बृहस्पति ग्रह, वह ग्रह है, जिसे शिक्षा व संस्कार का कारक ग्रह माना जाता है, तथा पुत्र संतान के विषय में भी इंगित करता है | धर्म स्थान व शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है |
जब ये व्यक्ति की कुण्डली में शुभ अवस्था में हों :-
ऎसे जातक को बचपन से ही अपने दादा का पूर्ण रूप से सुख प्राप्त होता है ( जन्म से लेकर कम से कम 16 वर्ष की आयु तक ) , व उनके साथ ही रहता है, घर की आर्थिक स्थिति मध्यम होती है, लाभ पूर्ण रूप से बचता है, धन का भी पूर्ण रूप से सही जगह इस्तेमाल होता है, घर पर धार्मिक- स्थल, पुस्तकों व शास्त्रों का अध्ययन, नियम संस्कारों को मानने वाले तथा मंदिरों के दर्शन हेतु जाते रहना इन्हें प्रसन्नता प्रदान करता है | ऎसे जातक प्रायः शास्त्र अथवा श्लोकों की पंक्ति गुनगुनाते हुए देखे जा सकते हैं |
ऎसे जातक को किसी के प्रति विशेष आकर्षण न होगा, और न ही किसी से कोई लाभ मिलता है | जातक को अपने जीवन में कभी भी छाती, फेफड़ों व हृदय से संबंधित विकार न होगा | किसी विषय विशेष का पूर्ण ज्ञान, गुरुओं की सेवा, उनका आदर सत्कार करना, बड़ो के आगे नतमस्तक होना | ये गुण शुभ गुरु को दर्शाते हैं |
ऎसे जातकों में धैर्य व स्टेमिना प्रचुर मात्रा में पाया जाता है | तथा धर्म स्थानों व गुरुओं के द्वारा भाग्योदय होता है | संतान पक्ष मजबूत होता है और संतान ( विशेषकर पुत्र ) से लाभ प्राप्त होता है |
जब ये व्यक्ति की कुण्डली में अशुभ अवस्था में हों :-
जातक को अपने दादा का सुख प्राप्त नहीं होता, उसके जन्म से पहले ही या जन्म लेने के बाद 12 वर्षों के अंदर ही उसके पितामाह ( दादाजी ) की मृत्यु हो जाती है | जातक स्वयं जन्म से ही बीमार रहता है, खासकर छाती, फेफड़ों व हृदय संबंधित रोगों से पीड़ित होता है |
कुमार अवस्था से ही जातक जिद्दी व हठी होता है, उसमें संस्कारों व धैर्य की कमी होती है, गुरुओं, धर्म स्थलों, शास्त्रों, अपने से बड़ों, कुल पुरोहित व ब्राह्मणों का अनादर करना, उनकी निंदा करना ( कुल पुरोहित को बार बार बदलना ), पीपल के वृक्ष को कटवाना, कोई भी धर्मस्थल को तुड़वाना या गिराना, सर में चोटी के स्थान से बाल झड़ जाना, सोना खो जाना, चोरी होना, चोरी करना या करवाना अथवा दान में लेना, झूठी अफवाहों का फेलना, शिक्षा का बंद होना या रुक जाना, सांस की बीमारी, नियम संस्कारों का पालन न करना, अपना धर्म परिवर्तन करना, लाभ का न बचपाना, धन का दुरुपयोग होना, पुत्र संतान को कष्ट होना अथवा पुत्रों द्वारा कष्ट देना | यदि इनमें से अधिकतम लक्षण अपको लगें या घटित हुए हों, तो निश्चित ही कुण्डली में गुरु अशुभ अथवा पीड़ित हैं |
उपाय :- घर पर बड़े - बुज़ुर्गों की सेवा करें, उन्हें सम्मान दें | अपने दादा जी की चारपाई का उपयोग शुभफलकारी होगा | ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें अथवा हर वर्ष 1200 ग्राम चने की दाल व पीला वस्त्र, दक्षिणा सहित दान करें | केसर का तिलक लगाएँ या उपभोग करें | अपने कानो में सोना धारण करें, नियम संस्कारों का पूर्ण रूप से पालन करें | अपने विचारों को शुद्ध रखें, पूजा स्थल पर शुद्ध आसन का प्रयोग करें, अपनी नाक साफ रखें | लाभ न बचने अथवा धन का दुरूपयोग होने की स्थिति में, 8 साबुत हल्दी की गांठ 43 दिन लगातार मंदिर में दें | संतान को कष्ट अथवा संतान द्वारा कष्ट मिलने की स्थिति में 48 दिन लगातार 3 केले मंदिर में दान करें | शिक्षा रुकने की स्थिति में 1 काला सफेद अथवा दो रंगा कम्बल, अपने व परिवार के माथे से लगाकर मंदिर में चढ़ाएं, ब्राह्मण को न दें | नित्य नहाने के पानी में 3 चम्मच हल्दी डालकर स्नान करें और ओम् गुरूवे नमः मंत्र का जप करें | श्वाश ( सांस ) सम्बंधित रोग अथवा हृदय विकार की स्थिति में 400 ग्राम जौ कच्चे दूध का छींटा मारकर जल प्रवाह करें | ईश्वर में आस्था रखे | ऎसा करने से गुरु का शुभ फल प्राप्त होगा, एवं पाप प्रभाव से मुक्ति मिलेगी |
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