Wednesday 25 December 2019

मिथुन लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग

मिथुन भचक्र की तीसरे स्थान पर आने वाली राशि है। भचक्र पर इसका विस्तार 60 अंश से 90 अंश तक होता है । तीन नंबर राशि होने से जातक मेहनती होता है । राशि स्वामी बुद्ध देवता हैं अतः जातक का बुद्धिमान होना स्वाभाविक ही है । वायु तत्व होने से ऐसा जातक बातों का धनि होता है । योजनाओं के क्रियान्वन में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है । ऐसे जातक बड़ी आसानी से झूठ बोल सकते हैं और कुछ तो झूठ बोलने को योग्यता भी मानते हैं। अपना काम निकलते ही किसी को भी टाटा बाई बाई कह सकते हैं । द्विस्वभावी राशि होने से इनके व्यवहार में ये बदलाव आसानी से देखने को मिल जाता है । 
इन जातकों को हंसी मजाक करना अच्छा लगता है । वाद – विवाद व तर्क्-वितर्क में अति कुशल व हाजिरजवाब होते हैं ।यह जातक स्वभाव से विद्याव्यसनी होते हैं। लेखक,वाचक,तीव्रबुद्धि,कई भाषाओं के जानकार, बातचीत में मुहावरे,कहावत आदि का प्रयोग, कविताएं व शायरी करने वाले, बातों के धनी, गम्भीरता पूर्वक विचार करने वाले, तर्क में चतुर, दूसरों पर अपना प्रभाव छोड़ने वाले,परिवर्तन पसंद, संगीत ,नृत्य में आनंद लेने वाले,बिना रुके बिना थके कार्य करने वाले,अच्छे व्यापारी व अच्छे ज्योतिषी होते हैं। लकीर के फ़क़ीर न होकर अपनी राह खुद चुनने वाले होते हैं। मित्र व संबंधियों की सहायता से भाग्योन्नति प्राप्त करते हैं।

मिथुन राशि की कमियाँ :- मिथुन लग्न में जन्मे लोगो में आत्मविश्वाश की कमी के कारण चिंताग्रस्त  रहने वाले, रोगपीडित, धनलोभी, स्वार्थी, निंदनीय, कुमित्र की भांति आचरण करने वाले, लड़ाकू, हिंसक, स्त्री सुख भोगी, प्रसन्नचित्त होते हुए भी चिंताग्रस्त,  अपनी स्त्री के विरोधी, गुरूजनों के आज्ञापालक, ब्राह्मणों के सेवक, विरोधी प्रकृति वाले होते हैं। चुगलखोर, परदेस द्वारा धन अर्जित करने वाले, इनके धन का व्यय ज्ञानी पुरुषों के समागम तथा कुलटा स्त्रियों के संपर्क में अधिक होता है। इनमें सज्जनता और दुर्जनता दोनों का समन्वय मिलता है। इन्हें दांव पेंच भी खूब आते हैं। विरोधियों को षडयंत्रो से शांत करते हैं। खुलकर सामने नही आतें।
विपरीत लिंग के प्रति विशेष आकर्षण ,सौन्दर्य उपासक ,फैशन प्रिय होते हैं। इनका हृदय बुद्धि के  पीछे चलता है।
यहाँ एक स्त्री और एक पुरुष है। जो बहुत प्रसन्न है। सबसे पहली बात इस लग्न के जातक जब भी कोई काम करते हैं तो 2 दिमाग से करते हैं अर्थात् एक स्वयं का और एक अन्य। इनमें विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण रहता है चाहे स्त्री हो या पुरुष । लव बर्ड्स की तरह होते हैं   ।

मिथुन लग्न के नक्षत्र:-
मिथुन राशि मृगशीर्ष – तृतीय एवं चतुर्थ चरण, आद्रा के चार चरण तथा पुनर्वसु – प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय चरण से बनती है । मिथुन राशि का विस्तार राशि चक्र के 60 अंश से 90 अंश के बीच पाया जाता है ।
लग्न स्वामी : बुद्ध
लग्न चिन्ह : स्त्री पुरुष जोड़ा
तत्व: वायु
जाति: शूद्र
स्वभाव : द्विस्वभावी
लिंग : पुरुष संज्ञक
अराध्य/इष्ट : माँ दुर्गा



मिथुन लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह: –
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक ग्रह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक ग्रह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे, आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
बुद्ध ग्रह : लग्न व् चतुर्थ का स्वामी है, शुभ ग्रह है ।

शुक्र ग्रह : पंचमेश व् द्वादशेश होने से कारक / शुभ है ।

शनि ग्रह : अष्टमेश ,नवमेश है । अतः शुभ ग्रह है ।

गुरु ग्रह: सप्तमेश व् दशमेश होने से सम ग्रह है ।



मिथुन लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह: –

मंगल ग्रह: षष्ठेश , एकादशेश है । अतः मारक है ।

सूर्य ग्रह: तृतीयेश होने से मारक है ।

चंद्र ग्रह : दुसरे भाव का स्वामी है, अशुभ ग्रह है ।

Saturday 30 November 2019

वृष लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग

 

किसी भी राशि से जुड़े ,चिन्ह उस राशि विशेष के सम्बन्ध में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी लिए होते हैं । वृष राशि का चिन्ह बैल है । बैल स्वभाव से शांत रहता है, बहुत अधिक पारिश्रमी और वीर्यवान होता है! आमतौर पर वो शांत ही रहता है, किन्तु एक बार यदि उसे क्रोध आ जाये वह उग्र रूप धारण कर लेता है । वृष राशि के जातक में ये सभी गुण सहज ही प्रकट होते हैं! इस राशि के स्वामी शुक्र देवता होते हैं । शुक्र एक सौम्य ग्रह हैं । अतः वृष राशि भी सौम्य राशि की श्रेणी में आती है।पृथ्वी तत्त्व राशि होने व् स्थिर स्वभाव की राशि होने से इस राशि के जातकों में ठहराव देखने को मिलता है । ये लोग जल्दबाजी पसंद नहीं करते हैं । वृष राशि के जातकों को क्रोध अपेक्षाकृत कम ही आता है ,परन्तु एक बार आ जाये तो ये बैल की भांति ही व्यवहार कर सकते हैं और आसानी से शांत नहीं होते । वॄष राशि का विस्तार राशि चक्र के 30 अंश से 60 अंश के बीच पाया जाता है ।


वृष लग्न के जातक का व्यक्तित्व और विशेषताएँ :-
वृष राशि का स्वामी शुक्र होने से ऐसे जातक को विलासी जीवन सहज ही आकर्षित करता है । ऐसे जातक प्रस्सन रहना चाहते हैं व् दूसरों को भी प्रस्सन रखना पसंद करते हैं । भोजन के शौकीन ऐसे जातक आदर सत्कार में किसी प्रकार की कमी नहीं रखना चाहते हैं । बार बार परिवर्तन से इन्हें चिढ होती है ।
वृष राशि कॄत्तिका नक्षत्र के तीन चरण,रोहिणी के चारों चरण, और मॄगसिरा के प्रथम दो चरण से बनती है ।

लग्न स्वामी : शुक्र
तत्व: पृथ्वी
लिंग: स्त्री
शुभ ग्रह : शनि (भाग्येश व राज्येश), सूर्य (चतुर्थेश) बुध (पंचमेश)
अशुभ ग्रह : चंद्रमा (तृतीयेश), बृहस्पति (अष्टमेश व आयेश)
तटस्थ गृह : शुक्र (लग्नेश, षष्ठेश), मंगल (सप्तमेश, व्ययेश)

शुभ रत्न : नीलम, माणिक, पन्ना
(शनि आदि ग्रहों की शुभता हेतु)

शुभ रंग : हरा, नीला, काला
शुभ वार : शनिवार, रविवार
अराध्य/इष्ट : माँ दुर्गा


वृष लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह :–
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक ग्रह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक ग्रह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे , आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
शुक्र वृष लग्न की कुंडली में छठे घर का मालिक भी है , परन्तु लग्नेश होने से कुंडली का शुभ ग्रह बनता है । अतः वृष लग्न की कुंडली में कारक ग्रह माना जाता है ।

बुध दुसरे व् पांचवें घर का स्वामी है, अतः इस लग्न कुंडली में कारक ग्रह है ।

शनि नवें व् दसवें घर के स्वामी होने से इस लग्न कुंडली में अति योग कारक ग्रह होते हैं ।
सूर्य चतुर्थ का स्वामी है व् लग्नेश का अति शत्रु है अतः सम ग्रह है ।

वृष लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह –
चंद्र तीसरे घर का स्वामी है , अतः मारक है ।

सातवें व् बारहवें घर का स्वामी होने से वृष लग्न कुंडली में मारक ग्रह बनता है ।
गुरु आठवें , ग्यारहवें का स्वामी है । अतः मारक है ।

Tuesday 29 October 2019

मेष लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग

वैदिक ज्योतिष का मुख्य आधार जन्म कुंडली और उसमें स्थापित नौ ग्रह, बारह राशियाँ व 27 नक्षत्र हैं. इन्हीं के आपसी संबंध से योग बनते हैं और इन्हीं के आधार पर दशाएँ होती है. ज्योतिष में बारह राशियों का अपना ही स्वतंत्र महत्व होता है. भचक्र में बारह राशियाँ एक कल्पित पट्टी पर आधारित हैं. यह काल्पनिक पट्टी भचक्र के दोनो ओर नौ - नौ अंशों की है. इसमें बारह राशियाँ स्थित होती है. मेष राशि को भचक्र की पहली राशि माना गया है. आज हम मेष लग्न के बारे में बात करेगें. मेष राशि के स्वरुप व उसकी विशेषताओं के बारे में बात करेगें.

मेष राशि की विशेषता :-
 
मेष राशि भचक्र की पहली राशि के रुप में जानी जाती है और भचक्र पर इसका विस्तार 0 से 30 अंश तक माना गया है. यह अग्नितत्व राशि मानी गई है और मंगल ग्रह को इसका स्वामी माना गया है.यह राशि चर राशि के रुप में जानी जाती है इसलिए मेष लग्न के जातक सदा चलायमान रहते हैं. कभी एक स्थान पर टिककर बैठ नहीं सकते हैं. मेष राशि का चिन्ह “मेढ़ा” माना गया है. यह तेज व बहुत ही पैना जानवर होता है जो पहाड़ी इलाको में पाया जाता है. इसलिए इस राशि को भी चरागाहों वाले पहाड़ी स्थान पसंद हो सकते हैं. इस राशि का रंग लाल माना जाता है तभी इनमें अत्यधिक तीव्रता होती है. यह राशि अत्यधिक ऊर्जावान राशि मानी जाती है और सदा जोश व चुस्ती भरी होती है.


मेष लग्न के जातक की विशेषता :-  

आइए अब मेष लग्न होने से आपकी विशेषताओं के बारे में जानने का प्रयास करें. आप साहसी व पराक्रमी होते हैं. आपके भीतर नेतृत्व का गुण होता है और आप अपनी टीम को बहुत अच्छे से चलाने की क्षमता भी रखते हैं. मेष लग्न चर लग्न है और अग्नितत्व भी है इसलिए आप सदा जल्दबाजी में रहते हैं और निर्णय लेने में एक पल नहीं लगाते हैं जबकि आपको एक बार दूरगामी परिणामो पर ही एक नजर डालनी चाहिए. मेष लग्न होने से आप आदेश सुनना कतई पसंद नहीं करते हैं और अपनी मनमानी ही चलाते हैं लेकिन आप बात सभी की सुनेगे लेकिन करेगें वही जो आपके मन में होता है. आपको किसी के दबाव में रहना नही भाता है और स्वतंत्र रुप से रहना पसंद करते हैं. अपनी स्वतंत्रता के साथ किसी तरह का कोई समझौता आप नहीं करते हैं. आपको अति शीघ्र ही क्रोध भी आता है और आप एकदम से आक्रामक हो जाते हैं. यहाँ तक की मरने - मारने तक पर आप उतारू हो जाते हैं लेकिन आपके भीतर दया की भावना भी मौजूद रहती है. आप दृढ़ निश्चयी होते हैं, आप व्यवहार कुशल भी होते हैं. आप जो भी बात कहते हैं उसे बिना किसी लाग लपेट के स्पष्ट शब्दों में कह डालते हैं. चाहे किसी को अच्छा लगे या बुरा लगे. इससे कई बार आपको लोग अव्यवहारिक भी समझते हैं.आप बहुत जिद्दी होते हैं और आवेगी भी होते हैं और आवेश में कई बार मुसीबत भी मोल ले लेते हैं. आपको अपनी इस कमी को नियंत्रित करना चाहिए.
 
मेष लग्न के लिए शुभ ग्रह :-

अब हम मेष लग्न के लिए शुभ ग्रहो की बात करेगें कि कौन से ग्रह इस लग्न के अच्छे फल दे सकते हैं. मेष लग्न के लिए मंगल लग्नेश होने से शुभ ही माना जाएगा. हालांकि मेष लग्न में मंगल की दूसरी राशि वृश्चिक अष्टम भाव में होती है जो कि एक अशुभ भाव है और बाधाओं का भाव माना गया है.

मेष राशि मंगल की मूल त्रिकोण राशि भी है और केन्द्र में है इसलिए बेशक मंगल की दूसरी राशि अष्टम भाव में स्थित हो पर मंगल आपके लिए शुभ ही माना जाएगा. आपका लग्न मेष होने से आपके लिए सूर्य भी शुभ होगा क्योकि सिंह राशि पंचम भाव में स्थित होती है और यह एक शुभ त्रिकोण माना गया है.

आपके लिए बृहस्पति को भी शुभ माना जाएगा क्योकि इसकी मूल त्रिकोण राशि धनु नवम भाव में स्थित होती है और नवम भाव आपका भाग्य भाव होता है और सबसे बली त्रिकोण भी है. चंद्रमा मेष लग्न के लिए सम होगा क्योकि इसकी राशि चतुर्थ भाव, केन्द्र में पड़ती है और केन्द्र तटस्थ माने जाते हैं.
मेष लग्न के लिए अशुभ ग्रह |

मेष लग्न के कौन से ग्रह अशुभ हो सकते हैं आइए उनके बारे में जाने. आपके लिए शुक्र अशुभ माना जाएगा. शुक्र आपकी कुंडली में दूसरे व सप्तम भाव का स्वामी होने से प्रबल मारक हो जाता है. इसलिए इसे अशुभ ही माना जाता है.

आपकी कुंडली में शनि भी दसवें और एकादश का स्वामी होने से अशुभ ही माना जाता है. दसवाँ भाव केन्द्र होने से तटस्थ हो जाता है और एकादश भाव त्रिषडाय भावों में से एक है. आपकी कुंडली में शनि बाधक का काम भी करता है क्योकि यह एकादश भाव का स्वामी है. आपकी कुंडली के लग्न में चर राशि मेष स्थित है और चर लग्न के लिए एकादशेश बाधक होता है. आपकी कुंडली के लिए बुध अति अशुभ है क्योकि यह तीसरे और छठे भाव का स्वामी होता है.

 
मेष लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग :-

१:- मेष लग्न मे जन्मे व्यक्तियो की कुंडली मे यदि चतुर्थ और पंचन भाव के स्वामियो का परस्पर संबन्ध हो तो जातक को निश्चय ह राजयोग की प्राप्ती होती है.

२:- मेष लग्न वालो के लिये शुक्र अपनी दशा भुक्ति मे मृत्यु लाता है.
३:-नवमेश और द्वादशेश होक गुरू यदि दशम मे स्थित हो तो मृत्यु का खंड आने पर मारक सिद्ध होता है.
४:-मेष लग्न वालो क गुरू नवमेश और दशमेश शनि मे यदि पारस्परिक दृष्टि आदि संबन्ध हो तो राजयोग की प्राप्ति नही होती.
५:- उत्तम ज्योतिषियो का कहना है कि मेष लग्न मे उत्पन्न जातको को शस्त्र ,चोट ,फोडे आदि से पीडित होने का भय रहता है.
६:- यदि मंगल षष्टेश से युक्त हो तो षष्टेश की दशा_भुक्ति मे जात के सिर मे चोट लगती है.
७:- मेष लग्न वालो के लिये शुक्र द्वादश स्थान मे शुभ फल प्रदान करता है.
८:- यदि मेष लग्न हो और मंगल शुक्र की युति हो तो ममग योगकारक और मारक दोनो रूपो से फल देता है.
९:- द्वितिय स्थान मे वृष राशि मे मगल ,गुरू ,शुक्र यदि स्थित हो तो यह योग शुभ धनदायक होता है.
१०:-  मंगल यदि गुरू और शुक्र के साथ तृीतिय भाव मे मिथुन राशि मे हो तो वह योगप्रद यदि नही होता.
११:- मंगल चतुर्थ भाव मे कर्क राशि मे गुरू युक्त हो तो जात को बहुत शुभ फल की प्राप्ति होति है.
१२:- यदि  मंगल पंचम भाव मे सिंह राशि मे हो तो अपनी दशा भुक्ति मे धन आदि देता है.
१३:- कुंभ राशि का लाभ स्थान मे गुरू अपनी दशा भुक्ति मे अशुभ फल देत है.
१४;- यदि मंगल और बुध कन्या राशि मे छटे भाव मे हो तो अपनी दशा भुक्ति मे फोडे_फुंसी के रोग देते है.
१५:- यदि मंगल और शुक्र तुला राशि मे सप्तम भाव मे स्थित हो जातर अपने पुरूषार्थ से धन कमाता है .
१६:- मेष लग्न  वालो का मंगल यदि अष्टम भा  मे हो तो  शुभ फल नही देता. यदि अष्टम मे सूर्य शुक्र से युक्त हो तो थोडा अच्छा फल दे देता है.
१७:- यदि नवम स्थान मे धनु राशि मे सूर्य ,मंगल,गुरू,शुक्र स्थित हो और षनि सप्तम मे हो तो मंगल विशेष रूप से  फस देने वाला होता है.
१८:- यदि मेष लग्न मे सूर्य शुक्र हो और उन पस गुरू की दृष्टि न हो तो शुक्र अपनी दशा भुक्ति मे शुभ फल देता है.
मेष लग्न के लिए पूजा व रत्न :-
 
आइए अंत में अब हम मेष लग्न के जातको के लिए पूजा व रत्नों के बारे में बता दें कि उनके लिए क्या उचित रहेगा. आपके लिए हनुमान जी की पूजा करना अत्यंत लाभदायक होगा. आपको नियमित रुप से हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए. इसके लिए आप हनुमान चालीसा आदि का पाठ कर सकते हैं. मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ भी आपके लिए शुभ रहेगा.

आपकी जन्म कुंडली में सूर्य पांचवें भाव का स्वामी होता है और पांचवां भाव त्रिकोण भाव है. इस भाव से हम संतान, शिक्षा व प्रेम संबंध देखते हैं. इसलिए आपको सूर्य को जल अवश्य देना चाहिए और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना आपके लिए शुभ होगा. आपकी जन्म कुंडली में आपके भाग्य भाव के स्वामी बृहस्पति देव हैं. यदि भाग्य अगर कमजोर है तब विष्णु जी की पूजा नियमित रुप से आपको करनी चाहिए.

आप नियमित रुप से विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करें. यह आपके लिए अत्यंत लाभदायक होगा.मेष लग्न होने से आपके लिए मूंगा, माणिक्य और पुखराज शुभ रत्न हैं. आप इन्हें धारण कर सकते हैं.

Thursday 19 September 2019

द्वादश भाव का महत्व व विशेषता

कुंडली के बारहवें घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में व्यय स्थान अथवा व्यय भाव कहा जाता है तथा कुंडली का यह घर मुख्य रुप से कुंडली धारक के द्वारा अपने जीवन काल में खर्च किए जाने वाले धन के बारे में बताता है तथा साथ ही साथ कुंडली का यह घर यह संकेत भी देता है कि कुंडली धारक के द्वारा खर्च किए जाने वाला धन आम तौर पर किस प्रकार के कार्यों में लगेगा। कुंडली के बारहवें घर के बलवान होने की स्थिति में आम तौर पर कुंडली धारक की कमाई और व्यय में उचित तालमेल होता है तथा कुंडली धारक अपनी कमाई के अनुसार ही धन को खर्च करने वाला होता है, जिसके कारण उसे अपने जीवन में धन को नियंत्रित करने में अधिक कठिनाई नहीं होती जबकि कुंडली के बारहवें घर के बलहीन होने की स्थिति में कुंडली धारक का खर्च आम तौर पर उसकी कमाई से अधिक होता है तथा इस कारण उसे अपने जीवन में बहुत बार धन की तंगी का सामना करना पड़ता है।

 कुंडली के बारहवें घर पर शुभ या अशुभ ग्रहों के प्रभाव को देखकर यह भी पता चल सकता है कि कुंडली धारक का धन आम तौर पर किस प्रकार के कार्यों में खर्च होगा। उदाहरण के लिए कुंडली के बारहवें घर पर किसी शुभ ग्रह का प्रभाव होने पर कुंडली धारक का धन आम तौर पर अच्छे कामों में ही खर्च होगा जबकि कुंडली के बारहवें घर पर किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव होने पर कुंडली धारक का धन आम तौर पर व्यर्थ के कामों में ही खर्च होता रहता है। कुंडली के बारहवें घर पर शुभ गुरू का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को धार्मिक कार्यों में धन लगाने के लिए प्रेरित करता है जबकि कुंडली के बारहवें घर पर अशुभ राहु अथवा शनि का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को जुआ खेलने, अत्याधिक शराब पीने तथा ऐसी ही अन्य बुरी लतों पर धन खराब करने के लिए प्रेरित करता है।

कुंडली का बारहवां घर कुंडली धारक की विदेश यात्राओं के बारे में भी बताता है तथा किसी दण्ड के फलस्वरूप मिलने वाला देश निकाला भी कुंडली के इसी घर से देखा जाता है। किसी व्यक्ति का अपने परिवार के सदस्यों से दूर रहना भी कुंडली के इस घर से पता चल सकता है। कुंडली धारक के जीवन के किसी विशेष समय में उसके लंबी अवधि के लिए अस्पताल जाने अथवा कारावास में बंद होने जैसे विषयों के बारे में जानने के लिए भी कुंडली के इस घर को देखा जाता है। कुंडली का यह घर कुंडली धारक के जीवन के अंतिम समय के बारे में भी बताता है तथा कुंडली के इस घर से कुंडली धारक की मृत्यु के कारण का पता भी चल सकता है।

बारहवां घर व्यक्ति के जीवन में मिलने वाले बिस्तर के सुख के बारे में भी बताता है तथा यह घर कुंडली धारक की निद्रा के बारे में भी बताता है। कुंडली के इस घर पर किन्ही विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को निद्रा से संबंधित रोग या परेशानियों से पीड़ित कर सकता है तथा कुंडली धारक के वैवाहिक जीवन में भी समस्याएं पैदा कर सकता है। यह समस्याएं आम तौर पर रात को सोने के समय बिस्तर पर होने वाली बातचीत से शुरू होती हैं जो बढ़ते-बढ़ते विवाद का रूप ले लेती हैं तथा व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में परेशानियां पैदा कर देती हैं। ऐसे लोगों के संबंध सामान्य तौर पर अपने पति या पत्नी के साथ अच्छे होने के बावजूद भी सोने के समय किसी व्यर्थ की बात को लेकर पति या पत्नी के साथ विवाद हो जाता है जिससे इनको सुख की नींद लेने में बाधा आती है।

Saturday 17 August 2019

एकादश भाव का महत्व व विशेषता


कुंडली के ग्यारहवें घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में लाभ स्थान अथवा लाभ भाव कहा जाता है तथा कुंडली का यह घर मुख्य तौर पर कुंडली धारक के जीवन में होने वाले वित्तिय तथा अन्य लाभों के बारे में बताता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार व्यक्ति की आर्थिक स्थिति उसकी कुंडली के घरों में विराजमान ग्रहों के स्थान पर निर्भर करती है। अगर आपके ग्रह मित्रवत हैं, कृपालु हैं, तो मिट्टी भी हाथ लगाते ही सोना बन जाती है, लेकिन अगर ग्रह विपरीत हैं, अप्रसन्न हैं, तो बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं। जिनके ग्रह अनुकूल हैं, वे सफलता की सीढि़यां चढ़ते जाते हैं और दुनिया उन्हें देखकर आहें भरती है। कुंडली के इस घर द्वारा बताए जाने वाले लाभ बिना मेहनत किए मिलने वाले लाभ जैसे कि लाटरी में इनाम जीत जाना, सट्टेबाज़ी अथवा शेयर बाजार में एकदम से पैसा बना लेना तथा अन्य प्रकार के लाभ जो बिना अधिक प्रयास किए ही प्राप्त हो जाते हैं, भी हो सकते हैं। ग्यारहवें घर पर शुभ राहु का प्रभाव कुंडली धारक को लाटरी अथवा शेयर बाजार जैसे क्षेत्रों में भारी मुनाफ़ा दे सकता है जबकि इसी घर पर बलवान तथा शुभ बुध का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को व्यवसाय के किसी नए तरीके के माध्यम से भारी लाभ दे सकता है। वहीं दूसरी ओर कुंडली के इस घर के बलहीन होने से या बुरे ग्रहों के प्रभाव में होने से कुंडली धारक को अपने जीवन में उपर बताए गए क्षेत्रों में लाभ होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं तथा कुंडली के ग्यारहवें घर पर अशुभ तथा बलवान राहु का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक का बहुत सा धन जुए अथवा शेयर बाजार जैसे क्षेत्रों में खराब करवा सकता है।
 

कुंडली का ग्यारहवां घर कुंडली धारक के लोभ तथा महत्त्वाकांक्षा को भी दर्शाता है क्योंकि इस कुंडली के इस घर से होने वाले लाभ आम तौर पर उन क्षेत्रों से ही प्राप्त होते हैं जिनमें अपनी किस्मत आजमाने वाले अधिकतर लोग रातों रात अमीर बन जाने के अभिलाषी होते हैं तथा इसके लिए वे ऐसे ही क्षेत्रों का चुनाव करते हैं जो उन्हें एकदम से अमीर बना देने में सक्षम हों। क्योंकि ऐसे सभी क्षेत्रों में पैसा कमाने के लिए मेहनत तथा लग्न से अधिक किस्मत की आवश्यकता होती है, इसलिए रातों रात इन क्षेत्रों के माध्यम से पैसा कमाने की कामना करने वाले लोगों में आम तौर पर लोभ तथा महत्त्वाकांक्षा की मात्रा सामान्य से अधिक होती है।
अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भाव से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि विषयों का पता चलता है। इसे भाव से मित्र, बहू-जंवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है। इससे हमें मित्र, समाज, आकांक्षाएं, इच्छापूर्ति, आय, व्यवसाय में उन्नति, ज्येष्ठ भाई, रोग से मुक्ति, टखना, द्वितीय पत्नी, कान, वाणिज्य-व्यापार, परराष्ट्रों से लाभ, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि पता चलता है।  कुंडली के ग्यारहवें घर के बलवान होने पर तथा इस घर पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर कुंडली धारक अपने जीवन में आने वाले लाभ प्राप्ति के अवसरों को शीघ्र ही पहचान जाता है तथा इन अवसरों का भरपूर लाभ उठाने में सक्षम होता है जबकि कुंडली के ग्यारहवें घर के बलहीन होने पर अथवा इस घर पर एक या एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर कुंडली धारक अपने जीवन में आने वाले लाभ प्राप्ति के अधिकतर अवसरों को सही प्रकार से समझ नही पाता तथा इस कारण इन अवसरों से कोई विशेष लाभ नहीं उठा पाता। एकादश भाव में यदि बुध है तो व्यक्ति बड़ा व्यापारी होता है। सूर्य होने पर उसकी आय का साधन नौकरी होता है। यदि एक से अधिक शुभ ग्रह हों और उन पर किसी पाप ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति के आय के एक से अधिक साधन होते हैं। 11वें भाव में मंगल की युति होने पर व्यक्ति भूमि, संपत्ति के कार्यों से धन अर्जित करता है। ऐसा व्यक्ति धनी किसान होता है। इसलिए अच्छा जीवन जीने के लिये जो मूलभूत व सभी सुख सुविधाएं है हमें इसी घर से ही प्राप्त होती है व हमारी इच्छापूर्ति के लिये कुंडली में 11 भाव का शुभ होना ज़रूरी है।

एकादश भाव के कारकत्व :-
लाभ, पूर्ति, मित्र, व्यक्तित्व, आभूषण, बड़े भाई एवं दोष तथा पीड़ा से मुक्ति आदि को एकादश भाव से ज्ञात किया जा सकता है। जन्म कुंडली में एकादश भाव मुख्य रूप से जातकों की इच्छाओं, आशाओं और आकांक्षाओं का बोध कराता है। यह भाव कार्य अथवा व्यवसाय से होने वाले लाभ, उच्च शिक्षा अथवा विदेशी सहभागिता, चुनाव, मुक़दमा, सट्टा, लेखन एवं स्वास्थ्य आदि को दर्शाता है।

ज्योतिष में एकादश भाव का महत्व :-
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में एकादश भाव लाभ का स्थान होता है। काल पुरुष कुंडली में एकादश भाव की राशि कुंभ है और कुंभ राशि का स्वामी ग्रह शनि होता है। जातका देश मार्ग के लेखक के अनुसार, एकादश भाव से कर्मों के द्वारा प्राप्त होने वाले लाभ एवं कष्ट मुक्त जीवन की भविष्यवाणी की जाती है। भटोत्पल के अनुसार, घोड़े एवं हाथियों की सवारी, परिधान, फसलें, आभूषण, बुद्धि एवं धन से संबंधित जानकारी कुंडली में ग्यारहवें भाव से प्राप्त होती है।

उत्तर-कालामृत में कालिदास के अनुसार एकादश भाव से निम्न बातों की जानकारी प्राप्त होती है: इच्छा और इच्छाओं का अहसास, धन का अधिग्रहण, प्रयास द्वारा प्राप्त लाभ, आय, निर्भरता, बड़े भाई, चाचा-ताऊ, देवताओं की पूजा, ईश्वर भक्ति, बुजुर्गों के प्रति सम्मान, ज्ञान द्वारा प्राप्त लाभ, उच्च बौद्धिक स्तर, नियोक्ता के कल्याण, धन हानि, महंगी धातू, गहने आदि का अधिकार, दूसरों को सलाह देना, भाग्य, माँ की दीर्घायु, बायाँ कान, घुटने, चित्रकला एवं सुखदायक और मोहक संगीत या खुशखबरी, मंत्रिपरिषद आदि।

यह भाव समृद्धि, लाभ, कार्य में सफलता, उपलब्धि के बाद प्राप्त होने वाला सूकून, साझेदारी एवं स्थायी मित्रता का बोध कराता है। यदि आप किसी दूसरे व्यक्ति को धन उधार में देते हैं तो उस धन पर लगने वाला ब्याज और उसका मूलधन को ग्यारहवें भाव से विचार किया जाएगा। वहीं दूसरी ओर, यदि आप किसी व्यक्ति से धन उधार लेते हैं तो कुंडली में पाँचवाँ भाव उस धन से संबंधित होगा।

प्रेम करने वाले जातक को ग्यारहवें भाव के माध्यम से अधिक सटीकता से परखा जा सकता है क्योंकि यह भाव किसी व्यक्ति का किसी दूसरे व्यक्ति से भावनात्मक संबंध को भी बताता है। ख़ुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली में दूसरा, सातवाँ और ग्यारहवाँ भाव अवश्य देखना चाहिए। इसके अतिरिक्त कुंडली में एकादश भाव जातकों के सामाजिक और वित्तीय मामलों में सफलता के विषय में जानकारी मिलती है।

ज्योतिष में एकादश भाव बहुत ही प्रभावशाली भाव होता है। यह भाव जातकों की विश्वसनीयता की ओर भी इशारा करता है। इसके साथ कुंडली में एकादश भाव वित्तीय मामलों या नियोक्ता की संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है। शारीरिक दृष्टि से, एकादश भाव का संबंध जातकों के बाएं कान और बाएं हाथ से होता है।

विद्वान ज्योतिष वैद्यनाथ दिक्षित के अनुसार, धन संचय को लेकर जातकों के ग्यारहवें भाव को देखा जाना चाहिए। वहीं वराहमिहिर के अनुसार, कुंडली में एकादश भाव आय का भाव होता है। यह व्यक्ति की आमदनी के विषय में जानकारी देता है। सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार, यदि किसी जातक का एकादश भाव अथवा इस भाव के स्वामी बली हैं तो इसके प्रभाव से जातक के जीवन में धन-वैभव और संपन्नता आती है। मंत्रेश्वर ने इस भाव को सिद्धि तथा प्राप्ति का भाव कहा है।

मेदिनी ज्योतिष में एकादश भाव से संसद, कानून, राज्य विधायकों, राज्य, शहर, देश, राष्ट्रीय कोष, मुद्रा मुद्रण, सरकारी विभाग, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं के निचले सदनों, निगमों, नगर निकायों, जिला बोर्ड, पंचायत, निकायों के नियम आदि का विचार किया जाता है। इसके अतिरिक्त एकादश भाव राजदूत, उपराष्ट्रपति, सलाहकार समूह, राज्य स्तरीय शासकीय निकाय, राष्ट्रीय उद्देश्य, राष्ट्रीय योजनाएँ, राष्ट्र के मित्र, उद्यम, क्लब, जुआ रिसॉर्ट्स, अनुयायियों, परियोजनाएँ, सहकारी समितियों, विरासतों को समाप्त करने, सार्वजनिक समारोह, समर्थक आदि को दर्शाता है।

प्रश्न ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में एकादश भाव का संबंध किसी जातक की कामना और उसकी आकांक्षा को बताता है। जातकों के लिए यह भाव प्राप्ति का भी भाव होता है। वायदा बाज़ार भविष्यवाणी में सरकारी लोन, इलेक्ट्रॉनिक कंपनी, गैस एवं म्यूजियम आदि का संबंध एकादश भाव से होता है। घोड़ों की दौड़ आयोजन में एकादश भाव प्रबंधन समिति का प्रतिनिधित्व करता है। विभिन्न क्षेत्रों में विजेताओं का विचार भी एकादश भाव से होता है।


कुंडली में एकादश भाव से क्या देखा जाता है?
आय
लाभ
प्राप्ति
अधिकता
ज्येष्ठ भाई-बहन
मित्र
आर्थिक स्थिति
काम-वासना

 
एकादश भाव का अन्य भावों से अतंर्संबंध :-
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, कुंडली में 12 भावों होते हैं और इन भावों का संबंध एक-दूसरे से होता है। इसी प्रकार एकादश भाव का संबंध अन्य भावों से होता है। कुंडली में एकादश भाव लाभ का भाव होता है। इसके द्वारा जातकों के संतान को भी देखा जाता है और हम जानते हैं कि संतान जातकों की बुढ़ापे की लाठी बनती है। यह भाव उन लोगों को भी दर्शाता है जिनके द्वारा हमें सहयोग प्राप्त होता है।

ग्यारहवाँ भाव लाभ का कारक होता है। यह भाव सोना, कर्मों के द्वारा प्राप्त होने वाली प्रसिद्धि, बड़े संगठन और समिति आदि को दर्शाता है। एकादश भाव से किसी व्यक्ति के परिश्रम, चाची और चाचा, छोटी यात्रा और पिता के संदेश, मानसिक शांति, कानूनी शिक्षा, परीक्षक, गुप्त ज्ञान, पत्नी या पति के मामलों और उनके व्यापार निवेश लाभ, दुश्मनों के दुश्मन, नौकरों की बीमारी, किरायेदारों का कर्ज, पति-पत्नी का अफेयर और उनके व्यापारिक लाभ, संतान का वैवाहिक जीवन, भाइयों की विदेश यात्रा, माता जी की विरासत, पारिवारिक प्रतिष्ठा, दुश्मनों का विनाश और स्वास्थ्य लाभ का विचार किया जाता है ।

यह भाव आपकी पारिवारिक वंशावली, पड़ोसियों का धार्मिक एवं आध्यात्मिक विश्वास, माता की मृत्यु और पुनर्जन्म आदि को दर्शाता है। इसके साथ ही एकादश भाव संतान का जीवनसाथी, विदेशी जानवरों, संयुक्त राष्ट्र, गैर सरकारी संगठनों, शत्रुओं, बच्चों, लक्ष्यों, 8वें भाव के कर्म, अहंकार और आपके पिता की शैली एवं आपके व्यवसाय के संपर्क क्षेत्र को भी बताता है।


लाल किताब के अनुसार एकादश भाव :-
लाल किताब के अनुसार, ज्योतिष में 11वाँ भाव आपकी आमदनी, पड़ोसी अथवा न्यायाधीश, लाभ, अदालत एवं न्यायाधीश के आसन को दर्शाता है। तीसरे भाव में बैठे ग्रह एकादश भाव में स्थित ग्रहों को सक्रिय करते हैं। इस समय ग्यारहवें भाव में स्थित ग्रहों का प्रभाव जातकों के लिए सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रह सकता है। हालाँकि दशा की समाप्ति पर जातकों पर इन ग्रहों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

इस प्रकार आप देख सकते हैं कि कुंडली में एकादश भाव का कितना व्यापक महत्व है। व्यक्ति अपने कर्म के अनुसार ही फल को प्राप्त करता है। इसलिए यदि व्यक्ति कोई बड़ी सफलता पाना चाहता है तो उसेअपने कर्मों को महान बनाने की आवश्यकता है।

एकादश भाव का परिचय- एकादश स्थान ही वह स्थान है जिससे मनुष्य को जीवन में प्राप्त होने वाले सभी प्रकार के लाभ ज्ञात हो सकते हैं| इसलिए इसे लाभ स्थान भी कहा जाता है| एकादश भाव दशम स्थान(कर्म) से द्वितीय है| अतः कर्मों से प्राप्त होने वाले लाभ या आय एकादश भाव से देखे जाते हैं| मनुष्य को प्राप्त होने वाली प्राप्तियों के संबंध में एकादश भाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाव है| ये निज प्रयास या निजकर्मों द्वारा अर्जित व्यक्ति की उपलब्धियों की सूचना देता है फारसी में इस भाव को याप्ति खाने कहते हैं| यह भाव एक उपचय स्थान भी है| इस भाव की दिशा आग्नेय(South-East) है|

भाव के रूप में एकादश स्थान को शुभ माना गया है| यह हमारे जीवन में वृद्धि का सूचक है| वैसे भी हिन्दू धर्म में 11 के अंक को शुभ व पवित्र माना जाता है| यही कारण है कि इस भाव में सभी ग्रह शुभ फलदायी माने गए हैं| मगर छठे भाव(रोग, शत्रु, चोट) से छठा होने के कारण के कारण इस भाव का स्वामी शारीरिक कष्ट भी प्रदान कर सकता है| इस भाव से आय, लाभ, वृद्धि, प्राप्ति, इच्छाओं की पूर्ति, बड़े भाई-बहन, पुत्रवधू या दामाद, चाचा, बुआ, मित्र, कामवासना, विशिष्ट सम्मान, कान, जांघ व कामवासना आदि का विचार किया जाता है| एकादश भाव चर लग्नों(1, 4, 7, 10) के लिए एक बाधक भाव भी माना जाता है। एकादश भाव में क्रूर(पाप) ग्रह विशेष शुभ फलदायी माने जाते हैं।


एकादश भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है- 
आय या लाभ- एकादश भाव व्यक्ति को मिलने वाले लाभ या उसकी आय का सूचक है| इस भाव में जिस भाव का स्वामी आकर बैठता है, उस भाव से प्राप्त होने वाली वस्तु की प्राप्ति व्यक्ति को होती है-
यदि इस भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति को राज्य व मान-सम्मान की प्राप्ति होती है|
यदि इस भाव में चन्द्र हो तो व्यक्ति को तरल पदार्थ, समुद्र, मोती, कृषि, जल आदि से लाभ होता है|

यदि मंगल इस भाव में हो तो व्यक्ति को साहस, निडरता, यंत्र, भूमि, अग्नि संबंधी कार्यों से लाभ मिलता है|
यदि बुध इस भाव में हो तो व्यक्ति को शिक्षण, लेखन व वाणी के द्वारा लाभ मिलता है|
यदि गुरु इस भाव में हो तो व्यक्ति को ज्ञान, साहित्य व धार्मिक गतिविधियों से लाभ प्राप्त होता है|
यदि शुक्र इस भाव में हो तो व्यक्ति को नाटक, नृत्य, संगीत, कला, सिनेमा, आभूषण आदि से लाभ मिलता है|
यदि शनि इस भाव में हो तो व्यक्ति को श्रम, कारखाने, कृषि, राजनीति, सन्यास व गूढ़ विद्याओं से लाभ मिलता है|
यदि, राहु-केतु इस भाव में हो तो सट्टे, लॉटरी, शेयर बाजार, तंत्र-मंत्र, गूढ़ ज्ञान आदि से लाभ मिलता है|
2. प्राप्ति- एकादश भाव का संबंध प्राप्ति से है इसलिए किसी भी प्रकार की प्राप्ति का विचार इस भाव से किया जाता है|
3. कीर्ति- दशम स्थान कर्म है और एकादश भाव दशम(कर्म) से द्वितीय(आय) है इसलिए यह व्यक्ति को मिलने वाली कीर्ति, यश व मान-सम्मान का प्रतीक है|
4. बाहुल्य – एकादश भाव बहुलतासे भी संबंधित है। जिस भाव का स्वामी एकादश भाव में हो तो वह भाव तथा उसके स्वामी से संबंधित कारकत्वों में वृद्धि होती है, जैसे यदि पंचम भाव का स्वामी एकादश में हो तो मनुष्य की कई संताने होती हैं| इसी प्रकार द्वितीय भाव का स्वामी एकादश स्थान में हो तो मनुष्य के पास काफी रूपया-पैसा होता है|
5. ज्येष्ठ भाई-बहन– एकादश स्थान से बड़े भाई-बहन का विचार भी किया जाता है। इस भाव पर शुभ या अशुभ ग्रहों का जैसा भी प्रभाव हो वैसे ही संबंध व्यक्ति के अपने बड़े भाई-बहन से होते हैं|
6. शारीरिक कष्ट– एकादश भाव छठे भाव से छठा होने के कारण रोग को भी सूचित करता है। एकादश भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में मनुष्य को शारीरिक कष्ट हो सकता है|
7. मित्र– मित्रों का विचार भी एकादश भाव से किया जाता है| व्यक्ति के मित्र किस प्रकार के होंगे तथा उनसे मनुष्य के संबंध कैसे रहेंगे आदि की जानकारी भी इसी भाव से प्राप्त होती है|
8. बाधक स्थान– मेष, कर्क, तुला व मकर लग्नों (इन्हें चर लग्न भी कहते हैं।) के लिए एकादश भाव का स्वामी बाधकाधिपति होता है। अतः इन चर लग्नों में एकादशेश की दशा-अंतर्दशा में मनुष्य को बाधाओं व व्यवधानों का सामना करना पड़ सकता है|
9. कामवासना– तृतीय, सप्तम तथा एकादश स्थान काम त्रिकोण माने जाते हैं अतः मनुष्य की कामवासना का विचार भी इस भाव से किया जाता है।
10. आर्थिक स्थिति– द्वितीय भाव के साथ-साथ एकादश स्थान का भी मनुष्य की आर्थिक स्थिति से घनिष्ठ संबंध है। जब भी किसी जन्मकुंडली में द्वितीय भाव के साथ-साथ एकादश भाव मजबूत स्थिति में होता है तो व्यक्ति धनवान, यशस्वी तथा अनेक प्रकार की भौतिक सुख- सुविधाओं को भोगने वाला होता है।
11. शारीरिक अंग– एकादश भाव मनुष्य की बाई भुजा, बांया कान तथा पैरों की पिंडलियों को दर्शाता है। जब भी इस भाव पर तथा इसके स्वामी पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है तो मनुष्य के बांये कान, बाई भुजा व पैर की पिंडलियों में कष्ट होता है।

Tuesday 16 July 2019

दशम भाव का महत्व व विशेषता

दशम भाव कुंडली के केंद्र भावों में से एक केंद्र स्थान है| यह अन्य दो केन्द्रों(चतुर्थ तथा सप्तम भाव) से अधिक बली भाव है| इस भाव से मुख्य रूप से कर्म, व्यवसाय, व राज्य का विचार किया जाता है| इन विषयों के अतिरिक्त सम्मान, पद-प्राप्ति, आज्ञा, अधिकार, यश, ऐश्वर्य, कीर्ति, अवनति, अपयश, राजपद, राजकीय सम्मान, नेतृत्व, आदि का विचार भी इसी भाव से किया जाता है| नवम स्थान(पिता) से द्वितीय(धन तथा मारक) होने के कारण यह भाव पिता के धन को भी दर्शाता है तथा पिता के लिए एक मारक भाव है| सप्तम भाव(जीवनसाथी) से चतुर्थ(माता) होने के कारण यह भाव जीवनसाथी की माँ अर्थात सास का प्रतीक भी है| फारसी में इस भाव को शाहखाने, बादशाहखाने कहते हैं| यह एक उपचय(वृद्धिकारक) भाव भी है|

कुंडली में यह भाव मध्याहन अथवा दक्षिण दिशा का प्रतीक है| मध्याहन में सूर्य अधिकतम ऊँचाई पर होने के कारण सबसे अधिक शक्तिशाली होता है| यही कारण है कि दशम भाव में बैठा सूर्य बहुत बलवान व राजयोग कारक माना गया है| क्योंकि यह भाव ऊँचाई को दर्शाता है इसलिए जीवन में मनुष्य की उन्नति का विचार भी इसी भाव से किया जाता है| व्यक्ति के गौरव, आचरण, सफलता, आकांशा, उत्तरदायित्व का विचार भी दशम भाव से किया जाता है| यह एक शुभ केंद्र भाव है इसलिए जब शुभ ग्रह इस भाव का स्वामी बनता है तो उसे केन्द्राधिपत्य दोष लगता है| लग्न से दशम भाव होने के कारण यह भाव मनुष्य की गतिविधियों और उसके क्रियाकलापों को सर्वाधिक प्रभावित तथा नियंत्रित करता है| इस भाव के कारक ग्रह सूर्य, गुरु, बुध व शनि हैं|
दशम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-


दशम भाव में स्थित ग्रह व आजीविका- दशम भाव मनुष्य के कर्मों से जुड़ा स्थान है अतः व्यक्ति की आजीविका से इसका प्रत्यक्ष संबंध है|
- यदि सूर्य बलवान होकर दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति प्रतापी, राजमान्य, उच्च पदस्थ अधिकारी, सरकारी नौकरी में कार्यरत, मंत्री आदि पद पर कार्य करने वाला होता है|
- यदि चंद्रमा बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति औषधि, जल, कला, जन-सेवा, जल सेना, मत्स्यपालन, कृषि, खेती, भोजनालय, देखरेख संबंधी कार्य(नर्स, केयर-टेकर आदि) जल व सिंचाई विभाग आदि क्षेत्रों में कार्य करता है|
- यदि मंगल बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति सेना, पुलिस, कसाईखाना, बुचडखाना, नाई, सुनार, इलेक्ट्रीशियन, बिजली विभाग, खिलाड़ी, पहलवानी, रसोइया, जमीन-जायदाद आदि से संबंधित कार्य करता है|
- यदि बुध बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति गणितज्ञ, शिक्षण, संचार, पत्रकारिता, डाक-तार विभाग, एकाउंट्स, मुनीम, क्लर्क आदि से संबंधित कार्य करता है|
- यदि गुरु बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति, मंत्री, पुरोहित, मठाधीश, धार्मिक विषयों का प्रवचनकर्ता, शिक्षण व उच्च पदस्थ अधिकारी आदि के रूप में कार्य करता है|
- यदि शुक्र बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति मंत्री, कला, संगीत, नृत्य, सिनेमा, फैशन जगत, कलाकार, डिजाइनर, कॉस्मेटिक, कपड़े, आभूषण, सौन्दर्यता प्रधान वस्तुएं आदि से संबंधित कार्य करता है|
- यदि शनि बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति कारखाने का मालिक, लोहे से संबंधित कार्य, नेता, चमड़ा उद्योग, नौकर, श्रमिक, न्यायालय, पुरातत्ववेता, गंभीर शोधकर्ता, सन्यासी, गूढ़ विद्याओं से संबंधित कार्य आदि काम करता है|
- यदि राहु-केतु बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति विदेशी स्रोतों से लाभ कमाने वाला, विदेशी भाषाओँ का ज्ञाता, कंप्यूटर, लैब तकनीशियन, कथावाचक, पुरोहित, आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाला होता है|


दशम भाव व राजयोग- दशम भाव का संबंध राज्य व राजसत्ता से है अतः यदि दशम भाव, दशमेश आदि बली हों और इन पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति प्रसिद्द, सम्मानित, राजपत्रित अधिकारी, व उच्च पद पर आसीन होता है| ख़ासतौर पर यदि नवम व दशम भाव तथा इनके स्वामियों का परस्पर एक-दूसरे से संबंध हो व्यक्ति अपने जीवन में विशेष उन्नति करता है|
मान-सम्मान- दशम भाव का संबंध मान-सम्मान तथा यश व कीर्ति से है इसलिए जब लग्न, लग्नेश, दशम भाव, दशमेश बलवान हो तो मनुष्य को समाज में बहुत मान-सम्मान, ख्याति व यश प्राप्त होता है|
पिता की आर्थिक स्थिति- नवम भाव पिता का माना गया है| दशम भाव नवम भाव(पिता) से द्वितीय(धन) है अतः यह पिता की आर्थिक स्थिति को भी दर्शाता है| जब दशम भाव व उसका स्वामी बली अवस्था में हो तो व्यक्ति का पिता धनी व सुदृढ़ आर्थिक स्थिति वाला होता है|

पिता का अरिष्ट- दशम भाव नवम स्थान(पिता) से द्वितीय(मारक भाव) है अतः यह भाव पिता के अरिष्ट का सूचक भी है| दशम भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में पिता को शारीरिक कष्ट हो सकता है|
जीवनसाथी की माता तथा घरेलू स्थिति- सप्तम भाव जीवनसाथी का होता है| चतुर्थ भाव का संबंध माता और निवासस्थान से होता है| दशम भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से चतुर्थ(माता, निवास) है इसलिए यह जीवनसाथी की माता और उसकी पारिवारिक स्थिति(घर के हालात) को दर्शाता है| यदि अष्टम भाव के साथ-साथ दशम भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो जीवनसाथी एक सभ्य व सम्माननीय परिवार से संबंध रखता है|पाश्चात्य ज्योतिष में कुंडली के दशम भाव को पिता का भाव माना जाता है, क्योंकि कुंडली में दशम भाव ठीक चौथे भाव के विपरीत होता है जो कि माता का भाव है। प्राचीन काल में, पिता को ही गुरु माना जाता था और कुंडली में नवम भाव गुरु का बोध करता है। अतः नवम भाव को गुरु के साथ-साथ पिता का भाव माना जाता है। ऋषि पराशर के अनुसार, नवम भाव पिता का भाव होता है। जबकि दसवां भाव पिता की आयु को दर्शाता है। काल पुरुष कुंडली में दशम भाव को मकर राशि नियंत्रित करती है और इस इस राशि का स्वामी “शनि” ग्रह है।

दशम भाव को लेकर उतर-कालामृत में कालिदास कहते हैं, कुंडली में दशम भाव से व्यापार, समृद्धि, सरकार से सम्मान, सम्माननीय जीवन, पूर्व-प्रतिष्ठा, स्थायित्व, अधिकार, घुड़सवारी, एथलेटिक्स, सेवा, बलिदान, कृषि, डॉक्टर, नाम, प्रसिद्धि, खजाना, ताकतवर, नैतिकता, दवा, जाँघ, गोद ली गई संतान, शिक्षण, आदेश आदि चीज़ों का विचार किया जाता है।
“जातका देश मार्ग” के लेखक कहते हैं कि कुंडली में दशम भाव के माध्यम से व्यक्ति के मान-सम्मान, गरिमा, रुतबा, रैंक आदि को देखा जाता है। वहीं प्रश्नज्ञान में भटोत्पल कहते हैं कि दशम भाव से साम्राज्य, अधिकार की मुहर, धार्मिक योग्यता, स्थिति, उपयोगिता, बारिश और आसमान से जुड़ी चीजों से संबंधित मामलों की जानकारी प्राप्त होती है। सत्य संहिता में लेखक ने दसवें भाव को किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, रैंक, रुतबा तथा प्रतिष्ठित एवं सज्जन लोगों के साथ उसके संबंध की जाँच करने वाला बताया है।
वराहमिहिर के पुत्र पृथ्युशस ने दशम भाव को लेकर कहा है कि इस भाव से किसी के अधिकार से संबंधित सूचनाएँ, निवास, कौशल, शिक्षा, प्रसिद्धि आदि चीज़ों को ज्ञात किया जाता है। संकेत निधि में रामदयालु ने कहा है कि कुंडली के दशम भाव से जातक के अधिकार, परिवार, ख़ुशियों में कमी देखी जाती है। यह भाव लोगों के पूर्वजों के प्रति कर्म, व्यापार, व्यवसाय, आजीविका, प्रशासनिक नियुक्ति, खुशी, स्थिति, कार्य घुटने और रीढ़ की हड्डी को देखा जाता है।

विभिन्न ज्योतिषीय किताबों में दशम भाव को लेकर लगभग समान बातें लिखी गई हैं। यह भाव जातक की नैतिक ज़िम्मेदारी तथा उसकी सांसारिक गतिविधियों से संबंधित सभी विचारणीय प्रश्नों को दर्शाता है। यह भाव लोगों के स्थायित्व, प्रमोशन, उपलब्धि एवं नियुक्ति के बारे में बताता है। इस भाव का मुख्य प्रभाव जातक के कार्य, व्यापार या अधिकार क्षेत्र पर दिखाई पड़ता है।

फलदीपिका में मंत्रेश्वर ने दशम भाव के लिए प्रवृति शब्द का प्रयोग किया है।  किसी व्यक्ति के कार्य/व्यवसाय को समझने के लिए दशम भाव के साथ दूसरे एवं छठे भाव को देखना होता है। कुंडली में षष्ठम भाव सेवा, रुटीन एवं प्रतिद्वंदिता की व्याख्या करता है। जबकि द्वितीय भाव धन के प्राप्ति को बताता है। दसवें भाव को कर्मस्थान के रूप में जाना जाता है। हिन्दू शास्त्रों में मनुष्य के कर्म को इस प्रकार बताया गया है:

    * संचित कर्म: पिछले जन्मों के संचित कर्म।
    * प्रारब्ध कर्म: वर्तमान जन्म में प्राप्त संचित कर्मों का एक भाग।
    * क्रियामान कर्म: वर्तमान जन्म के वास्तविक कर्म।
    * आगामी कर्म जिन्हें हम अपने अगले जन्म में साथ लेकर जाएंगे। यदि वर्तमान जन्म ही अंतिम जन्म है तो जातक मोक्ष को प्राप्त करता है।


मेदिनी ज्योतिष के अनुसार दशम भाव राजा, राजशाही, कुलीनता, क्रियान्वयन, संसद, प्रशासन, विदेशी व्यापार, कानून व्यवस्था आदि को दर्शाता है। इस भाव से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य कार्यकारी व्यक्ति, सरकार एवं सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाला व्यक्ति का विचार किया जाता है।कुंडली में यह भाव नेतृत्वकर्ता का स्वामी होता है और अन्य देशों के बीच राष्ट्र की प्रतिष्ठा और स्थिति का बोध कराता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली का दशम भाव किसी राष्ट्र के सर्वोच्च अधिकार क्षेत्र को दर्शाता है। दशम भाव वाणिज्य मंत्रालय, राजा, सरकार, सत्ता, कुलीनता और समाज, उच्च वर्ग आदि को दर्शाता है। प्रश्न ज्योतिष के अनुसार, दशम भाव न्यायाधीश, निर्णय एवं चोरों द्वारा चोरी की गई वस्तुओं को दर्शाता है।
कुंडली में दशम भाव से क्या देखा जाता है?

   * करियर या प्रोफेशन
   * राजयोग
   * मान-सम्मान
   * पिता की आर्थिक स्थिति
   * जीवनसाथी की पारिवारिक स्थिति


दशम भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध :- जन्म कुंडली में 12 भाव होते हैं। इन भावों का एक-दूसरे से अंतर-संबंध होता है। इसी शृंखला में दशम भाव का भी संबंध अन्य भावों से है। दशम भाव जातक के पेशे या अधिकार को नहीं बल्कि कार्य के वातावरण को दर्शाता है। अपने अपने कामकाजी माहौल में लोगों से किस तरह से मेलजोल अथवा बातचीत करते हैं। इसका पता कुंडली के दसवें भाव से चलता है। आप किसी के साथ जैसा व्यवहार करेंगे, वैसा ही व्यवहार दूसरों से प्राप्त करेंगे। इसलिए दूसरों के प्रति हमेशा सकारात्मक व्यवहार को अपनाएँ।

कुंडली में दशम भाव पिता द्वारा प्राप्त शिक्षा का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अतिरिक्त दसवां भाव ईश्वर, अधिकार और सरकार को दर्शाता है। यह भाव जातक को ईश्वर या सरकार द्वारा बनाए नियमों का बोध कराता है। यदि जातक नियम के विरूद्ध कार्य करेंगे तो उन्हें इसका फल भुगतना पड़ता है। इसलिए दशम भाव सर्वोच्च शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

यह भाव पिता द्वारा प्राप्त धन या शिक्षा, पिता या गुरु की मृत्यु, लंबी यात्रा से लाभ, उच्च शिक्षा से लाभ, ससुराल पक्ष की संवाद शैली, जीवनसाथी की खुशी, भूमि और संपत्ति के अतिरिक्त उन्हें होने वाली पीड़ा, बच्चों के शत्रु, संवाद में आने वाली बाधाएं, धार्मिक कर्मों के लिए उपयोग की जाने वाली धन-संपत्ति, आध्यात्मिक लाभ, आय में कमी या बड़े भाई-बहनों को होने वाली हानि को बताता है।

 
लाल किताब के अनुसार दशम भाव :- लाल किताब के अनुसार, दसवाँ भाव सरकार के साथ संबंध, पिता के दुखों, ख़ुशियाँ और प्रॉपर्टी को दर्शाता है। यह भाव पिता का घर, पिता से मिलने वाली ख़ुशियाँ, लोहा, लकड़ी, नज़रिया, सांप, भैंस, मगरमच्छ, कौआ, चाल, चतुराई, काला रंग, काली गाय, ईंट, पत्थर, अंधेरा कमरा, आदि को दर्शाता है। इस भाव में स्थित ग्रह, पंचम भाव में बैठे ग्रह के प्रभाव को नगण्य करते हैं। राशिफल में दूसरा भाव इस भाव को सक्रिय बनाता है

विशेष नोट- किसी भी कुंडली में लग्न अर्थात प्रथम भाव उदय होने का स्थान है तथा सप्तम स्थान अस्त होने का स्थान माना गया है| इसी प्रकार जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव मध्यरात्रि या पाताल का प्रतीक है तो दशम स्थान ऊँचाई अर्थात आकाश को दर्शाता है| इससे यह सिद्ध हुआ कि दशम भाव का जीवन में प्राप्त होने वाली ऊंचाईयों(सफलता, मान-सम्मान, यश, प्रतिष्ठा) से घनिष्ठ संबंध है| ज्योतिष में केतु झंडा व ऊंचाई का कारक है| केतु की यह विशेषता होती है की यदि वह किसी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित ग्रह के साथ बैठा हो तो उस भाव तथा ग्रह को चौगुना बली कर देता है| जब भी दशमेश(दशम भाव का स्वामी) दशम भाव में अपनी उच्च राशि या स्वराशि में केतु के साथ बैठा हो और इन घटकों पर अन्य शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो इस स्थिति में दशम भाव अत्यंत बलवान हो जाता है और व्यक्ति महान शासक, राजपात्र अधिकारी, मंत्री, राजनेता, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति जैसे पद को सुशोभित करता है|

Sunday 16 June 2019

नवम भाव का महत्व व विशेषता

नवम भाव भाग्य, धर्म व यश का भाव होने के कारण किसी भी व्यक्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है| भाग्य पूर्व संचित कर्मों का परिणाम है| नवम भाव त्रिकोण स्थान कहलाता है| यह पंचम भाव से अधिक बलशाली होता है, अतः नवमेश, पंचमेश की अपेक्षा अधिक बलशाली माना जाता है| त्रिकोण भाव होने के साथ-साथ यह लक्ष्मी स्थान भी है इसलिए यह भाव अत्यंत शुभ है| इसका भावेश होने पर कोई भी ग्रह शुभफलदायी हो जाता है| फारसी में इस भाव को वेशखाने, नसीबखाने, बख्तखाने, परतमखाने कहते हैं| नवम स्थान पंचम भाव(पूर्व पुण्य) से पंचम है अतः यह भाव भी जातक के पूर्व पुण्यों से संबंधित है| नवम भाव गुरु स्थान भी कहलाता है क्योंकि यह गुरु का सूचक है| मनुष्य के जीवन में प्रथम गुरु उसका पिता होता है यही कारण है कि पिता का विचार भी नवम भाव से किया जाता है| श्रेष्ठ गुरु की प्राप्ति से व्यक्ति का भाग्योदय होता है इसलिए नवम भाव भाग्य स्थान भी कहलाता है|


यदि कोई शुभ ग्रह केन्द्रेश होने के साथ-साथ नवमेश भी हो, तो उसका केन्द्राधिपत्य दोष नष्ट हो जाता है| इसी प्रकार कोई ग्रह त्रिकेश या त्रिषड्येश होने के साथ-साथ नवमेश भी हो, तो उसकी अशुभता में कमी आ जाती है| नवम भाव से भाग्य, धर्म, यश, प्रतिष्ठा, तीर्थयात्रा, गुरु, पिता, तपस्या, पुण्य, दान, भाग्योदय, उच्च शिक्षा, सदाचार, देवपूजा, सन्यास, देव मंदिर निर्माण, लंबी दूरी की यात्राएं, अंतर्ज्ञान, राजयोग, नितम्ब व जाँघों का विचार किया जाता है| सप्तम भाव(जीवनसाथी) से तृतीय(भ्राता) होने के कारण नवम स्थान साले, साली व देवर से संबंधित है| इस भाव के कारक ग्रह सूर्य तथा गुरु हैं|

नवम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-

धार्मिक जीवन- जब लग्न या लग्नेश के साथ नवम भाव अथवा नवमेश का निकट संबंध हो तो मनुष्य के भाग्य और धर्म दोनों का उत्थान होता है| यदि चन्द्र तथा सूर्य से नवम भाव के स्वामी का संबंध चन्द्र व सूर्य अधिष्ठित राशियों के स्वामी से हो जाए तो मनुष्य का जीवन पूर्णतः धर्ममय हो जाता है| चाहे वह गृहस्थी हो या सन्यासी, ऐसा व्यक्ति ज्ञानियों में श्रेष्ठ जीवन वाला और मुक्ति प्राप्त करने वाला महात्मा होता है|
राज्यकृपा- नवम भाव को राज्यकृपा का भाव भी कहते हैं| यदि इस भाव का स्वामी राजकीय ग्रह सूर्य, चन्द्र अथवा गुरु हो और बलवान भी हो तो मनुष्य को राज्य(सरकार आदि) की ओर से विशेष कृपा प्राप्त होती है अर्थात वह व्यक्ति राज्य अधिकारी, उच्च पद पर आसीन सम्मानीय व्यक्ति होता है| 
प्रभुकृपा- प्रभुकृपा का स्थान भी नवम भाव है| क्योंकि यह धर्म स्थान है और प्रभुकृपा के पात्र पुण्य कमाने वाले धार्मिक व्यक्ति ही हुआ करते हैं| इस भाव का स्वामी बलवान हो तथा शुभ ग्रहों से युक्त अथवा द्रष्ट होकर जिस शुभ भाव में स्थित हो जाता है, मनुष्य को अचानक प्रभुकृपा व दैवयोग से उसी भाव द्वारा निर्दिष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है| जैसे नवमेश बलवान होकर दशम भाव में हो तो राज्य प्राप्ति, चतुर्थ भाव में हो तो वाहन व घर की प्राप्ति, द्वितीय भाव में हो तो अचानक धन की प्राप्ति होती है|
राजयोग- पराशर ऋषि के अनुसार नवम भाव को कुंडली के सबसे शुभ भावों में से एक माना गया है| इस भाव के स्वामी का संबंध यदि दशम भाव व दशमेश के साथ हो तो मनुष्य अतीव भाग्यशाली, धनी, मानी तथा राजयोग भोगने वाला होता है| इसका कारण यह है कि दशम भाव केंद्र भावों में से सबसे प्रमुख तथा शक्तिशाली केंद्र है| यह एक विष्णु स्थान भी है| इसी प्रकार नवम भाव त्रिकोण भावों में सबसे प्रमुख व शक्तिशाली त्रिकोण है तथा यह एक लक्ष्मी स्थान है| क्योंकि भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी अत्यंत प्रिय है इसलिए नवम भाव व नवमेश का संबंध दशम भाव तथा दशमेश से होना सर्वाधिक शुभ माना जाता है| इस प्रकार नवम व दशम भाव का परस्पर संबंध धर्मकर्माधिपति राजयोग को जन्म देता है|
कालपुरुष का नितम्ब व जांघ- नवम भाव का संबंध कालपुरुष के नितम्ब व जांघ से है| यदि नवम भाव, नवमेश, धनु राशि तथा गुरु पर पाप ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा हो तो मनुष्य के नितम्ब व जांघ में कष्ट व रोग होता है|
संतान प्राप्ति- नवम भाव पंचम स्थान(संतान भाव) से पंचम है अतः इसका संबंध भी संतान तथा संतानोत्पत्ति से है| यदि नवम भाव, नवमेश व गुरु बलवान हो तो मनुष्य को संतान की प्राप्ति अवश्य होती है| दूसरे शब्दों में कहें तो यह भाव संतान के मामले में पंचम भाव का सहायक भाव है|
भाग्य- नवम स्थान, पंचम भाव(पूर्व पुण्य) से पंचम है| पूर्व पुण्यों का विचार पंचम भाव से किया जाता है परंतु मनुष्य उन पूर्व पुण्यों को अच्छे रूप में भोगेगा अथवा बुरे रूप में इसका विचार नवम भाव से किया जाता है क्योंकि पूर्व जन्म के अच्छे या बुरे पूर्व पुण्यों का लेखा-जोखा ही भाग्य है और भाग्य का विचार नवम भाव से किया जाता है|
गुरु- जीवन को सफल बनाने हेतु आवश्यक मार्ग दर्शक गुरु है| नवम भाव गुरु स्थान है क्योंकि उसी के मार्गदर्शन से व्यक्ति सत्कर्मों द्वारा सतमार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल बना सकता है|
पिता- मनुष्य का पिता ही उसके आरंभिक जीवन में उसका मार्गदर्शन करता है| इसलिए पिता ही व्यक्ति के जीवन का वास्तविक एवं प्रथम गुरु है| यही कारण है कि नवम भाव पिता से संबंधित है|

देवालय निर्माण- क्योंकि नवम भाव धर्म से संबंधित है इसलिए यह देवालय व मंदिरों से भी जुड़ा हुआ है| गुरु मंदिर का कारक ग्रह है| यदि नवमेश लग्न व लग्नेश से संबंधित हो और गुरु ग्रह भी इस योग से संबंध बनाए तो व्यक्ति देवालयों व मंदिरों का निर्माण करवाता है|
दीर्घ यात्राएं-नवम भाव का संबंध लंबी दूरी की यात्राओं से है| तृतीय भाव छोटी यात्राओं से जुड़ा हुआ है| नवम भाव तृतीय भाव का ठीक विपरीत भाव है यानी ये तृतीय भाव से सप्तम है इसलिए उसका पूरक भाव है और व्यक्ति द्वारा की जाने वाली लंबी यात्राओं का सूचक है
धार्मिक व विदेश यात्रा- क्योंकि नवम भाव का संबंध लंबी दूरी की यात्राओं से है इसलिए यह विदेश यात्राओं का प्रतीक भी है| यदि तृतीय व द्वादश भाव का संबंध नवम स्थान से हो तो व्यक्ति अपने निवास से दूर यात्राएं कर सकता है| नवम स्थान धर्म का सूचक भी है अतः यह धार्मिक यात्राओं को भी दर्शाता है| 
नवम भाव किस्मत का है | यहाँ बैठे ग्रह आपके भाग्य को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं | यदि यहाँ कोई भी ग्रह न हो तो भी यहाँ स्थित राशी के स्वामी को देखा जाता है | नवम भाव भाग्य का और दशम भाव कर्म का है | जब इन दोनों स्थानों के ग्रह आपस में किसी भी प्रकार का सम्बन्ध रखते हैं तब राजयोग की उत्पत्ति होती है | राजयोग में साधारण स्थिति में व्यक्ति सरकारी नौकरी प्राप्त करता है | नवम और दशम भाव का आपस में जितना गहरा सम्बन्ध होगा उतना ही अधिक बड़ा राज व्यक्ति भोगेगा | मंत्री, राजनेता, अध्यक्ष आदि राजनीतिक व्यक्तियों की कुंडली में यह योग होना स्वाभाविक ही है |
नवम भाव और दुर्भाग्य :- यदि नवम भाव का स्वामी ग्रह सूर्य के साथ १० डिग्री के बीच में हो तो निस्संदेह व्यक्ति भाग्यहीन होता है | यदि नवमेश नीच राशी में हो तो व्यक्ति चाहे करोडपति क्यों न हो एक न एक दिन उसे सड़क पर आना पड़ ही जाता है | यदि नवमेश १२वे भाव में हो तो व्यक्ति का भाग्य अपने देश में नहीं चमकता | विदेश में जाकर वहां कष्ट उठाकर जीना पड़ता है | उसकी यही मेहनत उसके भाग्य का निर्माण करती है | नवम भाव का स्वामी बलवान हो या निर्बल, उसकी दशा अन्तर्दशा में व्यक्ति को अवसर खूब मिलते हैं | यदि नवमेश अच्छी स्थिति में होगा तो व्यक्ति अवसर का लाभ उठा पायेगा | अन्यथा अवसर पर अवसर ऐसे ही निकल जाते हैं जैसे मुट्ठी में से रेत | पाप ग्रह इस स्थान में बैठकर भाग्य की हानि करते हैं और शुभ ग्रह मुसीबतों से बचाते हैं | इस स्थान पर बुध, शुक्र, चन्द्र और गुरु का होना व्यक्ति के उज्ज्वल भविष्य को दर्शाता है | मंगल, शनि, राहू और केतु इस स्थान में बैठकर व्यक्ति को दुर्भाग्य के अवसर प्रदान करते हैं | सूर्य का यहाँ होना निस्संदेह एक बहुत बड़ा राजयोग है | सूर्य स्वयं ग्रहों का राजा है और जब राजा ही भाग्य स्थान में बैठ जाए तो राजयोग स्पष्ट हो जाता है | कोई भी ग्रह चाहे वह पाप ग्रह मंगल, शनि ही क्यों न हों, इस स्थान में यदि अपनी राशी में हो तो व्यक्ति बहुत भाग्यशाली हो जाता है | पाप ग्रहों से अंतर केवल इतना पड़ता है कि उसके अशुभ कर्मों में भाग्य उसका साथ देता है

सूर्य - सूर्य पिता का कारक होता है, वहीं सूर्य जातक को मिलने वाली तरक्की, उसके प्रभाव क्षेत्र का कारक होता है। ऐसे में सूर्य के साथ यदि राहु जैसा पाप ग्रह आ जाए तो यह ग्रहण योग बन जाता है अर्थात सूर्य की दीप्ति पर राहु की छाया पड़ जाती है। ऐसे में जातक के पिता को मृत्युतुल्य कष्ट होता है, जातक के भी भाग्योदय में बाधा आती है, उसे कार्यक्षेत्र में विविध संकटों का सामना करना पड़ता है। जब सूर्य और राहु का योग नवम भाव में होता है, तो इसे पितृदोष कहा जाता है। सूर्य और राहु की युति जिस भाव में भी हो, उस भाव के फलों को नष्ट ही करती है और जातक की उन्नाति में सतत बाधा डालती है। विशेषकर यदि चौथे, पाँचवें, दसवें, पहले भाव में हो तो जातक का सारा जीवन संघर्षमय रहता है। सूर्य प्रगति, प्रसिद्धि का कारक है और राहु-केतु की छाया प्रगति को रोक देती है। अतः यह युति किसी भी भाव में हो, मुश्किलें ही पैदा करती है।
 प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा-वस्त्र भेंट करने से पितृदोष कम होता है।

* प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आह्वान करने व उनसे अपने कर्मों के लिए क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है।

* पिता का आदर करने, उनके चरण स्पर्श करने, पितातुल्य सभी मनुष्यों को आदर देने से सूर्य मजबूत होता है।
* सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है।

* सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कुंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।
यह तय है कि पितृदोष होने से जातक को श्रम अधिक करना पड़ता है, फल कम व देर से मिलता है अतः इस हेतु मानसिक तैयारी करना व परिश्रम की आदत डालना श्रेयस्कर रहता है।

Thursday 9 May 2019

अष्टम भाव का महत्व व विशेषता


अष्टम भाव से व्यक्ति की आयु व मृत्यु के स्वरुप का विचार किया जाता है| इस दृष्टि से अष्टम भाव का महत्व किसी भी प्रकार से कम नही है| क्योंकि यदि मनुष्य दीर्घजीवी ही नही तो वह जीवन के समस्त विषयों का आनंद कैसे उठा सकता है? अष्टम भाव त्रिक(6, 8, 12) भावों में सर्वाधिक अशुभ स्थान माना गया है| वैसे भी षष्ठ भाव(रोग, शत्रु, ऋण का भाव) से तृतीय(भ्राता) होने के कारण इसे अशुभता में षष्ठ भाव का भ्राता(भाई) ही समझिये| अष्टम भाव तो अशुभ है ही, कोई भी ग्रह इसका स्वामी होने पर अशुभ भावेश हो जाता है| नवम भाव(भाग्य, धर्म व यश) से द्वादश(हानि) होने के कारण अष्टम भाव मृत्यु या निधन भाव माना गया है| 
क्योंकि भाग्य, धर्म व प्रतिष्ठा का पतन हो जाने से मनुष्य का नाश हो जाता है| फारसी में अष्टम भाव को मौतखाने, उमरखाने व हस्तमखाने कहते हैं| अष्टम भाव से आयु की अंतिम सीमा, मृत्यु का स्वरूप, मृत्युतुल्य कष्ट, आदि का विचार किया जाता है| इसके अतिरिक्त यह भाव वसीयत से लाभ, पुरातत्व, अपयश, गंभीर व दीर्घकालीन रोग, चिंता, संकट, दुर्गति, अविष्कार, स्त्री का मांगल्य(सौभाग्य), स्त्री का धन व दहेज़, गुप्त विज्ञान व पारलौकिक ज्ञान, ख़ोज, किसी विषय में अनुसंधान, समुद्री यात्राएं, गूढ़ विज्ञान, तंत्र-मंत्र-ज्योतिष व कुण्डलिनी जागरण आदि विषयों से भी जुड़ा हुआ है| भावत भावम सिद्धांत के अनुसार किसी भी भाव का स्वामी यदि अपने भाव से अष्टम स्थान में हो या किसी भाव में उस भाव से अष्टम स्थान का स्वामी आकर बैठ जाए अथवा कोई भी भावेश अष्टम स्थान में स्थित हो तो उस भाव के फल का नाश हो जाता है| मनुष्य को जीवन में पीड़ित करने वाले स्थाई प्रकृति के घातक रोग भी अष्टम भाव से देखे जाते हैं| आकस्मिक घटने वाली गंभीर दुर्घटनाओं का विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है| अष्टम भाव तथा अष्टमेश की कल्पना ही मनुष्य के मन में अशुभता का भाव उत्पन्न कर देती है| परंतु ऐसी बात नहीं है अष्टम भाव के कुछ विशिष्ट लाभ भी हैं| किसी भी स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव का सर्वाधिक महत्व होता है| क्योंकि यह भाव उस नारी को विवाहोपरांत प्राप्त होने वाले सुखों का सूचक है| इस भाव से एक विवाहित स्त्री के मांगल्य(सौभाग्य) अर्थात उसके पति की आयु कितनी होगी तथा वैवाहिक जीवन की अवधि कितनी लंबी होगी, इसका विचार किया जाता है| यही कारण है कि इस भाव को मांगल्य स्थान भी कहा जाता है| इसके अलावा अध्यात्मिक क्षेत्र में सक्रिय व्यक्तियों के लिए भी अष्टम भाव एक वरदान से कम नहीं है| क्योंकि यह भाव गूढ़ व परालौकिक विज्ञान, तंत्र-मंत्र-योग आदि विद्याओं से भी संबंधित है इसलिए बलवान अष्टम भाव व अष्टमेश की कृपा बिना कोई भी व्यक्ति इन क्षेत्रों में महारत हासिल नहीं कर सकता| यही कारण है कि जो लोग सच्चे अर्थों में अध्यात्मिक व संत प्रवृति के हैं उनकी पत्रिका में अष्टम भाव, अष्टमेश तथा शनि काफी बली स्थिति में होते हैं| इस भाव का कारक ग्रह शनि है जो कि वास्तविक रूप में एक सच्चा सन्यासी व तपस्वी ग्रह है| रहस्य, सन्यास, त्याग, तपस्या, धैर्य, योग-ध्यान व मानव सेवा आदि विषय बिना शनिदेव की कृपा के मनुष्य को प्राप्त हो ही नहीं सकते| इसके अतिरिक्त जो लोग ख़ोज व अनुसंधान के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं उनके लिए भी अष्टम भाव एक निधि(ख़ज़ाने) से कम नहीं है| इससे यह सिद्ध हो जाता है कि ज्योतिष में कोई भी भाव व ग्रह बुरा नही होता बल्कि हरेक भाव व ग्रह की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं| कोई भी भाव व ग्रह मनुष्य के पूर्व कर्मों के अनुसार ही उसे अच्छा या बुरा फल देने के लिए बाध्य होता है|

-: अष्टम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है :-

  • आयुष्य का निर्णय- अष्टम भाव का मनुष्य की आयु से घनिष्ठ संबंध है| आयु का निर्णय प्रधान रूप से अष्टम भाव व अष्टमेश से किया जाता है| इसके अतिरिक्त लग्न, लग्नेश, तृतीय भाव, तृतीयेश, चन्द्र व शनि जैसे ग्रह आदि भी आयुनिर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| किसी भी व्यक्ति की आयु उसके पूर्व व इस जन्म के कर्मों से प्रभावित होती है अर्थात मनुष्य जैसा कर्म करके आता है और इस जन्म में जैसा कर्म कर रहा होता है उसका प्रभाव मनुष्य की आयु पर निश्चित रूप से पड़ता है| इसलिए आयु का निर्णय करना एक जटिल विषय है| फिर भी मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि यदि किसी भी पत्रिका में लग्न, लग्नेश, तृतीय भाव, तृतीयेश, अष्टम भाव, अष्टमेश तथा चन्द्र व शनि ग्रह बली अवस्था में हो तो व्यक्ति को दीर्घायु प्राप्त होती है| इसके विपरीत इन घटकों के कमजोर अवस्था में होने से व्यक्ति अल्पायु होता है|
  • मृत्यु का स्वरुप अर्थात मरण विधि- व्यक्ति की मृत्यु किस प्रकार और कहाँ होगी इसका विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है| यदि लग्नेश, तृतीयेश, एकादशेश तथा सूर्य आदि निजत्व(Self) के प्रतीक ग्रहों का प्रभाव अष्टम भाव तथा अष्टमेश पर पड़ता हो तो मनुष्य आत्मघात(Suicide) कर लेता है| यदि षष्ठेश, एकादशेश तथा मंगल का प्रभाव अष्टम भाव व उसके अधिपति पर हो तो चोट अथवा दुर्घटना आदि के द्वारा व्यक्ति की मृत्यु होती है| अष्टम भाव व अष्टमेश पर पाप व क्रूर ग्रहों का प्रभाव किसी दुर्घटना, चोट, व आकस्मिक कष्ट के कारण मृत्यु को बताता है जबकि इन घटकों पर शुभ ग्रहों के प्रभाव से मनुष्य की मृत्यु शांतिपूर्ण ढंग से होती है|
  • अष्टम भाव तथा विपरीत राजयोग- अष्टम भाव एक सर्वाधिक अशुभ भाव है| इसके साथ साथ छठा, बारहवां भाव भी अशुभ माने गए हैं| यदि अष्टम भाव का स्वामी छठे अथवा बाहरवें भाव में बैठा हो और केवल पाप ग्रहों से प्रभावित हो तो विपरीत राजयोग का निर्माण करता है| जिसके फलस्वरूप मनुष्य को अत्यंत धन-संपति की प्राप्ति होती है| इसके पीछे गणित का यह तर्क है कि जब दो नकारात्मक चीजें मिलती हैं तो वह शुभ फलदायी हो जाती हैं|
  • कर्कश जीवनसाथी- अष्टम भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से द्वितीय(वाणी) है अर्थात यह जीवनसाथी की वाणी तथा उसके बोलने के व्यवहार को दर्शाता है| यदि अष्टम भाव का स्वामी पाप ग्रह होकर अन्य पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो मनुष्य का जीवनसाथी कर्कश(कठोर व कड़वी) वाणी बोलने वाला होता है| इसके विपरीत यदि इन घटकों पर शुभ ग्रह का प्रभाव हो तो जीवनसाथी शिष्ट तथा मधुर वचन बोलने वाला होता है|
  • विदेश यात्रा- अष्टम स्थान “समुद्र” का है| समुद्र पार की यात्रा विदेश यात्रा मानी जाती है| जब अष्टम भाव तथा अष्टमेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तब समुद्र पार विदेश यात्रा करने का योग बनता है|
  • गूढ़ ख़ोज, शोध व अनुसंधान- अष्टम भाव गूढ़ रहस्य, ख़ोज व अनुसंधान से संबंधित भाव है| तृतीय भाव अष्टम भाव से अष्टम है, अतः यह भी गूढ़ ख़ोज तथा अनुसंधान से जुड़ा भाव है| पंचम भाव व्यक्ति की बुद्धि को दर्शाता है| इसलिए जब भी तृतीयेश तथा अष्टमेश का पंचम भाव तथा पंचमेश से संबंध बनता है तो व्यक्ति महान अविष्कारक, गूढ़ ख़ोज करने वाला, उच्च कोटि का अनुसंधानकर्ता होता है| यह अनुसंधान ग्रहों की प्रकृति के अनुरूप भौतिक या अध्यात्मिक जगत के किसी भी क्षेत्र से जुड़ा हो सकता है|
  • अष्टम भाव तथा असाध्य रोग- अष्टम भाव का गंभीर व असाध्य रोगों से भी संबंध है| जो रोग असाध्य तथा दीर्घकालीन होते हैं उनका विचार अष्टम भाव से ही किया जाता है| यदि अष्टम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति को नेत्र, हृदय तथा हड्डियों से संबंधित रोग होता है| यदि चन्द्र अष्टम भाव में हो तो मनुष्य को रक्त विकार, टी. बी., मनोरोग आदि होता है| मंगल अष्टम भाव में हो तो बवासीर, पट्ठे का रोग(atrophy of muscles), गुप्त रोग, गुप्त अंगों की शल्य चिकित्सा आदि होती है| यदि बुध अष्टम भाव में हो दमा, श्वास,वाणी, त्वचा, मस्तिष्क संबंधी विकार होते हैं| गुरु यदि अष्टम भाव में हो तो जिगर(लीवर), तिल्ली(Spleen) आदि से संबंधित रोग होते हैं| यदि शुक्र अष्टम भाव में हो तो मनुष्य को वीर्य व काम शक्ति संबंधित रोग होते हैं| शनि अष्टम भाव में हो तो मनुष्य को दीर्घायु प्रदान करता है, परंतु उसे स्नायु तथा वायु संबंधित रोग होते हैं| यदि राहु-केतु अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति को गुप्त रोग, गुप्त अंगों की शल्य चिकित्सा, मुख के रोग तथा कैंसर आदि असाध्य रोग होते हैं|
  • अष्टम भाव तथा नाश- अष्टम भाव एक नाश स्थान है इसलिए इसे निधन भाव भी कहते हैं| जिस भाव का स्वामी इस भाव में आ जाता है, उस भाव संबंधित विषयों को हानि पहुँचती है| जैसे पंचम भाव(संतान) का स्वामी यदि अष्टम भाव में आ जाए तो व्यक्ति को संतान संबंधित कष्ट होता है| इसी प्रकार यदि एकादशेश(ज्येष्ठ भ्राता व भगिनी) अष्टम भाव में बैठ जाए तो बड़े भाई-बहन की मृत्यु होती है|
  • अष्टम स्थान तथा दाम्पत्य सुख- अष्टम स्थान सप्तम स्थान(विवाह) से द्वितीय(घर तथा कुटुंब सुख) है| अतः इसका संबंध विवाहोपरांत मिलने वाले सुखों से भी है| स्त्री के लिए यह उसके पति की आयु तथा उसके कुटुंब(ससुराल) से प्राप्त होने वाले सुखों को दर्शाता है| अतः यदि अष्टम भाव तथा अष्टमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो स्त्री का पति दीर्घायु होता है तथा ससुराल पक्ष से भी उस स्त्री को पूर्ण सुख मिलता है|
  • दुर्घटना तथा आकस्मिक आघात- अष्टम भाव दुर्घटनाओं के अलावा आकस्मिक आघात का भी है| व्यक्ति के साथ होने वाली गंभीर दुर्घटना अथवा आकस्मिक शारीरिक आघात इसी भाव से देखे जाते हैं|
  • उत्तराधिकार व अनार्जित धन- वसीयत या पैत्रिक संपति का विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है| एकादश भाव लाभ का सूचक होता है जबकि द्वितीय तथा चतुर्थ भाव पैत्रिक धन-संपति तथा जायदाद के सूचक होते हैं| जब भी एकादशेश, द्वितीयेश तथा चतुर्थेश का संबंध अष्टम भाव व अष्टमेश से बनता है तब मनुष्य को अपने पूर्वजों की विरासत, पैत्रिक धन संपति व जायदाद प्राप्त होती है| सप्तम भाव(पत्नी) से द्वितीय स्थान(धन) होने के कारण अष्टम भाव स्त्री के धन तथा ससुराल पक्ष से मिलने वाले धन(दहेज़) का प्रतीक भी है क्योंकि आखिरकार दहेज़ अनार्जित धन का ही तो रूप है|
  • असामाजिक संबंध- अष्टम भाव एक छुपा हुआ भाव है अर्थात इसका संबंध रहस्यों से है| इसलिए कोई भी ऐसा कार्य अथवा संबंध जो असामाजिक हो इसी भाव से देखा जाता है| यदि अष्टम भाव तथा अष्टमेश पर पाप व क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहने, तस्करी या चोरी करने अथवा असामाजिक तत्वों के साथ लिप्त रहने जैसा कार्य कर सकता है| दशम भाव(कर्म) के स्वामी का अष्टम भाव(असामाजिक कार्य या संबंध) से संबंधित होकर पाप प्रभाव द्वारा पीड़ित होना व्यक्ति को चोर, डाकू, लुटेरा यहाँ तक कि हत्यारा तक बना सकता है|
  • Tuesday 26 March 2019

    सप्तम भाव का महत्व व विशेषता


    दाम्पत्य जीवन तभी सही चलता है जब एक-दूसरे में सही तालमेल हो अन्यथा जीवन नश्वर ही समझो। दाम्पत्य की गाडी़ सही चले इसके लिए अपने जीवनसाथी का स्वभाव व व्यवहार के साथ वाणी भी अच्छी होना चाहिए। वहीं पति को भी अपनी पत्नी के प्रति सजग व वफादार होना चाहिए। कई बार दाम्पत्य जीवन आर्थिक दृष्टिकोण की वजह से, अन्य संबंधों के चलते भी टूट जाता है। शंका भी दाम्पत्य जीवन में दरार का कारण बनती है। कभी-कभी पारिवारिक तालमेल का अभाव भी एक कारण बनता है। 

    इन सबके लिए सप्तम भाव, लग्न, चतुर्थ, पंचम भाव के साथ-साथ शुक्र-शनि-मंगल का संबंध भी महत्वपूर्ण माना गया है। चतुर्थ भाव में यदि शनि सिंह राशि का हो या मंगल की मेष या वृश्चिक राशि का हो या राहु के साथ हो तो पारिवारिक जीवन कलहपूर्ण रहता है। शनि-मंगल का दृष्टी संबंध हो या युति हो तो भी पारिवारिक जीवन नष्ट होता है। कोई भी नीच का ग्रह हो तब भी पारिवारिक कलह का कारण बनता है। यदि ऐसी स्थिति हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को जमीन में गाड़ देवें। लग्न का स्वामी नीच का हो या लग्न में कोई नीच ग्रह हो तो वह जातक को बुरी प्रवृति का बना देता है। लग्न का स्वामी शनि मंगल से पीडि़त नहीं होना चाहिए। पंचम भाव प्रेम व सन्तान का होता है यदि यह भाव शनि-मंगल के साथ हो या दृष्टि संबंध रखता हो तो उस जातक के जीवन में सन्तान का अभाव या सन्तान से पीडा़ रहती है व उसके जीवन में प्रेम का अभाव रह सकता है। सप्तम भाव जीवनसाथी का होता है, इस भाव का स्वामी राहु से पीडि़त हो तो दाम्पत्य जीवन बाधित रहेगा। इस भाव में भावेश के साथ शनि-मंगल हो तो द्वितीय विवाह होता है या दाम्पत्य जीवन में बाधा रहती है।  सप्तमेश एक घर पीछे यानी (छठवें भाव) सप्तम से द्वादश होगा ऐसी स्थिति भी बाधा का कारण बनती है। यदि ऐसी स्थिति किसी की पत्रिका में हो तो वे उससे संबंधित वस्तु को एक दिन अपने पास रखकर सोए एवं किसी स्वच्छ जमीन में या श्मशान भूमि में गाड़ दें।  शुक्र कला, प्रेम, दाम्पत्य का कारक नीच का हो, अस्त हो या वक्री हो तो दाम्पत्य जीवन में बाधा रहती है। लग्न में मंगल हो व शनि सप्तम भावस्थ हो तो निश्चित बाधा का कारण बनता है। सप्तमेश अष्टम में होना भी कष्टकारी रहता है। शुक्र सूर्य से अस्त हो या सूर्य-बुध के साथ शुक्र का होना भी ठीक नहीं रहता। लग्न में सूर्य या सप्तम में शनि या सूर्य हो तो विवाह में बाधा का कारण बनता है। सप्तम भाव के एक घर पीछे व एक घर आगे क्रूर ग्रह का होना भी ठीक नहीं रहता। नीच का गुरु भी ठीक फल नहीं देता, गुरु के साथ राहु का होना भी कहीं ना कहीं कष्टकारी बनता ही है। शुक्र मंगल की राशि में हो व मंगल शुक्र की राशि में हो तो उस जातक का चरित्र संदिग्ध रहता है। इस कारण दाम्पत्य जीवन में बाधा रहती है। 

    -: सप्तम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है :-

  • जीवनसाथी- व्यक्ति के जीवनसाथी का ज्ञान सप्तम भाव से होता है| यह भाव साझेदारी का स्थान है तथा विवाह किसी भी व्यक्ति के जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण साझेदारी है|
  • विवाह- यह भाव व्यक्ति के विवाह का स्वरुप तथा विवाह होने के समय को दर्शाता है| इस भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव विवाह होने की संभावनाओं को नष्ट भी कर सकते हैं|
    * मृत्यु- प्रथम भाव जीवन के आरंभ होने का सूचक है, सप्तम भाव जो इसके प्रत्यक्ष विपरीत भाव है जीवन का अंत अर्थात मृत्यु को दर्शाता है| अष्टम भाव(आयु स्थान) से द्वादश भाव(हानि) होने के कारण यह एक मारक भाव है| सप्तम भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में व्यक्ति का शारीरिक अरिष्ट हो सकता है|
  • साझेदारी- विवाह एक आजीवन साझेदारी है| इसके अतिरिक्त सप्तम भाव व्यवसाय तथा व्यापार से संबंधित अन्य साझेदारियों को भी दर्शाता है| व्यक्ति को कोई भी व्यवसाय साझेदारी में करना चाहिए अथवा नहीं, साझेदारी से उसे लाभ मिलेगा या हानि, आदि का विचार भी सप्तम भाव से किया जाता है|
  • विदेश यात्राएं- तृतीय तथा नवम भाव के अतिरिक्त सप्तम भाव का भी विदेश यात्राओं से प्रत्यक्ष संबंध है| यह यात्राएं सूक्ष्म अवधि की होंगी या दीर्घकालीन, यह इस भाव पर पड़ने वाले ग्रहों की प्रकृति के अनुसार पता चलता है|
  • विदेश वास- व्यक्ति विदेश वास भी कर सकता है, क्योंकि सप्तम भाव चतुर्थ स्थान(घर) से चतुर्थ है अतः इसका संबंध भी व्यक्ति के निवास से है|
  • सूक्ष्म कर्मस्थान- यह भाव दशम स्थान(कर्म) से दशम है, अतः यह कर्म की प्रकृति को दर्शाता है| व्यक्ति का कार्यक्षेत्र क्या होगा आदि का विचार करते समय दशम स्थान के अतिरिक्त सप्तम भाव की सहायता भी लेनी चाहिए| कर्म के संबंध में यह एक सूक्ष्म कर्मस्थान माना गया है|
  • समृद्धशाली जीवनसाथी- जब सप्तम भाव तथा सप्तमेश बली हो और अन्य मूल्यप्रद व राजसी ग्रहों का शुभ प्रभाव इन घटकों पर हो तो व्यक्ति का विवाह सम्मानीय तथा समृद्धशाली घराने में होता है| उदहारण के लिए यदि कुंभ लग्न हो और सप्तम भाव तथा सप्तमेश सूर्य पर चन्द्र(राजसी ग्रह) व गुरु(सम्मानीय व वृद्धिकारक ग्रह) जैसे ग्रहों का प्रभाव हो मनुष्य का विवाह किसी शाही व सम्मानीय परिवार या राजघराने में होता है|
  • जीवनसाथी का सौन्दर्य- सप्तम भाव जीवनसाथी का प्रधान भाव है| जब सप्तम स्थान तथा सप्तमेश पर सौंदर्य प्रधान ग्रहों चन्द्र, शुक्र, बुध का प्रभाव होता है तो व्यक्ति को सुंदर व रूपवान जीवनसाथी की प्राप्ति होती है|
  • मारकेश- सप्तम भाव एक मारक स्थान है| अष्टम भाव(आयु) का व्ययस्थान(हानि) होने के कारण इस भाव के स्वामी की दशा में जातक की मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट होता है| विशेष कर यदि सप्तम भाव का स्वामी निर्बल होकर द्वितीय, षष्ठ, अष्टम अथवा द्वादश स्थान में हो और आयु खंड पूर्ण हो गया हो तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा व्यक्ति के लिए मारक सिद्ध हो सकती है|
  • यौनांग- सप्तम भाव कालपुरुष के यौनांग का प्रतीक है| अतः सप्तम स्थान पर किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव व्यक्ति के यौन भाग में व्याधि का सूचक है|
  • कामेच्छा- व्यक्ति की कामेच्छा का उसके शरीर शरीर के यौनागों से प्रत्यक्ष संबंध है| अतः सप्तम स्थान व्यक्ति की कामेच्छा को भी अभिव्यक्त करता है| क्या यह विकृत है अथवा नहीं यह सप्तम स्थान से ज्ञात हो सकता है| क्रूर ग्रहों एवं मंगल तथा शुक्र का सप्तम भाव पर प्रभाव मनुष्य को विकृत कामेच्छा दे सकता है|
  • दांपत्य सुख-दुःख- सप्तम भाव का विवाह से गहन संबंध है क्योंकि विवाह इसी स्थान से निर्धारित होता है| यदि सप्तम भाव तथा सप्तमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति को उत्तम विवाह सुख प्राप्त होता है| इसके विपरीत यदि यह घटक पीड़ित हों और पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति का वैवाहिक जीवन कष्टमय होता है यहाँ तक की जीवनसाथी से उसका तलाक़ भी हो सकता है|
  • कुजदोष- कुजदोष सिर्फ मंगल ग्रह से ही उत्पन्न नही होता| मंगल के अतिरिक्त सूर्य, शनि, राहु, केतु आदि ग्रह भी कुंडली में कुजदोष का निर्माण करते हैं| जब भी किसी पत्रिका में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम तथा अष्टम भाव में उपरोक्त ग्रह स्थित हों तो वह पत्रिका कुज दोष से पीड़ित होती है| सप्तम भाव विवाह का प्रधान भाव है अतः इस भाव में इन पाप ग्रहों की स्थिति बलवान कुजदोष का निर्माण करती है| दक्षिण भारत में यदि ये पाप ग्रह द्वितीय भाव में बैठे हों तो भी जन्मकुंडली कुजदोष से पीड़ित होती है| इसका कारण यह है कि द्वितीय भाव व्यक्ति के परिवार व कुटुंब का है| इसके अतिरिक्त द्वितीय भाव सप्तम भाव(जीवनसाथी) से अष्टम स्थान(आयु) होने के कारण जीवनसाथी की आयु से भी संबंधित है अतः द्वितीय भाव के इन पाप ग्रहों से पीड़ित होने के कारण व्यक्ति को पारिवारिक कष्ट के अलावा वैधव्य देखना पड़ सकता है| यही कारण है कि दक्षिण भारत में द्वितीय भाव में स्थित पाप ग्रहों को भी कुजदोष की श्रेणी में रखा जाता है| कुजदोष निर्माण में केवल मंगल को दोष देना व्यर्थ होगा |
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    Friday 15 February 2019

    षष्ठ भाव का महत्व और विशेषताएँ


    छठे भाव से आजीविका का विचार :- छठा भाव त्रिक भावों में से एक भाव है. 6,8 व 12 वें भाव को त्रिक भावों के नाम से जाना जाता है। तथा त्रिक भावों को शुभ भाव नहीं कहा जाता है। इन भावों का संबन्ध जिन भी ग्रहों व भावेशों से बनता है उनकी शुभता में कमी आती है
    छठे भाव को रोग भाव, ऋण व सेवा भाव के नाम से भी जाना जाता है
    । व्यक्ति के शत्रु भी इसी भाव से देखे जाते है. यह भाव उपचय भावों में भी शामिल किया गया है। इसके अलावा छठा भाव अर्थ भाव ( दूसरा, छठा व दशम भाव) भी है. इस भाव पर गुरु की दृ्ष्टि व्यक्ति को जीवन में अर्थ की कमी नहीं होने देती, इस प्रकार इस भाव की भूमिका को आजीविका के क्षेत्र में कम नहीं समझना चाहिए

     
    एक अन्य मत के अनुसार इस भाव से एसे सभी कार्य जो अधिक मेहनत से पूरे होते है, कर्मचारी, सेवक आदि का विचार इस भाव से करना चाहिए
    । इस भाव में शुभ ग्रहों का एक साथ स्थित होना, व्यक्ति को सेवा कार्यो में सदभाव व स्नेह का भाव देता है
    ऋण भाव इसके विपरीत यह ऋण का भाव भी है
    । आजीविका के कार्यो को पूर्ण करने के लिये तथा इसका विस्तार करने के लिये ऋण लेने की स्थिति आती ही रहती है। किसी व्यक्ति के लिये ऋण लेना सरल होगा या नहीं, इसका विचार करने के लिये इस भाव में अगर शुभ ग्रह स्थित हों तो ऋण लेने में बाधाएं आती है. अन्यथा यह सरलता से प्राप्त हो जाता है
    इस भाव के स्वामी का अशुभ प्रभाव में होने पर व्यक्ति के रोग ग्रस्त होने की संभावनाएं बढ जाती है
    । इस भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव व्यक्ति को बिमारियां शीघ्र होने की संभावनाएं बनाता है

     
    षष्ट भाव में अशुभ ग्रह :- जब कुण्डली के छठे भाव में अशुभ ग्रह स्थित हों तो व्यक्ति की आजीविका में बाधाएं देते है
    । इस योग के फलों को देखते समय इन अशुभ ग्रहों पर शुभ ग्रहों का प्रभाव नहीं होना चाहिए। इस भाव में चन्द्र या शुक्र की स्थिति होने पर व्यक्ति अस्पताल या होटल से संबन्धित क्षेत्रों में आजीविका प्राप्त कर सफल हो रहा होता है।


    यह भाव अस्पताल का भाव है :- सूर्य या राहू अशुभ ग्रह होकर व्यक्ति को चिकित्सक बनने की योग्यताएं देते है
    । चिकित्सा भाव से जुडे के लिये व्यक्ति की कुंडली में चन्द्र का नीच राशि में होना इस योग में वृ्द्धि करता है। छठे भाव से मंगल का संबन्ध व्यक्ति को सेना या पुलिस के क्षेत्र में काम करने के अवसर देता है। इस भाव से जब शनि का संबन्ध बनता है। तो व्यक्ति को न्याय के क्षेत्र में सफलता मिलने की संभावनाएं रहती है
     

    छठे भाव की राशियां :- जब छठे भाव में हिंसक राशियां अर्थात (1,2,8,11 वीं राशि ) हों, तथा इस भाव में एक से अधिक पाप ग्रह एक-दूसरे से निकटतम अंशों पर स्थित हों तो व्यक्ति को नौकरी से निकाले जाने का योग बनता है। इस प्रकार बनने वाले अन्य योग केतु व शनि निकटतम अंशों के साथ छठे भाव में स्थित हों तो भी उपरोक्त योग बनता है। एक अन्य मत के अनुसार इस भाव में मंगल, शनि, राहू व केतु आजीविका क्षेत्र में परेशानियां देते है। इस भाव में चन्द्र व्यक्ति के मन को कठोर बनाता है। अर्थात इस भाव में चन्द्र होने पर व्यक्ति शीघ्र विचलित नहीं होता है। फिर भी चन्द्र की शुभता देखने के लिये उसका पक्ष बल भी अवश्य देख लेना चाहिए

     
    छठे भाव में पीडित मंगल :- जब कुण्डली में मंगल पीडित होकर स्थित हों तथा लग्न भाव में अपनी राशि से दृष्टि संबन्ध बना रहे हों, तो व्यक्ति पुलिस विभाग में या अन्य किसी विभाग में अनितिपूर्ण तरीके से धन कमाने का प्रयास करता है, अष्टम का मंगल तीसरे भाव में अपनी राशि को देखे उसे बली कर रहा हों तब भी व्यक्ति के पुलिस विभाग में गलत तरीके से धन प्राप्त करने के योग बनते है
    । इस भाव में मंगल व चन्द्र का सम्बन्ध व्यक्ति के सर्जन बनने की योग्यता देता है। 

     

    वकालत के क्षेत्र में सफलता के योग :- जब कुण्डली में छठा भाव, तीसरा भाव व नवम भाव बली हो तथा इन भावों से मंगल व शनि का संबन्ध होने पर व्यक्ति अपने पराक्रम के बल पर कानून के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। इस भाव में शनि बली अवस्था में हों तो व्यक्ति को व्यापार के स्थान पर नौकरी करना अधिक पसन्द होता है। शनि नौकरी या सेवा के कारक ग्रह है। वे जब कुण्डली में सुस्थिर होकर स्थित हों तो व्यक्ति अपने सभी काम स्वयं करना पसन्द करता है

    Sunday 27 January 2019

    पंचम भाव का महत्व और विशेषताएँ


    पंचम भाव का परिचय- पंचम भाव एक त्रिकोण भाव हैं। कुंडली के तीन त्रिकोण स्थान, अर्थात प्रथम, पंचम व नवम स्थान में से पंचम स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। यह भाव संचित पूर्व-पुण्य, अर्थात पूर्व जन्म के कर्मों के संग्रह को दर्शाता है, इसलिए इसका एक नाम पूर्व पुण्य भाव भी हैं। व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्म उसके वर्तमान जीवन को प्रभावित करते हैं, इसलिए पंचम भाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाव हैं।

    व्यक्ति की संतान संख्या का अनुमान भी पंचम भाव से लगाया जा सकता हैं। अतः यह पुत्र भाव अथवा संतान का स्थान भी है, पंचम भाव यह भी दर्शाता है कि मनुष्य की आत्मा अध्यात्मिक क्षेत्र में कितनी उन्नत हैं। केवल यही नही, यह इसके अतिरिक्त यह भी बताता है कि व्यक्ति मंत्र ज्ञान से अपना अध्यात्मिक विकास करने में कितना समर्थ हैं। अतः इसे मंत्र भाव कहना भी सर्वथा उपयुक्त हैं। इस भाव के विचारणीय विषयों में ज्ञानार्जन व संतान दोनों ही मानव जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं हैं। शास्त्रों के अनुसार बिना पुत्र के मनुष्य की सद्गति नही होती। वर्तमान युग में यही बात ज्ञान के विषय में भी कही जा सकती हैं। यदि यह कहा जाए कि बिना ज्ञान के मनुष्य की दुर्गति होती है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, इसलिए एक व्यक्ति अपने जीवन में कितना ज्ञानार्जन कर सकता है, यह भी इस भाव से पता चलता हैं। पंचम स्थान से संतान, बुद्धि, स्मरण शक्ति, विश्लेषण क्षमता, ज्ञानार्जन करने व किसी भी विषय को समझने की क्षमता, इष्टदेव की आराधना, प्रेम विवाह, राजयोग, मंत्र-तंत्र में रूचि व सफलता, माता का धन, सट्टे व लॉटरी से आकस्मिक धन लाभ, प्रियतम या प्रियतमा, उदर, पाचन संस्थान, यकृत, गर्भाशय आदि का विचार किया जाता हैं। लग्न, पंचम व नवम भाव एक-दूसरे के साथ त्रिकोण बनाते हैं। त्रिकोण के रूप में पंचम स्थान एक शुभ भाव हैं।| इस भाव का स्वामी होने पर भावेश के रूप में प्रत्येक ग्रह का शुभ फल बढ़ जाता हैं। इस भाव का कारक ग्रह गुरु हैं।
     
    इस भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-
    ज्ञान- व्यक्ति कितना बुद्धिमान है एवं उसकी ग्राह्य शक्ति कितनी प्रखर है, इसका बोध इस स्थान पर पड़ने वाले प्रभाव से निर्धारित हो सकता हैं। यदि पंचम भाव, पंचमेश व बुध पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति अत्यंत ज्ञानी व कुशाग्र बुद्धि का हो सकता हैं। इसके विपरीत इन घटकों पर पाप प्रभाव व्यक्ति को जड़ मति बनाकर मनोरोग दे सकता हैं।
    संतान- इस भाव से यह ज्ञात हो सकता है कि मनुष्य को संतान की प्राप्ति होगी अथवा नहीं। संतान कब होगी, कितनी होगी, उनका लिंग क्या होगा आदि बातों का पता भी इस भाव का विश्लेषण करने से पता चल सकता है।  इस भाव पर शुभ प्रभाव संतान के स्वास्थ्य व प्रगति के लिए शुभ होता है। यदि यह भाव पीड़ित हो तो संतान को कष्ट संभव है।
    पितृ भाव- पंचम स्थान नवम भाव से नवम है इसलिए यह पितृ स्थान भी है, अर्थात पिता संबंधी विषयों के बारे में जानने के लिए नवम भाव के अतिरिक्त पंचम भाव की सहायता भी लेनी चाहिए।
    पितृदोष- इस भाव पर क्रूर व पाप ग्रहों का प्रभाव पितृ दोष का सूचक है जिसका अर्थ है कि व्यक्ति से किसी न किसी प्रकार के पाप कर्म पूर्वजन्म में अवश्य हुए थे जिसके कारण उसे पितृ प्रकोप का भागी बनना पड़ा है।
    शास्त्रीय ज्ञान- यह भाव धर्म त्रिकोण के अंतर्गत आता है इसलिए यह व्यक्ति की शास्त्रों के पवित्र ज्ञान को ग्रहण करने की क्षमता को भी बताता है। क्योंकि यह धर्म स्थान अर्थात नवम भाव से नवम भी है।
    अध्ययन में अभिरुचि- यह भाव मूलतः ज्ञान का स्थान है, अतः किसी भी प्रकार के ज्ञान को अर्जित करने इस स्थान से संबंधित है। परंतु यह कहना ज्यादा उचित होगा कि मनुष्य की रूचि जिस प्रकार के शास्त्र अध्ययन में होगी यह भाव उसमें सहायता करेगा।
    मातृ अरिष्ट- यह भाव चतुर्थ भाव से द्वितीय स्थान(मारक भाव) स्थान है, इसलिए यह माता को अरिष्ट प्रदान करता है| इस भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में माता को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती है।
    मंत्र सिद्धि- यह भाव मनुष्य की तंत्र मंत्र में रूचि को भी दर्शाता है| व्यक्ति को मंत्रों की सिद्धि होगी भी या नहीं और वह उसके लिए कितनी फलदायी रहेगी आदि बातों का पता भी इसी भाव से चलता है।

    तीर्थ यात्राएं- यह भाव नवम स्थान से नवम है इसलिए इसका नवम भाव(धर्म स्थान) से घनिष्ठ संबंध है। नवम भाव हमारी तीर्थ यात्राओं से भी संबंधित है, इसी कारण पंचम भाव से भी तीर्थ यात्राओं का विचार किया जाता है। व्यक्ति कब और किस प्रयोजन से तीर्थ यात्रा करेगा आदि बातों का पता नवम भाव के अतिरिक्त इस भाव से भी चलता है।
    इष्टदेव- पंचम भाव का संबंध हमारे इष्टदेव से भी होता है। मनुष्य को किस देवी अथवा देवता की पूजा करनी चाहिए और वह उसके लिए कितनी फलदायी रहेगी आदि बातों की जानकारी भी इस भाव से पता चलती है।
    प्रेम विवाह- पचम स्थान प्रियतम अथवा प्रियतमा का है। जब इस भाव का संबंध सप्तम भाव व सप्तमेश से हो जाता है तो व्यक्ति परंपरागत विवाह न करके प्रेम विवाह करने के लिए प्रेरित होता है।
    मनोरंजन व सट्टा-लॉटरी- पंचम भाव मनोरंजन का भी है। मनोरंजन के विभिन्न साधन जैसे सिनेमा, क्लब, जुआघर, सट्टे-लॉटरी आदि का विचार इसी भाव से करते हैं, यदि बुध और शुक्र चतुर्थेश व पंचमेश होकर एक-दूसरे से संबंध बनाए तो व्यक्ति की रूचि एक्टिंग, सिनेमा, क्लब, सट्टे व लॉटरी आदि में होती है।

    Monday 14 January 2019

    चतुर्थ भाव का महत्व और विशेषताएँ


    कुंडली मे चतुर्थ भाव सुख स्थान या मातृ स्थान के नाम से जाना जाता है।
    इस भाव में व्यक्ति को प्राप्त हो सकने वाले समस्त सुख विद्यमान है इसलिए इसे सुख स्थान कहते हैं।
    मनुष्य का प्रथम सुख माता के आँचल में होता है केवल वही है जो व्यक्ति की तब तक रक्षा करती है, जब तक वह अपने सुख को अर्जित करने में सक्षम न हो जाए चतुर्थ भाव व्यक्ति की माता से संबंधित समस्त विषयों की जानकारी भी देता है इसलिए इसे मातृ भाव भी कहा जाता है।



    तृतीय भाव से दूसरा भाव होने के कारण यह भाई-बहनों के धन को भी सूचित करता है। ज्योतिष में यह विष्णु स्थान है तथा एक शुभ भाव माना जाता है, परंतु यदि शुभ ग्रह इस भाव का स्वामी हो तो उसे केन्द्राधिपत्य दोष भी लगता है, पर कुंडली मे अगर अन्य ग्रहों की स्थिति मज़बूत हो तो दोष कमज़ोर हो जाता है।
    यह केंद्र भावों में से एक भाव माना गया है मानव जीवन में इस भाव का बहुत अधिक महत्व है किसी भी मनुष्य के पास भौतिक साधन कितनी भी अधिक मात्रा में क्यों न हों यदि उसके जीवन में सुख-शांति ही नही तो क्या लाभ? इसलिए इस भाव से मनुष्य को प्राप्त होने वाले सभी प्रकार के सुखों का विचार किया जाता है।
    जन्मकुंडली में यह भाव उत्तर दिशा तथा अर्द्धरात्रि को प्रदर्शित करता है इस भाव से सुख के अतिरिक्त माता, वाहन, शिक्षा, वक्षस्थल, पारिवारिक सुख, भूमि, कृषि, भवन, चल-अचल संपति, मातृ भूमि, भूमिगत वस्तुएं, मानसिक शांति आदि का विचार किया जाता है।
    चतुर्थ भाव मुख्य केंद्र स्थान है "द्वितीय केंद्र" के नाम से प्रसिद्ध यह कालपुरुष के वक्षस्थल का कारक है, यही कारण है, कि इस जीवन में पर्याप्त सुख व आनंद प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का हृदय निर्मल होना चाहिए
    चतुर्थ भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-।
    सुख- चतुर्थ भाव से हम किसी भी व्यक्ति के जीवन के समस्त सुखों का विश्लेषण करते हैं यह भाव मातृ स्नेह एवं उनसे प्राप्त संरक्षण, पारिवारिक सदस्यों, निवास, वाहन आदि से प्राप्त होने वाले सुखों को दर्शाता है।
    माता- यह भाव व्यक्ति की माता, उनका स्वभाव, चरित्र तथा विशेषताओं को सूचित करता है मनुष्य की माता को जो सुख-सुविधाएं प्राप्त होंगी वे सब इस भाव से तथा मातृ कारक चन्द्र के आधार पर देखी जाती हैं।
    निवास(घर)- यह भाव मनुष्य के निवास स्थान अथवा घर का भी प्रतीक है किसी भी व्यक्ति के सुखमय जीवन के लिए उसके पास निवास स्थान होना अनिवार्य है व्यक्ति केवल गृह में ही विश्राम कर सकता है, अन्य किसी स्थान पर नहीं मनुष्य का निजी घर उसका अतिरिक्त सुख ही है।
    संपति- यह भाव चल व अचल दोनों प्रकार की संपति को दर्शाता है शुक्र चल संपति जैसे मोटर, वाहन का कारक है तथा मंगल अचल संपति का कारक होता है।
    कृषि- यह भाव भूमिगत वस्तुओं का प्रतीक है इसलिए यह स्थान कृषि से भी जुड़ा हुआ है।
    चतुर्थ भाव का दशम भाव व मंगल से संबंध होना कृषि अथवा कृषि-उत्पादों से संबंधित व्यवसाय का सूचक है,
    जीवनसाथी का कर्मस्थान- यह भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से दशम है इसलिए यह जीवनसाथी के कार्यक्षेत्र व उसकी आय को बताता है।
    शिक्षा- यह भाव व्यक्ति की शिक्षा संबंधी संभावनाओं को दर्शाता है मनुष्य कितनी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम है, और वह किस प्रकार की शिक्षा ग्रहण करेगा यह इस भाव से ज्ञात हो सकता है।
    संतान अरिष्ट- यह भाव पंचम स्थान से द्वादश है अतः यह संतान के अरिष्ट का सूचक माना जाता है इस भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में किसी भी व्यक्ति की संतान को शारीरिक कष्ट हो सकता है।
    मानसिक शांति- यह भाव व्यक्ति की मानसिक शांति का प्रतीक भी है चतुर्थ स्थान व चतुर्थेश के पीड़ित होने से व्यक्ति मानसिक शांति से वंचित हो सकता है इसलिए इस भाव से यह भी पता चलता है कि मनुष्य को मानसिक शांति प्राप्त होगी या नहीं इस भाव के पीड़ित होने से व्यक्ति को मनोरोग हो सकते हैं।
    वक्षस्थल- यह भाव कालपुरुष के वक्षस्थल का सूचक है इस भाव तथा इसके स्वामी के पीड़ित होने से व्यक्ति को छाती या वक्षस्थल से संबंधित रोग अथवा कष्ट हो सकता है।
    वाहन- इस भाव से वाहन संबंधी सूचना भी प्राप्त होती है, किसी व्यक्ति के पास वाहन होगा या नहीं, वाहन की संख्या व उनसे मिलने वाले लाभ की जानकारी भी इस भाव से पता चल सकती है, यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा वाहन कारक शुक्र कुडंली में बली हों तो मनुष्य को उत्तम वाहन सुख प्राप्त होता है इसके विपरीत इन घटकों के पीड़ित होने से व्यक्ति वाहन सुख से वंचित हो जाता है।
    स्थान परिवर्तन- यह भाव व्यक्ति के निवास से जुड़ा है अतः यदि चतुर्थ स्थान, चतुर्थेश पर शनि, सूर्य, राहु तथा द्वादशेश का प्रभाव हो तो इस पृथकता जनक प्रभाव के कारण मनुष्य को अपना घर-बार, जन्मस्थान तक छोड़ना पड़ता है।
    जन-सेवा- चतुर्थ स्थान जनता से संबंधित भाव है इसलिए यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश एवं चन्द्र के साथ लग्नेश का युति अथवा दृष्टि द्वारा संबंध हो तो मनुष्य जनसेवा व जनहितकारी कार्यों को कर सकता है।