कालसर्प योग जन्म कुण्डली में राहु-केतु से निर्मित होने वाला योग है। राहु को कालसर्प का मुख माना गया है। अगर राहु के साथ कोई भी ग्रह उसी राशि और नक्षत्र में शामिल हो तो वह ग्रह कालसर्प योग के मुख में ही स्थित माना जाता है। वहीं यदि कोई ग्रह राहु की राशि में स्थित हो लेकिन राहु के नक्षत्र से अन्य किसी नक्षत्र में स्थित हो तो वह ग्रह कालसर्प के मुख में होकर भी कैसा फल देगा इस बात का निर्धारण करने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखने की आवश्यकता होती है।
* पहले इस बात को समझने की जरूरत है, की कालसर्प का मुख कुण्डली के किस भाव में स्थित है।
* दूसरा यह की कालसर्प के मुख में स्थित ग्रह का कारकत्व क्या है।
* कालसर्प के मुख में स्थित ग्रह क्या अन्य भावों का भी अधिपति है।
इन मुख्य बातों पर विचार करने के उपरान्त ही अन्य चीजों का निर्धारण आरंभ होता है. जन्म कुण्डली में राहु के साथ अशुभ ग्रह की स्थिति कालसर्प के मुख में विष उत्पन्न करने वाली होती है। ऐसे कालसर्प का मुख अर्थात राहु जिस भाव में स्थित होता है। इसके साथ ही संबंधित भाव के मिलने वाले फलों में भी उसे परेशानी ही प्राप्त होती है। अगर कालसर्प के मुख में शुभ ग्रह स्थित हो तो यह कालसर्प अशुभ प्रभाव नहीं देता और वह जिस भाव में स्थित हो उससे संबंधित बुरे फल भी नहीं मिलते।
-: विभिन्न ग्रहों का कालसर्प मुख का प्रभाव :-
सूर्य का प्रभाव - सूर्य का कालसर्प के मुख में स्थित होना तथा लग्न भाव, द्वितीय भाव, तृतीय भाव, दशम भाव या द्वादश भाव में होना,साथ ही शुभ राशि ओर शुभ प्रभाव में होना अनुकूल माना जा सकता है। इसमें राज्य की ओर से व्यक्ति को पद प्राप्ती हो सकती है। प्रतिष्ठा प्राप्त होती है सामाजिक स्तर पर वह सक्रिय रह कर सम्मानित होता है। व्यक्ति अन्याय के खिलाफ विरोध करने वाला होता है। लेकिन यदि यह युति अशुभ राशि एवं अन्य किसी पाप ग्रह के प्रभाव में बन रही हो तो संघर्ष में भी प्रयासरत ही रहता है। भटकाव भी जीवन में बहुत होता है। कुंडली में यह युति अगर दूसरे भाव, चौथे भाव अथवा सातवें भाव में हो रही हो तो जीवन में पारिवारिक एवं दांपत्य सुख में कमी करने वाला होता है। व्यक्ति में अभिमान एवं स्वार्थ की भावना अधिक होती है। वाणी में कठोरता का भाव होता सत्यता की कमी होती है।
चंद्रमा का प्रभाव - यदि कालसर्प के मुख में चंद्रमा स्थित हो तो जातक को परिपक्व और बेहतर विचारधारा वाला बनाता है। व्यक्ति धैर्य के साथ परेशानियों का सामना करता है। समाज के हित में भी बेहतर कार्यों को करता है। साथ ही साथ सामाजिक रुप से भी व्यक्ति सक्रिय रहते हुए काम करता है। चंद्र अशुभ प्रभाव के कारण जातक को जीवन में संघर्ष की स्थिति भी प्रभावित होगी। जीवन में बाल्यावस्था समय जातक परेशानियों में रहेगा। असफलताएं आपको मानसिक रुप से अशांति प्राप्त हो सकती है।
मंगल का प्रभाव - मंगल का कालसर्प के मुंह में होना व्यक्ति को पराक्रमी बनाने वाला होता है। जातक पराक्रमी होता है। व्यक्ति को भाई बहनों का साथ ही संपूर्ण साथ मिलेगा। इस के साथ जीवन को असफलताएं का प्रभाव घेरे रह सकता है। इनके जीवन में बाल्यावस्था से कष्ट मिलता है। चोट का भय रहता है, हिंसक एवं असंतुष्ट रहता है। व्यभिचार का प्रभाव जातक को जल्द ही घेरे रह सकता है। वाद विवाद में व्यक्ति को परेशानियां रहती है। विवाहोत्तर संबंध अधिक रहते हैं।
बुध का प्रभाव - कालसर्प के मुख में बुध हो तथा शुभ स्थिति से प्रभावित होने पर व्यक्ति पर में ग्रहण की स्थिति बहुत अच्छे होती है। जल्द ही चीजों को अपने अनुरूप ढालने वाला होता है। किसी भी विषयों को ग्रहण करने के लिए इनमें बेहतर योग्यता होती है। ऐसे जातक व्यवहार कुशल होते हैं, काम निकलवाने में भी दक्ष होते हैं। अगर बुध कालसर्प के मुख में अशुभ प्रभाव में हो तो जातक में भ्रम की स्थिति अधिक होती है। किसी भी चीज को समझने में एकाग्रता की कमी भी परेशान करती है। बौद्धिकता पर असर पड़ता है, उचित निर्णयों को लेना कठिन ही होता है। स्मरणशक्ति भी कमजोर ही होती है। व्यवसाय के क्षेत्र में व्यक्ति को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हिस्टीरिया जैसे रोग भी व्यक्ति को प्रभावित करते है।
बृहस्पति का प्रभाव - बृहस्पति यदि कुंडली में कालसर्प के मुख में स्थित हो तो शुभस्थ होता है। जातक को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। बुद्धिमता तीक्षण होती है. वैसे तो राहु और गुरु का संबंध गुरु चंडाल योग का निर्माण करने वाला होता है। इस कारण से इस योग को अच्छा नहीं माना जाता है। लेकिन बेहतर शुभस्थिति में होने पर यह योग व्यक्ति को प्रगति भी देता है। अशुभ स्थिति प्रभाव के चलते व्यक्ति धर्म विरोधी बनता है। अनैतिक कार्यों के प्रति उसका आकर्षण अधिक रहता है। रुढियों से हटकर काम करता है। उसका ज्ञान भी प्रभावित होता है, इसलिए ऐसे जातकों को अपने बड़े बूजुर्गों की सलाह अवश्य लेनी चाहिए तथा पाप कर्म से मुक्त रहना ही आपको सकारात्मकता दे सकता है।
शुक्र का प्रभाव - शुक्र की स्थिति मुख में होने पर शुभस्थ स्थिति हो तो यह भौतिक सुखों की प्राप्ति कराने वाला होता है। व्यक्ति को जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है। विवाह अचानक से होता है तथा विवाह आपके लिए सुख एवं समृद्धि लाने वाला होता है। अशुभ होने की स्तिथि में मनोकूल वैभव एवं भौतिक सुखों में कमी आती है। आर्थिक कष्ट रहते हैं। विवाह का सुख भी प्रभावित होता है, ऐसा जातक पथभ्रष्ट भी हो सकता है।
शनि का प्रभाव - कालसर्प के मुख में शनि के होने पर जातक व्यवहारिक अधिक होता है। उसमें परिपक्कता एवं प्रौढ़ता होती है। गुढ़ विषयों पर पकड़ अच्छी होती है, व्यक्ति में दूरदर्शिता का भाव भी अच्छा होता है। वह संस्था को चलाने में सक्षम होता है। जातक की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती है। अशुभ प्रभाव में होने पर स्थिति विपरीत होती है। कार्यक्षेत्र में बाधाओं का एवं शत्रुओं का सामना अधिक होता है। व्यक्ति का स्वभाव भी कठोर होता है। कर्ज की स्थिति बहुत रहती है। धार्मिक क्षेत्र में भी पिछड़ा हुआ होता है।