Saturday, 6 July 2024

द्वादश भावों में केतु का फल

भारतीय ज्योतिष के अनुसार केतु ग्रह व्यक्ति के जीवन क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को प्रभावित करता है। राहु और केतु दोनों जन्म कुण्डली में काल सर्प दोष का निर्माण करते हैं। वहीं आकाश मंडल में केतु का प्रभाव वायव्य कोण में माना गया है। कुछ ज्योतिषाचार्यों का ऐसा मानना है कि केतु की कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण जातक यश के शिखर तक पहुँच सकता है। राहु और केतु के कारण सूर्य और चंद्र ग्रहण होता है।


भाव अनुसार प्रभाव 

👉. लग्न (प्रथम) में केतु हो तो जातक चंचल मूर्ख दुराचारी, भीरु तथा वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, घनी एवं परिश्रमी होता है।

👉. द्वितीय भाव में केतु हो तो जातक अस्वस्था, कटुवचन बोलने वाला, मुंह के रोग, राजभीरु एवं विद्रोही होता है।

👉. तृतीय भाव में केतु हो तो जातक चंचल, वायुजनित रोगों से पीड़ित, भाई बहन विहीन, धनी, व्यर्थवादी एवं भूतप्रेतभक्त होता है।

👉. चतुर्थ भाव में केतु हो तो जातक, कार्यहीन, चंचल, वाचाल एवं निरुत्साही होता है।

👉. पंचम भाव में केतु हो तो जातक वातरोगी, कुचाली, कुबुद्धि, सन्तान को नष्ट करता है, योगी, कुशाग्रबुद्धि एवं क्रोधी होता है।

👉. षष्ठभाव में केतु हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालू, अरिष्टनिवारक, सुखी, मितव्ययी, भूत प्रेतजनित रोगों से रोगी, दुर्घटना, दीर्घायु एवं धनी होता है।

👉. सप्तम भाव में केतु हो तो जातक मतिमन्द, मूर्ख, दुखद विवाहित जीवन, पति-पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद, शत्रुभीरु एवं सुखहीन होता है।

👉. अष्टम भाव में केतु हो तो जातक दुर्बुद्धि, स्त्रीद्वेषी, चालाक, दुष्टजनसेवी, तेजहीन, नीच, स्त्री की कुण्डली में पति के लिए अशुभ एवं अल्पायु होता है।

👉. नवम भाव में केतु हो तो जातक सुखाभिलाषी, व्यर्थपरिश्रमी अपयशी, दुःखी एवं 48 वर्ष के बाद भाग्योदय होता है।

👉. दशम भाव में केतु हो तो जातक अभिमानी व्यर्थ, परिश्रमशील मूर्ख, पितृद्वेषी, दुर्भागी, संन्यास लेना एवं योगी होता है।

👉. ग्यारहवें भाव में केतु हो तो जातक बुद्धिहीन, निजका हानिकर्ता, अरिष्टनाशक एवं वातरोगी होता है।

👉. बारहवें भाव में केतु हो तो जातक चंचल बुद्धि, धूर्त, ठग तांत्रिक, अतव्ययी निर्बल स्वास्थ्य, पागलपन, मोक्ष प्राप्ति, अविश्वासी एवं जनता को भूत-प्रेतों की जानकारी द्वारा ठगने वाला होता है।

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