Tuesday 29 October 2019

मेष लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग

वैदिक ज्योतिष का मुख्य आधार जन्म कुंडली और उसमें स्थापित नौ ग्रह, बारह राशियाँ व 27 नक्षत्र हैं. इन्हीं के आपसी संबंध से योग बनते हैं और इन्हीं के आधार पर दशाएँ होती है. ज्योतिष में बारह राशियों का अपना ही स्वतंत्र महत्व होता है. भचक्र में बारह राशियाँ एक कल्पित पट्टी पर आधारित हैं. यह काल्पनिक पट्टी भचक्र के दोनो ओर नौ - नौ अंशों की है. इसमें बारह राशियाँ स्थित होती है. मेष राशि को भचक्र की पहली राशि माना गया है. आज हम मेष लग्न के बारे में बात करेगें. मेष राशि के स्वरुप व उसकी विशेषताओं के बारे में बात करेगें.

मेष राशि की विशेषता :-
 
मेष राशि भचक्र की पहली राशि के रुप में जानी जाती है और भचक्र पर इसका विस्तार 0 से 30 अंश तक माना गया है. यह अग्नितत्व राशि मानी गई है और मंगल ग्रह को इसका स्वामी माना गया है.यह राशि चर राशि के रुप में जानी जाती है इसलिए मेष लग्न के जातक सदा चलायमान रहते हैं. कभी एक स्थान पर टिककर बैठ नहीं सकते हैं. मेष राशि का चिन्ह “मेढ़ा” माना गया है. यह तेज व बहुत ही पैना जानवर होता है जो पहाड़ी इलाको में पाया जाता है. इसलिए इस राशि को भी चरागाहों वाले पहाड़ी स्थान पसंद हो सकते हैं. इस राशि का रंग लाल माना जाता है तभी इनमें अत्यधिक तीव्रता होती है. यह राशि अत्यधिक ऊर्जावान राशि मानी जाती है और सदा जोश व चुस्ती भरी होती है.


मेष लग्न के जातक की विशेषता :-  

आइए अब मेष लग्न होने से आपकी विशेषताओं के बारे में जानने का प्रयास करें. आप साहसी व पराक्रमी होते हैं. आपके भीतर नेतृत्व का गुण होता है और आप अपनी टीम को बहुत अच्छे से चलाने की क्षमता भी रखते हैं. मेष लग्न चर लग्न है और अग्नितत्व भी है इसलिए आप सदा जल्दबाजी में रहते हैं और निर्णय लेने में एक पल नहीं लगाते हैं जबकि आपको एक बार दूरगामी परिणामो पर ही एक नजर डालनी चाहिए. मेष लग्न होने से आप आदेश सुनना कतई पसंद नहीं करते हैं और अपनी मनमानी ही चलाते हैं लेकिन आप बात सभी की सुनेगे लेकिन करेगें वही जो आपके मन में होता है. आपको किसी के दबाव में रहना नही भाता है और स्वतंत्र रुप से रहना पसंद करते हैं. अपनी स्वतंत्रता के साथ किसी तरह का कोई समझौता आप नहीं करते हैं. आपको अति शीघ्र ही क्रोध भी आता है और आप एकदम से आक्रामक हो जाते हैं. यहाँ तक की मरने - मारने तक पर आप उतारू हो जाते हैं लेकिन आपके भीतर दया की भावना भी मौजूद रहती है. आप दृढ़ निश्चयी होते हैं, आप व्यवहार कुशल भी होते हैं. आप जो भी बात कहते हैं उसे बिना किसी लाग लपेट के स्पष्ट शब्दों में कह डालते हैं. चाहे किसी को अच्छा लगे या बुरा लगे. इससे कई बार आपको लोग अव्यवहारिक भी समझते हैं.आप बहुत जिद्दी होते हैं और आवेगी भी होते हैं और आवेश में कई बार मुसीबत भी मोल ले लेते हैं. आपको अपनी इस कमी को नियंत्रित करना चाहिए.
 
मेष लग्न के लिए शुभ ग्रह :-

अब हम मेष लग्न के लिए शुभ ग्रहो की बात करेगें कि कौन से ग्रह इस लग्न के अच्छे फल दे सकते हैं. मेष लग्न के लिए मंगल लग्नेश होने से शुभ ही माना जाएगा. हालांकि मेष लग्न में मंगल की दूसरी राशि वृश्चिक अष्टम भाव में होती है जो कि एक अशुभ भाव है और बाधाओं का भाव माना गया है.

मेष राशि मंगल की मूल त्रिकोण राशि भी है और केन्द्र में है इसलिए बेशक मंगल की दूसरी राशि अष्टम भाव में स्थित हो पर मंगल आपके लिए शुभ ही माना जाएगा. आपका लग्न मेष होने से आपके लिए सूर्य भी शुभ होगा क्योकि सिंह राशि पंचम भाव में स्थित होती है और यह एक शुभ त्रिकोण माना गया है.

आपके लिए बृहस्पति को भी शुभ माना जाएगा क्योकि इसकी मूल त्रिकोण राशि धनु नवम भाव में स्थित होती है और नवम भाव आपका भाग्य भाव होता है और सबसे बली त्रिकोण भी है. चंद्रमा मेष लग्न के लिए सम होगा क्योकि इसकी राशि चतुर्थ भाव, केन्द्र में पड़ती है और केन्द्र तटस्थ माने जाते हैं.
मेष लग्न के लिए अशुभ ग्रह |

मेष लग्न के कौन से ग्रह अशुभ हो सकते हैं आइए उनके बारे में जाने. आपके लिए शुक्र अशुभ माना जाएगा. शुक्र आपकी कुंडली में दूसरे व सप्तम भाव का स्वामी होने से प्रबल मारक हो जाता है. इसलिए इसे अशुभ ही माना जाता है.

आपकी कुंडली में शनि भी दसवें और एकादश का स्वामी होने से अशुभ ही माना जाता है. दसवाँ भाव केन्द्र होने से तटस्थ हो जाता है और एकादश भाव त्रिषडाय भावों में से एक है. आपकी कुंडली में शनि बाधक का काम भी करता है क्योकि यह एकादश भाव का स्वामी है. आपकी कुंडली के लग्न में चर राशि मेष स्थित है और चर लग्न के लिए एकादशेश बाधक होता है. आपकी कुंडली के लिए बुध अति अशुभ है क्योकि यह तीसरे और छठे भाव का स्वामी होता है.

 
मेष लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग :-

१:- मेष लग्न मे जन्मे व्यक्तियो की कुंडली मे यदि चतुर्थ और पंचन भाव के स्वामियो का परस्पर संबन्ध हो तो जातक को निश्चय ह राजयोग की प्राप्ती होती है.

२:- मेष लग्न वालो के लिये शुक्र अपनी दशा भुक्ति मे मृत्यु लाता है.
३:-नवमेश और द्वादशेश होक गुरू यदि दशम मे स्थित हो तो मृत्यु का खंड आने पर मारक सिद्ध होता है.
४:-मेष लग्न वालो क गुरू नवमेश और दशमेश शनि मे यदि पारस्परिक दृष्टि आदि संबन्ध हो तो राजयोग की प्राप्ति नही होती.
५:- उत्तम ज्योतिषियो का कहना है कि मेष लग्न मे उत्पन्न जातको को शस्त्र ,चोट ,फोडे आदि से पीडित होने का भय रहता है.
६:- यदि मंगल षष्टेश से युक्त हो तो षष्टेश की दशा_भुक्ति मे जात के सिर मे चोट लगती है.
७:- मेष लग्न वालो के लिये शुक्र द्वादश स्थान मे शुभ फल प्रदान करता है.
८:- यदि मेष लग्न हो और मंगल शुक्र की युति हो तो ममग योगकारक और मारक दोनो रूपो से फल देता है.
९:- द्वितिय स्थान मे वृष राशि मे मगल ,गुरू ,शुक्र यदि स्थित हो तो यह योग शुभ धनदायक होता है.
१०:-  मंगल यदि गुरू और शुक्र के साथ तृीतिय भाव मे मिथुन राशि मे हो तो वह योगप्रद यदि नही होता.
११:- मंगल चतुर्थ भाव मे कर्क राशि मे गुरू युक्त हो तो जात को बहुत शुभ फल की प्राप्ति होति है.
१२:- यदि  मंगल पंचम भाव मे सिंह राशि मे हो तो अपनी दशा भुक्ति मे धन आदि देता है.
१३:- कुंभ राशि का लाभ स्थान मे गुरू अपनी दशा भुक्ति मे अशुभ फल देत है.
१४;- यदि मंगल और बुध कन्या राशि मे छटे भाव मे हो तो अपनी दशा भुक्ति मे फोडे_फुंसी के रोग देते है.
१५:- यदि मंगल और शुक्र तुला राशि मे सप्तम भाव मे स्थित हो जातर अपने पुरूषार्थ से धन कमाता है .
१६:- मेष लग्न  वालो का मंगल यदि अष्टम भा  मे हो तो  शुभ फल नही देता. यदि अष्टम मे सूर्य शुक्र से युक्त हो तो थोडा अच्छा फल दे देता है.
१७:- यदि नवम स्थान मे धनु राशि मे सूर्य ,मंगल,गुरू,शुक्र स्थित हो और षनि सप्तम मे हो तो मंगल विशेष रूप से  फस देने वाला होता है.
१८:- यदि मेष लग्न मे सूर्य शुक्र हो और उन पस गुरू की दृष्टि न हो तो शुक्र अपनी दशा भुक्ति मे शुभ फल देता है.
मेष लग्न के लिए पूजा व रत्न :-
 
आइए अंत में अब हम मेष लग्न के जातको के लिए पूजा व रत्नों के बारे में बता दें कि उनके लिए क्या उचित रहेगा. आपके लिए हनुमान जी की पूजा करना अत्यंत लाभदायक होगा. आपको नियमित रुप से हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए. इसके लिए आप हनुमान चालीसा आदि का पाठ कर सकते हैं. मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ भी आपके लिए शुभ रहेगा.

आपकी जन्म कुंडली में सूर्य पांचवें भाव का स्वामी होता है और पांचवां भाव त्रिकोण भाव है. इस भाव से हम संतान, शिक्षा व प्रेम संबंध देखते हैं. इसलिए आपको सूर्य को जल अवश्य देना चाहिए और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना आपके लिए शुभ होगा. आपकी जन्म कुंडली में आपके भाग्य भाव के स्वामी बृहस्पति देव हैं. यदि भाग्य अगर कमजोर है तब विष्णु जी की पूजा नियमित रुप से आपको करनी चाहिए.

आप नियमित रुप से विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करें. यह आपके लिए अत्यंत लाभदायक होगा.मेष लग्न होने से आपके लिए मूंगा, माणिक्य और पुखराज शुभ रत्न हैं. आप इन्हें धारण कर सकते हैं.