Tuesday 26 March 2019

सप्तम भाव का महत्व व विशेषता


दाम्पत्य जीवन तभी सही चलता है जब एक-दूसरे में सही तालमेल हो अन्यथा जीवन नश्वर ही समझो। दाम्पत्य की गाडी़ सही चले इसके लिए अपने जीवनसाथी का स्वभाव व व्यवहार के साथ वाणी भी अच्छी होना चाहिए। वहीं पति को भी अपनी पत्नी के प्रति सजग व वफादार होना चाहिए। कई बार दाम्पत्य जीवन आर्थिक दृष्टिकोण की वजह से, अन्य संबंधों के चलते भी टूट जाता है। शंका भी दाम्पत्य जीवन में दरार का कारण बनती है। कभी-कभी पारिवारिक तालमेल का अभाव भी एक कारण बनता है। 

इन सबके लिए सप्तम भाव, लग्न, चतुर्थ, पंचम भाव के साथ-साथ शुक्र-शनि-मंगल का संबंध भी महत्वपूर्ण माना गया है। चतुर्थ भाव में यदि शनि सिंह राशि का हो या मंगल की मेष या वृश्चिक राशि का हो या राहु के साथ हो तो पारिवारिक जीवन कलहपूर्ण रहता है। शनि-मंगल का दृष्टी संबंध हो या युति हो तो भी पारिवारिक जीवन नष्ट होता है। कोई भी नीच का ग्रह हो तब भी पारिवारिक कलह का कारण बनता है। यदि ऐसी स्थिति हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को जमीन में गाड़ देवें। लग्न का स्वामी नीच का हो या लग्न में कोई नीच ग्रह हो तो वह जातक को बुरी प्रवृति का बना देता है। लग्न का स्वामी शनि मंगल से पीडि़त नहीं होना चाहिए। पंचम भाव प्रेम व सन्तान का होता है यदि यह भाव शनि-मंगल के साथ हो या दृष्टि संबंध रखता हो तो उस जातक के जीवन में सन्तान का अभाव या सन्तान से पीडा़ रहती है व उसके जीवन में प्रेम का अभाव रह सकता है। सप्तम भाव जीवनसाथी का होता है, इस भाव का स्वामी राहु से पीडि़त हो तो दाम्पत्य जीवन बाधित रहेगा। इस भाव में भावेश के साथ शनि-मंगल हो तो द्वितीय विवाह होता है या दाम्पत्य जीवन में बाधा रहती है।  सप्तमेश एक घर पीछे यानी (छठवें भाव) सप्तम से द्वादश होगा ऐसी स्थिति भी बाधा का कारण बनती है। यदि ऐसी स्थिति किसी की पत्रिका में हो तो वे उससे संबंधित वस्तु को एक दिन अपने पास रखकर सोए एवं किसी स्वच्छ जमीन में या श्मशान भूमि में गाड़ दें।  शुक्र कला, प्रेम, दाम्पत्य का कारक नीच का हो, अस्त हो या वक्री हो तो दाम्पत्य जीवन में बाधा रहती है। लग्न में मंगल हो व शनि सप्तम भावस्थ हो तो निश्चित बाधा का कारण बनता है। सप्तमेश अष्टम में होना भी कष्टकारी रहता है। शुक्र सूर्य से अस्त हो या सूर्य-बुध के साथ शुक्र का होना भी ठीक नहीं रहता। लग्न में सूर्य या सप्तम में शनि या सूर्य हो तो विवाह में बाधा का कारण बनता है। सप्तम भाव के एक घर पीछे व एक घर आगे क्रूर ग्रह का होना भी ठीक नहीं रहता। नीच का गुरु भी ठीक फल नहीं देता, गुरु के साथ राहु का होना भी कहीं ना कहीं कष्टकारी बनता ही है। शुक्र मंगल की राशि में हो व मंगल शुक्र की राशि में हो तो उस जातक का चरित्र संदिग्ध रहता है। इस कारण दाम्पत्य जीवन में बाधा रहती है। 

-: सप्तम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है :-

  • जीवनसाथी- व्यक्ति के जीवनसाथी का ज्ञान सप्तम भाव से होता है| यह भाव साझेदारी का स्थान है तथा विवाह किसी भी व्यक्ति के जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण साझेदारी है|
  • विवाह- यह भाव व्यक्ति के विवाह का स्वरुप तथा विवाह होने के समय को दर्शाता है| इस भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव विवाह होने की संभावनाओं को नष्ट भी कर सकते हैं|
    * मृत्यु- प्रथम भाव जीवन के आरंभ होने का सूचक है, सप्तम भाव जो इसके प्रत्यक्ष विपरीत भाव है जीवन का अंत अर्थात मृत्यु को दर्शाता है| अष्टम भाव(आयु स्थान) से द्वादश भाव(हानि) होने के कारण यह एक मारक भाव है| सप्तम भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में व्यक्ति का शारीरिक अरिष्ट हो सकता है|
  • साझेदारी- विवाह एक आजीवन साझेदारी है| इसके अतिरिक्त सप्तम भाव व्यवसाय तथा व्यापार से संबंधित अन्य साझेदारियों को भी दर्शाता है| व्यक्ति को कोई भी व्यवसाय साझेदारी में करना चाहिए अथवा नहीं, साझेदारी से उसे लाभ मिलेगा या हानि, आदि का विचार भी सप्तम भाव से किया जाता है|
  • विदेश यात्राएं- तृतीय तथा नवम भाव के अतिरिक्त सप्तम भाव का भी विदेश यात्राओं से प्रत्यक्ष संबंध है| यह यात्राएं सूक्ष्म अवधि की होंगी या दीर्घकालीन, यह इस भाव पर पड़ने वाले ग्रहों की प्रकृति के अनुसार पता चलता है|
  • विदेश वास- व्यक्ति विदेश वास भी कर सकता है, क्योंकि सप्तम भाव चतुर्थ स्थान(घर) से चतुर्थ है अतः इसका संबंध भी व्यक्ति के निवास से है|
  • सूक्ष्म कर्मस्थान- यह भाव दशम स्थान(कर्म) से दशम है, अतः यह कर्म की प्रकृति को दर्शाता है| व्यक्ति का कार्यक्षेत्र क्या होगा आदि का विचार करते समय दशम स्थान के अतिरिक्त सप्तम भाव की सहायता भी लेनी चाहिए| कर्म के संबंध में यह एक सूक्ष्म कर्मस्थान माना गया है|
  • समृद्धशाली जीवनसाथी- जब सप्तम भाव तथा सप्तमेश बली हो और अन्य मूल्यप्रद व राजसी ग्रहों का शुभ प्रभाव इन घटकों पर हो तो व्यक्ति का विवाह सम्मानीय तथा समृद्धशाली घराने में होता है| उदहारण के लिए यदि कुंभ लग्न हो और सप्तम भाव तथा सप्तमेश सूर्य पर चन्द्र(राजसी ग्रह) व गुरु(सम्मानीय व वृद्धिकारक ग्रह) जैसे ग्रहों का प्रभाव हो मनुष्य का विवाह किसी शाही व सम्मानीय परिवार या राजघराने में होता है|
  • जीवनसाथी का सौन्दर्य- सप्तम भाव जीवनसाथी का प्रधान भाव है| जब सप्तम स्थान तथा सप्तमेश पर सौंदर्य प्रधान ग्रहों चन्द्र, शुक्र, बुध का प्रभाव होता है तो व्यक्ति को सुंदर व रूपवान जीवनसाथी की प्राप्ति होती है|
  • मारकेश- सप्तम भाव एक मारक स्थान है| अष्टम भाव(आयु) का व्ययस्थान(हानि) होने के कारण इस भाव के स्वामी की दशा में जातक की मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट होता है| विशेष कर यदि सप्तम भाव का स्वामी निर्बल होकर द्वितीय, षष्ठ, अष्टम अथवा द्वादश स्थान में हो और आयु खंड पूर्ण हो गया हो तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा व्यक्ति के लिए मारक सिद्ध हो सकती है|
  • यौनांग- सप्तम भाव कालपुरुष के यौनांग का प्रतीक है| अतः सप्तम स्थान पर किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव व्यक्ति के यौन भाग में व्याधि का सूचक है|
  • कामेच्छा- व्यक्ति की कामेच्छा का उसके शरीर शरीर के यौनागों से प्रत्यक्ष संबंध है| अतः सप्तम स्थान व्यक्ति की कामेच्छा को भी अभिव्यक्त करता है| क्या यह विकृत है अथवा नहीं यह सप्तम स्थान से ज्ञात हो सकता है| क्रूर ग्रहों एवं मंगल तथा शुक्र का सप्तम भाव पर प्रभाव मनुष्य को विकृत कामेच्छा दे सकता है|
  • दांपत्य सुख-दुःख- सप्तम भाव का विवाह से गहन संबंध है क्योंकि विवाह इसी स्थान से निर्धारित होता है| यदि सप्तम भाव तथा सप्तमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति को उत्तम विवाह सुख प्राप्त होता है| इसके विपरीत यदि यह घटक पीड़ित हों और पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति का वैवाहिक जीवन कष्टमय होता है यहाँ तक की जीवनसाथी से उसका तलाक़ भी हो सकता है|
  • कुजदोष- कुजदोष सिर्फ मंगल ग्रह से ही उत्पन्न नही होता| मंगल के अतिरिक्त सूर्य, शनि, राहु, केतु आदि ग्रह भी कुंडली में कुजदोष का निर्माण करते हैं| जब भी किसी पत्रिका में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम तथा अष्टम भाव में उपरोक्त ग्रह स्थित हों तो वह पत्रिका कुज दोष से पीड़ित होती है| सप्तम भाव विवाह का प्रधान भाव है अतः इस भाव में इन पाप ग्रहों की स्थिति बलवान कुजदोष का निर्माण करती है| दक्षिण भारत में यदि ये पाप ग्रह द्वितीय भाव में बैठे हों तो भी जन्मकुंडली कुजदोष से पीड़ित होती है| इसका कारण यह है कि द्वितीय भाव व्यक्ति के परिवार व कुटुंब का है| इसके अतिरिक्त द्वितीय भाव सप्तम भाव(जीवनसाथी) से अष्टम स्थान(आयु) होने के कारण जीवनसाथी की आयु से भी संबंधित है अतः द्वितीय भाव के इन पाप ग्रहों से पीड़ित होने के कारण व्यक्ति को पारिवारिक कष्ट के अलावा वैधव्य देखना पड़ सकता है| यही कारण है कि दक्षिण भारत में द्वितीय भाव में स्थित पाप ग्रहों को भी कुजदोष की श्रेणी में रखा जाता है| कुजदोष निर्माण में केवल मंगल को दोष देना व्यर्थ होगा |
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