जैसा कि हम सभी जानते हैं कि " ज्योतिष शास्त्र " को वेदों के नेत्र कहा गया है | जिसके द्वारा हम अपने भाग्य को उन्नत, और अपने जीवन में होने वाली सभी शुभ - अशुभ घटनाओं तथा मुहूर्त इत्यादि के बारे में जान लेते हैं और अशुभ प्रभाव को उपाय द्वारा ठीक कर लेते हैं |
देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी इस शास्त्र के प्रति गहरी आस्था व विश्वास है | किन्तु कुछ ऎसे लोग भी हैं जो इस शास्त्र को मात्र एक भ्रम और पाखंड के रूप में देखते हैं | उनका मानना है कि कर्म ही प्रधान है, व कर्म द्वारा ही सभी कार्य सिद्ध किए जाते हैं | बात तो सही है, लेकिन ऎसे व्यक्ति या जातक को मालूम नहीं होता कि उनकी कुण्डली में ऎसे योग होंगे जिस कारण, उनका विश्वास ज्योतिष में नहीं होगा या होगा भी तो टूट गया होगा | उदाहरण 1 :- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि केंद्र में (1,4,7,10) स्थित है, तो ऎसे व्यक्ति या जातक को किसी भी प्रकार की पूजा पाठ का फल न के बराबर मिलता है, ऎसा जातक पैदा ही कठोर मेहनत व कर्म करने के लिए होता है, और अपनी मेहनत से ही अपने जीवन को सफल बनाता है | उसे किसी से भी विशेष सहायता प्राप्त नहीं होती |
उदाहरण 2:- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरु सप्तम भाव में हो, तो ऎसे व्यक्ति को अपने उतारे हुए कपड़े दान नहीं करने चाहिए, तथा अपने घर में निचले स्थल ( बेसमेंट ) में मंदिर का निर्माण या दीया नहीं जलाना चाहिए, अन्यथा जातक के भाग्य और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है |
उदाहरण 3 :- यदि कुण्डली में सूर्य द्वितीय भाव में स्थित हो, एवं ऎसे जातक यदि नित्य घी का दीपक जलाएं, तो उनका यश, धन और आयु बडने की बजाए घटने लगती है |
उदाहरण 4 :- यदि कुण्डली में सूर्य तृतीय भाव में हो तो ऎसे जातक को छोटे भाई का सुख नहीं मिलता, किन्तु गुरु की कृपा से मिल भी जाए तो, ऎसे जातक को सूर्य को जल नहीं चढ़ाना चाहिए, अन्यथा छोटे भाई की आयु घट जाती है और स्वास्थ्य भी खराब रहने लगता है | ऎसी स्थिति में सूर्य को केवल हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए |
ऎसे बहुत से उदाहरण हैं, जिसमे जातक अथवा व्यक्ति अपनी ओर से तो अच्छा कार्य अथवा कर्म करता है, लेकिन उसे इसका विपरीत परिणाम भुगतना पड़ता है, और इसी कारण से उसका ज्योतिष से विश्वास उठ जाता है |
ज्योतिष हमें मार्ग प्रशस्त करने में सहायता करता है, कौन से मुहूर्त में हमें क्या शुभ कार्य करना चाहिए, किस कार्य के द्वारा हमें लाभ व हानि होगी, जीवन में किस प्रकार की उन्नति या हानि होगी इत्यादि का प्रारूप व चित्रण हमें पहले ही दिखला देता है |
हमारे कर्म किस प्रकार ग्रहों पर अपना प्रभाव डालते हैं :-
माना किसी जातक की कुंडली में सूर्य उच्च अथवा शुभ अवस्था में है, तो ऎसे जातक को अपने पिता से पूर्ण सुख प्राप्त होगा तथा हर क्षेत्र में मान सम्मान व ख्याति प्राप्त करेगा, ऎसे में यदि जातक अपने पिता के साथ रहे और उनकी सेवा करे, उन्हें खुश रखे तो जातक के मान सम्मान व यश में और भी ज्यादा वृद्धि होगी | लेकिन अगर जातक ने किसी भी प्रकार से अपने पिता को कोई कष्ट, हानि अथवा प्रताड़ित करे तो जातक का सूर्य उच्च अथवा शुभ होने पर भी स्वयं ही नीच हो जाएगा जिसका प्रभाव जातक के पुत्र में पूर्ण रूप से दिखेगा |
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