धारणा के अनुसार रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।
इस धारणा से आगे निकली एक संशोधित धारणा के अनुसार किसी भी एक तिथि विशेष को जन्में लोगों को एक जैसे रत्न ही धारण करने चाहिएं। पहली धारणा की तरह इस धारणा के मूल में भी वही त्रुटी है। किसी भी एक दिन विशेष में दुनिया भर में कम से कम हज़ारों अलग-अलग प्रकार की किस्मत और ग्रहों वाले लोग जन्म लेते हैं तथा उन सबकी किस्मत तथा उनके लिए उपयुक्त रत्नों को एक जैसा मानना मेरे विचार से सर्वथा अनुचित है।
पश्चिमी देशों में प्रचलित कुछ धारणाओं पर चर्चा करने के पश्चात आइए अब भारतीय ज्योतिष में किसी व्यक्ति के लिए उपयुक्त रत्न निर्धारित करने को लेकर प्रचलित कुछ धारणाओं पर चर्चा करते हैं। सबसे पहले बात करते हैं ज्योतिषियों के एक बहुत बड़े वर्ग की जिनका यह मत है कि किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में लग्न भाव में जो राशि स्थित है जो उस व्यक्ति का लग्न अथवा लग्न राशि कहलाती है, उस राशि के स्वामी का रत्न कुंडली धारक के लिए सबसे उपयुक्त रहेगा। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में लग्न भाव यानि कि पहले भाव में मेष राशि स्थित है तो ऐसे व्यक्ति को मेष राशि के स्वामी अर्थात मंगल ग्रह का रत्न लाल मूंगा धारण करने से बहुत लाभ होगा। इन ज्योतिषियों की यह धारणा है कि किसी भी व्यक्ति की कुंडली में उसका लग्नेश अर्थात लग्न भाव में स्थित राशि का स्वामी ग्रह उस व्यक्ति के लिए सदा ही शुभ फलदायी होता है। यह धारणा भी तथ्यों तथा व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती तथा मेरे निजी अनुभव के अनुसार लगभग 50 से 60 प्रतिशत लोगों के लिए उनके लग्नेश का रत्न उपयुक्त नहीं होता तथा इसे धारण करने की स्थिति में अधिकतर यह कुंडली धारक का बहुत नुकसान कर देता है। इसलिए केवल इस धारणा के अनुसार उपयुक्त रत्न का निर्धारण उचित नहीं है।
ज्योतिषियों में प्रचलित एक और धारणा के अनुसार कुंडली धारक को उसकी कुंडली के अनुसार उसके वर्तमान समय में चल रही महादशा तथा अंतरदशा के स्वामी ग्रहों के रत्न धारण करने का परामर्श दिया जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के अनुसार उसके वर्तमान समय में शनि ग्रह की महादशा तथा बुध ग्रह की अंतरदशा चल रही है तो ज्योतिषियों का यह वर्ग इस व्यक्ति को शनि तथा बुध ग्रह के रत्न धारण करने का परामर्श देगा जिससे इनकी धारणा के अनुसार उस व्यक्ति को ग्रहों की इन दशाओं से लाभ प्राप्त होंगे। यह मत लाभकारी होने के साथ-साथ अति विनाशकारी भी हो सकता है। किसी भी शुभ या अशुभ फलदायी ग्रह का बल अपनी महादशा तथा अंतरदशा में बढ़ जाता है तथा किसी कुंडली विशेष में उस ग्रह द्वारा बनाए गए अच्छे या बुरे योग इस समय सबसे अधिक लाभ या हानि प्रदान करते हैं। अपनी दशाओं में चल रहे ग्रह अगर कुंडली धारक के लिए सकारात्मक हैं तो इनके रत्न धारण करने से इनके शुभ फलों में और वृद्दि हो जाती है, किन्तु यदि यह ग्रह कुंडली धारक के लिए नकारात्मक हैं तो इनके रत्न धारण करने से इनके अशुभ फलों में कई गुणा तक वृद्धि हो जाती है तथा ऐसी स्थिति में ये ग्रह कुंडली धारक को बहुत भारी तथा भयंकर नुकसान पहुंचा सकते हैं। मेरे पास अपनी कुंडली के विषय में परामर्श प्राप्त करने आए ऐसे ही एक व्यक्ति की उदाहरण मैं यहां पर दे रहा हूं।
यह सज्जन बहुत पीड़ित स्थिति में मेरे पास आए थे। इनकी कुंडली के अनुसार मंगल इनके लग्नेश थे तथा मेरे पास आने के समय इनकी कुंडली के अनुसार मंगल की महादशा चल रही थी। इन सज्जन ने अपने दायें हाथ की कनिष्का उंगली में लाल मूंगा धारण किया हुआ था। इनकी कुंडली का अध्ययन करने पर मैने देखा कि मंगल इनकी कुंडली में लग्नेश होने के बावजूद भी सबसे अधिक अशुभ फलदायी ग्रह थे तथा उपर से मगल की महादशा और इन सज्जन के हाथ में मंगल का रत्न, परिणाम तो भंयकर होने ही थे। इन सज्जन से पूछने पर इन्होने बताया कि जब से मंगल महाराज की महादशा इनकी कुंडली में शुरु हुई थी, इनके व्वयसाय में बहुत हानि हो रही थी तथा और भी कई तरह की परेशानियां आ रहीं थीं। फिर इन सज्जन ने किसी ज्योतिषि के परामर्श पर इन मुसीबतों से राहत पाने के लिए मंगल ग्रह का रत्न लाल मूंगा धारण कर लिया। मैने इन सज्ज्न को यह बताया कि आपकी कुंडली के अनुसार मंगल ग्रह का यह रत्न आपके लिए बिल्कुल भी शुभ नहीं है तथा यह रत्न आपको इस चल रहे समय के अनुसार किसी भारी नुकसान या विपत्ति में डाल सकता है। मेरे यह कहने पर इन सज्जन ने बताया कि यह रत्न इन्होंने लगभग 3 मास पूर्व धारण किया था तथा इसे धारण करने के दो मास पश्चात ही धन प्राप्ति के उद्देश्य से किसी आपराधिक संस्था ने इनका अपहरण कर लिया था तथा कितने ही दिन उनकी प्रताड़ना सहन करने के बाद इनके परिवार वालों ने किसी सम्पत्ति को गिरवी रखकर उस संस्था द्वारा मांगी गई धन राशि चुका कर इन्हें रिहा करवाया था। अब यह सज्जन भारी कर्जे के नीचे दबे थे तथा कैद के दौरान मिली प्रताड़ना के कारण इनका मानसिक संतुलन भी कुछ हद तक बिगड़ गया था।
मुख्य विषय पर वापिस आते हुए, ज्योतिषियों का एक और वर्ग किसी व्यक्ति के लिए उपयुक्त रत्न निर्धारित करने के लिए उपर बताई गई सभी धारणाओं से कहीं अधिक विनाशकारी धारणा में विश्वास रखता है। ज्योतिषियों का यह वर्ग मानता है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कुंडली के अनुसार केवल अशुभ फल प्रदान करने वाले ग्रहों के रत्न ही धारण करने चाहिएं। ज्योतिषियों के इस वर्ग का मानना है कि नकारात्मक ग्रहों के रत्न धारण करने से ये ग्रह सकारात्मक हो जाते हैं तथा कुंडली धारक को शुभ फल प्रदान करना शुरू कर देते हैं। क्योंकि मैं रत्नों की कार्यप्रणाली से संबंधित तथ्यों पर अपने पिछ्ले लेखों में विस्तारपूर्वक प्रकाश डाल चुका हूं, इसलिए यहां पर मैं अपने पाठकों को यही परामर्श दूंगा कि यदि आप में से किसी भी पाठक का संयोग ऐसे किसी ज्योतिषि से हो जाए जो आपको यह परामर्श दे कि आप अपनी कुंडली में अशुभ फल प्रदान करने वाले ग्रहों के रत्न धारण करें तो शीघ्र से शीघ्र ऐसे ज्योतिषि महाराज के स्थान से चले जाएं तथा भविष्य में फिर कभी इनके पास रत्न धारण करने संबंधी परामर्श प्राप्त करने न जाएं।
चलिए अब अंत में इन सारी धारणाओं की चर्चा से निकलते सार को देखते हैं। रत्न केवल और केवल उसी ग्रह के लिए धारण करना चाहिए जो आपकी जन्म कुंडली में सकारात्मक अर्थात शुभ फलदायी हो जबकि उपर बताई गई कोई भी धारणा रत्न धारण करने के इस मूल सिद्धांत को ध्यान में नहीं रखती। इसलिए केवल उपर बताई गईं धारणाओं के अनुसार रत्न धारण नहीं करने चाहिएं तथा रत्न केवल ऐसे ज्योतिषि के परामर्श पर ही धारण करने चाहिएं जो आपकी कुंडली का सही अध्ययन करने के बाद यह निर्णय लेने में सक्षम हो कि आपकी कुंडली के अनुसार आपके लिए शुभ फल प्रदान करने वाले ग्रह कौन से हैं तथा उनमें से किस ग्रह का रत्न आपको धारण करना चाहिए।

नवग्रहों के रत्न

                               ग्रहों के त्न   

भारतीय ज्योतिष में मान्यता प्राप्त नवग्रहों के रत्न निम्नलिखित हैं : https://amzn.to/2Z0TmQp
माणिक्य : यह रत्न ग्रहों के राजा माने जाने वाले सूर्य महाराज को बलवान बनाने के लिए पहना जाता है। इसका रंग हल्के गुलाबी से लेकर गहरे लाल रंग तक होता है। धारक के लिए शुभ होने की स्थिति में यह रत्न उसे व्यवसाय में लाभ, प्रसिद्धि, रोगों से लड़ने की शारीरिक क्षमता, मानसिक स्थिरता, राज-दरबार से लाभ तथा अन्य प्रकार के लाभ प्रदान कर सकता है। किन्तु धारक के लिए अशुभ होने की स्थिति में यह उसे अनेक प्रकार के नुकसान भी पहुंचा सकता है। माणिक्य को आम तौर पर दायें हाथ की कनिष्का उंगली में धारण किया जाता है। इसे रविवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण करना चाहिए। { https://amzn.to/2WpWaEP }

मोती : यह रत्न सब ग्रहों की माता माने जाने वाले ग्रह चन्द्रमा को बलवान बनाने के लिए पहना जाता है। मोती सीप के मुंह से प्राप्त होता है। इसका रंग सफेद से लेकर हल्का पीला, हलका नीला, हल्का गुलाबी अथवा हल्का काला भी हो सकता है। ज्योतिष लाभ की दृष्टि से इनमें से सफेद रंग उत्तम होता है तथा उसके पश्चात हल्का नीला तथा हल्का पीला रंग भी माननीय है। धारक के लिए शुभ होने की स्थिति में यह उसे मानसिक शांति प्रदान करता है तथा विभिन्न प्रकार की सुख सुविधाएं भी प्रदान कर सकता है। मोती को आम तौर पर दायें हाथ की अनामिका या कनिष्का उंगली में धारण किया जाता है। इसे सोमवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण करना चाहिए।  { https://amzn.to/2YXVB70 }

पीला पुखराज : यह रत्न समस्त ग्रहों के गुरु माने जाने वाले बृहस्पति को बल प्रदान करने के लिए पहना जाता है। इसका रंग हल्के पीले से लेकर गहरे पीले रंग तक होता है। धारक के लिए शुभ होने की स्थिति में यह उसे धन, विद्या, समृद्धि, अच्छा स्वास्थय तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की तर्जनी उंगली में गुरुवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है। { https://amzn.to/3dEXutf }

हीरा ( सफेद पुखराज ) : यह रत्न शुक्र को बलवान बनाने के लिए धारण किया जाता है तथा धारक के लिए शुभ होने पर यह उसे सांसरिक सुख-सुविधा, ऐशवर्य, मानसिक प्रसन्नता तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है। हीरे के अतिरिक्त शुक्र को बल प्रदान करने के लिए सफेद पुखराज भी पहना जाता है। शुक्र के यह रत्न रंगहीन तथा साफ़ पानी या साफ़ कांच की तरह दिखते हैं। इन रत्नों को आम तौर पर दायें हाथ की मध्यामा उंगली में शुक्रवार की सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है। { https://amzn.to/3crijrZ }

लाल मूंगा : यह रत्न मंगल को बल प्रदान करने के लिए पहना जाता है तथा धारक के लिए शुभ होने पर यह उसे शारीरिक तथा मानसिक बल, अच्छे दोस्त, धन तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है। मूंगा गहरे लाल से लेकर हल्के लाल तथा सफेद रंग तक कई रगों में पाया जाता है, किन्तु मंगल ग्रह को बल प्रदान करने के लिए गहरा लाल अथवा हल्का लाल मूंगा ही पहनना चाहिए। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की कनिष्का अथवा तर्जनी उंगली में मगलवार को सुबह स्नान करने के बाद पहना जाता है। { https://amzn.to/3cDmeSN }

पन्ना : यह रत्न बुध ग्रह को बल प्रदान करने के लिए पहना जाता है तथा धारक के लिए शुभ होने पर यह उसे अच्छी वाणी, व्यापार, अच्छी सेहत, धन-धान्य तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है। पन्ना हल्के हरे रंग से लेकर गहरे हरे रंग तक में पाया जाता है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की अनामिका उंगली में बुधवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है। { https://amzn.to/2WP0bSf }

नीलम : शनि महाराज का यह रत्न नवग्रहों के समस्त रत्नों में सबसे अनोखा है तथा धारक के लिए शुभ होने की स्थिती में यह उसे धन, सुख, समृद्धि, नौकर-चाकर, व्यापरिक सफलता तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है किन्तु धारक के लिए शुभ न होने की स्थिती में यह धारक का बहुत नुकसान भी कर सकता है। इसलिए इस रत्न को किसी अच्छे ज्योतिषि के परामर्श के बिना बिल्कुल भी धारण नहीं करना चाहिए। इस रत्न का रंग हल्के नीले से लेकर गहरे नीले रंग तक होता है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाध की मध्यमा उंगली में शनिवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है। { https://amzn.to/2WnZyjE }

गोमेद : यह रत्न राहु महाराज को बल प्रदान करने के लिए पहना जाता है तथा धारक के लिए शुभ होने की स्थिति में यह उसे अक्समात ही कही से धन अथवा अन्य लाभ प्रदान कर सकता है। किन्तु धारक के लिए अशुभ होने की स्थिति में यह रत्न उसका बहुत अधिक नुकसान कर सकता है और धारक को अल्सर, कैंसर तथा अन्य कई प्रकार की बिमारियां भी प्रदान कर सकता है। इसलिए इस रत्न को किसी अच्छे ज्योतिषि के परामर्श के बिना बिल्कुल भी धारण नहीं करना चाहिए। इसका रंग हल्के शहद रंग से लेकर गहरे शहद रंग तक होता है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की मध्यमा अथवा अनामिका उंगली में शनिवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है। https://amzn.to/35UtNBQ

लहसुनिया : यह रत्न केतु महाराज को बल प्रदान करने के लिए पहना जाता है तथा धारक के लिए शुभ होने पर यह उसे व्यसायिक सफलता, आध्यात्मिक प्रगति तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है किन्तु धारक के लिए अशुभ होने की स्थिति में यह उसे घोर विपत्तियों में डाल सकता है तथा उसे कई प्रकार के मानसिक रोगों से पीड़ित भी कर सकता है। इसलिए इस रत्न को किसी अच्छे ज्योतिषि के परामर्श के बिना बिल्कुल भी धारण नहीं करना चाहिए। इसका रंग लहसुन के रंग से लेकर गहरे भूरे रंग तक होता है किन्तु इस रत्न के अंदर दूधिया रंग की एक लकीर दिखाई देती है जो इस रत्न को हाथ में पकड़ कर धीरे-धीरे घुमाने के साथ-साथ ही घूमना शुरू कर देती है। इस रत्न को आम तौर पर दायें हाथ की मध्यमा उंगली में शनिवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है। https://amzn.to/3fHsbzR