Friday 25 September 2020

मीन लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग

आकाश में 330 डिग्री से 360 डिग्री तक के भाग को मीन लग्न के नाम से जाना जाता है. जिस जातक के जन्म के समय यह भाग आकाश के पूर्वी क्षितिज में होता है उसकी राशि मीन होती है. मीन राशि जल तत्व वाली राशि है. इसका स्वामी गुरू यानि बृहस्पति होता है।

मीनलग्न के स्वामी बृहस्पति है। बृहस्पति देवताओं के गुरू माने जाते हैं। ऐसे व्यक्ति, गौरवर्ग, कायन देह, मछली के समान आकर्षक व सुन्दर आँखों वाले होते हैं .इनके बाल घुंगराले एवं नाक ऊंची होती है। इनके दांत छोटे एवं पैने होते हैं.  मीन लग्न में जन्मे व्यक्ति धार्मिक बुद्धि से ओतप्रोत, मेहमान प्रिय, सामाजिक अच्छाईयों व नियमों का पालन करने वाले होते है। ऐसे जातक आस्तिक एवं ईश्वर के प्रति श्रद्धावान होते हैं तथा सामाजिक रूढ़ियों का कट्टरता से पालन करते हैं। आप कूटनीति, रणनीति व षडयंत्रकारी मामलों में एक कभी रूचि नहीं लेते। इनका प्राकृति स्वभाव उत्तम दायलु व दानशीलता है। सामान्यता मीनलग्न में उत्पन्न जातक स्वास्थ्य एवं दर्शनीय होते है। तथा सौम्यता की छाप हमेशा विद्यमान रहती हे।

ये विद्वान एवं बुद्धिमान होते हैं तथा नवीन विचारों का सृजन करने में समर्थ रहते हैं। इनके विचारों से सामाजिक लोग प्रभावित तथा आकर्षित रहते हैं। बातचीत करने की कला कोई इनसे सीखे। इन्हें धर्मपालक एवं अतिथिसेवी भी कहा जाता है।भौतिक सुख संसाधनों का उपभोग करने की इनकी प्रबंल इच्छा रहती है तथा इससे इन्हें प्रसन्नता की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त धनैश्वर्य से ये युक्त रहते हैं एवं विभिन्न स्रोतों से धनार्जन करके आर्थिक रूप से सुदृढ रहते हैं। साथ ही चिन्तन एवं मननशीलता का भाव भी इसमें रहता है।

प्रायः लेखन कार्य में इनकी रूचि रहा करती है। संगीत, नाटक एवं साहित्य की और इनका विशेष झुकाव होता है। फिजूलखर्ची इन्हें पसंद नही होती। आत्मविश्वास के धनी ऐसे जातक अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेते हैं। न्याय का पक्ष लेते हैं तथा कानून का सम्मान करते हैं। ऐसे जातक स्वभाव के इतने सौम्य होते हैं कि भले ही कोई इनके साथ दुष्टता का व्यवहार करें, किन्तु ये बदले में भलाई ही करेंगे, बुराई नहीं।

प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन करके इनको शांति एवं संतुष्टि की प्राप्ति होती है। प्रेम के क्षेत्र में ये सरल और भावुक रहते है। परन्तु व्यवहार कुशल होते है। अतः सांसारिक कार्यों में उचित सफलता अर्जित करके अपने उन्नति मार्ग प्रशस्त करने में सफल रहते हैं। इसके अतिरिक्त नवीन वस्तुओं के उत्पादन आदि में इनकी रूचि रहती है तथा इस क्षेत्र में इनका प्रमुख योगदान रहता है।

आकर्षक व्यक्तित्व के कारण अन्य लोग भी आपसे प्रभावित रहते हैं.  लेखन के प्रति आपकी रूचि होगी तथा इस क्षेत्र में आप आदर एवं प्रतिष्ठा भी अर्जित कर सकते है। अभिमान के भाव की आप अल्पता होगा तथा सबके साथ विनम्रता का व्यवहार करेंगे। आप में दयालुता का भाव भी विद्यमान होगा तथा अवसरानुकूल अन्य जनों की सेवा तथा सहायता करने के लिए तत्पर होंगे। इसके अतिरिक्त साहित्य एवं कला के प्रति भी आपकी रूचि रहेगी।

 -:मीन लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह :- 

गुरु - लग्नेश और कर्मेश होने के कारण शुभ एवं कारक  ग्रह है। 

मंगल - धनेश एवं भाग्येश होने के कारण शुभ एवं कारक ग्रह है। 

चंद्र - पंचमेश होने के कारण शुभ एवं कारक ग्रह है। 

 -:मीन लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह :- 

शुक्र - तृतीयेश एवं अष्टमेश होने के कारण अशुभ/मारक ग्रह है।

सूर्य - षष्टेश होने के कारण मारक ग्रह है।

शनि - एकादश एवं द्वादश होने के कारण अशुभ/मारक ग्रह है। 

बुध - यह मीन लग्न में सम होता है। 

लग्न स्वामी : गुरु
लग्न तत्व: जल

लग्न चिन्ह :दो मछलियाँ  
लग्न स्वरुप: द्विस्वभाव  
लग्न स्वभाव: सौम्य
लग्न उदय: उत्तर 

लग्न प्रकृति: त्रिधातु प्रकृति
जीवन रत्न: पुखराज
अराध्य: भगवान् विष्णु  

लग्न गुण : सतोगुण 
अनुकूल रंग: पीला
लग्न जाति: ब्राह्मण  
शुभ दिन: गुरूवार, रविवार  
शुभ अंक: 3
जातक विशेषता: भावुक 
मित्र लग्न :कर्क, वृश्चिक    
शत्रु लग्न : मेष, सिंह   
लग्न लिंग: स्त्री।

Tuesday 25 August 2020

कुम्भ लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग

कुंभ राशि भचक्र की ग्यारहवें स्थान पर आने वाली राशि है. इस राशि का विस्तार 300 अंशो से 330 अंशो तक फैला हुआ है. इस राशि का स्वामी ग्रह शनि है. इस राशि की गणना वायु तत्व राशि में होती है. स्वभाव से इस राशि को स्थिर राशि में रखा गया है. इस राशि का प्रतीक चिन्ह एक व्यक्ति है जिसके कंधे पर घड़ा है. व्यक्ति ने नीचे धोती पहनी हुई है और ऊपर कुछ नही है. घड़े मे से पानी छलक व्यक्ति के ऊपर भी गिर रहा है. जिन लोगों का जन्म कुंभ लग्न में होता है वह भाग्यशाली होते हैं. यदि कुंडली में ग्रह ठीक-ठाक स्थिति में हो तो जातक इतना धनी हो सकता है कि कह सकते हैं कि कुंभ वाला अपने इस जन्म में धन से घड़ा भरने आता है.

कुंभ धनिष्ठा के दो चरण, शतभिषा के चार चरण और पूर्वभाद्रपद नक्षत्र के तीन चरण से मिलकर बनती है. कुंभ का स्वामी शनि होता है. कुंभ के अलावा मकर वालों का भी शनि लग्नेश होता है. वैसे इस लग्न में जन्मे लोग मकर वालों से ज्यादा आध्यात्मिक होते हैं. एक बात समझ लेनी चाहिए कि किसी भी जीव को कुंभ तभी प्राप्त होती है जब उसका संचित कर्म फलित होने की स्थिति में होता है. यदि कुंडली में ग्रह स्थिति अच्छी हो तो कुंभ वाले धन के मामले में अन्य लग्नों से ज्यादा भाग्यशाली होते हैं। 

 

बुद्धि प्रखर और स्मरण शक्ति अच्छी होती है - कुंभ वाला जातक दार्शनिक विचारों का होता है. कुंभ लग्न वाले का हृदय कोमल होता है. ऐसा जातक किसी के दुखों को देख स्वयं ही दुखी हो जाता है. यह किसी को तड़पते नहीं देख सकता है. यह अपने शत्रुओं के हित में भी सोचता है. दूसरों के भावों से प्रभावित होकर सहज ही द्रवित हो जाता है. कुंभ वाले व्यक्ति में एक खास बात यह होती है कि दूसरों की सहायता करने को सदैव अग्रसर रहता है. इस लग्न वाले की बुद्धि प्रखर होती है. इसकी स्मरण शक्ति भी काफी अच्छी होती है. यह वक्त पड़ने पर दूसरों से बहुत चतुराई से अपना काम निकाल लेने में माहिर होता है.

आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं - कुंभ लग्न का व्यक्ति प्राय: सुंदर होता है उसके होंठ सुंदर होते है. कुंडली में केतु की स्थिति अच्छी हो जाए तो जातक सामान्य से ज्यादा लंबा हो जाता है. कुंभ में एकादश और द्वितीय अर्थात लाभ और कोष का स्वामी गुरु ही होते हैं. साधारण सी बात है कि जब आय और कोष का स्वामी एक ही होगा तो लाभ और उसे संचित करने का तारतम्य भी बहुत अच्छा होगा. चूंकि यह लाभ गुरु करा रहा है तो वह कुछ धन धर्म के कामों में खर्च करवाता है. जिन लोगों की कुंडली में गुरु बलवान स्थिति में होता है, ऐसे जातक करोड़पति होते हैं. कुंभ वाले जातक को अपनी बात को स्वीकार न किए जाने पर बड़ा क्रोध आता है.

हर बात की तह तक पहुंचते हैं - इस लग्न वालों का क्रोध भी कुछ अजीबोगरीब तरीके का होता है. यह किस बात से नाराज हो गए हैं, पता लगाना मुश्किल होता है. फिर गुस्से में बहुत उग्र हो जाते है. अकसर देखा गया है कि यह लोग गुस्से में अपना ही नुकसान कर लेते हैं. इन सब बातों के बाद एक बात जरूर ध्यान देने वाली है कि इनका गुस्सा बहुत जल्दी ही ठंडा हो जाता है. कुंभ वाले को यदि किसी बात में शक हो जाए तो वह उस बात की सच्चाई की तह तक पहुंच कर ही दम लेते हैं. इस लग्न वाले व्यक्ति में सफलता प्राप्त करने का जुनून सा होता है और वह इस सफलता को पाने के लिए बहुत मेहनत कर सकता है.

अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से रखते हैं - कुंभ वाले व्यक्ति में लगन बहुत होती है. इस लग्न में जातक अपनी बात को बहुत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करते हैं. इस लग्न के लोग बातचीत में अपनी पूरी क्षमता प्रदर्शित करते हैं. इस लग्न वालों के लिए शुक्र बहुत शुभ फल देने वाला होता है. शुक्र नवम और चतुर्थ का स्वामी अर्थात भाग्य और सुख का स्वामी होता है. भाग्येश होने के कारण यह परमकारक ग्रह हो जाता है. जब कुंभ वाले को शुक्र की महादशा या अंतरदशा मिलती है तब उस समय कुंभ वाले को शुभ फल प्राप्त होता है. इस लग्न में मंगल दशमेश और तृतीयेश होने के काऱण यह अपने कर्म को साहस के साथ करते हैं. इस लग्न वाले जातक को अपने कर्म में सफलता जन्म स्थान से बाहर ही मिलती है और यह जन्म स्थान से दूर ज्यादा साहस के साथ काम करने में सक्षम होते हैं.

उच्चाधिकारियों से संबंध अच्छे होते हैं - कुंभ वाले जातकों की सरकार से अच्छी बनती है या फिर सरकार या बॉस की नीतियों का समर्थन करते हैं. इसके पीछे कारण यह है कि कुंभ वाले का प्राकृतिक मित्र सिंह राशि वाला होता है और सिंह का अर्थ है राजा या सरकार. कुंभ लग्न वाले जातक भाग्य पर कर्म से ज्यादा विश्वास करते हैं. शनि लग्नेश होने के कारण इस लग्न वालों को नीलम रत्न धारण करना चाहिए. नीलम के धारण करने से इनमें समझदारी, प्रतिरोधक क्षमता और आत्मबल भी बढ़ जाता है. शुक्र परम योगकारक ग्रह है. इसलिए हीरा रत्न धारण करने से कुंभ वालों को बहुत लाभ होता है. हीरे को पहनने से भाग्य में वृद्धि तो होती ही है. साथ ही भौतिक सुखों में भी बढ़ोत्तरी होती है. पन्ना और माणिक को कुंडली के ग्रहों की स्थिति देखने के बाद ही धारण करना चाहिए.

शुभ गृह -  शनि लग्नेश व् द्वादशेश, बुध पंचमेश व् अष्टमेश, तथा शुक्र चतुर्थेश व् नवमेश होकर करक हैं। 

अशुभ गृह - सूर्य सप्तमेश , मंगल त्रित्येष व् दशमेश, गुरु द्वितीयेश व् एकादशेश होकर मारक हैं। 

तटस्थ गृह - कुम्भ लग्न में चंद्र तटस्थ होता है। 

शुभवार -  बुधवार, शुक्रवार एवं शनिवार शुभ एवं भाग्य कारक दिन होते हैं। बुध, मंगल तथा गुरुवार मिश्रित शुभाशुभ फल प्रदायक होते हैं। जबकि रविवार तथा सोमवार प्रायः साधारण अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं।

शुभरंग -  नीला, काला, संतरी, आसमानी, भूरा रंग शुभ होंगे। पीला, हरा मिश्रित प्रभाव रखेंगे। जबकि सफेद व लाल रंग अशुभ रहेगा।

शुभ रत्न -  नीलम

शनि मंत्र  -  ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नमः 

भाग्यशाली अनुकूल वर्ष  -  20, 23, 25, 28, 33, 36, 38, 42, 48, 52, 56 वां वर्ष।

भाग्यशाली अंक  -  2, 3 व 9 अंक भाग्योन्नतिकारक रहते है।

Thursday 23 July 2020

मकर लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग

मकर राशि भचक्र की दसवें स्थान पर आने वाली राशि है. इस राशि का विस्तार 270 अंश से 300 अंश तक फैला हुआ है. मकर राशि का स्वामी ग्रह शनि महाराज है. जिस जताक के जन्‍म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में उदित होता दिखाई देता है, उस जातक का लग्‍न मकर माना जाता है. मकर लग्‍न की कुंडली में में मन का स्‍वामी चंद्रमा सप्‍तम भाव का स्‍वामी होता है. यह जातक लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में चंद्रमा के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
मकर लग्न में जन्में जातक शरीर से पतले, मध्यम कद, पैनी आंखें, नाक चपटी, श्यामवर्ण और फुर्तीले हुआ करते हैं। इनके शरीर का गठन सुव्यवस्थित नहीं होता। प्रायः इनके शरीर का कोई अवयव अनुपात में कम या अधिक हेाता है।



मकर लग्न वाले व्यक्ति प्रायः उग्र स्वभाव के होते हैं.  इनके स्वभाव में उत्साह के साथ-साथ झगडालू प्रकृति भी होती है। क्रोध आता भी धीरे- धीरे आता है व शांत भी देरी से होता है।स्तिथियों के अनुरूप अपने स्वभाव को ढालना आपको बहुत अच्छे से आता है.  आप बहुत ही परिश्रमशील व उद्यमी व्यक्ति है तथा हिम्मत हारना व निराश होना आपके स्वभाव में नहीं है. ऐसे  जातक शांत तथा उदार स्वभाव  के व्यक्ति होते हैं तथा अन्य जनों के प्रति उनके मन में प्रेम तथा सहानुभूति सदैव विद्यमान रहता है. मुख पर  विचारशीलता, शांति एवं गम्भीरता सदैव विद्यमान रहती है . मकर लग्न में जन्मे जातक अत्यंत ही कम्रशील एवं परिश्रमी होते हैं फलतः सांसारिक महत्व के कार्यों को सम्पन्न करके उनमें सफलता अर्जित करते हैं। इनमें कार्य करने की क्षमता प्रबंल होती है तथा यही इनकी सफलता का रहस्य होता है। इनमें सेवा का भाव भी रहता है तथा समाज एवं देश सेवा के प्रति ये उद्यत रहते हैं। ये साहसी एवं संघर्षशील होते हैं तथापि इनके मन में यदा-कदा उदासीनता के भाव की उत्पत्ति होती है जिससे सुख-दुख के समान भाव की अनुभूति करते हैं एवं त्यागमय जीवन व्यतीत करने के लिए ये उत्सुक रहते हैं। इनका स्वभाव अड़ियल होता है। जिस बात को करने की ठान लेंगे, उसे अवश्य करेंगे, भले ही इन्हें उसमें कितनी ही हानि क्यों न उठानी पड़े। इसके अतिरिक्त परिश्रमी एवं अध्ययनशील होने के कारण ये अनुसंधान विज्ञान या शास्त्रीय विषयों का ज्ञान अर्जित करके एक विद्वान के रूप में सामाजिक पहचान प्राप्त करते हैं।

आप स्वस्थ्य एवं बलशाली पुरूष होंगे तथा अपने आदर्शों पर चलने के लिए स्वतंत्र होंगे। आप अपने सभी कार्य अपनी बुद्दिमता से संपन्न करते हैं. । देश सेवा का भाव भी आपमें विद्यमान रहता है. आपके गुणों के कारण शत्रु भी आपसे प्रभावित रहते हैं.  संगीत के प्रति आपकी विशेष रूचि रहेगी तथा इस क्षेत्र में  अधिक परिश्रम और प्रयासों के बल पर आप  विशिष्ट उपलब्धि भी अर्जित कर सकते है। आपकी श्रेष्ठ कार्यों को करने की रूचि आपको समाज में मान सम्मान दिलाएगी. आपका पुत्र एक प्रिसद्ध व्यक्ति होगा और आपको भी उसके कारण ख्याति मिलेगी. आजीवन आप अपने पिता को आदर देंगे तथा उनकी सेवा करेंगे। आपकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ होगी तथा प्रचुर मात्रा में धन एवं लाभ अर्जित करेंगे। । आपकी युवावस्था  संघर्षशील रहेगी  परन्तु वृद्धावस्था में सुख एवं शांति प्राप्त करेंगे।  मित्र एवं बन्धु वर्ग के आप प्रिय हेांगे तथा इनसे आपको पूर्ण लाभ सहयोग प्राप्त होगा।  यदि आपका जन्म अभिजित नक्षत्र में  है तो आपके अन्य भाई बहनों से सहायता की उपेक्षा  हानि की सम्भावना अधिक है। आप के विनोदी स्वभाव  के कारण अपरिचित से  अपरिचित व्यक्ति भी आपके मित्र बन जायेंगे। सार्वजनिक कार्यों में आप बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे परन्तु आपका विवाहित जीवन पूर्णतः सुखी नहीं कहा जा सकता। पत्नी व आपके विचारों में असमानताऐं, आपके विवाति जीवन को कटुता से भर देंगी.

मकर लग्न के जातकों में व्यापार की समझ अच्छी होती है । आपका मस्तिष्क सक्रिय है। शनि के प्रभाव के कारण   आपका भाग्योदय भी  शनै-शनैः होता है। आपका भाग्य 30 वर्ष की आयु के पश्चात् चमकेगा, तथा 36 वर्ष के पश्चात् आपको भाग्य निर्माण तेजी से प्रारम्भ होना शुरू हो जाता है।


शुभ ग्रह : शुक्र पंचमेश व दशमेश होकर, शनि लग्नेश व द्वितीयेश होकर तथा बुध नवमेश होकर कारक होते हैं। इनकी दशा-महादशा फलकारक होती है, जब ये ग्रह अच्छी स्थिति में हों।

अशुभ ग्रह : बृहस्पति, मंगल व चंद्रमा इस लग्न के लिए अशुभ सिद्ध होते हैं। इनकी दशा-महादशा कष्टकारी सिद्ध होती है।

तटस्थ ग्रह : मकर लग्न के लिए सूर्य तटस्थ ग्रह हो जाता है।

शुभ अंक : 5, 7

शुभ रंग : आसमानी, हरा, स्लेटी

वार : शुक्रवार, शनिवार

इष्ट : शिवजी

गुरुवार को नया काम न करें।

Wednesday 24 June 2020

धनु लग्न और कुछ महत्त्वपूर्ण योग

धनु  राशि भचक्र की नवे स्थान पर आने वाली राशि है, भचक्र में इस राशि का विस्तार 240 अंश से 270 अंश तक फैला हुआ है |  धनु लग्न के स्वामी बृहस्पति  हैं जो देवताओं के गुरु माने गये हैं. बृहस्पति के प्रभाव के कारण धनु लग्न में जन्मे जातक धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं.  अधिकारप्रिय, करुणामय और मर्यादापूर्वक व्यवहार इनका स्वभाव है. इस लग्न में जन्मे जातक गेहुएं रंग , विशाल नेत्र ओर उन्नत ललाट वाले बुद्धिजीवी होते हैं. धनु लग्न  में जन्में जातक बड़े  कद के और सुगठित देह वाले होते हैं। इनके चेहरे की बनावट को देखकर लगता है मानो किसी कलाकार ने कोई कलाकृति बनाई हो। इनकी नासिका का अगला भाग  नुकीला तथा गर्दन लम्बी होती है। कुल मिलाकर इन्हें सुदर्शन कहा जा सकता है। ऐसे जातक अध्यन में विशेष रूचि रखते हैं

. धनु लग्न में जन्मे जातक प्रायः स्वस्थ होते हैं . स्वभाव से शांत परन्तु अभिमानी और धार्मिक होते है. धनु लग्न के जातक अत्यंत बुद्धिमता का परिचय देते हुए अपने जीवन के कार्यों को पूरा करते हैं. आप अपने आदर्शों और सिद्धांतों  पर अडिग रह कर जीवन में सांसारिक सुखों का भोग करने में सफल होते है.
 धनु लग्न के जातक अपने कार्यों को नियमों के अनुसार करना हे पसंद करते हैं , आप दूसरों के लिए आदर्श होते हैं परन्तु अपने किसी कार्य के लिए आप दूसरों पर विश्वास नहीं करते. स्वभाव से दानी ओर समाज में मान प्रतिष्ठा पाने में आप कामयाब होते हैं. गणित , राजनीति , क़ानून एवं ज्योतिष जैसे विषयों में आपकी रूचि रहती है तथा अपने परिश्रम से आप इन क्षेत्रों में सफलता भी अर्जित करते हैं. ऐसे जातक प्रायः दार्शनिक विचार के हेाते हैं। आस्तिकता का पुट भी इनमें कुछ अधिक होता है, इसलिए पुरानी रूढ़ियों में जकड़े रहना इनकी नियति बन जाती है। ये सहज ही दूसरों पर विश्वास कर लेते हैं, पर दूसरे लोग इनकी इस सादगी का अनुचित लाभ उठाते हैं, फलतः इन्हें धोखा भी खाना पड़ता है। बनावट से ऐसे जातक कोसों दूर भागते हैं. प्रायः लोग इन्हें समझने मे भूल कर जाते है। धनु लग्न में जन्मे जातक दूसरों के प्रति द्वेष या इर्ष्या की भावना नहीं रखते हैं . अपने अथक परिश्रम  तथा धैर्य के कारण आप जीवन में सफलता अर्जित करते हैं. आप विरोधी पक्ष से भी उदारता ओर सम्मान के भाव से मिलते हैं जिसके कारण समाज में आपका आदर होता है.


आर्थिक रूप से आपकी  स्तिथि समान्यतः सुदृढ़ हे रहती है तथा आप दूसरों की आर्थिक मदद से भी नहीं हिचकिचाते हैं. आपके स्वभाव में तेजस्विता स्वाभाविक रूप से दिखती है परन्तु यदा कदा उग्रता का भी आप प्रदर्शन करते हैं. राजनीती के क्षेत्र में आप सफलता अर्जित कर सकते हैं. राजकार्य या सरकारी सेवाएं भी आपके लिए अनुकूल हैं परन्तु श्रेष्ठ ओर अनुसंधान कार्यों में ही आपकी रूचि रहेगी और  इन्ही कार्यों के द्वारा आपकी प्रतिष्ठा भी बनेगी. धनु लग्न के जातकों की धर्म के प्रति पूर्ण आस्था होती है. जीवन में कई बार आप तीर्थ यात्रा करेंगे. अपनी व्यवहार कुशलता के कारण आप अपने  मित्रों और  सहयोगियों के प्रिय तथा सम्मानीय होते हैं. जीवन में कई बार आपको अपने करीबियों से इच्छित सहयोग की प्राप्ति होती है. धनु लग्न के जातक अपने लक्ष्य के प्रति बहुत सचेत और चेष्टावान होते हैं. पूर्ण एकाग्रता के साथ लक्ष्य भेदन की कला में आप निपुण होते हैं.  धनु लग्न के पुरुष अल्प्संतती वाले होते है. बचपन में आर्थिक तंगी को झेलते हैं. व्यवसाय ओर प्रेम दोनों ही क्षेत्रों में शत्रुओं का सामना करना पड़ता है.

धनु लग्न के लिए धन योग :-
कुण्डली में चंद्रमा आठवें भाव में स्थित हो और सूर्य, शुक्र तथा शनि कर्क राशि में स्थित हों तो जातक को बहुत सारी संपत्ति प्राप्त होती है. यदि गुरू बुध लग्न मेषों तथा सूर्य व शुक्र दुसरे भाव में तथा मंगल और राहु छठे भाव मे हों तो अच्छा धन लाभ प्राप्त होता है.

शुभ ग्रह : सूर्य नवमेश व मंगल पंचमेश होकर प्रबल कारक होते हैं। सूर्य की प्रबल स्थिति इसे अथाह प्रसिद्धि दिलाती है। इनकी दशा-महादशाएँ फलकारक होती हैं।

अशुभ ग्रह : बुध, शुक्र, शनि व चंद्रमा अशुभ होते हैं। विशेषकर शुक्र की व चंद्रमा की महादशाएँ कठिन फल देती हैं। इन ग्रहों के शांति के उपाय करते रहें।

तटस्थ : बृहस्पति दो केंद्रों का स्वामी होकर तटस्‍थ हो जाता है।

इष्ट देव : विष्णु के रूप
रंग : पीला, नारंगी
अंक : 5, 9
वार : रविवार, मंगलवार
रत्न : मूँगा, माणिक

Tuesday 26 May 2020

वृश्चिक लग्न और कुछ मह्त्वपूर्ण योग

वृश्चिक राशि भचक्र की आठवे स्थान पर आने वाली राशि है, भचक्र में इस राशि का विस्तार 210 अंश से 240 अंश तक फैला हुआ है |  वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल है अतः इस लग्न में जन्मे जातक में क्रोध की अधिकता रहती है. मंगल के प्रभाव के कारण इस लग्न में जन्मा जातक दबंग , हठी एवं स्पष्टवादी होता है. अपनी बात को सदा निभाने वाला तथा बिना परवाह किये अपने सम्मान के लिए लड़ जाना वृश्चिक लग्न के जातकों की पहचान है. इस लग्न में उत्पन्न जातक सामान्यतः स्वस्थ एवं बलवान होता है. वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले जातक मंझले कद के, गठे हुए शरीर के तथा खिलते हुए गोरे वर्ण के होते हैं। इनके  केश सघन नही होती, बल्कि छितराई हुई होती है। चमकदार नेत्र होना इनकी विशेष पहचान है। इनका स्वभाव कुछ गरम अवश्य होता है, किन्तु इन्हें क्रूर एवं निर्दयी नहीं कहा जा सकता। यह अलग बात है कि किन्हीं ग्रहों के प्रभाव से ये ऐसे हो जायें। इनके कमर से निचला भाग उपर वाले भाग के अनुपात में छोटा रहता है, दांत कुछ बड़े होते हैं।, जिससे जबड़ा चैड़ा दिखाई देता है.
वृश्चिक लग्न का जातक परिश्रम एवं लगन के द्वारा अपने कार्यों को पूरा करते हुए जीवन में सफलता अर्जित करता है. विभिन्न विषयों में रूचि होने के कारण अनेको विषयों का ज्ञाता होता है वृश्चिक लग्न का जातक. परिवार एवं अपने कुल में श्रेष्ठ एवं विद्वानों में आपकी गणना होती है.मित्रों एवं भाई बहनों के प्रिय वृश्चिक लग्न के जातक महत्वाकाक्षी होते हैं. आत्मशक्ति की इनमे प्रधानता रहती है तथा जीवन में अधिक से अधिक धन संचय की इच्छा सदैव रहती है.  स्त्री सूचक लग्न के कारण मन ही मन घबराना  परन्तु दूसरों के समक्ष कठोर बने रहना आपका स्वभाव है.  बहुत अधिक क्रोध आने पर आप कभी कभी अपशब्द भी कह देते हैं परन्तु बाद में पछताते भी है. वृश्चिक लग्न के जातक स्वभाव से कर्मठ एवं साहसी होते हैं. बहुत तेज़  बुद्धि तथा दृढ इच्छाशक्ति के कारण जीवन में आई अनेक कठिनाइयों को आप चुप चाप धैर्य से पार कर लेते हैं तथा अपनी गति को बिना रोके मंजिल तक अवश्य पहुँचते हैं.
बिच्छु के समान अनेक नेत्रों से किसी भी वस्तु का बारीकी से अवलोकन करना आपकी विशेषता है. विषय की बारीकी को सहजता से पकड़ना और अपने लायक उसमे से ग्रहण करना आपका स्वभाव है. आप स्वभाव से तेज़ नित्य ही क्रियाशील एवं शीघ्र बदला लेने वाले होते हैं. सामने वाले की असावधानी से अपना फायदा उठाना कोई आपसे सीखे. आपका प्राम्भिक जीवन साधारण तथा अप्रभावशाली रहता है परन्तु जीवन के अंतिम दिनों में आप समाज में प्रभावशाली  तथा सर्व प्रभुत्व संपन्न बन जाते हैं. वृश्चिक लग्न के जातक क्रोध आने पर और कोई विपरीत बात सुनने पर सामने वाले को क्षमा नहीं करते है. आपके मन में क्रोध घर किये रहता है यद्यपि आप ऊपर से सामान्य दिखलाई पड़ते हैं परन्तु बदले की भावना आपके अन्दर भयानक रूप से रहती है. आप अपने शत्रु को क्रूरता और निर्दयता से हानि पहुंचाने में भी नहीं चूकते है.  वृश्चिक लग्न के जातक कम भावुक होते हैं तथा अपने सारे सम्बन्ध और कार्य बुद्धि द्वारा ही संपन्न करते हैं. धर्म के प्रति आपके मन में श्रद्धा  रहेगी तथा समय समय पर धार्मिक स्थलों का भ्रमण आप अपने मन की शांति के लिए करेंगे. वृश्चिक लग्न के जातकों की आयु प्रायः कम होती है, कोई भी दुर्घटना या बदलते घटनाक्रम का शिकार आप शीघ्र ही हो जाते हैं. खाने में आपको खट्टा स्वाद बहुत पसंद इसलिए आपके भोजन में नींबू का प्रयोग अधिक होता है.
वृश्चिक लग्न में धन योग: वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिये धनदायक ग्रह गुरु है क्योंकि यह दूसरे भाव का स्वामी है। आपके संचित धन की स्थिति भी यही बृहस्पति बतायेंगे। धन आये यही महत्वपूर्ण नहीं अपितु धन का सही उपयोग, सही समय पर होना व स्थायी रूप से रहना भी अनिवार्य है।
वृश्चिक लग्न के साथ-साथ बुध और चंद्रमा की स्थिति भी शुभ होना आर्थिक दृष्टिकोण से आनिवार्य है। वृश्चिक लग्न वालों के आर्थिक सुख, समृद्धि, यश व वैभव की स्थिति लग्नेश मंगल, द्वितीयेश व पंचमेश बृहस्पति नवमेश चंद्रमा, आयेश बुध इन ग्रहों की स्थिति बतायेंगे।
बुध व मंगल इनके लिये अशुभ ग्रह भी माने जाते हैं क्योंकि बुध यहां अष्टम भाव के भी स्वामी हैं और मंगल लग्नेश होने के साथ हैं। वृश्चिक लग्न वालों के लिये कुछ धनदायी योग।
1 वृश्चिक लग्न में यदि द्वितीय अपने ही स्थान दूसरे भाव में हो, पंचम भाव में मीन राशि हो अथवा भाग्य स्थान कर्क राशि में हो तो ऐसे व्यक्ति को सदा धन प्राप्त होता रहता है। जीवन में धन का अभाव नहीं होता।
2 लग्नेश स्वयं आपका परिचायक है यदि यहां लग्नेश मंगल भाग्येश चंद्रमा के साथ आय के स्थान में हो और द्वितीयेश बृहस्पति पंचम भाव में अपनी ही राशि में हो तो ‘’महालक्ष्मी योग’’ बनता है। ऐसे व्यक्ति अखण्ड धन-संपत्ति प्राप्त करता है। भाग्यवान होता है।
3 इसी प्रकार बृहस्पति पंचम में व बुध 11वें भाव में उच्च के हों चूंकि बुध अष्टमेश भी हैं इसी कारण ऐसा व्यक्ति शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है व अपने साहस व पराक्रम से खूब धन-संपत्ति पाता है।
4 जन्मपत्री में द्वितीयेश व आयेश यदि परस्पर स्थान परिवर्तन करें अर्थात यहां द्वितीयेश गुरु 11वें भाव में और 11वें भाव के स्वामी बुध दूसरे भाव में जाये तो भी व्यक्ति धनवान व भाग्यशाली होता है।
5 आयकारक बृहस्पति यदि बुध व शुक्र के साथ युति बनायें अथवा दृष्ट हों तो व्यक्ति राजा की तरह धन, ऐश्वर्य व भौतिक सुखों को पाता है।
6 वृश्चिक लग्न वालों के लिये यह योग शुभ है जब चंद्रमा वृष राशि अथवा स्वराशि (कर्क) में हो तो थोड़े प्रयत्न से ही अधिक लाभ मिलता है। व्यक्ति थोड़े परिश्रम से ही उससे अधिक धन प्राप्त करता है।
7 वृश्चिक लग्न में लग्नेश मंगल, चतुर्थेश शनि, शुक्र व बुध के साथ हों तो व्यक्ति महाधनी होता है।
8 वृश्चिक लग्न में यह योग करोड़पति बनाता है जब लग्नेश, धनेश, भाग्येश और दशमेश अर्थात मंगल, गुरु, चंद्रमा व सूर्य यदि सभी ग्रह वृश्चिक लग्न में उच्च के हैं अथवा अपनी-अपनी स्वराशि में हैं। यह अतिधनवान योग भाग्यशाली लोगों की पत्री में मिलता है।
9 वृश्चिक लग्न में यदि लग्नेश और आयेश परस्पर स्थान परिवर्तन करें तो व्यक्ति अपने बल व सामर्थ से ही धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति भाग्यवान है। 33 वर्ष के बाद भाग्य साथ देता है।
10 वृश्चिक लग्न में यदि लग्नेश मंगल, आयेश बुध, सप्तमेशव व्ययेश शुक्र और तृतीयेश और चतुर्थेश शनि ये सभी ग्रह लग्न में आ जायें तो व्यक्ति करोड़पति होता है। उसके जीवन में काफी धन, समृद्धि आती है।
11 यदि इन्हीं ग्रहों की युति मंगल, बुध, शुक्र व शनि की युति 11वें भाव में हो तो व्यक्ति अरबपति होता है। यहां साथ में राहु अचानक ऊंचाइयों को देता है।
12 अष्टम भाव भूमि के अंदर गहराइयों का है। धन कारक गुरु ग्रह अष्टम भाव में व अष्टमेश सूर्य लग्न में भूमि में गड़े हुये धन का स्वामी बनाता है। व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से भी धनी होता है।

शुभ ग्रह : चंद्रमा नवमेश, सूर्य दशमेश व बृहस्पति पंचमेश होकर बेहद शुभ होते हैं। इनकी दशा-महादशा बेहद लाभदायक होती है, अत: कुंडली में इनका शुभ होना आवश्यक है।

अशुभ ग्रह : बुध अष्टमेश, शुक्र व्ययेश और शनि तृतीयेश होकर अशुभ हो जाते हैं। इनकी दशा-महादशा कठिनाई से निकलती है विशेषकर शुक्र में शनि का अंतर मृत्युतुल्य कष्ट देता है। अत: उपाय, जप दान कराते रहें।

तटस्थ ग्रह : मंगल इस लग्न के लिए स्थिर या तटस्थ हो जाता है।
इष्ट देव : हनुमानजी
रंग : सफेद, पीला-नारंगी
संख्‍या : 3, 5, 9
वार : सोमवार, बृहस्पतिवार
रत्न : माणिक, पुखराज



Saturday 25 April 2020

तुला लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग


तुला राशि भचक्र की सातवें स्थान पर आने वाली राशि है। भचक्र में इस राशि का विस्तार 180 अंश से 210 अंश तक फैला हुआ है। इस राशि का तत्व वायु है। इसलिए इस राशि के व्यक्तियों की विचारशक्ति अच्छी होती है। इस राशि की गणना चर राशि में होती है अर्थात इस राशि के प्रभाव से व्यक्ति कुछ ना कुछ करने में व्यस्त रहता है। इस राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है, जिसकी गणना नैसर्गिक शुभ ग्रहों में होती है, और यह एक सौम्य ग्रह होता है। तुला राशि का चिन्ह एक तराजू है, जो जीवन में संतुलन को दर्शाता है।
इस लग्न के प्रभावस्वरुप आप संतुलित व्यक्तित्व के व्यक्ति होते हैं और आप न्यायप्रिय व्यक्ति भी होते हैं। तुला लग्न में जन्म लेने वालते जातकों का वर्ण गोरा, कद मध्यम एवं चेहरा सुन्दर होता है। चैड़ा मुख, बड़ी नाक, उन्नत एंव चैड़ी छाती वाले ऐसे जातकों को सदैव प्रसन्न चित्त एवं मुस्कुराते देखा जा सकता है। ये जिस किसी को मित्र मान लेते हैं, उसके लिए सर्वस्व देने में भी कभी नहीं चूकते। दूसरे के मन की बात यह बहुत अच्छे से जानते हैं, किन्तु अपने मन की थाह ये किसी को भी नहीं देते। उचित एवं तुरंत निर्णय ले लेना इनकी प्रमुख विशेषता होती है। ऐसे जातक प्रायः धार्मिक विचारों के होते हैं तथा इन्हें आस्तिक और सात्विक भी कहा जा सकता है। कैसी भी परिस्थितियां हो ये अपने को उनके अनुरूप ढाल लेते हैं। छोसी-से छोटी बात भी इनके मस्तिक को बेचैन कर देती है। भले ही ये साधनविहीन हों, किन्तु इनके लक्ष्य सदा उंचे ही होंगे। इनमें कल्पनाशक्ति गजब की होती है। ऐसे जातकों का रूझान न्याय एवं अनुशासन के प्रति अधिक होते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में ऐसे जातक अधिक सफल होते हैं। परोपकार की भावना भी इनमें अत्याधिक होती है किन्तु अपने हानि-लाभ को भी ये पूरा ध्यान में रखते है। गरीबों को भोजन देने वाले, अतिथिसेवी तथा कुआं व बाग आदि बनाने वाले होते हैं। इनका हृदय शीघ्र ही द्रवित हो जाता है तथा इन्हें सच्चे अर्थों में पुण्यात्मा और सत्यावादी कहा जा सकता है। शुक्र के कारण ये बड़ी आयु में भी जवान दिखते हैं। बोल चाल में निपुण तथा चतुर व्यवहार के कारण किसी भी व्यापार में शीघ्र ही सफल हो जाते हैं. आपमें एक कुशल व्यापारी के समस्त गुण विद्यमान होते हैं तथा अपनी पारखी नज़रों से आप सच्चा परीक्षण करने की क्षमता रखते हैं। किसी के छलावे में तुला लग्न के जातक कभी नहीं आ सकते हैं. जन्म कुंडली में यदि शुक्र की स्तिथि अच्छी है तो आपमें अभिनेता बनने के सभी गुण होंगे। 
शुक्र को भोग का कारक भी माना जाता है। आपको विलासिता की वस्तुएँ खरीदना व उनके उपभोग करने में रुचि होगी। वायु प्रधान होने से आपकी विचारशक्ति बहुत अच्छी होती है और नित नई योजनाएँ बनाते हैं। तुला राशि को बनिक राशि भी कहा गया है, इसलिए यदि तुला राशि आपके लग्न में उदय होने से आप बहुत अच्छे व्यवसायी होते हैं। आप बिजनेस चलाने के लिए नई - नई योजनाओं को बना सकते हैं। आपको गीत,संगीत, नृत्य व अन्य कलाओ में रुचि हो सकती है क्योकि शुक्र को कला का भी कारक माना गया है. तुला राशि के स्वामी शुक्र होते हैं और बृहस्पति के साथ उन्हें भी गुरु का व मंत्री का दर्जा दिया गया है। इसलिए आप सत्यवादी व अनुशासनप्रिय व्यक्ति होते हैं। शुक्र को सुंदरत का कारक ग्रह माना जाता है इसलिए शुक्र के प्रभाव से आप सौन्दर्य प्रिय व्यक्ति होते हैं। सुंदर चीजों को एकत्रित करना आपका शौक हो सकता है। आपको नित नई फैशनेबल वस्त्र पहनना पसंद हो सकता है।

१.शनि इस लग्न में सर्वाधिक योग कारक है, यदि शनि अनुकूल स्थति में हो तो अपनी दशा, अन्तर्दशा में जातक को राजयोग प्रदान कर देता है।
२. यदि शनि लग्न में होतो, शश योग नामक पञ्च महा पुरुष नामक योग होता है, जिसके फलस्वरूप जातक जीवन के सभी भोग भोगने में सफल होता है, किन्तु दाम्पत्य जीवन तथा दैनिक कार्य - व्यवसाय में परेशानियों का सामना करना पडता है।
३. यदि शनि लग्न में उच्च राशी तुला में होतो, यह शनि जातक के स्त्री सुख में कमी तथा दैनिक काम काज में परेशानी पैदा कर देता है।
. यदि बुध केंद्र १, ४, ७, १० अथवा ९ वे भाव या १२ वे भाव में होतो, यह बुध जातक को लाभ देगा, अन्य भावों में हानी देगा।
५. यदि शुक्र लग्न में होतो वह जातक कुलदीपक बनाकर एश्वर्य पूर्ण जीवन जीने में सफल होता है।
. यदि चंद्रमा ४ थे , ५ वे अथवा ९ वे भाव में होगा तो अपनी दशा, अन्तर्दशा में जातक को उत्तम फल देगा।
७. यदि सूर्य २ रे , ९ वे भाव अथवा ११ वे भाव में होतो यह सूर्य जातक को उत्तम लाभ देता है।
८. यदि सूर्य ६ ठे, ८ वे अथवा १२ भाव या शत्रु राशि में होतो शुभ फल देने में असमर्थ रहता है।
९. जिस जातक ६ ठे भाव में मंगल होता है उस जातक की अपनी पत्नी से वैचारिक मतभेद के साथ - साथ शारीर में कम्पन का रोग भी हो सकता है।
१०. यदि ७ वे भाव में मंगल होतो, विवाह में विलंब होता है।
११. यदि ९ वे भाव में चंद्रमा और १० वे भाव में बुद्ध होतो, यह एक सर्वश्रेष्ठ राजयोग होता है।
१२. यदि चंद्रमा+बुद्ध की युति ९ वे, १० वे अथवा १ ले प्रथम भाव में होतो, यह प्रबल राजयोग होता है।
१३.जिस जातक की कुंडली में किसी भी भाव में मंगल+शनि+सूर्य+बुद्ध की युति होतो, उस जातक को खूब धन लाभ होता है।
१४.जिस जातक की कुंडली में शनि+सूर्य की युति हो अथवा शनि+मंगल की युति होतो, उस जातक को पुत्र सुख की कमी रहती है।
१५. यदि जिस जातक का शुक्र अस्त हो या पाप प्रभाव में होतो, उस जातक को स्वास्थ से सम्बंधित परेशानियां होती है।
१६. जिस जातक के १२ वे भाव में बुध हो, उस जातक को भाग्य का भरपूर सहयोग मिलता है।

१७. यदि लग्न में बुध+शुक्र की युति होतो वह जातक धार्मिक होता है।

शुभ ग्रह : शुक्र लग्नेश, शनि पंचमेश व चतुर्थेश, बुध नवमेश होकर प्रबल कारक हो जाते हैं। इनकी प्रबल स्थिति दशा महादशा में व्यक्ति को धरती से आसमान पर पहुँचा देती है। अत: इन ग्रहों की शुभता हेतु सतत प्रयास करना चाहिए।

अशुभ ग्रह : सूर्य एकादशेश, चंद्रमा दशमेश व गुरु तृतीय व षष्ठेश होकर अशुभ हो जाते हैं। इनकी दशाएँ प्रतिकूल होती हैं।
तटस्थ : इस लग्न के लिए मंगल तटस्थ हो जाता है।

इष्ट : दुर्गा के रूप (देवी स्वरूप)।
अंक : 3, 7।
वार : शुक्रवार, शनिवार।
रंग : सफेद, नीला।
रत्न : हीरा, पन्ना, नीलम।

Tuesday 24 March 2020

कन्या लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग

कन्या लग्न में जन्मा जातक मझोले कद और समान्यतः भरे हुए चेहरे वाला होता है. नेत्र काले और घुंघराले बाल इनकी पहचान होती है. कन्या लग्न के जातकों में स्त्री स्वभाव की झलक साफ़ दिखाई देती है.  कन्या राशि में यदि चन्द्रमा हो तो मनुष्य में स्त्रियों के हाव भाव आना स्वाभाविक है. लज्जा, संकोच युक्त दृष्टि एवं झुके हुए कंधे एवं लटकी हुई भुजाएं ऐसे मनुष्य के लक्षण होते हैं. यदि कन्या लग्न में जन्म  हो तो मनुष्य विशेष ज्ञान की लालसा रखने वाला होता है. सदा ही विद्या अर्जन में समय व्यतीत करने वाला कन्या लग्न का जातक अनेक कलाओं में निपुण होता है. शास्त्रों के अर्थ को समझने वाला, स्वभाव से धार्मिक एवं बुद्धिमान होता है. आपको राजनीति में सफलता तथा मेडिकल और सामाजिक कार्यों में रूचि रहेगी. इस लग्न में जन्में जाजकों का स्वभाव  ही कुछ ऐसा होता है कि ये हर कार्य में जल्दी करते है, कोई भी कार्य करने से पहले उसके बारे में पूर्णतया विचार नहीं करते। भावुक होने के कारण अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते। ऐसे जातक सदा दिवास्वप्न देखते रहते हैं। चारपाई पर पड़े-पड़े ही इनके मस्तिष्क में योजनाऐं बनती रहती है और ये उनके पूरा होने के बारे में सोचते रहते हैं। यदि इन्हें हवाई किले बनाने वाला कहा जाये तो भी असत्य नहीं होगा। अधिक भावुकता के कारण कभी कभी बिना सोचे समझे आप निर्णय ले लेते हैं और अपनी हानि करा बैठते हैं. कोमल प्रकृति के कारण शीघ्र ही घबरा जाना आपके स्वभाव में है| 
कन्या लग्न में जन्मे जातक को अक्सर दूसरों के धन एवं मकान प्राप्त करते देखा गया है. जन्म स्थान से दूर रहकर कन्या लग्न के जातक अपने जीवन में उन्नत्ति कर  पाते हैं. कन्या लग्न के जातक स्वभाव से लोभी  और सदैव गुरु की संगती की लालसा रखने वाला होता है. स्त्रियों के संग की लालसा सदैव इनके ह्रदय में रहती है. रति क्रिया से प्रेम करने वाला और समाज में मान सम्मान की इच्छा रखने वाला भी होता है|  इनकी बातों से कोई निष्कर्ष निकालना आसान नहीं होता, क्योंकि ऐसे जाते द्विअर्थी बातें करते हैं। विद्याध्ययन की ओर इनका विशेष रुझान होता है तथा राजनीति के क्षेत्र में ये प्रसिद्धि अर्जित कर लेते हैं। अपने थोड़े-से लाभ के लिए दूसरे की बड़ी से बड़ी हानि कर सकते हैं, अतः इन्हें स्वार्थी भी कहा जा सकता है। भावुक होने के कारण निरन्तर संघर्ष करते-करते जब ये हिम्मत हार जाते हैं तब इनमें हीनता की भावना आ जाती है। विपरीत योनि के प्रति इनका झुकाव होना स्वाभाविक है, किन्तु प्रणय-प्रसंगों में इन्हें सफलता भी मिल जाये, ऐसा नहीं देखा गया। कन्या लग्न में पैदा हुआ जातक मधुर भाषी , सौभाग्यशाली एवं अनेक गुणों से युक्त होता है. आपको पत्नी पक्ष से तनाव रहता है तथा  इनके घर कन्या संतति की अधिकता रहती है. कन्या लग्न में जन्मे जातक अपने भाई बहनों से बहुत प्रेम करते हैं.कन्या लग्न का जातक दो विरोधी पक्ष में मेल बैठाने में निपुण होता है. मीठे वचनों द्वारा अपना कार्य निकलवाना कन्या लग्न के जातकों को बहुत अच्छे से आता है. स्वभाव से विलासी, चंचल और मनोरंजन प्रिय होते हैं कन्या लग्न के जातक. बुध की प्रधानता के कारण कन्या लग्न में जन्मे जातकों पर संगत का असर अति शीघ्र पड़ता है. सामने वाले की दिल की बात समझने में आप तेज़ होते हैं और उसकी गलतियां बताने में भी आप आगे रहते हैं.  अत्यंत बुद्धिमानी और अनेक कलाओं में निपुण कन्या लग्न के जातक धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं.| 
कन्या राशि द्विस्वभाव संज्ञक है, जिसका स्वामी बुध होता है| कन्या बुध की उच्च, मूल और स्वराशि तीनों ही होने के कारण कन्या बुध की प्रिय राशि है| बुध यदि कन्या लग्न में अकेला ही स्थित हो, तो राजयोगकारी होता है| कन्या लग्न में द्वितीय भाव में तुला, पंचम भाव में मकर, कर्म भाव में मिथुन और लाभ भाव में कर्क राशि स्थित होती है|
द्वितीयेश शुक्र कन्या लग्न में भाग्येश भी है, अत: वह स्थायी धन-सम्पत्ति, विद्या, वाणी और कुटुम्ब के अतिरिक्त भाग्य का कारक भी है तथा उसकी प्रिय राशि तुला भाग्य भाव में ही है, अत: कन्या लग्न में शुक्र सफलता का परिचायक है|
पंचमेश शनि षष्ठेश भी है तथा षष्ठ भाव में उसकी मूल त्रिकोण राशि होने से वह अधिकतर फल षष्ठ भाव से सम्बन्धित ही देगा, अत: शनि यहॉं विद्या के अतिरिक्त प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफलता का भी द्योतक है, अत: उसका शुक्र से सम्बन्ध बहुत ही उत्तम होता है|
कन्या लग्न में बुध लग्नेश के साथ कर्मेश भी है| लग्न और दशम भाव का स्वामी होने के कारण बुध कन्या लग्न में राजयोगकारी है|
लाभेश चन्द्रमा होने के कारण चन्द्र बली होने पर कन्या लग्न वाले जातकों को किसी भी कार्य में सफलता शीघ्र ही प्राप्त हो जाती है| इस प्रकार कन्या लग्न में क्रमश: शुक्र, शनि, बुध और चन्द्रमा कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह हैं| गुरु केन्द्राधिपत्य दोष से पीड़ित होने के कारण कन्या लग्न में अशुभ फलकारक ग्रह है, लेकिन यदि वह लग्न भाव से अथवा लग्नेश बुध से सम्बन्ध बनाए, तो उसका केन्द्राधिपत्य दोष अल्प हो जाएगा, अत: गुरु इस स्थिति में चतुर्थ और सप्तम के शुभ फल प्रदान करेगा|  


इस प्रकार कन्या लग्न से फल कथन करने से पूर्व निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखें :
1. कन्या लग्न में कॅरियर सम्बन्धी किसी भी उपलब्धि को शुक्र द्वारा दर्शाया जाता है, अत: शुक्र बली होने पर जातक को शीघ्र सफलता प्राप्त होती है|
2. कन्या लग्न में बुध राजयोगकारी ग्रह है तथा गुरु से उसका सम्बन्ध उत्तम फल देने वाला है|
3. कन्या लग्न में गुरु लग्न, सप्तम, भाग्य अथवा बुध से संयोग होने पर ही अपने शुभ फल दे पाता है अथवा वह कन्या-मिथुन के नवांश में होने पर शुभ फलदायक होता है|
4. चन्द्रमा लाभ भाव का स्वामी होने के कारण कन्या लग्न वाले जातकों को जीवन में शीघ्र ही उन्नति प्राप्त हो जाती है| चन्द्रमा बली होकर शुभ भावों और ग्रहों से संयोग करे, तो यह फल निश्‍चित रूप से प्रात होते हैं|
कार्यक्षेत्र के उपर्युक्त अनुकूल ग्रह यदि लग्न भाव से युति करें अथवा सम्बन्ध बनाएँ, तो जातक को अपने कार्यक्षेत्र में शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो जाती है| यदि बुध यहॉं सर्वाधिक रूप से बली होकर सम्बन्ध बनाए, तो जातक वाणिज्य विषय में उच्च सफलता प्राप्त कर किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में मैनेजर का पद प्राप्त करता है| शुक्र यहॉं नीच का होने के कारण सामान्य फल देने वाला, चन्द्रमा तथा शनि उत्तम फल देने वाले होते हैं| यदि शनि यहॉं गुरु से युति करे, तो जातक व्यापारादि कार्यों से धन प्राप्ति करता है|
द्वितीय भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने पर जातक शीघ्र ही अपनी आय प्रारम्भ कर लेता है| ऐसे जातक की शिक्षा श्रेष्ठ होती है| कन्या लग्न के कार्यक्षेत्र सम्बन्धी सारे ग्रह यहॉं पर शुभ फलदायक होते हैं| बुध बली होकर स्थित होने से जातक कला और वाणिज्य विषय में सफल होता है| चन्द्रमा सम राशिगत और शुक्र स्वराशिगत होता है, अत: चन्द्र-शुक्र की युति होने पर जातक को जीवन में कभी भी धन की कमी महसूस नहीं होती है| वहीं शनि-शुक्र बली होकर स्थित होने से जातक विद्या में सफल होकर उच्च उपाधियॉं प्राप्त करता है| उच्च उपाधियॉं प्राप्त करने के पश्‍चात् वह किसी उत्तम नौकरी को प्राप्त करता है|
कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह तृतीय भाव में होने पर अधिक रूप से शुभ फलदायक नहीं होते हैं| चन्द्रमा यहॉं नीच राशि में, बुध शत्रु गत और शुक्र-शनि भी अधिक शुभ स्थिति में नहीं होंगे, फिर भी इस भाव में शुक्र-शनि का फल ही सर्वाधिक रूप से श्रेष्ठ होगा| ऐसे जातक को अपने कार्यक्षेत्र में बहुत संघर्ष करने के पश्‍चात् ही सफलता प्राप्त होती है|
यदि चतुर्थ भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह उपस्थित हों, तो जातक व्यापारादि कार्यों के द्वारा धनार्जन करता है| यदि बुध यहॉं बली होकर स्थित हो, तो जातक का रुझान शिक्षा प्राप्ति में अधिक नहीं होता है| वहीं शनि-शुक्र यदि बली होकर चतुर्थ भाव में हों, तो उत्तम विद्याध्ययन को दर्शाते हैं| यदि शनि बलहीन हो, तो व्यवसाय के ही योग बनते हैं| चन्द्रमा यहॉं अधिक रूप से फलीभूत नहीं होता है|
पंचम भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह स्थित हों, तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही उत्तम कार्यक्षेत्र को भी प्राप्त करता है| सभी अनुकूल ग्रहों का फल यहॉं सकारात्मक ही प्राप्त होता है| बुध बली होने पर राजयोगकारी, शुक्र बली होने पर शिक्षा में उच्च सफलता तथा चन्द्रमा बली होने पर कार्यक्षेत्र में शीघ्र सफलता की प्राप्ति होती है| ऐसे जातक किसी भी विषय में विद्याध्ययन कर सफल हो सकते हैं|
यदि षष्ठ भाव में कन्या लग्न के कार्यक्षेत्र सम्बन्धी अनुकूल ग्रह उपस्थित हों, तो जातक को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कराने वाले होते हैं, परन्तु ऐसे जातक को कार्यक्षेत्र प्राप्ति में बहुत समस्याएँ आती हैं| अपनी योग्यता के अनुसार इन्हें कभी भी कार्यक्षेत्र प्राप्त नहीं होता है| शुक्र यहॉं अशुभ फलकारी होता है, वहीं बुध और चन्द्रमा का भी कोई विशेष फल नहीं होता है|
सप्तम भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने पर जातक को कार्यक्षेत्र में अच्छी उन्नति मिलती है| बुध यदि यहॉं बली होकर स्थित हो, तो रुचि के अनुसार जातक का कार्यक्षेत्र मिलता है| शेष ग्रह यदि इस भाव से सम्बन्ध बनाते हुए बली हों, तो जातक का कॅरियर विवाह के पश्‍चात् ही तय हो पाता है| विवाह से पूर्व वह संघर्ष ही करता है| इस प्रकार सप्तम भाव में स्थित ग्रह जातक का शीघ्र विवाह भी करवा सकते हैं| शुक्र यहॉं अशुभ फलकारी होता है, वहीं बुध और चन्द्रमा का भी कोई विशेष फल नहीं होता है|
सप्तम भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने पर जातक को कार्यक्षेत्र में अच्छी उन्नति मिलती है| बुध यदि यहॉं बली होकर स्थित हो, तो रुचि के अनुसार जातक को कार्यक्षेत्र मिलता है| शेष ग्रह यदि इस भाव से सम्बन्ध बनाते हुए बली हों, तो जातक का कॅरियर विवाह के पश्‍चात् ही तय हो पाता है| विवाह से पूर्व वह संघर्ष ही करता है| इस प्रकार सप्तम भाव में स्थित ग्रह जातक का शीघ्र विवाह भी करवा सकते हैं| शुक्र यहॉं उच्च होकर विशेष बली होता है| अष्टम भाव से कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह सम्बन्ध बनाते हों, तो जातक को आय प्राप्ति में संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि कन्या लग्न में आय से सम्बन्धित सभी ग्रह यहॉं पर बलहीन और अशुभ होते हैं, अत: कन्या लग्न में अष्टम भावगत इन ग्रहों का फल लगभग नकारात्मक ही होता है|
नवम भाव से यदि कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह उपस्थित हों, तो जातक को कई प्रकार से आय प्राप्ति सम्भव है| यदि शुक्र बुध के साथ बली होकर इस भाव में उपस्थित हो, तो जातक में कलात्मक क्षमता दृढ़ होती है| इसी कलात्मक क्षमता के कारण जातक अपने जीवन में दोहरी आय प्राप्त करता है| कार्यक्षेत्र सम्बन्धित सभी ग्रह यहॉं पर शुभ फल देने वाले होते हैं, अत: ऐसे जातक निश्‍चित रूप से अपने जीवन में उच्च सफलता प्राप्त करते हैं|
दशम भाव में यदि ये ग्रह उपस्थित हों, तो जातक व्यवसाय से अधिक नौकरी में सफल होता है| दशम भाव में स्थित ग्रह उसे उसकी विद्या के अनुसार सफलता दिलवाते हैं| ऐसे जातक विशेषतया सरकारी नौकरी, बैंकिंग क्षेत्र में नौकरी, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में नौकरी अथवा राजनीति में सफल होते हैं| बुध के बली होकर यहॉं उपस्थित होने से कार्यक्षेत्र में शीघ्र उन्नति प्राप्त होती है| वहीं शुक्र और चन्द्रमा भी यहॉं योगकारी होते हैं| शनि स्वयं दशम भाव का कारक ग्रह होने के कारण यहॉं शुभ फल ही प्रदान करेगा|
एकादश भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने पर जातक नौकरी और व्यवसाय दोनों में ही सफल होता है| वह जिस विषय में अध्ययन करता है, उससे सम्बन्धित ही व्यवसाय और नौकरी होती है| बुध यहॉं होने पर दोहरी आय प्रदान करने वाला, शनि शिक्षा से सम्बन्धित आय देने वाला, शुक्र और चन्द्रमा भी बुध के समान ही फलकारी होते हैं|
द्वादश भाव में यदि कार्यक्षेत्र से सम्बन्धित अनुकूल ग्रह हों, तो शुभ फलकारी होते हैं| ऐसे जातक को कड़े संघर्ष के पश्‍चात् अपने जीवन में सफलता प्राप्त होती है| शनि यदि यहॉं बलहीन होकर उपस्थित हो, तो जातक को प्रतियोगी परीक्षाओं में कड़े संघर्ष के पश्‍चात् सफलता प्राप्त होती है| चन्द्रमा और शुक्र यहॉं मध्यम फलकारी और बुध सामान्य फल देने वाला होता है|

 
कन्या लग्न में अब पृथक्-पृथक् ग्रह स्थितियों के आधार पर कार्यक्षेत्र सम्बन्धी विभिन्न योगों को देखते हैं :—
1. कन्या लग्न में बली बुध अकेला स्थित हो, तो राजयोगकारी होता है|
2. बुध यदि चन्द्रमा के साथ युति करते हुए लग्न, द्वितीय, पञ्चम, सप्तम, नवम, दशम अथवा एकादश भाव में स्थित होने पर जातक को अपने कार्यक्षेत्र में ही शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो जाती है|
3. बुध शुक्र के साथ यदि द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम, नवम, कर्म अथवा एकादश भाव में हो, तो जातक अपनी कला के द्वारा धनार्जन करता है तथा वह इन ग्रहों से सम्बन्धित व्यापार में सफल हो जाता है|
4. बुध-गुरु से युति करते हुए लग्न, चतुर्थ, सप्तम, भाग्य, कर्म अथवा लाभ भाव में स्थित हो, तो जातक व्यवसाय करके आजीविका का निर्वाह करता है|
5. बुध-शनि से युति करते हुए लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम, भाग्य, कर्म अथवा लाभ भाव में उपस्थित हों, तो जातक का कॅरियर उसकी शिक्षा के अनुसार होता है| ऐसा जातक विज्ञान और वाणिज्य विषय में विशेष रूप से सफल होता है|
6. बुध-राहु की युति कन्या लग्न में राजयोगकारी होती है| यदि बुध-राहु अन्य अनुकूल ग्रहों में से किसी एक के साथ सम्बन्ध बनाकर कार्यक्षेत्र के अनुकूल भावों में उपस्थित हों, तो जातक को निश्‍चित रूप से उच्च सफलता प्राप्त होती है|
7. चन्द्र और शुक्र यदि द्वितीय, पञ्चम, नवम, कर्म अथवा एकादश भाव में हो, तो जातक कलाकार, गायक, लेखक और स्वतन्त्र रूप से कार्य करने वाला होता है| उसे विशेष रूप से स्वतन्त्र कार्य रूप में ही सफलता मिलती है|
8. चन्द्र-शनि यदि लग्न, द्वितीय, पञ्चम, नवम, दशम अथवा लाभ भाव में हो, तो जातक की शिक्षा में कई रुकावटें आती हैं, फिर भी वह उन्हें पार कर अपना उत्तम कार्यक्षेत्र प्राप्त करता है| ऐसा जातक आयु के काफी वर्षों तक विद्या अध्ययन ही जारी रखता है| इसलिए उसे अपने कार्यक्षेत्र में सफलता देरी से प्राप्त होती है|
9. यदि मंगल और शनि युति करते हुए पञ्चम अथवा अष्टम भाव में हों और सूर्य एवं चन्द्रमा भी बली हों, तो जातक डॉक्टर, इंजीनियर अथवा इन्हीं से सम्बन्धित अन्य कार्यक्षेत्र में होता है|
10.मंगल का शुभ सम्बन्ध यदि कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रहों से बनता हो, तो जातक कार्यक्षेत्र के लिए अपने घर से दूर विदेश में भी जा सकता है|
11.कन्या लग्न में पंचमेश शनि यदि नवम, लग्न अथवा द्वितीय भाव में स्थित होकर मंगल और चन्द्र या शुक्र के साथ बली होकर स्थित हो, तो जातक अपनी शिक्षा से ही कार्यक्षेत्र में उच्चता पर पहुँचता है|
12.चन्द्र-शुक्र और बुध कला के प्रतिनिधि ग्रह होते हैं| कन्या लग्न में ये तीनों ही ग्रह कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने के कारण ऐसे जातकों की कलात्मक क्षमता बहुत ही सुदृढ़ होती है, अत: ऐसे जातक कलात्मक कार्यों में विशेष रूप से सफल हो सकते हैं| यदि ये ग्रह बली होकर पञ्चम, लग्न, भाग्य अथवा लाभ भाव में स्थित हों, तो जातक निश्‍चित रूप से किसी न किसी कला के द्वारा अपने कार्यक्षेत्र को बनाता है|
13.गुरु यदि बुध के साथ अथवा लग्न में स्थित होकर चन्द्र अथवा शुक्र से शुभ सम्बन्ध बनाए, तो जातक को व्यापार में सफलता प्राप्त होती है| व्यापार किससे सम्बन्धित वस्तु का करें इसका निर्णय सर्वाधिक रूप से बली ग्रह के अनुसार करना चाहिए|
14.यदि चन्द्र, शनि, मंगल और शुक्र में से कोई तीन ग्रह भाग्य भाव में शुभ युति बनाए अथवा द्वितीय भाव से सम्बन्ध बनाए, तो जातक को शेयर आदि कार्यों से धन प्राप्ति संभव है|


विंशोत्तरी दशा :-
इस प्रकार कन्या लग्न में विभिन्न योगों को परखने के पश्‍चात् २० वर्ष से ३५ वर्ष के मध्य आयु में विंशोत्तरी दशाओं का विचार करना चाहिए| कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रहों में जो सर्वाधिक रूप से बली है, उसकी दशा यदि इस समय आती हो, तो जातक को निश्‍चित रूप से इस समय में उच्च सफलता प्राप्त होगी| प्राय: कन्या लग्न में बुध, शुक्र, शनि, राहु और चन्द्रमा की दशा-अन्तर्दशा शुभ होती है| गुरु की मध्यम फलकारक शेष दशाएँ अशुभ होती हैं|
इन शुभ दशाओं के साथ इन ग्रहों का गोचर और अष्टकवर्ग द्वारा विचार करना भी आवश्यक है| तभी इनके बलाबल के बारे में जानकारी मिल पाएगी| यदि उपर्युक्त श्ाुभ ग्रह श्ाुभ गोचर में चलते हुए पॉंच या उससे अधिक रेखाओं पर चल रहे हों, तो निश्‍चित रूप से ऐसे योग में जातक को कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है|
गोचर और अष्टकवर्ग विचार करने के साथ ही वर्ष कुण्डली और योगिनी दशाओं का भी अध्ययन करना चाहिए| सफलता प्राप्ति के वर्ष को वर्ष कुण्डली द्वारा ही परखा जा सकता है|
योगिनी दशाएँ भी कार्यक्षेत्र निर्धारण में बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं| जब भी जातक को उत्तम कार्यक्षेत्र की प्राप्ति होती है, तब प्राय: शुभ योगिनी दशा या अन्तर्दशा अवश्य होती है, अत: समय निर्धारण की इन सभी पद्धतियों को परखकर कार्य प्राप्ति के शुभ समय का पता लगाना चाहिए|•

Tuesday 25 February 2020

सिंह लग्न और कुछ मत्वपूर्ण योग

सिंह लग्न में जन्मे जातक अनुशासन प्रिय होते हैं तथा इनमें आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा होता है। ये न्याय प्रिय, शांति प्रिय, प्रसन्नचित एवं आध्यात्मिक प्रवृत्ति वाले होते हैं। ऐसे जातक मध्यस्थता का कार्य करने में निपुण, सत्य वचन कहने वाले, दार्शनिक सुधारवादी एवं तीक्ष्ण बुद्धि से युक्त, लोकप्रिय, स्त्री वर्ग एवं संगीत कला प्रेमी, बच्चों का विशेष स्नेही, प्रतिष्ठित एवं अच्छे से अच्छा कलाकार तक होता है। ऐसे जातक जीवन को परिस्थितियों के अनुरूप ढालने की क्षमता रखते हैं। अपने उच्चाधिकारियों के प्रति ये सदैव कृतज्ञ बने रहते हैं। इनमें शासन करने की अद्भुत क्षमता होती है, किन्तु सफल तथा संतुष्ट हो जाने पर ये प्रायः आलसी हो जाते हैं, पर किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति में आजीवन लगे रहते हैं। इनका भाग्योदय 24, 25, 32, 33 और 35 वें वर्ष में होता है। सिंह राशि में जन्में जातकों का शारीरिक गठन मजबूत तथा शरीर लम्बा एवं छरहरा होता है।
प्रायः इन्हें गुस्सा कम ही आता है, किन्तु एक बार आक्रोश में भर जाएं तो शान्त भी कठिनाई से होते हैं और शत्रु का अंत तक कर डालते हैं। अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कैसे रखा जाता है, कोई इनसे सीखे। ये सच्चे प्रेम में विश्वास करते हैं। धर्म के मामले में इनके विचार कट्टर होकर कुछ नरम होते हैं। यूं इनका स्वभाव गंभीर होता है, किन्तु व्यंग्यात्मक बातें करना इनकी आदत होती है। प्रेम व मित्रता इनकी मेष, मिथुन और कुम्भ राशि वाले से खूब जमती है।

ऐसे जातकों के यहां प्रायः एक ही पुत्र होता है। अपवाद रूप में या ग्रह स्थितिवश अधिक भी हो सकते हैं, यहां चूंकि हम राशि विशेष के फल की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। जो कि कुलदीपक होता है और पिता की प्रतिष्ठा को आगे बढ़ाता है।


सिंह लग्न के जातकों को गुप्त रोग, गुर्दा रोग, मूत्राशय एवं कमर सम्बंधित रोगों व विकारों से ग्रस्त होने की सम्भावना बलवती रहती है। सिंह लग्न के जातकों के लिए शनि, बुध एवं शुक्र ग्रह शुभ फलदायक एवं मंगल व बृहस्पति अशुभ फलदायक ग्रह माने गए हैं।
सिंह  लग्न के जातक सिद्धांतवादी होते हैं तथा अपने सिद्धांतों के प्रति सदैव सजग रहते हैं. धार्मिक प्रवृत्ति होने के साथ साथ परोपकारी एवं दयालु होते है.किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता में आप अक्सर सफल ही रहते हैं .  सरकारी या गैर सरकारी उच्च पदों पर आसीन अधिकारी अधिकांशतः सिंह लग्न के या  सूर्य के प्रभाव में होते है. सामाजिक मान  प्रतिष्ठा या यश
सदैव हे आपके साथ  रहता है.  नेतृत्व की क्षमता भी सिंह लग्न के जातकों में कूट कूट कर भरी रहती है.


ऐसे जातक जीवन को परिस्थितियों के अनुरूप ढालने को तथा परिस्थितियों को स्वानुरूप करने की अदभुत क्षमता रखते हैं। अपने उच्चाधिकारियों के प्रति ये सदैव कृतज्ञ बने रहते हैं। ऐसे जातक अनुशासनप्रिय होते हैं। तथा इनमें आत्मविश्वास कुछ अधिक ही देखने को मिलता है। ये सच्चे प्रेम में विश्वास रखते हैं।  अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कैसे रखा जा सकता है, कोई इनसे सीखे।इनमें शासन करने की अद्भुत क्षमता होती है, किन्तु सफल या संतुष्ट हो जाने पर ये प्रायः आलसी हो जाते हैं, पर किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति में आजीवन लगे रहते हैं।

सिंह लग्न के जातकों का व्यक्तित्व आकर्षक होता है जो अन्य लोगों को प्रभावित करता है. आप स्वभाव से निर्भय होते है एवं जीवन में सभी महतवपूर्ण कार्यों को सफलता पूर्वक करते हुए निरंतर आगे बढ़ते हैं. शत्रु या प्रतिद्वंदी आपसे भयभीत रहते हैं. यदि आप दूसरों के साथ भी समानता का व्यवहार करें तो निश्चित रूप से आपकी लोकप्रियता एवं सम्मान में बढ़ोत्तरी होगी.

सिंह लग्न के जातकों में शारीरिक बल की प्रधानता अधिक रहती है. आप  स्वभाव से तेजस्वी , गंभीर एवं निरंतर उन्नत्तिशील होते हैं.

धर्म के मामले में आपके विचार कट्टर न होकर कुछ नरम रहते हैं। धर्म के प्रति आप श्रद्धावान होते हैं . जीवन में यदा कदा धार्मिक अनुष्ठानों को भी संपन्न करते  हैं. योग साधना एवं सत्संग में भी आप पूर्ण रूचि रखते हैं. पहाड़ी इलाकों में भ्रमण करना आपको प्रिय है .

 
शुभ ग्रह : सूर्य लग्नेश और मंगल भाग्येश और सुखेश बनकर अति शुभ होते हैं। इनकी दशा महादशा उन्नतिकारक होती है अत: कुंडली में इनकी स्थिति ठीक न होने पर रत्न, जप-दान आदि करना चाहिए।

अशुभ ग्रह : बुध, शुक्र और शनि इस लग्न के लिए अशुभ सिद्ध होते हैं। विशेषत: शनि छठे व सातवें भाव का स्वामी होकर अति अशुभ हो जाता है जो मारकेश बन सकता है। अत: उचित उपाय करके इन्हें शांत रखना चाहिए। इस लग्न के व्यक्तियों को मद्यपान और मांसाहार से बचना चाहिए।

तटस्थ ग्रह : चंद्रमा और गुरु इस लग्न के लिए तटस्थ (निष्क्रिय) ग्रहों का काम करते हैं।
इष्ट देव : सूर्य, गायत्री

शुभ रत्न : माणिक, मूँगा
रंग : सुनहरा, सफेद, लाल
तारीख व वार : 5, 9, 1, रविवार, मंगलवार

Saturday 25 January 2020

कर्क लग्न और कुछ महत्वपूर्ण योग


कर्क भचक्र की चौथे स्थान पर आने वाली राशि है। यह चर राशि है, जल तत्व, विप्र वर्ण, स्त्री लिंगी होने से कर्क एक शुभ लग्न माना जाता है । इसका विस्तार चक्र 90 से 120 अंश के अन्दर पाया जाता है । इस राशि का स्वामी चन्द्रमा है । चिन्ह – केकड़ा व् इसके तीन त्रिकोण के स्वामी चन्द्रमा, मंगल और गुरु हैं, इसके अन्तर्गत पुनर्वसु नक्षत्र का अन्तिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा अश्लेशा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं। इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है की ये एक शुभ लग्न है ।


कर्क लग्न के जातक का व्यक्तित्व व् विशेषताएँ। :-

चंद्र लग्न व् जल तत्व होने से अनुमान लगाया जा सकता है की ऐसे जातक बहुत भावुक होते हैं । ये कल्पनाशील भी अपेक्षाकृत अधिक ही होते हैं । वैचारिक उधेड़बुन अपेक्षाकृत अधिक रहती है । यदि चन्द्रमा नीच राशि में स्थित हो तो ऐसा जातक आत्महत्या भी कर सकता है । चंद्र, मंगल या गुरु कुंडली में सही स्थित भी हों तो इनकी महादशा में अधिक लाभ मिलता है । कर्मक्षेत्र में मेहनत अधिक करनी पड़ सकती है! वैवाहिक जीवन में भी संतुष्टि कम ही मिलती है । जातक के पति / पत्नी सावंले हो सकते हैं । ऐसे जातक खुद को बुध्धिमान मानते हैं व् साथ ही उसका दिखावा भी करते हैं! थोड़ी सी सफलता मिलने पर घमंडी हो जाते हैं! यदि अहंकार से बचे रहें और हनुमान जी की साधना करते रहें तो निश्चित ही सफल होते हैं ।

कर्क लग्न के नक्षत्र:-
कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र का अन्तिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा अश्लेशा नक्षत्र के चारों चरण से बनती है । इसका विस्तार चक्र 90 से 120 अंश के अन्दर पाया जाता है ।
लग्न स्वामी : चंद्र
लग्न चिन्ह : केकड़ा
तत्व: जल
जाति: विप्र ( ब्राम्हण )
स्वभाव : चर
लिंग : स्त्री संज्ञक
अराध्य/इष्ट : बजरंग बलि ( संकट मोचन – हनुमान )

 
कर्क लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह :-

ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक गृह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक गृह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे , आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
चंद्र ग्रह :-  लग्नेश है , अतः कुंडली का कारक गृह है ।
मंगल :- पांचवें , दसवें घर का मालिक है । अतः अति योगकारक है ।
गुरु :- छठे व् नवें घर का स्वामी है , अतः कारक गृह है ।

शुक्र :- चौथे व् ग्यारहवें का मालिक होने से सम गृह बनता है ।

कर्क लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह :-
सूर्य दुसरे घर का मालिक होने से मारक है ।

बुद्ध तीसरे व् बारहवें का मालिक होने से मारक गृह बनता है ।
शनि  सातवें , आठवें का मालिक होने से व् लग्नेश का अति शत्रु होने से इस लग्न कुंडली में मारक होता है ।