आज हम ग्रहों के राजा सूर्य देव के बारे में जानेंगे | ग्रहों के राजा सूर्य की एक विशेषता यह है कि ये कभी भी स्वयं अशुभ अथवा नीच प्रभाव नहीं देते अपितु साथ बैठे ग्रह अथवा भाव में अपना नीच प्रभाव डाल देते हैं, जिस कारण यह अधिक दुष्प्रभाव देने वाले व पापी ग्रह की श्रेणी में भी गिने जाते हैं, इसलिए जिस जातक पर इनका दुष्प्रभाव होगा वह अपना जीवन तो खराब करता ही है, साथ ही दूसरे की जिन्दगी भी नष्ट कर देता है | आईये जानते हैं क्या प्रभाव रहता है जातक के जीवन और भाग्य में, ग्रहों के राजा का |
शुभ अवस्था में हों तो :- जन्म से 8 वर्ष की आयु तक जातक को थोड़ी बहुत रोग व व्याधियां सहनी पड़ती है, बाद में जातक निरोगी जीवन ही जीता है | ऎसा जातक सत्यनिष्ठ, अत्मविश्वास से भरा, न किसी के बारे में बुरा कहता है न ही सुनना पसंद करता है, ऎसे जातक शत्रुओं को ठीक से जवाब देना बखूबी जानते हैं | पाचन तंत्र उत्तम होता है, जिस कारण वे शायद ही अपने जीवन में कभी मोटे हो पाएं, इनको यदि घी के बर्तन भी डाल दिया जाए तो भी इनको न इनके शरीर को कोई फर्क पड़े, इसलिए शास्त्रों के अनुसार इनको सूखे बादाम की संज्ञा दी गई है, क्योंकि वह दिखने में रस रहित होता है किन्तु गुणों में उत्तम, ऎसे जातक प्रेम के मामले में जरा रूखे स्वभाव के होते हैं लेकिन हृदय से सबका भला चाहने वाले होते हैं | एक जगह टिककर काम करना, मान सम्मान व अत्मसम्मान, यश, 22-25 व 28-32 वर्ष में ख्याति को प्राप्त करना, अपने पिता से उत्तम सुख प्राप्त करने वाला, आदर्श परिवार, उत्तम स्वास्थ्य, प्रतिष्ठित व्यक्ति, सरकारी नौकरी, प्रतिष्ठित पद, तेजस्वी, नियमानुसार रहने वाला, आलस्य रहित, स्वयं कमा कर धनी बनना, किसी से भी सहायता की आशा न करना, औरों की सहायता को तत्पर रहना, वृद्धावस्था में अचानक मृत्यु होना ( हृदयघात ), संस्कारों को मानने वाला, राजा समान व्यक्तित्व, यह सभी लक्षण शुभ सूर्य के हैं |
अशुभ अवस्था में हों तो :- जातक बाल्यकाल से ही रोगी रहता है, पाचन तंत्र कमजोर, छोटी छोटी बातों पर उत्तेजित होना, 12 महीने में 12 बार वेद्य ( डॉक्टर ) के पास जाने वाला, आँखो की रोशनी में व्याधि होना, दिमाग में गर्मी चढ़े रहना, लिवर का कमजोर होना या रोग होना, पिता से मिलने वाले सुख में कमी, दूसरों का भला करने पर बुरा सुनने को मिले, अत्मविश्वास में कमी, चिड़चिड़ा स्वभाव, 42 वर्ष के बाद बदनामी व अपमान, गृहस्थी जीवन तनावयुक्त, नियम का पालन न करना, आलस्य अर्थात अधिक सोने वाला, दूसरों की बुराई करने में आनंद करना व स्वयं की बुराई में मारपीट करने वाला, शत्रुओं से परास्त या हारा हुआ, एक जगह टिककर काम न करने वाला या अधूरा छोड़कर दूसरा काम पकड़ लेना, पिता से कष्ट और स्वयं पिता को कष्ट देने वाला, अधिक नमक खाने वाला, नशा करने वाला,बोलते समय अथवा सोते समय मूँह से थूक आता हो, शरीर या शरीर का कोई अंग सुन्न या नकारा हो गया हो, पूर्व दिशा में गन्दगी व शौचालय का होना, तामसिक भोजन करना, घर के चूल्हे पर गन्दगी फैलाना, झूठे इल्जाम लगना | यह सभी लक्षण व कर्म सूर्य की अशुभता को दर्शाते हैं |
उपाय :- नित्य गायत्री मंत्र का जाप करें, उगते सूर्य के समक्ष शुद्ध जल से अथवा नदी में स्नान करें और उन्हें प्रणाम करें, गुड़ का दान करें, पिता को कष्ट हो या पिता से न बनती हो, तो तांबे की अंगूठी में सवा पांच रत्ती माणिक जड़वाकर पिता को दें, सरकारी संस्था या विद्यालय में अपने वजन के जितना गेहूँ या 7 प्रकार का अनाज दान करें,अधिक नमक का सेवन न करें, सप्ताह में एक बार नमक का सेवन त्याग दें, अपना चरित्र उत्तम बनाएं, किसी पर झूठा आरोप न लगाएं, घर की पूर्व दिशा को साफ रखें, बेल के पौधे को जल से सीचे | जीवन साथी से मतभेद की स्थिति में, रात को चूल्हे की अग्नि में अपने भोजन का पहला ग्रास डाले अथवा अहुति दें, पति - पत्नी में से कोई एक गुड़ खाना छोड़ दें या गुड़ खाने के तुरंत बाद पानी पीएं | पेट के गंभीर रोग होने अथवा बार बार ऑपरेशन के योग बनने की स्थिति में, कृतिका नक्षत्र में कहीं से बेल की जड़ लाए,उसे गंगाजल व कच्चे दूध से शुध्द करके तांबे या सोने के ताबीज में भरकर लाल डोरे में पिरोकर धारण करें | यदि शरीर पीला पड़ रहा हो अथवा पीलिया रोग हो गया हो या ठीक नहीं हो रहा हो, तो ऎसी स्थिति में उपरोक्त जड़ धारण करें तथा 27 बेल के पके हुए फल खरीदे या लाए, उनपर एक तरफ श्री राम का नाम लिखें और दूसरी तरफ स्वास्तिक का चिह्न बनाए, उन्हें माथे से लगाकर जल प्रवाह करें | सूर्योदय से पहले व सूर्यास्त के बाद दान न करें | अपने पिता के साथ रहें, उनकी सेवा करें | लाभ प्राप्त होगा, और जीवन में सभी अरिष्टओं से मुक्ति मिलेगी |
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