Wednesday 28 November 2018

लग्न का महत्व और विशेषताएँ


जब कोई भी व्यक्ति जन्म लेता है तो उस समय विशेष में आकाश में स्थित राशि,  नक्षत्र और ग्रहों की स्थिति के प्रभाव को ग्रहण करता है। दूसरे शब्दों में जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदय होती है, वही व्यक्ति का लग्न बन जाता है। लग्न के निर्धारण के बाद ही कुंडली का निर्माण होता है। जिसमें ग्रहों की निश्चित भावों, राशि और नक्षत्रों में स्थिति का पता चलता है। इसलिए बिना लग्न के जन्म कुंडली की कल्पना नहीं की जा सकती है। प्रथम भाव का कारक सूर्य को कहा जाता है। इस भाव से व्यक्ति की शारीरिक संरचना, रुप, रंग, ज्ञान, स्वभाव, बाल्यावस्था और आयु आदि का विचार किया जाता है। प्रथम भाव के स्वामी को लग्नेश का कहा जाता है। लग्न भाव का स्वामी अगर क्रूर ग्रह भी हो तो, वह अच्छा फल देता है। शारीरिक संरचना: प्रथम भाव से व्यक्ति की शारीरिक बनावट और कद-काठी के बारे में पता चलता है। यदि प्रथम भाव पर जलीय ग्रहों का प्रभाव अधिक होता है तो व्यक्ति मोटा होता है। वहीं अगर शुष्क ग्रहों और राशियों का संबंध लग्न पर अधिक रहता है तो जातक दुबला होता है। स्वभाव: किसी भी व्यक्ति के स्वभाव को समझने के लिए लग्न का बहुत महत्व है। लग्न मनुष्य के विचारों की शक्ति को दर्शाता है। यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थ भाव का स्वामी, चंद्रमा, लग्न व लग्न भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव होता है तो व्यक्ति दयालु और सरल स्वभाव वाला होता है। वहीं इसके विपरीत अशुभ ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति क्रूर प्रवृत्ति का होता है। आयु और स्वास्थ्य: प्रथम भाव व्यक्ति की आयु और सेहत को दर्शाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब लग्न, लग्न भाव के स्वामी के साथ-साथ सूर्य, चंद्रमा, शनि और तृतीय व अष्टम भाव और इनके स्वामी मजबूत हों तो, व्यक्ति को दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। वहीं यदि इन घटकों पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो या कमजोर हों, तो यह स्थिति व्यक्ति की अल्पायु को दर्शाती है। बाल्यकाल: प्रथम भाव से व्यक्ति के बचपन का बोध भी होता है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार यदि लग्न के साथ लग्न भाव के स्वामी और चंद्रमा पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो व्यक्ति को बाल्यकाल में शारीरिक कष्ट उठाने पड़ते हैं। वहीं शुभ ग्रहों के प्रभाव से बाल्यावस्था अच्छे से व्यतीत होती है। मान-सम्मान: प्रथम भाव मनुष्य के मान-सम्मान, सुख और यश को भी दर्शाता है। यदि लग्न, लग्न भाव का स्वामी, चंद्रमा, सूर्य, दशम भाव और इनके स्वामी बलवान अवस्था में हों, तो व्यक्ति को जीवन में मान-सम्मान प्राप्त होता है।
   -: वैदिक ज्योतिष के पुरातन ग्रन्थों में प्रथम भाव :-
 “उत्तर-कालामृत” के अनुसार, “प्रथम भाव मुख्य रूप से मनुष्य के शरीर के अंग, स्वास्थ्य, प्रसन्नता, प्रसिद्धि समेत 33 विषयों का कारक होता है।” प्रथम भाव को मुख्य रूप से स्वयं का भाव कहा जाता है। यह मनुष्य के शरीर और शारीरिक संरचना का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमारे शरीर के ऊपरी हिस्से जैसे चेहरे की बनावट, नाक-नक्शा, सिर और मस्तिष्क आदि को प्रकट करता है। काल पुरुष कुंडली में प्रथम भाव मेष राशि को दर्शाता है, जिसका स्वामी ग्रह मंगल है।
सत्याचार्य के अनुसार, कुंडली में प्रथम भाव अच्छे और बुरे परिणाम, बाल्यकाल में आने वाली समस्याएँ, हर्ष व दुःख और देश या विदेश में निवेश की संभावनाओं को प्रकट करता है।

नाम, प्रसिद्धि और सामाजिक प्रतिष्ठा का विचार भी लग्न से किया जा सकता है। उच्च शिक्षा, लंबी यात्राएँ, पढ़ाई के दौरान छात्रावास में जीवन, बच्चों के अनजान और विदेशी लोगों से संपर्कों (विशेषकर पहली संतान के) का बोध भी लग्न से किया जाता है।
‘प्रसन्नज्ञान’ में भट्टोत्पल कहते हैं कि जन्म, स्वास्थ्य, हर्ष, गुण, रोग, रंग, आयु और दीर्घायु का विचार प्रथम भाव से किया जाता है।

प्रथम भाव से मानसिक शांति, स्वभाव, शोक, कार्य की ओर झुकाव, दूसरों का अपमान करने की प्रवृत्ति, सीधा दृष्टिकोण, संन्यास, पांच इंद्रियां, स्वप्न, निंद्रा, ज्ञान, दूसरों के धन को लेकर नजरिया, वृद्धावस्था, पूर्वजन्म, नैतिकता, राजनीति, त्वचा, शांति, लालसा, अत्याचार, अहंकार, असंतोष, मवेशी और शिष्टाचार आदि का बोध होता है।
मेदिनी ज्योतिष में लग्न से पूरे देश का विचार किया जाता है, जो कि राज्य, लोगों और स्थानीयता को दर्शाता है। प्रश्न ज्योतिष में प्रथम भाव प्रश्न पूछने वाले को दर्शाता है। 

-: प्रथम भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध :-
प्रथम भाव अन्य भावों से भी अंतर्संबंध बनाता है। यह पारिवारिक धन की हानि को भी दर्शाता है। यदि आप विरासत में मिली संपत्ति को स्वयं के उपभोग के लिए इस्तेमाल करते हैं, अतः यह संकेत करता है कि आप अपने धन की हानि कर रहे हैं। इससे आपके स्वास्थ्य के बारे में भी पता चलता है, अतः आप विरासत में मिले धन को इलाज पर भी खर्च कर सकते हैं। यह मुख्य रूप से अस्पताल के खर्च, कोर्ट की फीस और अन्य खर्चों को दर्शाता है। यह भाव भाई-बहनों की उन्नति और स्वयं अपने प्रयासों, कौशल और संवाद के जरिये तरक्की करने का बोध कराता है। प्रथम भाव करियर, सम्मान, माता की सामाजिक प्रतिष्ठा, आपके बच्चों की उच्च शिक्षा, आपके बच्चों के शिक्षक, आपके बच्चों की लंबी दूरी की यात्राएँ, बच्चों का भाग्य, आपके शत्रुओं की हानि और उन पर आपकी विजय को प्रकट करता है। इसके अतिरिक्त यह कर्ज और बीमारी को भी दर्शाता है। यह भाव आपके जीवनसाथी और उसकी इच्छाओं के बारे में दर्शाता है। इसके अतिरिक्त यह भाव आपके ससुराल पक्ष के लोगों की सेहत और जीवनसाथी की सेहत को भी प्रकट करता है। ठीक इसी प्रकार प्रथम भाव पिता के व्यवसाय से जुड़ी संभावनाओं को दर्शाता, पिता के भाग्य, पिता के बच्चों (यानि आप) और उनकी शिक्षा के बारे में बताता है। लग्न भाव आपकी खुशियां और समाज में आपकी प्रतिष्ठा को भी दर्शाता है। वहीं कार्यस्थल पर अपने कौशल से वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मिलने वाली प्रशंसा को भी प्रकट करता है। यह बड़े भाई-बहनों के प्रयास और उनकी भाषा, स्वयं के प्रयासों द्वारा अर्जित आय का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह भाव धन संचय के अलावा व्यय को भी दर्शाता है।
-: लाल किताब के अनुसार प्रथम भाव :-
लाल किताब में प्रथम भाव को स्वास्थ्य, साहस, पराक्रम, कार्य करने की क्षमता, हर्ष, दुःख, शरीर, गला, शाही या सरकारी जीवन को दर्शाता है। लाल किताब में प्रथम भाव को सभी 12 भावों का राजा कहा गया है और सप्तम भाव को गृह मंत्री कहा जाता है। प्रथम भाव में एक से अधिक ग्रहों का स्थित रहना अच्छा नहीं माना जाता है। क्योंकि इसकी वजह से दिमाग में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। क्योंकि यदि यहां पर एक सेनापति के लिए एक से अधिक राजा हों तो, यह शुभ फल प्रदान नहीं करता है। वहीं अगर सप्तम भाव में एक से अधिक ग्रह और प्रथम भाव में केवल एक ही ग्रह हो, तो यह स्थिति जातक के लिए बहुत बेहतर होती है। लाल किताब में प्रथम भाव को राज सिंहासन कहा गया है। यदि कोई ग्रह प्रथम भाव में स्थित रहता है तो वह अपने शत्रु ग्रहों को हानि पहुंचाता है और उसके बाद अपनी स्थिति के अनुसार फल देता है। मान लीजिये, यदि कोई क्रूर ग्रह प्रथम भाव में गोचर कर रहा है, तो इस भाव में स्थित ग्रह उसे नष्ट कर देगा या उसके दुष्प्रभावों को कम कर देगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि प्रथम भाव हम सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि यह हमारे व्यक्तित्व, स्वभाव, शरीर, स्वास्थ्य और रूप, रंग आदि को प्रकट करता है, जिनका जीवन में बड़ा महत्व होता है।

Sunday 18 November 2018

धन-सम्पत्ति बंटवारे के लिए शुभ मुहुर्त

 

कहा जाता है कि दुनियां में संघर्ष का सबसे बड़ा कारण है सम्पत्ति। सभी व्यक्ति चाहते हैं, कि उनके हिस्से में अधिक से अधिक सम्पत्ति आए इसके लिए जब भी सम्पत्ति विभाजन की बात आती है, सभी हिस्सेदार अपने अपने स्वार्थ को साधने में जुट जाते हैं।

इस परिस्थिति में कई बार स्थिति ऐसी हो जाती है, कि आपस में कलह, विवाद एवं संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है और बात अदालत तक पहु्च जाती है। ज्योतिष के नज़रिये से देखें तो इस तरह की स्थिति तब पैदा होती है, जब धन-सम्पत्ति का अशुभ मुहुर्त में बंटवारा किया जाए। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब सम्पत्ति बंटवारा करना हो उससे पहले मुहुर्त का विचार अवश्य कर लें। मुहुर्त का विचार करके बंटवारा करने से शांतिपूर्ण तरीके से विभाजन होता है और इसमें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं आती है। सम्पत्ति के बंटवारे के लिए आपको मुहुर्त का विचार किस प्रकार से करना चाहिए आइये दखें 

1.नक्षत्र विचार :
जिस दिन सम्पत्ति का बंटवारा करना हो उस दिन यह देखें कि नक्षत्र कौन सा है। अगर उस दिन हस्त, अश्विनी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, स्वाती, पुनर्वसु, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, मृगशिरा, चित्रा और रेवती नक्षत्र हो तो यह बहुत ही शुभ होता है। इन नक्षत्रों को सम्पत्ति विभाजन के लिए श्रेष्ठ कहा गया है।
 

2.तिथि विचार :
किसी भी कार्य में मुहुर्त का आंकलन करने के लिए तिथि की शुभता का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। अगर तिथि शुभ नहीं हो तो परिणाम की अनुकूलता में आशंका रहती है, बात जब सम्पत्ति के बंटवारे की हो तो ध्यान रखना चाहिए कि जिस दिन बंटवारा करना हो उस दिन द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा में से कोई तिथि विराजमान हो। उपरोक्त तिथियों को इस संदर्भ में उत्तम माना गया है।
 

3.वार विचार :
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सम्पत्ति के बंटवारे के लिए वार का भी आंकलन जरूर कर लेना चाहिए । जिस दिन बताए गये नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो, उपरोक्त तिथियों में से कोई तिथि हो और रविवार, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार में से कोई वार हो उस दिन आपको सम्पत्ति का विभाजन करना चाहिए। 

इस विषय में ध्यान रखे कि जिस दिन आप सम्पत्ति का बंटवारा कर रहे है उस दिन मुहुर्त में लग्न शुभ हो । अगर स्थिति इस प्रकार की नहीं हो तो बंटवारा करने की न सोचें।

Saturday 3 November 2018

बृहस्पति और शुक्र व दाम्पत्य जीवन


बृहस्पति और शुक्र दो ग्रह हैं, जो पुरूष और स्त्री का प्रतिनिधित्व करते हैं.मुख्य रूप ये दो ग्रह वैवाहिक जीवन में सुख दु:ख, संयोग और वियोग का फल देते है।

सप्तम भाव जीवन साथी का घर होता है, इस घर में इन दोनों ग्रहों की स्थिति एवं प्रभाव के अनुसार विवाह एवं दाम्पत्य सुख का सुखद अथवा दुखद फल मिलता है। पुरूष की कुण्डली में शुक्र ग्रह पत्नी एवं वैवाहिक सुख का कारक होता है, और स्त्री की कुण्डली में बृहस्पति.ये दोनों ग्रह स्त्री एवं पुरूष की कुण्डली में जहां स्थित होते हैं,और जिन स्थानों को देखते हैं, उनके अनुसार जीवनसाथी मिलता है और वैवाहिक सुख प्राप्त होता है।

ज्योतिषशास्त्र का नियम है कि बृहस्पति जिस भाव में होता हैं उस भाव के फल को दूषित करता है। और जिस भाव पर इनकी दृष्टि होती है, उस भाव से सम्बन्धित शुभ फल प्रदान करते है। जिस स्त्री अथवा पुरूष की कुण्डली में गुरू सप्तम भाव में विराजमान होता हैं, उनका विवाह या तो विलम्ब से होता है, अथवा दाम्पत्य जीवन के सुख में कमी आती है। पति पत्नी में अनबन और क्लेश के कारण गृहस्थी में उथल पुथल मची  रहती है।
दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने में बृहस्पति और शुक्र का सप्तम भाव और सप्तमेश से सम्बन्ध महत्वपूर्ण होता है। जिस पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह शुक बृहस्पति से युत या दृष्ट होता है, उसे सुन्दर गुणों वाली अच्छी जीवनसंगिनी मिलती है। इसी प्रकार जिस स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह बृहस्पति शुक्र से युत या दृष्ट होता है। उसे सुन्दर और अच्छे संस्कारों वाला पति मिलता है।


शुक्र भी बृहस्पति के समान सप्तम भाव में सफल वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है। सप्तम भाव का शुक्र व्यक्ति को अधिक कामुक बनाता है। जिससे
विवाहोत्तर सम्बन्ध की संभावना प्रबल रहती है। विवाहोत्तर सम्बन्ध के कारण वैवाहिक जीवन में क्लेश के कारण गृहस्थ जीवन का सुख नष्ट होता है, बृहस्पति और शुक्र जब सप्तम भाव को देखते हैं अथवा सप्तमेश पर दृष्टि डालते हैं, तो इस स्थिति में वैवाहिक जीवन सफल और सुखद होता है। लग्न में बृहस्पति अगर पापकर्तरी योग से पीड़ित होता है, तो सप्तम भाव पर इसकी दृष्टि का शुभ प्रभाव नहीं होता है। ऐसे में सप्तमेश कमज़ोर हो या शुक्र के साथ हो तो दाम्पत्य जीवन सुखद और सफल रहने की संभावना कम हो जाती है।