Monday, 26 August 2024

द्वादश भावों में बुध का फल

ज्योतिष में बुध ग्रह को एक शुभाशुभ ग्रह माना गया है अर्थात ग्रहों की संगति के अनुरूप ही यह फल देता है। यदि बुध ग्रह शुभ ग्रहों (गुरु, शुक्र और बली चंद्रमा) के साथ होता है तो यह शुभ फल देता है और क्रूर ग्रहों (मंगल, केतु, शनि राहु, सूर्य) की संगति में अशुभ फल देता है। बुध ग्रह मिथुन और कन्या राशि का स्वामी है। कन्या इसकी उच्च राशि भी है जबकि मीन इसकी नीच राशि मानी जाती है। 27 नक्षत्रों में बुध को अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र का स्वामित्व प्राप्त है। हिन्दू ज्योतिष में बुध ग्रह को बुद्धि, तर्क, संवाद, गणित, चतुरता और मित्र का कारक माना जाता है। सूर्य और शुक्र, बुध के मित्र हैं जबकि चंद्रमा और मंगल इसके शुत्र ग्रह हैं। बुध का वर्ण हरा है और सप्ताह में बुधवार का दिन बुध को समर्पित है।

👉 लग्न (प्रथम) में बुध हो तो जातक आस्तिक, गणितज्ञ, दीर्घायु, उदार-विनोदी, वैद्य, विद्वान, स्त्रीप्रिय, मितव्ययी एवं मिष्टभाषी होता है।

👉 द्वितीयभाव में बुध हो तो जातक सुखी, सुन्दर, वक्ता, साहसी, सत्कार्यकारक, संग्रही, दलाल या वकील का पेशा करने वाला, मिष्टाभभोजी, गुणी एवं मितव्ययी होता है।

👉 तृतीयभाव में बुध हो तो जातक सद्‌गुणी, कार्यदक्ष, परिश्रमी, मित्रप्रेमी, भीरू, धर्मात्मा, यात्राशील, व्यवसायी, चंचल, अल्पभ्रातृवान्, विलासी, सन्ततिवान्, कवि, सम्पादक, सामुद्रिकशास्त्र का ज्ञाता एवं लेखक होता है।

👉 चतुर्थभाव में बुध हो तो जातक पण्डित भाग्यवान् नीतिवान्, नीतिज्ञ, लेखक, विद्वान्, बन्धुप्रेमी, उदार, गतिप्रिय, आलसी स्थूलदेही, वाहनसुखी एवं दानी होता है।

👉 पंचमभाव में बुध हो तो जातक उद्यमी, विद्वान्, कवि, प्रसन्न कुशाग्रबुद्धि, गण्य-मान्य, सुखी, वाद्यप्रिय एवं सदाचारी होता है।

👉 षष्ठभाव में बुध हो तो जातक विवेकी, कलहप्रिय, वादी, रोगी, आलसी, अभिमानी, परिश्रमी, कामी, दुर्बल एवं स्त्रीप्रिय होता है।

👉 सातवेंभाव में बुध हो तो जातक सुन्दर, विद्वान्, कुलीन, व्यवसायकुशल, धनी, लेखक, सम्पादक, उदार, सुखी, अल्पवीर्य, दीर्घायु एवं धार्मिक होता है।

👉 अष्टमभाव में बुध हो तो जातक दीर्घायु, अभिमानी, राजमान्य, कृषक, लब्धप्रतिष्ठ, मानसिक दुखी, कवि, वक्ता, न्यायाधीश, मनस्वी, धनवान् एवं धर्मात्मा होता है।

👉 नवमभाव में बुध हो तो जातक विद्वान् लेखक, ज्योतिषी, धर्मभीरु, व्यवसाय प्रिय, भाग्यवान्, सम्पादक, गवैया, कवि एवं सदाचारी होता है।

👉 दशमभाव में बुध हो तो जातक सत्यवादी, मनस्वी, व्यवहार कुशल, लोकमान्य, विद्वान्, लेखक, कवि जमींदार, मातृ-पितृ भक्त, राजमान्य, न्यायी एवं भाग्यवान् होता है।

👉 ग्यारहवें भाव में बुध हो तो जातक ईमानदार, सुन्दर, पुत्रवान्, सरदार, गायनप्रिय, विद्वान्, प्रसिद्ध, धनवान, सदाचारी, योगी, दीर्घायु, शत्रुनाशक एवं विचारवान् होता है।

👉 बारहवे भाव में बुध हो तो जातक अल्पभाषी, विद्वान्, आलसी धर्मात्मा वकील, सुन्दर वेदान्ती, लेखक दानी एवं शास्त्रज्ञ होता है।

Sunday, 4 August 2024

द्वादश भावों में बृहस्पति का फल

बृहस्पति ग्रह, जिसे गुरू भी कहा जाता है, नवग्रहों में अति महत्वपूर्ण है। ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को देवगुरू, ज्ञान का कारक कहकर परिभाषित किया गया है। जन्मकुण्डली में गुरू बलवान होने पर व्यक्ति ज्ञानवान एवं सद्गुण सम्पन्न होता है क्योंकि नवग्रहों में बृहस्पति सर्वाधिक शुभ ग्रह है। अगर किसी कन्या की जन्मकुण्डली में गुरू ग्रह कमजोर हो तो उसके विवाह में विलम्ब होता है। उपायों के माध्यम से गुरू को बलवान करने से कन्या को सुहाग एवं सन्तान सुख सहज प्राप्त हो जाता है। गुरू संतान का कारक भी है।


👉 लग्न (प्रथम) में गुरु हो तो जातक विद्वान् दीर्घायु, ज्योतिषी कार्यपरायण, लोकसेवक, तेजस्वी, प्रतिष्ठित, स्पष्टवक्ता, स्वाभिमानी, सुन्दर, सुखी, विनीत, पुत्रवान् धनवान्, राज्यमान, सुन्दर एवं धर्मात्मा होता है।

👉 द्वितीयभाव में गुरु हो तो जातक मधुरभाषी, सम्पत्ति और सन्ततिवान्, सुन्दरशरीरी, सदाचारी, पुण्यात्मा, सुकार्यरत, लोकमान्य, राज्यमान्य, व्यवसायी, दीर्घायु, शत्रुनाशक एवं भाग्यवान् होता है।

👉 तृतीयभाव में गुरु हो तो जातक शास्त्रज्ञ, जितेन्द्रिय, लेखक, कामी, प्रवासी, स्त्रीप्रिय, व्यवसायी, मन्दाग्नि, वाहनयुक्त, पर्यटनशील, विदेशप्रिय, ऐश्वर्यवान बहुत भाई बहन, आस्तिक एवं योगी होता है।

👉 चतुर्थभाव में गुरु हो तो जातक शौकीन मिजाज, सुन्दरदेही, आरामतलब, परिश्रमी, ज्योतिषी, उच्चशिक्षा प्राप्त, कमसन्तान, सरकार द्वारा सम्मानित, माँ से स्नेह करने वाला, कार्यरत, उ‌द्योगी, लोकमान्य, यशस्वी एवं व्यवहारज्ञ होता है।

👉 पंचमभाव में गुरु हो तो जातक नीतिविशारद, सन्ततिवान्, सट्टे से धन प्राप्त करने वाला, कुलश्रेष्ठ, लोकप्रिय, कुटुम्ब में सबसे ऊँचा स्थान, ज्योतिषी एवं आस्तिक होता है।

👉 षष्ठभाव में गुरु हो तो जातक विवेकी, प्रसिद्ध, ज्योतिषी, विद्वान्सु कर्मरत, दुर्बल, उदार, प्रतापी, नीरोगी, लोकमान्य, बहुत कमशत्रु एवं मधुरभाषी होता है।

👉 सप्तमभाव में गुरु हो तो जातक सुन्दर, धैर्यवान्, भाग्यवान्, प्रवासी, सन्तोषी, स्त्रीप्रेमी, परस्त्रीरत, ज्योतिषी, नम्र, विद्वान् वक्ता एवं प्रधान होता है।

👉 अष्टमभाव में गुरु हो तो जातक दीर्घायु, नम्रव्यवहार, लेखक, सुखी, शान्त, मधुरभाषी, विवेकी, ग्रन्थकार, कुलदीपक, ज्योतिषप्रेमी, मित्रों द्वारा धननाशक, गुप्तरोगी एवं लोभी होता है।

👉 नवमभाव में गुरु हो तो जातक पराक्रमी, धर्मात्मा, पुत्रवान, बुद्धिमान, राजपूज्य, तपस्वी, विद्वान्, योगी, वेदान्ती, यशस्वी, भक्त, भाग्यवान् संन्यास की ओर प्रवृति एवं प्रचुर सन्तान होता है।

👉 दशमभाव में गुरु हो तो जातक सुकर्म करने वाला, प्रसिद्ध और सम्मानित प्रतिष्ठित पद पर आसीन, सदाचारी, पुण्यात्मा, ऐश्वर्यवान्, साधु, चतुर, न्यायी, प्रसन्न्, ज्योतिषी, सत्यवादी, शत्रुहन्ता, राजमान्य, स्वतन्त्र विचारक, मातृपितृ भक्त, लाभवान्, धनी एवं भाग्यवान होता है।

👉 ग्यारहवें भाव में गुरु हो तो जातक व्यवसायी, धनिक, सन्तोषी, सुन्दरनिरोगी, लाभवान्, पराक्रमी, सद्व्ययी, बहुस्त्रीयुक्त, विद्वान् राजपूज्य एवं अल्पसन्ततिवान् होता है।

👉 द्वादश भाव में गुरु हो तो जातक मितभाषी, योगाभ्यासी, परोपकारी, उदार, आलसी, सुखी, मितव्ययी, शास्त्रज्ञ, सम्पादक, लोभी, यात्री एवं दुष्ट चित्तवाला होता है।

Friday, 26 July 2024

द्वादश भावों में शुक्र का फल

वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को एक शुभ ग्रह माना गया है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को भौतिक, शारीरिक और वैवाहिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसलिए ज्योतिष में शुक्र ग्रह को भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, भोग-विलास, शौहरत, कला, प्रतिभा, सौन्दर्य, रोमांस, काम-वासना और फैशन-डिजाइनिंग आदि का कारक माना जाता है।



✨भाव अनुसार फल 

👉. लग्न (प्रथम) में शुक्र हो तो जातक सुन्दरदेही, दीर्घायु राजप्रिय, कामी, उच्चसरकारी पद पर आसीन, विलासी, भोगी, विद्वान, प्रवासी, मधुरभाषी, प्रसिद्ध सुखी एवं ऐश्वर्यवान होता है।

👉. द्वितीयभाव में शुक्र हो तो जातक भाग्यवान, साहसी, समयज्ञ, मिष्टान्नमोजी, यशस्वी, लोकप्रिय, जौहरी, दीर्घजीवी, कवि, कुटुम्बयुक्त, सुखी एवं धनवान् होता है।

👉. तृतीय भाव में शुक्र हो तो जातक विद्वान्, कलाकार,, आलसी, कृपण, धनी, सुखी, पराक्रमी, भाग्यवान्, बहने भाईयों से अधिक एवं पर्यटनशील होता है।

👉. चतुर्थ भाव में शुक्र हो तो जातक बलवान्, परोपकारी, सुन्दर, व्यवहार कुशल, विलासी, दीर्घायु, पुत्रवान्, भाग्यवान्, सुखी, दानी, वाहनों का स्वामी एव आस्तिक होता है।

👉. पंचम भाव में शुक्र हो तो जातक विद्वान्, प्रतिभाशाली, वक्ता, कवि, पुत्रवान्, लाभयुक्त, व्यवसायी, शत्रुनाशक, उदार, दानी, सद्गुणी न्यायवान एवं आस्तिक होता है।

👉. पष्ठभाव में शुक हो तो जातक मितव्ययी, शत्रुनाशक स्त्रीप्रिय स्त्रीसुखहीन,बहुमित्रवान, वैभवहीन दुराचारी मूत्ररोगी दुखी एवं गुप्तरोगी होता है।

👉. सप्तमभाव में शुक्र हो तो जातक लोकप्रिय, धनिक, चिन्तित, विवाह के बाद भाग्योदय, साधुप्रेमी, स्त्री से सुख, कामी, भाग्यवान् गानप्रिय, विलासी, अल्पव्यभिचारी चंचल एवं उदार होता है।

👉. अष्टम भाव में शुक्र हो तो जातक ज्योतिषी, क्रोधी, मनस्वी, दुखी, गुप्तरोगी, पर्यटनशील, परस्त्रीरत, विदेशवासी, निर्दयी, गुप्तविद्याओं के प्रतिरुचि एवं रोगी होता है।

👉. नवम भाव में शुक्र हो तो जातक धर्मात्मा, राजप्रिय, पवित्रतीर्थ यात्राओं का कर्ता, दयालु, प्रेमी, गृहसुखी, गुणी, चतुर एवं आस्तिक होता है।

👉. दशम भाव में शुक्र हो तो जातक गुणवान्, दायालु, विलासी, ऐश्वर्यवान्, भाग्यवान्, न्यायवान् विजयी, गानप्रिय, धार्मिक ज्योतिषी एवं लोभी होता है।

👉. ग्यारहवें भाव में शुक्र हो तो जातक परोपकारी, लोकप्रिय, जौहरी, विलासी, वाहनसुखी, स्थिरलक्ष्मीवान्, धनवान् गुणज्ञ, कामी एवं पुत्रवान् होता है।

👉. बारहवें भाव में शुक्र होतो जातक धनवान्, परस्त्रीरत, बहुभोजी, शत्रुनाशक, मितव्ययी, आलसी, पतित, धातुविकारी, स्थूल एवं न्यायशील होता है।

Sunday, 21 July 2024

द्वादश भावों में शनि का फल

शनि को कृष्ण का अवतार माना जाता है , ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार जहाँ कृष्ण कहते हैं कि वे "ग्रहों में शनि" हैं। उन्हें शनिश्वर भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "शनि का देवता", और उन्हें किसी के कर्मों का फल देने का कार्य सौंपा गया है, इस प्रकार वे हिंदू ज्योतिषीय देवताओं में सबसे अधिक भयभीत हो गए हैं। वे अक्सर हिंदू देवताओं में सबसे गलत समझे जाने वाले देवता हैं क्योंकि कहा जाता है कि वे किसी के जीवन में लगातार अराजकता पैदा करते हैं, और पूजा करने पर उन्हें सौम्य माना जाता है।


👉. लग्न (प्रथम) में शनि मकर, कुम्म तथा तुला का हो तो धनाढ्य, सुखी, धनु और मीन राशियों में हो तो अत्यन्त धनवान् और सम्मानित एवं अन्य राशियों का हो तो अशुभ होता है।

👉. द्वितीय भाव में शनि हो तो जातक कटुभाषी, साधुद्वेषी, मुखरोगी, और कुम्म या तुला का शनि हो तो धनी, लाभवान् एवं कुटुम्ब तथा भ्रातृवियोगी होता है।

👉. तृतीय भाव में शनि हो तो जातक नीरोगी, विद्वान् योगी, मल्ल, शीघ्रकार्यकर्ता, समाचतुर, चंचल, भाग्यवानु शत्रुहन्ता, एवं विवेकी होता है।

👉. चतुर्थभाव में शनि हो तो जातक अपयशी, बलहीन, धूर्त, कपटी, शीघ्रकोपी, कृशदेही, उदासीन, वातपित्तयुक्त एवं भाग्यवान् होता है।

👉. पंचम भाव में शनि हो तो जातक आलसी, सन्तानयुक्त, चंचल, उदासीन, विद्वान, भ्रमणशील एवं बातरोगी होता है।

👉. षष्ठभाव में शनि हो तो जातक बलवान्, आचारहीन, व्रणी, जातिविरोधी, श्वासरोगी, कण्ठरोगी, योगी, शत्रुहन्ता भोगी एवं कवि होता है।

👉. सप्तम भाव में शनि हो तो जातक क्रोधी, कामी, विलासी, अविवाहित रहना या दुःखी विवाहित जीवन, धन सुखहीन, भ्रमणशील, नीचकर्मरत्, स्त्रीभक्त एवं आलसी होता है।

👉. अष्टम भाव में शनि हो तो जातक विद्वान् स्थूलशरीरी, उदार प्रकृति, कपटी, गुप्तरोगी, वाचाल, डरपोक, कुष्ठरोगी एवं धूर्त होता है।

👉. नवम भाव मे शनि हो तो जातक धर्मात्मा, साहसी, प्रवासी, कृशदेही, भीरु, आतृहीन, शत्रुनाशक रोगी वातरोगी, भ्रमणशील एवं वाचाल होता है।

👉. दशम भाव में शनि हो तो जातक विद्वान, ज्योतिषी, राजयोगी, न्यायी, नेता, धनवान्, राजमान्य, उदरविकारी, अधिकारी, चतुर, भाग्यवान् परिश्रमी, निरुपयोगी एवं महत्त्वाकांक्षी होता है।

👉. ग्यारहवें भाव में शनि हो तो जातक बलवान् विद्वान, दीर्घायु, शिल्पी, सुखी, चंचल, क्रोधी, योगाभ्यासी, नीतिवान् परिश्रमी, व्यवसायी, पुत्रहीन, कन्याप्रज्ञ एवं रोगहीन होता है।

👉. बारहवें भाव में शनि हो तो जातक आलसी, दुष्ट, व्यसनी, व्यर्थ व्यय करने वाला, अपस्मार, उन्माद का रोगी, मातुलकष्टदायक, अविश्वासी एवं कटुभाषी होता है।

Saturday, 13 July 2024

द्वादश भावों में राहु का फल

ज्योतिष में राहु ग्रह को एक पापी ग्रह माना जाता है। वैदिक ज्योतिष में राहु ग्रह को कठोर वाणी, जुआ, यात्राएँ, चोरी, दुष्ट कर्म, त्वचा के रोग, धार्मिक यात्राएँ आदि का कारक कहते हैं। जिस व्यक्ति की जन्म पत्रिका में राहु अशुभ स्थान पर बैठा हो, अथवा पीड़ित हो तो यह जातक को इसके नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ज्योतिष में राहु ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन मिथुन राशि में यह उच्च होता है और धनु राशि में यह नीच भाव में होता है।


👉. लग्न (प्रथम) में राहु हो तो जातक कामी, दुर्बल, मनस्वी, अल्पसन्तति युक्त, राजद्वेषी, नीचकर्मरत दुष्ट, स्तकरोगी, स्वार्थी एवं बात-बात पर सन्देह करने वाला होता है।

👉. द्वितीय भाव में राहु हो तो जातक संग्रहशील, अल्पधनवान्, कठोरभाषी, कुटुम्बहीन, अल्पसन्तति, मात्सर्ययुक्त एवं परदेशगामी होता है।

👉 तृतीय भाव में राहु हो तो जातक योगाभ्यासी, विद्वान्, व्यवसायी, पराक्रमशून्य, दृढ़विवेकी, अरिष्टनाशक, प्रवासी, दीर्घायु एवं बलवान् होता है।

👉. चतुर्थभाव में राहु हो तो जातक असन्तोषी, दुखी, अल्पभाषी, मिथ्याचारी, उदरव्याधियुक्त, कपटी, मातृक्लेशयुक्त एवं क्रूर होता है।

👉. पंचम भाव में राहु हो तो जातक शास्त्रप्रिय, कार्यकर्ता, भाग्यवान्, उदररोगी, मतिमन्द, कुल धननाशक, धनहीन, नीतिदक्ष एवं सन्तान के लिए अशुभ होता है।

👉. षष्ठभाव में राहु हो तो जातक शत्रुहन्ता, कमरदर्द पीड़ित, अरिष्टनिवारक, विदेशियों से लाभ, पराक्रमी, बड़े-बड़े कार्य करनेवाला, दीर्घायु, साहसी, घनी एवं प्रसिद्ध होता है।

👉. सप्तम भाव में राहु हो तो चतुर, लोभी, दुराचारी, दुष्कर्मी वातरोगजनक, भ्रमणशील, व्यापार से हानिदायक एवं स्त्रीनाशक होता है।

👉. अष्टम भाव में राहु हो तो जातक क्रोधी, व्यर्थभाषी, मूर्ख, उदररोगी, कामी, पुष्टदेही एवं गुप्तरोगी होता है।

👉. नवम भाव में राहु हो तो जातक प्रवासी, वातरोगी, व्यर्थ परिश्रमी, दुष्टबुद्धि, भाग्योदय से रहित, तीर्थाटनशील एवं धर्मात्मा होता है।

👉. दशम भाव में राहु हो तो जातक मितव्ययी, वाचाल, सन्ततिक्लेशी चन्द्रमा से युक्त राहु के होने पर राजयोग कारक अनियमित कार्यकर्ता एवं आलसी होता है।

👉. ग्यारहवें भाव में राहु हो तो जातक परिश्रमी, अल्पसन्तान, विदेशियों से धनलाभ, दीर्घायु, मन्दमति, लाभहीन, अरिष्टनाशक, व्यवसाययुक्त, कदाचित् लाभदायक एवं कार्य सफल करने वाला होता है।

👉. बारहवें भाव में राहु हो तो जातक विवेकहीन, कामी, चिन्ताशील, अतिव्ययी, सेवक, परिश्रमी, मूर्ख एवं मतिमन्द होता है।

Saturday, 6 July 2024

द्वादश भावों में केतु का फल

भारतीय ज्योतिष के अनुसार केतु ग्रह व्यक्ति के जीवन क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को प्रभावित करता है। राहु और केतु दोनों जन्म कुण्डली में काल सर्प दोष का निर्माण करते हैं। वहीं आकाश मंडल में केतु का प्रभाव वायव्य कोण में माना गया है। कुछ ज्योतिषाचार्यों का ऐसा मानना है कि केतु की कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण जातक यश के शिखर तक पहुँच सकता है। राहु और केतु के कारण सूर्य और चंद्र ग्रहण होता है।


भाव अनुसार प्रभाव 

👉. लग्न (प्रथम) में केतु हो तो जातक चंचल मूर्ख दुराचारी, भीरु तथा वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, घनी एवं परिश्रमी होता है।

👉. द्वितीय भाव में केतु हो तो जातक अस्वस्था, कटुवचन बोलने वाला, मुंह के रोग, राजभीरु एवं विद्रोही होता है।

👉. तृतीय भाव में केतु हो तो जातक चंचल, वायुजनित रोगों से पीड़ित, भाई बहन विहीन, धनी, व्यर्थवादी एवं भूतप्रेतभक्त होता है।

👉. चतुर्थ भाव में केतु हो तो जातक, कार्यहीन, चंचल, वाचाल एवं निरुत्साही होता है।

👉. पंचम भाव में केतु हो तो जातक वातरोगी, कुचाली, कुबुद्धि, सन्तान को नष्ट करता है, योगी, कुशाग्रबुद्धि एवं क्रोधी होता है।

👉. षष्ठभाव में केतु हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालू, अरिष्टनिवारक, सुखी, मितव्ययी, भूत प्रेतजनित रोगों से रोगी, दुर्घटना, दीर्घायु एवं धनी होता है।

👉. सप्तम भाव में केतु हो तो जातक मतिमन्द, मूर्ख, दुखद विवाहित जीवन, पति-पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद, शत्रुभीरु एवं सुखहीन होता है।

👉. अष्टम भाव में केतु हो तो जातक दुर्बुद्धि, स्त्रीद्वेषी, चालाक, दुष्टजनसेवी, तेजहीन, नीच, स्त्री की कुण्डली में पति के लिए अशुभ एवं अल्पायु होता है।

👉. नवम भाव में केतु हो तो जातक सुखाभिलाषी, व्यर्थपरिश्रमी अपयशी, दुःखी एवं 48 वर्ष के बाद भाग्योदय होता है।

👉. दशम भाव में केतु हो तो जातक अभिमानी व्यर्थ, परिश्रमशील मूर्ख, पितृद्वेषी, दुर्भागी, संन्यास लेना एवं योगी होता है।

👉. ग्यारहवें भाव में केतु हो तो जातक बुद्धिहीन, निजका हानिकर्ता, अरिष्टनाशक एवं वातरोगी होता है।

👉. बारहवें भाव में केतु हो तो जातक चंचल बुद्धि, धूर्त, ठग तांत्रिक, अतव्ययी निर्बल स्वास्थ्य, पागलपन, मोक्ष प्राप्ति, अविश्वासी एवं जनता को भूत-प्रेतों की जानकारी द्वारा ठगने वाला होता है।

Sunday, 23 June 2024

शेयर मार्केट और ज्योतिष

शेयर बाजार में निवेश को लेकर लोगों में संशय की स्थिति बनी रहती है। लेकिन फिर भी कई लोग शेयर बाजार या स्टॉक एक्सचेंज में रुचि रखते हैं। वे इस बाजार में किसी भी तरह के नुकसान से बचने के लिए शेयर बाजार ज्योतिषी से परामर्श या सलाह ले सकते हैं।क्योंकि जब यह शेयर बाजार के बारे में बात होती हैतो ज्योतिष बहुत महत्वपूर्ण विषय हो सकता है, शेयर बाजार में निवेश करना जुए की तरह लग सकता है, क्योंकि यहाँ पहले कई निवेशकों के धन खोने की कहानियां मौजूद हैं।

किसी की कुंडली में ही होता है शेयर बाजार में सफ़लता का राज

किसी की कुंडली में लाभ देने वाले और हानि करने वाले ग्रहों की उपस्थिति इस क्षेत्र में निर्णायक हो सकती है। जब आपकी कुंडली में लाभकारी ग्रहों की उपस्थिति की तुलना में हानिकारक ग्रहों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, तो शेयर बाजार के ज्योतिषी से परामर्श करना अपरिहार्य हो जाता है। शेयर बाजार ज्योतिष में राहु बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्योंकि निवेशक की सफलता या असफलता में राहु निर्णायक कारक है।
किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में, दूसरा घर और उस घर का स्वामी धन को दर्शाता है। पांचवां घर और उसका स्वामी शेयर बाजार, शेयर व्यापार या लॉटरी के माध्यम से मुनाफ़े के लिए होता है। आठवां घर और उसका भगवान अचानक लाभ को दर्शाता है, जबकि नौवां घर और इसके भगवान को। दसवां घर और उसका स्वामी पेशे की भविष्यवाणी करता है, तो 11वां घर, और इसके स्वामी धन और लाभ के लिए होते हैं। जबकि छठे और 12 वें घर और उनके स्वामी नुकसान का अनुमान लगाते हैं।

शेयर बाजार में मुनाफ़ा कमाने के लिए कुंडली में ग्रहों की स्थिति

  • आपकी कुंडली में धन योग है! जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
  • 11 वें घर में केतु की उपस्थिति लॉटरी और व्यापार से धन लाती है।
  • यदि 8 वें घर का भगवान, केतु के साथ दूसरे घर में स्थित होता है, तो यह अचानक धन आने का संकेत होता है।
  • दूसरे, पांचवें और 11 वें घर के स्वामी का संयोजन शेयर बाजार में प्राकृतिक रूप से लाभ कमाने में मदद करता है।
  • दूसरे, चौथे, नौवें और 11 वें घर के स्वामी का हानिकर प्रभाव से दूर होना शेयर बाजार में सफलता का आश्वासन देता है।
  • द्वितीय भाव में मंगल और राहु की स्थिति और 11वें भाव में बृहस्पति या शुक्र, शेयर ट्रेडिंग में अच्छे भाग्य को आमंत्रित करते हैं।
  • जब पांचवें और नौवें घर के स्वामी दूसरे, पांचवें, आठवें, नौवें और ग्यारहवें घर के स्वामी के संबंध में बनाते हैं तो धन योग बनता है।
  • दूसरे और 11 वें नंबर के स्वामियों का पांचवें और नौवें के स्वामी के साथ आदान-प्रदान स्टॉक ट्रेडिंग में उत्कृष्ट सफलता का संकेत देता है।
  • यदि दूसरे और 11 वें घर के स्वामी एक दूसरे के साथ अपनी राशियों की अदला-बदली करते हैं तो ये संकेत सफलता दिलाने वाला होता है।
  • यदि बृहस्पति को उदीयमान हो और दूसरे, पाँचवें और नौवें घर के स्वामी के द्वारा चित्रित किया गया हो तो शेयर बाजार में भारी लाभ की उम्मीद की जा सकती है।
  • जन्म कुंडली में चन्द्र मंगल योग जब बनता है, तो चंद्र और मंगल के साथ राहु और बुध 11 वें घर में उपस्थित होता है, तो जातक को ट्रेडिंग में सफलता मिलती है।
  • बृहस्पति और राहु को तृतीयांश या चतुर्थांश में स्थित होने या दूसरे/तीसरे अंश के स्वामियों के संयोजन के कारण, व्यक्ति को शेयर बाजार में बड़े पैमाने पर सफलता मिल सकती है।


इन व्यक्तियों को शेयर मार्केट से रहना चाहिए दूर

👉 अगर जन्म कुंडली के अंदर पंचमेश अष्टम भाव में जाकर स्थित हो जाए तो व्यक्ति को अचानक से बड़े नुकसान की संभावना होती है।अतः ऐसे योगों में व्यक्ति को शेयर मार्केट संबंधी कार्यों से दूर रहना चाहिए।

👉 इसी तरह अगर जन्म कुंडली के अंदर पंचम भाव का स्वामी द्वादश भाव में जाकर स्थित हो जाए, तब भी व्यक्ति को शेयर मार्केट संबंधी कार्यों से दूरी बना लेनी चाहिए।

👉 अष्टमेश और द्वादश का पंचम भाव में स्थित होना भी अचानक से धन के नुकसान को बताता है। अगर यह स्थिति जन्म कुंडली में उपस्थित हो तब व्यक्ति को अत्यंत सोच समझकर शेयर मार्केट में जाना चाहिए। 

👉 बारहवें भाव के स्वामी का छठे-आठवें भाव में उपस्थित होना भी धन के नुकसान को बताता है। यह वैसे तो ज्योतिष के अंदर विपरीत राजयोग का निर्माण करता है। लेकिन द्वादशेश की दशा अंतर्दशा में निश्चित ही धन का नुकसान देता है। अतः इस स्थिति के अंदर स्वयं को शेयर मार्केट जैसे कार्यों से दूर रखना चाहिए।

👉 जन्म कुंडली के सामान्य योग में अगर धनेश छठे, आठवें या द्वादश भाव में स्थित हो तब जमा संपत्ति केनाश का योगबनता है या जमा संपत्ति गलत जगह खर्च हो सकती है। ऐसी स्थिति में शेयर मार्केट के कार्य को अत्यंत सोच समझ कर करना चाहिए। संभवतः बचना चाहिए।

👉 अगर जन्म कुंडली के अंदर लग्नेश अस्त हो वक्री हो या नीच राशि में विद्यमान हो तब भी शेयर मार्केट और जुआ सट्टा आदि से स्वयं को बचाना चाहिए।


शेयर मार्केट में लाभ प्राप्त करने के उपाय

·     👍 जन्म कुंडली के पांचवें भाव के स्वामी के उपाय करने से शेयर मार्केट में लाभ प्राप्ति के योग बनते हैं।

·    👍   इसी तरह आठवें भाव के स्वामी अगर अशुभ हो तो उस ग्रह की शांति करने से नुकसान की संभावना कम होती हैं।

·     👍  द्वादश भाव के स्वामी की दशा अंतर्दशा में शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने से बचना चाहिए।

·   👍 एकादशी लाभ के स्वामी है लेकिन अगर इसके ऊपर शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो या वह शुभ भाव में स्थित ना हो तब भी ऐसे समय में शेयर मार्केट में धन इन्वेस्ट करने से बचना चाहिए एवं एकादश इसकी दशा अंतर्दशा में अगर नुकसान हो रहा हो तो एक आदर्श के स्वामी का उपाय करना चाहिए। 

·     👍   भगवान श्री हनुमान की आराधना भी अचानक लाभ प्राप्ति में सहयोग करती है।

·      👍  मंगल देवता की उपासना से या मंगल ग्रह की उपासना से भी शेयर मार्केट में लाभ होता है।

·    👍 राहु शेयर मार्केट का स्थापित देवता माना जाता है। अतः राहु की उपासना राहु के जप और राहु के उपाय भी शेयर मार्केट के अंदर सफलता प्रदान करते हैं।


अन्य बिन्दु

💲 अचानक धन की प्राप्ति, धन लाभ या भाग्य उन्नति के लिए हम जन्म कुंडली के पांचवें भाव से देखते हैं। वहीं बिना कमाया हुआ धन, पैतृक संपत्ति या आशा से ज्यादा किसी कार्य के परिणाम में लाभ होने के लिए आठवें भाव को देखते हैं।

💲 शेयर मार्केट में आठवें भाव से संबंधित शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं। शेयर मार्केट में हमें उम्मीद से ज्यादा धन प्राप्त हो सकता है। मेहनत में ज्यादा धन प्राप्त हो सकता है। अतः आठवें भाव से संबंधित शुभ योग शेयर मार्केट में फलित हो सकते हैं।

💲 इसी तरह पांचवां भाव भी शेयर मार्केट से संबंधित है। पांचवें भाव के शुभ फलों में अचानक से भाग्योन्नति होती है। शेयर मार्केट के द्वारा भी अचानक धन प्राप्ति के योग बनाते हैं। अचानक से धन प्राप्ति होने पर भाग्य उन्नति महसूस होना यह शेयर मार्केट के द्वारा ही संभव है। अतः हम पांचवें भाव से भी शेयर मार्केट को जोड़ सकते हैं।

💲 जन्म कुंडली में लाभ की स्थितियों को सामान्यतः ग्यारहवें भाव से फलित करते हैं। ग्यारहवें भाव से ही हम किसी कार्य में लाभ होगा या नहीं होगा या जीवन में कब हमें लाभ होगा या हानि होगी इसका अनुमान लगाते हैं।