Thursday 20 September 2018

कालसर्प योग का प्रभाव


कालसर्प योग जन्म कुण्डली में राहु-केतु से निर्मित होने वाला योग है। राहु को कालसर्प का मुख माना गया है। अगर राहु के साथ कोई भी ग्रह उसी राशि और नक्षत्र में शामिल हो तो वह ग्रह कालसर्प योग के मुख में ही स्थित माना जाता है। वहीं यदि कोई ग्रह राहु की राशि में स्थित हो लेकिन राहु के नक्षत्र से अन्य किसी नक्षत्र में स्थित हो तो वह ग्रह कालसर्प के मुख में होकर भी कैसा फल देगा इस बात का निर्धारण करने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखने की आवश्यकता होती है।
* पहले इस बात को समझने की जरूरत है, की कालसर्प का मुख कुण्डली के किस भाव में स्थित है।
* दूसरा यह की कालसर्प के मुख में स्थित ग्रह का कारकत्व क्या है।
* कालसर्प के मुख में स्थित ग्रह क्या अन्य भावों का भी अधिपति है।

इन मुख्य बातों पर विचार करने के उपरान्त ही अन्य चीजों का निर्धारण आरंभ होता है. जन्म कुण्डली में राहु के साथ अशुभ ग्रह की स्थिति कालसर्प के मुख में विष उत्पन्न करने वाली होती है। ऐसे कालसर्प का मुख अर्थात राहु जिस भाव में स्थित होता है। इसके साथ ही संबंधित भाव के मिलने वाले फलों में भी उसे परेशानी ही प्राप्त होती है। अगर कालसर्प के मुख में शुभ ग्रह स्थित हो तो यह कालसर्प अशुभ प्रभाव नहीं देता और वह जिस भाव में स्थित हो उससे संबंधित बुरे फल भी नहीं मिलते।
          -:  विभिन्न ग्रहों का कालसर्प मुख का प्रभाव  :-
सूर्य का प्रभाव - सूर्य का कालसर्प के मुख में स्थित होना तथा लग्न भाव, द्वितीय भाव, तृतीय भाव, दशम भाव या द्वादश भाव में होना,साथ ही शुभ राशि ओर शुभ प्रभाव में होना अनुकूल माना जा सकता है। इसमें राज्य की ओर से व्यक्ति को पद प्राप्ती हो सकती है। प्रतिष्ठा प्राप्त होती है सामाजिक स्तर पर वह सक्रिय रह कर सम्मानित होता है। व्यक्ति अन्याय के खिलाफ विरोध करने वाला होता है। लेकिन यदि यह युति अशुभ राशि एवं अन्य किसी पाप ग्रह के प्रभाव में बन रही हो तो संघर्ष में भी प्रयासरत ही रहता है। भटकाव भी जीवन में बहुत होता है। कुंडली में यह युति अगर दूसरे भाव, चौथे भाव अथवा सातवें भाव में हो रही हो तो जीवन में पारिवारिक एवं दांपत्य सुख में कमी करने वाला होता है। व्यक्ति में अभिमान एवं स्वार्थ की भावना अधिक होती है। वाणी में कठोरता का भाव होता सत्यता की कमी होती है।
चंद्रमा का प्रभाव - यदि कालसर्प के मुख में चंद्रमा स्थित हो तो जातक को परिपक्व और बेहतर विचारधारा वाला बनाता है। व्यक्ति धैर्य के साथ परेशानियों का सामना करता है। समाज के हित में भी बेहतर कार्यों को करता है। साथ ही साथ सामाजिक रुप से भी व्यक्ति सक्रिय रहते हुए काम करता है। चंद्र अशुभ प्रभाव के कारण जातक को जीवन में संघर्ष की स्थिति भी प्रभावित होगी। जीवन में बाल्यावस्था समय जातक परेशानियों में रहेगा। असफलताएं आपको मानसिक रुप से अशांति प्राप्त हो सकती है।
मंगल का प्रभाव - मंगल का कालसर्प के मुंह में होना व्यक्ति को पराक्रमी बनाने वाला होता है। जातक पराक्रमी होता है। व्यक्ति को भाई बहनों का साथ ही संपूर्ण साथ मिलेगा। इस के साथ जीवन को असफलताएं का प्रभाव घेरे रह सकता है। इनके जीवन में बाल्यावस्था से कष्ट मिलता है। चोट का भय रहता है, हिंसक एवं असंतुष्ट रहता है। व्यभिचार का प्रभाव जातक को जल्द ही घेरे रह सकता है। वाद विवाद में व्यक्ति को परेशानियां रहती है। विवाहोत्तर संबंध अधिक रहते हैं।
बुध का प्रभाव - कालसर्प के मुख में बुध हो तथा शुभ स्थिति से प्रभावित होने पर व्यक्ति पर में ग्रहण की स्थिति बहुत अच्छे होती है। जल्द ही चीजों को अपने अनुरूप ढालने वाला होता है। किसी भी विषयों को ग्रहण करने के लिए इनमें बेहतर योग्यता होती है। ऐसे जातक व्यवहार कुशल होते हैं, काम निकलवाने में भी दक्ष होते हैं। अगर बुध कालसर्प के मुख में अशुभ प्रभाव में हो तो जातक में भ्रम की स्थिति अधिक होती है। किसी भी चीज को समझने में एकाग्रता की कमी भी परेशान करती है। बौद्धिकता पर असर पड़ता है, उचित निर्णयों को लेना कठिन ही होता है। स्मरणशक्ति भी कमजोर ही होती है। व्यवसाय के क्षेत्र में व्यक्ति को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हिस्टीरिया जैसे रोग भी व्यक्ति को प्रभावित करते  है।
बृहस्पति का प्रभाव - बृहस्पति यदि कुंडली में कालसर्प के मुख में स्थित हो तो शुभस्थ होता है। जातक को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। बुद्धिमता तीक्षण होती है. वैसे तो राहु और गुरु का संबंध गुरु चंडाल योग का निर्माण करने वाला होता है। इस कारण से इस योग को अच्छा नहीं माना जाता है। लेकिन बेहतर शुभस्थिति में होने पर यह योग व्यक्ति को प्रगति भी देता है। अशुभ स्थिति प्रभाव के चलते व्यक्ति धर्म विरोधी बनता है। अनैतिक कार्यों के प्रति उसका आकर्षण अधिक रहता है। रुढियों से हटकर काम करता है। उसका ज्ञान भी प्रभावित होता है, इसलिए ऐसे जातकों को अपने बड़े बूजुर्गों की सलाह अवश्य लेनी चाहिए तथा पाप कर्म से मुक्त रहना ही आपको सकारात्मकता दे सकता है।
शुक्र का प्रभाव - शुक्र की स्थिति मुख में होने पर शुभस्थ स्थिति हो तो यह भौतिक सुखों की प्राप्ति कराने वाला होता है। व्यक्ति को जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है। विवाह अचानक से होता है तथा विवाह आपके लिए सुख एवं समृद्धि लाने वाला होता है। अशुभ होने की स्तिथि में मनोकूल वैभव एवं भौतिक सुखों में कमी आती है। आर्थिक कष्ट रहते हैं। विवाह का सुख भी प्रभावित होता है, ऐसा जातक पथभ्रष्ट भी हो सकता है।
शनि का प्रभाव - कालसर्प के मुख में शनि के होने पर जातक व्यवहारिक अधिक होता है। उसमें परिपक्कता एवं प्रौढ़ता होती है। गुढ़ विषयों पर पकड़ अच्छी होती है, व्यक्ति में दूरदर्शिता का भाव भी अच्छा होता है। वह संस्था को चलाने में सक्षम होता है। जातक की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती है। अशुभ प्रभाव में होने पर स्थिति विपरीत होती है। कार्यक्षेत्र में बाधाओं का एवं शत्रुओं का सामना अधिक होता है। व्यक्ति का स्वभाव भी कठोर होता है। कर्ज की स्थिति बहुत रहती है। धार्मिक क्षेत्र में भी पिछड़ा हुआ होता है।

Tuesday 11 September 2018

यमघंटक योग


कुछ अशुभ योगों की गिनती में यमघंटक योग का नाम भी आता है। यह वह योग है जो अच्छे कार्यों में त्याज्य होता है। इस योग में व्यक्ति के किए गए शुभ कार्यों में असफलता की संभावना बढ़ जाती है। ज्योतिष में इन्हीं कुछ योगों को अशुभ योगों की श्रेणी में रखा जाता है। इन योग में यमघंटक का नाम भी प्रमुख रुप से आता है।

इस योग में शुभ एवं मांगलिक कामों को न करने की बात कही गई है। मंगल कार्यों को करने के लिए त्याज्य माने गए इन योगों का निर्धारण करने के कुछ नियम बताए हैं। जहां पर इन के होने की स्थिति को बताया गया है, अत: शुभ कामों को करने के लिए इन अशुभ योगों को त्यागना चाहिए। यात्रा, बच्चों के लिए किए जाने वाले शुभ कार्य तथा संतान के जन्म समय में भी इस योग का विचार किया जाता है।

वसिष्ठ ऋषि द्वारा कहा गया है कि, दिवसकाल में यदि यमघंटक नामक दुष्ट योग हो तो मृत्युतुल्य कष्ट हो सकता है, परंतु साथ ही रात्रिकाल में इसका फल इतना अशुभ नहीं माना जाता।
                      -: यमघंटकयोग के
नियम :-
* रविवार के दिन जब मघा नक्षत्र का संयोग बनता है, तो यमघंटक योग का निर्माण होता है, जो कि अच्छा नहीं होता है।
* सोमवार का दिन हो और उस दिन विशाखा नक्षत्र होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।
* मंगलवार के दिन आर्द्रा नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।
* बुधवार के दिन जब मूल नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।
* बृहस्पतिवार के दिन कृतिका नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।
* शुक्रवार के दिन रोहिणी नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।
* शनिवार के दिन हस्त नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग का निर्माण होता है।


किसी भी कार्य को करने हेतु एक अच्छे समय की आवश्यकता होती है। हर शुभ समय का आधार तिथि, नक्षत्र, चंद्र स्थिति, योगिनी दशा और ग्रह स्थिति के आधार पर किया जाता है। शुभ कार्यों के प्रारंभ में भद्राकाल से बचना चाहिये। चर, स्थिर व द्विस्वभाव लग्नों का ध्यान रखना चाहिए। जिस कार्य के लिए जो समय निर्धारित किया गया है, यदि उस समय पर उक्त कार्य किया जाए तो मुहूर्त्त के अनुरूप कार्य सफलता को प्राप्त करता है।

योगों में जीवन का सारांश छुपा होता है, जिसे पढ़कर व्यक्ति भूत, भविष्य और वर्तमान के संदर्भ में अनेक बातों को जान सकता है। ज्योतिष में अनेक योगों का निर्माण होता है, कुछ शुभ योग होते हैं और कुछ अशुभ योग होते हैं। कौन सा योग किस प्रकार के फल देगा इस बात को तभी समझा जा सकता है। जब हम उसके नियमों को समझ सकें ।

Thursday 6 September 2018

कुंडली में भाग्य स्थान का महत्व

जन्म कुंडली में किसी भी व्यक्ति के लिए उसका भाग्य बली होना शुभ माना जाता है। भाग्य के बली होने पर ही व्यक्ति जीवन में ऊंचाईयों को छू पाने में सफल रहता है। यदि भाग्य ही निर्बल हो जाए तब अत्यधिक प्रयास के बावजूद व्यक्ति को संतोषजनक परिणाम नहीं मिलते हैं। किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में उसका भाग्य भाव, भाग्येश, तथा भाग्य भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह महत्व रखते हैं। जन्म कुंडली में नवम भाव से भाग्य का आंकलन किया जाता है।

किसी भी जन्म कुण्डली में जन्म लग्न से नौवीं राशि व चंद्र लग्न से नौंवी राशि महत्वपूर्ण होती है। क्योकि यह राशि भाग्य भाव अर्थात नवम भाव में आती है। जन्म लग्न अथवा चंद्र लग्न में से जो लग्न बली होता है। उससे भाग्य भाव की गणना की जानी चाहिए। जन्म कुंडली में भाग्य भाव का स्वामी किस भाव में गया है, आदि बातों का विचार करना चाहिए। भाग्येश का केन्द्र, अथवा त्रिकोण आदि भावों में जाना शुभ प्रदान करने वाला माना गया है, भाग्येश चाहे बली हो अथवा अल्पबली हो तब भी वह योगकारक ही कहा जाता है।

नवम भाव अथवा नवमेश का संबंध किसी भी तरह से केन्द्र, त्रिकोण, धन भाव आदि से बन रहा हो तब इसे अत्यधिक शुभ माना गया है। यह उत्तम अवस्था होती है, 3 व 11 भाव से नवम भाव का संबंध बनने पर यह मध्यम स्थिति बनती है और छठे, आठवें व बारहवें भाव से नवम भाव का संबंध बनने पर सबसे खराब स्थिति मानी गई है. एक बात लेकिन तय है कि भाग्येश अति शुभ या अति अशुभ हो, वह सदा शुभ फल देने वाला ही माना जाता है।


                                          -: भाग्योदय स्थान :-
 
* हर व्यक्ति के भाग्योदय का स्थान अलग होता है, कोई अपने जन्म स्थान पर ही भाग्य का उदय पाता है, तो किसी का अपने जन्म स्थान के नजदीक भाग्य का उदय होता है, तो किसी का जन्म स्थान से बहुत दूर लेकिन अपने ही देश में होता है और कुछ लोगों का भाग्योदय अपने देश से बाहर विदेशो में होने की संभावना बनती है।
 * मुनियों के अनुसार, भाग्य भाव पर अपने स्वामी ग्रह की ही दृष्टि हो अथवा भाग्य भाव में ही भाग्येश स्थित हो तब व्यक्ति का भाग्योदय उसके अपने ही देश में होता है।
 * यदि भाग्य भाव पर उसके स्वामी की दृष्टि ना हो, योग भी ना हो अथवा अन्य किसी भी ग्रह की दृष्टि ना हो तब व्यक्ति का भाग्योदय अपने जन्म स्थान से दूर परदेश में होता है।
* यदि कोई बली कारक ग्रह तृतीय भाव में स्थित होकर नवम भाव को देखे या लग्न अथवा पंचम भाव में स्थित होकर नवम भाव को देखे तब व्यक्ति के भाग्य में विशेष रुप से वृद्धि होती है, लग्न अथवा पंचम से तो केवल बृहस्पति ही नवम भाव को दृष्ट करेगा।

Tuesday 4 September 2018

बुध गृह से संबंधित कार्य


बुध के कारक तत्वों में जातक को कई अनेक प्रकार के कार्यो एवं व्यवसायों की प्राप्ति दिखाई देती है। बुध एक पूर्ण वैश्य रूप का ग्रह है, व्यापार से जुडे़ होने वाला एक ग्रह है, जो जातक को उसके कारक तत्वों से पुष्ट करने में सहायक बनता है। इसी के साथ व्यक्ति को अपनी बौधिकता का बोध भी हो पाता है, और उसे सभी दृष्टियों से कार्यक्षेत्र में व्यापार करने वाला बनाता है।
बुध छवि राजकुमार है, अत: काम में भी यही भाव भी दिखाई देता है। किसी के समक्ष भी यह जातक को कम नहीं होने देता है। अपने काम में व्यक्ति को स्वतंत्रता प्राप्त होती है, और जातक किसी के अधीन बंधे नहीं रहना चाहता है। यदि इस ओर अधिक ध्यान दिया जाए तो व्यक्ति को स्वतंत्र विचारधारा वाला बनाता है। जातक अपने ज्ञान कर्म में अधिक सृजनशील होता है और पहल करने में भी आगे रहता है।

    * यदि कुण्डली में बुध ग्रह दूसरे, पांचवें और नवम भाव [ इत्यादि बुद्धि स्थानों ] का स्वामी हो तथा व्यवसाय का प्रतिनिधित्व करे अर्थात लग्न-लग्नेश को चंद्रमा और सूर्य को प्रभावित करता हो, तो व्यक्ति बुद्धिजीवी होता है, जातक शिक्षा द्वारा धनोपार्जन करता है।
    * बुध को वाणी का कारक कहा गया है, अत: दूसरे स्थान या पंचम स्थान में बुध की स्थिति उत्तम हो तो व्यक्ति अपनी वाणी द्वारा कार्य-क्षेत्र अथवा सामाजिक क्षेत्र दोनों में ही दूसरों द्वारा प्रशंसित होता है, और लोगों को अपनी वाक कुशला से प्रभावित करता है । व्यक्ति वकील, कलाकार, सलाहकार, प्रवक्ता इत्यादि कामों द्वारा अनुकूल फल प्राप्त करने में सफल रहता है।
    * बुध व्यक्ति के काम में व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है। अगर कुण्डली में बुध ग्रह शनि व शुक्र जैसे व्यापार से प्रभावित ग्रहों के साथ संबंध बनाता है। तो जातक व्यापार के क्षेत्र में अच्छे काम करने की चाह रख सकता है। बुध की प्रबलता जातक को इन ग्रहों के साथ मिलकर प्रभावित करने में सक्षम होती है।
    * बुध और शुक्र दोनों बलवान हों तो जातक को वस्त्र उद्योग में अच्छी सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
    * बुध लेखन का कार्य भी देता है। यदि यह सूर्य जो राज्य से संबंधित होता है, उससे प्रभावित हो तो जातक अवश्य ही किसी लेखन संस्था से जुड़ सकता है। बुध अधिक बली हो तो आशुलिपिक या लेखा अधिकारी भी बना सकता है। बुध यदि तीसरे स्थान का स्वामी होकर दशम से संबंध बनाता है अथवा लग्न लग्नेश अपना प्रभाव डालता है, तो जातक लेखक बनकर धनोपार्जन कर सकता है।
    * जन्म कुण्डली में यदि बुध मंगल के साथ बली अवस्था में स्थित हो तथा कर्म स्थल का द्योतक बनता है तो व्यक्ति गणित के क्षेत्र में अथवा यान्त्रिक विभाग में कार्यरत होता है।
    * बुध विनोद प्रिय है, इसलिए जब कुण्डली में यह चतुर्थेश, पंचमेश या शुक्र से संबंध बनाता हुआ दशम भाव को प्रभावित करता है तो जातक मनोविनोद के कार्यों व कलात्मक अभिव्यक्ति से आजीविका कमा सकता है।
    * बुध एक सलाहकार व मध्यस्थ व एजेंट की भांति भी कार्य करने में तत्पर रहता है, यदि बुध दशम भाव को प्रभावित करते हुए चतुर्थेश और मंगल से प्रभावित होता है, तो जातक भूमि भवन का एजेन्ट हो सकता है।
    * बुध बुद्धि का कारक ग्रह है, अत: व्यक्ति ऎसे क्षेत्रों में अधिक देखा जा सकता है, जहां पर बुद्धिजीवीयों का स्थान होता है, वहां यह अपना स्थान बनाता है। इसी के साथ साथ यदि जातक को अपनी शैक्षिक संस्था का निर्माण करने की चाह हो तो गुरू और बुध का संबंध होने पर यह सहायक बनता है।
    * व्यवसाय के दृष्टिकोण में बुध एक बहुत अच्छा व्यवसायी होता है। इसके संदर्भ में व्यक्ति को वाक कुशलता और बुद्धि चातुर्य मिलता है। कुण्डली में बुध की स्थिति उत्तम होने पर जातक को इसके दूरगामी परिणाम प्राप्त होते हैं।
    * बुध के प्रभाव से जातक न्याय प्रिय होता है, और किसी के साथ बुरा न करने की कोशिश करता है। यदि कुण्डली में बुध की स्थिति उच्चता को पाती है, तो व्यक्ति मौलिक गुणों को बढा़ने में सहयोग करता है। जातक की वाणी में ओज रहता है। जिसकी मदद से वह भावों की  अभिव्यक्त करने में भी सहयोगी रहता है। ऐसा जातक वाचाल होता है, सामने वाले की हर बात का जवाब इनके पास रहता है, ऐसा जातक भाषण देने में भी काफी प्रभावशाली रहता  है।