Tuesday 16 July 2019

दशम भाव का महत्व व विशेषता

दशम भाव कुंडली के केंद्र भावों में से एक केंद्र स्थान है| यह अन्य दो केन्द्रों(चतुर्थ तथा सप्तम भाव) से अधिक बली भाव है| इस भाव से मुख्य रूप से कर्म, व्यवसाय, व राज्य का विचार किया जाता है| इन विषयों के अतिरिक्त सम्मान, पद-प्राप्ति, आज्ञा, अधिकार, यश, ऐश्वर्य, कीर्ति, अवनति, अपयश, राजपद, राजकीय सम्मान, नेतृत्व, आदि का विचार भी इसी भाव से किया जाता है| नवम स्थान(पिता) से द्वितीय(धन तथा मारक) होने के कारण यह भाव पिता के धन को भी दर्शाता है तथा पिता के लिए एक मारक भाव है| सप्तम भाव(जीवनसाथी) से चतुर्थ(माता) होने के कारण यह भाव जीवनसाथी की माँ अर्थात सास का प्रतीक भी है| फारसी में इस भाव को शाहखाने, बादशाहखाने कहते हैं| यह एक उपचय(वृद्धिकारक) भाव भी है|

कुंडली में यह भाव मध्याहन अथवा दक्षिण दिशा का प्रतीक है| मध्याहन में सूर्य अधिकतम ऊँचाई पर होने के कारण सबसे अधिक शक्तिशाली होता है| यही कारण है कि दशम भाव में बैठा सूर्य बहुत बलवान व राजयोग कारक माना गया है| क्योंकि यह भाव ऊँचाई को दर्शाता है इसलिए जीवन में मनुष्य की उन्नति का विचार भी इसी भाव से किया जाता है| व्यक्ति के गौरव, आचरण, सफलता, आकांशा, उत्तरदायित्व का विचार भी दशम भाव से किया जाता है| यह एक शुभ केंद्र भाव है इसलिए जब शुभ ग्रह इस भाव का स्वामी बनता है तो उसे केन्द्राधिपत्य दोष लगता है| लग्न से दशम भाव होने के कारण यह भाव मनुष्य की गतिविधियों और उसके क्रियाकलापों को सर्वाधिक प्रभावित तथा नियंत्रित करता है| इस भाव के कारक ग्रह सूर्य, गुरु, बुध व शनि हैं|
दशम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-


दशम भाव में स्थित ग्रह व आजीविका- दशम भाव मनुष्य के कर्मों से जुड़ा स्थान है अतः व्यक्ति की आजीविका से इसका प्रत्यक्ष संबंध है|
- यदि सूर्य बलवान होकर दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति प्रतापी, राजमान्य, उच्च पदस्थ अधिकारी, सरकारी नौकरी में कार्यरत, मंत्री आदि पद पर कार्य करने वाला होता है|
- यदि चंद्रमा बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति औषधि, जल, कला, जन-सेवा, जल सेना, मत्स्यपालन, कृषि, खेती, भोजनालय, देखरेख संबंधी कार्य(नर्स, केयर-टेकर आदि) जल व सिंचाई विभाग आदि क्षेत्रों में कार्य करता है|
- यदि मंगल बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति सेना, पुलिस, कसाईखाना, बुचडखाना, नाई, सुनार, इलेक्ट्रीशियन, बिजली विभाग, खिलाड़ी, पहलवानी, रसोइया, जमीन-जायदाद आदि से संबंधित कार्य करता है|
- यदि बुध बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति गणितज्ञ, शिक्षण, संचार, पत्रकारिता, डाक-तार विभाग, एकाउंट्स, मुनीम, क्लर्क आदि से संबंधित कार्य करता है|
- यदि गुरु बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति, मंत्री, पुरोहित, मठाधीश, धार्मिक विषयों का प्रवचनकर्ता, शिक्षण व उच्च पदस्थ अधिकारी आदि के रूप में कार्य करता है|
- यदि शुक्र बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति मंत्री, कला, संगीत, नृत्य, सिनेमा, फैशन जगत, कलाकार, डिजाइनर, कॉस्मेटिक, कपड़े, आभूषण, सौन्दर्यता प्रधान वस्तुएं आदि से संबंधित कार्य करता है|
- यदि शनि बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति कारखाने का मालिक, लोहे से संबंधित कार्य, नेता, चमड़ा उद्योग, नौकर, श्रमिक, न्यायालय, पुरातत्ववेता, गंभीर शोधकर्ता, सन्यासी, गूढ़ विद्याओं से संबंधित कार्य आदि काम करता है|
- यदि राहु-केतु बलवान होकर दशम भाव में हो तो व्यक्ति विदेशी स्रोतों से लाभ कमाने वाला, विदेशी भाषाओँ का ज्ञाता, कंप्यूटर, लैब तकनीशियन, कथावाचक, पुरोहित, आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाला होता है|


दशम भाव व राजयोग- दशम भाव का संबंध राज्य व राजसत्ता से है अतः यदि दशम भाव, दशमेश आदि बली हों और इन पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति प्रसिद्द, सम्मानित, राजपत्रित अधिकारी, व उच्च पद पर आसीन होता है| ख़ासतौर पर यदि नवम व दशम भाव तथा इनके स्वामियों का परस्पर एक-दूसरे से संबंध हो व्यक्ति अपने जीवन में विशेष उन्नति करता है|
मान-सम्मान- दशम भाव का संबंध मान-सम्मान तथा यश व कीर्ति से है इसलिए जब लग्न, लग्नेश, दशम भाव, दशमेश बलवान हो तो मनुष्य को समाज में बहुत मान-सम्मान, ख्याति व यश प्राप्त होता है|
पिता की आर्थिक स्थिति- नवम भाव पिता का माना गया है| दशम भाव नवम भाव(पिता) से द्वितीय(धन) है अतः यह पिता की आर्थिक स्थिति को भी दर्शाता है| जब दशम भाव व उसका स्वामी बली अवस्था में हो तो व्यक्ति का पिता धनी व सुदृढ़ आर्थिक स्थिति वाला होता है|

पिता का अरिष्ट- दशम भाव नवम स्थान(पिता) से द्वितीय(मारक भाव) है अतः यह भाव पिता के अरिष्ट का सूचक भी है| दशम भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में पिता को शारीरिक कष्ट हो सकता है|
जीवनसाथी की माता तथा घरेलू स्थिति- सप्तम भाव जीवनसाथी का होता है| चतुर्थ भाव का संबंध माता और निवासस्थान से होता है| दशम भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से चतुर्थ(माता, निवास) है इसलिए यह जीवनसाथी की माता और उसकी पारिवारिक स्थिति(घर के हालात) को दर्शाता है| यदि अष्टम भाव के साथ-साथ दशम भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो जीवनसाथी एक सभ्य व सम्माननीय परिवार से संबंध रखता है|पाश्चात्य ज्योतिष में कुंडली के दशम भाव को पिता का भाव माना जाता है, क्योंकि कुंडली में दशम भाव ठीक चौथे भाव के विपरीत होता है जो कि माता का भाव है। प्राचीन काल में, पिता को ही गुरु माना जाता था और कुंडली में नवम भाव गुरु का बोध करता है। अतः नवम भाव को गुरु के साथ-साथ पिता का भाव माना जाता है। ऋषि पराशर के अनुसार, नवम भाव पिता का भाव होता है। जबकि दसवां भाव पिता की आयु को दर्शाता है। काल पुरुष कुंडली में दशम भाव को मकर राशि नियंत्रित करती है और इस इस राशि का स्वामी “शनि” ग्रह है।

दशम भाव को लेकर उतर-कालामृत में कालिदास कहते हैं, कुंडली में दशम भाव से व्यापार, समृद्धि, सरकार से सम्मान, सम्माननीय जीवन, पूर्व-प्रतिष्ठा, स्थायित्व, अधिकार, घुड़सवारी, एथलेटिक्स, सेवा, बलिदान, कृषि, डॉक्टर, नाम, प्रसिद्धि, खजाना, ताकतवर, नैतिकता, दवा, जाँघ, गोद ली गई संतान, शिक्षण, आदेश आदि चीज़ों का विचार किया जाता है।
“जातका देश मार्ग” के लेखक कहते हैं कि कुंडली में दशम भाव के माध्यम से व्यक्ति के मान-सम्मान, गरिमा, रुतबा, रैंक आदि को देखा जाता है। वहीं प्रश्नज्ञान में भटोत्पल कहते हैं कि दशम भाव से साम्राज्य, अधिकार की मुहर, धार्मिक योग्यता, स्थिति, उपयोगिता, बारिश और आसमान से जुड़ी चीजों से संबंधित मामलों की जानकारी प्राप्त होती है। सत्य संहिता में लेखक ने दसवें भाव को किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, रैंक, रुतबा तथा प्रतिष्ठित एवं सज्जन लोगों के साथ उसके संबंध की जाँच करने वाला बताया है।
वराहमिहिर के पुत्र पृथ्युशस ने दशम भाव को लेकर कहा है कि इस भाव से किसी के अधिकार से संबंधित सूचनाएँ, निवास, कौशल, शिक्षा, प्रसिद्धि आदि चीज़ों को ज्ञात किया जाता है। संकेत निधि में रामदयालु ने कहा है कि कुंडली के दशम भाव से जातक के अधिकार, परिवार, ख़ुशियों में कमी देखी जाती है। यह भाव लोगों के पूर्वजों के प्रति कर्म, व्यापार, व्यवसाय, आजीविका, प्रशासनिक नियुक्ति, खुशी, स्थिति, कार्य घुटने और रीढ़ की हड्डी को देखा जाता है।

विभिन्न ज्योतिषीय किताबों में दशम भाव को लेकर लगभग समान बातें लिखी गई हैं। यह भाव जातक की नैतिक ज़िम्मेदारी तथा उसकी सांसारिक गतिविधियों से संबंधित सभी विचारणीय प्रश्नों को दर्शाता है। यह भाव लोगों के स्थायित्व, प्रमोशन, उपलब्धि एवं नियुक्ति के बारे में बताता है। इस भाव का मुख्य प्रभाव जातक के कार्य, व्यापार या अधिकार क्षेत्र पर दिखाई पड़ता है।

फलदीपिका में मंत्रेश्वर ने दशम भाव के लिए प्रवृति शब्द का प्रयोग किया है।  किसी व्यक्ति के कार्य/व्यवसाय को समझने के लिए दशम भाव के साथ दूसरे एवं छठे भाव को देखना होता है। कुंडली में षष्ठम भाव सेवा, रुटीन एवं प्रतिद्वंदिता की व्याख्या करता है। जबकि द्वितीय भाव धन के प्राप्ति को बताता है। दसवें भाव को कर्मस्थान के रूप में जाना जाता है। हिन्दू शास्त्रों में मनुष्य के कर्म को इस प्रकार बताया गया है:

    * संचित कर्म: पिछले जन्मों के संचित कर्म।
    * प्रारब्ध कर्म: वर्तमान जन्म में प्राप्त संचित कर्मों का एक भाग।
    * क्रियामान कर्म: वर्तमान जन्म के वास्तविक कर्म।
    * आगामी कर्म जिन्हें हम अपने अगले जन्म में साथ लेकर जाएंगे। यदि वर्तमान जन्म ही अंतिम जन्म है तो जातक मोक्ष को प्राप्त करता है।


मेदिनी ज्योतिष के अनुसार दशम भाव राजा, राजशाही, कुलीनता, क्रियान्वयन, संसद, प्रशासन, विदेशी व्यापार, कानून व्यवस्था आदि को दर्शाता है। इस भाव से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य कार्यकारी व्यक्ति, सरकार एवं सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाला व्यक्ति का विचार किया जाता है।कुंडली में यह भाव नेतृत्वकर्ता का स्वामी होता है और अन्य देशों के बीच राष्ट्र की प्रतिष्ठा और स्थिति का बोध कराता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली का दशम भाव किसी राष्ट्र के सर्वोच्च अधिकार क्षेत्र को दर्शाता है। दशम भाव वाणिज्य मंत्रालय, राजा, सरकार, सत्ता, कुलीनता और समाज, उच्च वर्ग आदि को दर्शाता है। प्रश्न ज्योतिष के अनुसार, दशम भाव न्यायाधीश, निर्णय एवं चोरों द्वारा चोरी की गई वस्तुओं को दर्शाता है।
कुंडली में दशम भाव से क्या देखा जाता है?

   * करियर या प्रोफेशन
   * राजयोग
   * मान-सम्मान
   * पिता की आर्थिक स्थिति
   * जीवनसाथी की पारिवारिक स्थिति


दशम भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध :- जन्म कुंडली में 12 भाव होते हैं। इन भावों का एक-दूसरे से अंतर-संबंध होता है। इसी शृंखला में दशम भाव का भी संबंध अन्य भावों से है। दशम भाव जातक के पेशे या अधिकार को नहीं बल्कि कार्य के वातावरण को दर्शाता है। अपने अपने कामकाजी माहौल में लोगों से किस तरह से मेलजोल अथवा बातचीत करते हैं। इसका पता कुंडली के दसवें भाव से चलता है। आप किसी के साथ जैसा व्यवहार करेंगे, वैसा ही व्यवहार दूसरों से प्राप्त करेंगे। इसलिए दूसरों के प्रति हमेशा सकारात्मक व्यवहार को अपनाएँ।

कुंडली में दशम भाव पिता द्वारा प्राप्त शिक्षा का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अतिरिक्त दसवां भाव ईश्वर, अधिकार और सरकार को दर्शाता है। यह भाव जातक को ईश्वर या सरकार द्वारा बनाए नियमों का बोध कराता है। यदि जातक नियम के विरूद्ध कार्य करेंगे तो उन्हें इसका फल भुगतना पड़ता है। इसलिए दशम भाव सर्वोच्च शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

यह भाव पिता द्वारा प्राप्त धन या शिक्षा, पिता या गुरु की मृत्यु, लंबी यात्रा से लाभ, उच्च शिक्षा से लाभ, ससुराल पक्ष की संवाद शैली, जीवनसाथी की खुशी, भूमि और संपत्ति के अतिरिक्त उन्हें होने वाली पीड़ा, बच्चों के शत्रु, संवाद में आने वाली बाधाएं, धार्मिक कर्मों के लिए उपयोग की जाने वाली धन-संपत्ति, आध्यात्मिक लाभ, आय में कमी या बड़े भाई-बहनों को होने वाली हानि को बताता है।

 
लाल किताब के अनुसार दशम भाव :- लाल किताब के अनुसार, दसवाँ भाव सरकार के साथ संबंध, पिता के दुखों, ख़ुशियाँ और प्रॉपर्टी को दर्शाता है। यह भाव पिता का घर, पिता से मिलने वाली ख़ुशियाँ, लोहा, लकड़ी, नज़रिया, सांप, भैंस, मगरमच्छ, कौआ, चाल, चतुराई, काला रंग, काली गाय, ईंट, पत्थर, अंधेरा कमरा, आदि को दर्शाता है। इस भाव में स्थित ग्रह, पंचम भाव में बैठे ग्रह के प्रभाव को नगण्य करते हैं। राशिफल में दूसरा भाव इस भाव को सक्रिय बनाता है

विशेष नोट- किसी भी कुंडली में लग्न अर्थात प्रथम भाव उदय होने का स्थान है तथा सप्तम स्थान अस्त होने का स्थान माना गया है| इसी प्रकार जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव मध्यरात्रि या पाताल का प्रतीक है तो दशम स्थान ऊँचाई अर्थात आकाश को दर्शाता है| इससे यह सिद्ध हुआ कि दशम भाव का जीवन में प्राप्त होने वाली ऊंचाईयों(सफलता, मान-सम्मान, यश, प्रतिष्ठा) से घनिष्ठ संबंध है| ज्योतिष में केतु झंडा व ऊंचाई का कारक है| केतु की यह विशेषता होती है की यदि वह किसी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित ग्रह के साथ बैठा हो तो उस भाव तथा ग्रह को चौगुना बली कर देता है| जब भी दशमेश(दशम भाव का स्वामी) दशम भाव में अपनी उच्च राशि या स्वराशि में केतु के साथ बैठा हो और इन घटकों पर अन्य शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो इस स्थिति में दशम भाव अत्यंत बलवान हो जाता है और व्यक्ति महान शासक, राजपात्र अधिकारी, मंत्री, राजनेता, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति जैसे पद को सुशोभित करता है|

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