ज्योतिष में राहु ग्रह को एक पापी ग्रह माना जाता है। वैदिक ज्योतिष में राहु ग्रह को कठोर वाणी, जुआ, यात्राएँ, चोरी, दुष्ट कर्म, त्वचा के रोग, धार्मिक यात्राएँ आदि का कारक कहते हैं। जिस व्यक्ति की जन्म पत्रिका में राहु अशुभ स्थान पर बैठा हो, अथवा पीड़ित हो तो यह जातक को इसके नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ज्योतिष में राहु ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन मिथुन राशि में यह उच्च होता है और धनु राशि में यह नीच भाव में होता है।
👉. लग्न (प्रथम) में राहु हो तो जातक कामी, दुर्बल, मनस्वी, अल्पसन्तति युक्त, राजद्वेषी, नीचकर्मरत दुष्ट, स्तकरोगी, स्वार्थी एवं बात-बात पर सन्देह करने वाला होता है।
👉. द्वितीय भाव में राहु हो तो जातक संग्रहशील, अल्पधनवान्, कठोरभाषी, कुटुम्बहीन, अल्पसन्तति, मात्सर्ययुक्त एवं परदेशगामी होता है।
👉 तृतीय भाव में राहु हो तो जातक योगाभ्यासी, विद्वान्, व्यवसायी, पराक्रमशून्य, दृढ़विवेकी, अरिष्टनाशक, प्रवासी, दीर्घायु एवं बलवान् होता है।
👉. चतुर्थभाव में राहु हो तो जातक असन्तोषी, दुखी, अल्पभाषी, मिथ्याचारी, उदरव्याधियुक्त, कपटी, मातृक्लेशयुक्त एवं क्रूर होता है।
👉. पंचम भाव में राहु हो तो जातक शास्त्रप्रिय, कार्यकर्ता, भाग्यवान्, उदररोगी, मतिमन्द, कुल धननाशक, धनहीन, नीतिदक्ष एवं सन्तान के लिए अशुभ होता है।
👉. षष्ठभाव में राहु हो तो जातक शत्रुहन्ता, कमरदर्द पीड़ित, अरिष्टनिवारक, विदेशियों से लाभ, पराक्रमी, बड़े-बड़े कार्य करनेवाला, दीर्घायु, साहसी, घनी एवं प्रसिद्ध होता है।
👉. सप्तम भाव में राहु हो तो चतुर, लोभी, दुराचारी, दुष्कर्मी वातरोगजनक, भ्रमणशील, व्यापार से हानिदायक एवं स्त्रीनाशक होता है।
👉. अष्टम भाव में राहु हो तो जातक क्रोधी, व्यर्थभाषी, मूर्ख, उदररोगी, कामी, पुष्टदेही एवं गुप्तरोगी होता है।
👉. नवम भाव में राहु हो तो जातक प्रवासी, वातरोगी, व्यर्थ परिश्रमी, दुष्टबुद्धि, भाग्योदय से रहित, तीर्थाटनशील एवं धर्मात्मा होता है।
👉. दशम भाव में राहु हो तो जातक मितव्ययी, वाचाल, सन्ततिक्लेशी चन्द्रमा से युक्त राहु के होने पर राजयोग कारक अनियमित कार्यकर्ता एवं आलसी होता है।
👉. ग्यारहवें भाव में राहु हो तो जातक परिश्रमी, अल्पसन्तान, विदेशियों से धनलाभ, दीर्घायु, मन्दमति, लाभहीन, अरिष्टनाशक, व्यवसाययुक्त, कदाचित् लाभदायक एवं कार्य सफल करने वाला होता है।
👉. बारहवें भाव में राहु हो तो जातक विवेकहीन, कामी, चिन्ताशील, अतिव्ययी, सेवक, परिश्रमी, मूर्ख एवं मतिमन्द होता है।
No comments:
Post a Comment