Tuesday, 15 May 2018

शनि ग्रह

                

यह सौर मंडल के वह अध्यापक हैं जो जातक को उसके जीवन में संघर्ष, ईमानदारी, मेहनत, ज्ञान आदि का पाठ अपनी दशा में कराते हैं | जीवन को सुधारना व उसे सोने की तरह कुंदन बनाना, इन्ही की देन है |
आज हम कर्म देव शनि ग्रह के बारे में जानेंगे, इसका क्या प्रभाव रहता है जातक के जीवन और भाग्य में | 

कुण्डली में शुभ अवस्था में हों तो  :-   ऎसा जातक कभी भी किराए के मकान में पैदा नहीं होता या संयुक्त परिवार में ही जन्म लेता है, जातक का स्वरूप काला अथवा सांवला होता है या शरीर में अधिक रोम ( बाल ) अथवा रोमरहित वाले होते हैं | बाल्यकाल में जातक का स्वास्थ्य उत्तम होता है, 16 वर्ष की आयु से उसे रोग आदि घेर लेते हैं, ऎसे जातक को अपने चाचा अथवा ताऊ का पूर्ण रूप से सुख प्राप्त होगा | मकान, वाहन, नौकर, लोहा, लकड़ी, चमड़ा, शराब (  स्वयं अथवा किराए में लगाकर ) आदि से लाभ कमाता है, जातक की तरक्की शुरुवात में धीमी गति से होती है व 39 वर्ष की आयु के बाद उत्तम गति से लाभ अर्जित करता है, तय समय पर कार्य को पूरा करना इन जताकों की विशेषता को दर्शाता है | शास्त्रों के अनुसार ऎसे जातक कम से कम 3 विषयों का पूर्ण ज्ञान रखते हैं | इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी होती है, लेकिन जीवन में संघर्ष और मेहनत भी शनि ग्रह इनसे खूब करवाते हैं | ऎसे जातक की बाल्यावस्था से कुमारअवस्था मध्यम, कुमारअवस्था से युवावस्था निम्न तथा युवावस्था से वृद्धावस्था उत्तम रहती है | 42 वर्ष से शनि जातक पर अपना पूर्ण प्रभाव डालता है, यह भी कहा जाता है कि इस समय शनि जातक को उसके कर्मों का फल देता है |
मेहमानों का घर में आते रहना , घर पर भैंस या भैंसा को पलाना अथवा सेवा करना भी शनि के शुभ होने का संकेत है | शास्त्रों के अनुसार, संतान पक्ष के मामले में शनि शुभ नहीं कहे जाते, इनकी कृपा से अधिकतर इकलौती संतान ही होती है ( पुत्र या पुत्री ) वह भी देर से |


जब अशुभ अवस्था में हों या साढ़ेसाती का अशुभ प्रभाव हो तो  :-  मेहमानों अथवा सगे रिश्तेदारों का आना- जाना बंद हो जाए, नाखून झड़ना, आवाज का कर्कश होना, जातक की बातें दूसरों को पत्थर की तरह लगना, घर में गंदी महक का आना, आंखों में व्याधि अथवा कमजोर होना, मकान बनाते ही चारों ओर से मुसीबत का पड़ना या एक्सिडेंट होना ,सांपों को मरना , भैंस का खोना, चोरी होना, मरना या मरवाना, मजदूरों को कष्ट देना, उनके घर, जमीन, हथियाना या बर्बाद करना, घुटनों व जोड़ों के रोग अथवा कष्ट होना, घर का गिरना, सीलन व दरारें आना, अंडे - मांस - मदिरा का अत्यधिक सेवन करना, इश्क बाजी करते रहना, सर्पों द्वारा काटना अथवा सर्पदंश से मृत्यु होना ,कान में व्याधि होना, काले जूते खोते रहना या चोरी होते जाना, घर पर अथवा छत पर भीगता हुआ लोहा और बांस का होना, अधिकतम नलों का खराब होना अथवा टपकना, आवश्यक कार्य को टालते रहना ,शनि से संबंधित कार्यों में अधिक हानि का होना, घर पर क्लेश की स्तिथि रहना, मकान बिक जाए या तंगहाली आ जाए, नाते रिश्तेदारों से नाता टूट जाए | तो समझ जाना चाहिए कि कुण्डली में शनि अशुभ अथवा नीच अवस्था में हैं |

उपाय  :- मजदूरों की सेवा करें, उन्हें बादाम आदि कुछ न कुछ खाने को दें, शनिवार के दिन तैल, तिल और उड़त के लड्डू बनाकर उस जमीन में दबाएं जहां हल न चला हो, बबूल की दातुन करें, तिल के तेल का छाया पात्र दान करें, कुत्ते - कौवे - भैंस - मछलियों को कुछ न कुछ खाने को देते रहें, मीट अंडा मदिरा आदि का सेवन न करें, मंदिर में दर्शन हेतु जाया करें, हनुमान जी के सम्मुख धूप जलाये,घर में साफ सफाई रखें व छत को भी साफ रखें, शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और शिव गायत्री का जाप करें |  रिश्तेदारों से कष्ट मिल रहे हो या उनसे नाता टूट जाने की स्थिति में 43 दिन लगातार 60 ग्राम सूरमा घर से दूर घास वाली जमीन पर दबाएं, अपने परिवार के साथ रहें |
मकान बिकने व तंगहाली की स्थिति में तथा शरीर भी व्याधियों से घिर जाए तो, 43 दिन लगातार शनि की पोटली सिर से 7 बार वार कर जल प्रवाह करें | शनि की पोटली :- 1×1 मीटर का काला कपड़ा, 7 दाने साबुत उड़त के, 7 दाने साबुत काले चने के, 7 कोयले पत्थर वाले और थोड़े से काले तिल |
ऎसा करने से शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलेगी, और शुभ फल प्राप्त होगा |
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