Friday, 26 July 2024

द्वादश भावों में शुक्र का फल

वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को एक शुभ ग्रह माना गया है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को भौतिक, शारीरिक और वैवाहिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसलिए ज्योतिष में शुक्र ग्रह को भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, भोग-विलास, शौहरत, कला, प्रतिभा, सौन्दर्य, रोमांस, काम-वासना और फैशन-डिजाइनिंग आदि का कारक माना जाता है।



✨भाव अनुसार फल 

👉. लग्न (प्रथम) में शुक्र हो तो जातक सुन्दरदेही, दीर्घायु राजप्रिय, कामी, उच्चसरकारी पद पर आसीन, विलासी, भोगी, विद्वान, प्रवासी, मधुरभाषी, प्रसिद्ध सुखी एवं ऐश्वर्यवान होता है।

👉. द्वितीयभाव में शुक्र हो तो जातक भाग्यवान, साहसी, समयज्ञ, मिष्टान्नमोजी, यशस्वी, लोकप्रिय, जौहरी, दीर्घजीवी, कवि, कुटुम्बयुक्त, सुखी एवं धनवान् होता है।

👉. तृतीय भाव में शुक्र हो तो जातक विद्वान्, कलाकार,, आलसी, कृपण, धनी, सुखी, पराक्रमी, भाग्यवान्, बहने भाईयों से अधिक एवं पर्यटनशील होता है।

👉. चतुर्थ भाव में शुक्र हो तो जातक बलवान्, परोपकारी, सुन्दर, व्यवहार कुशल, विलासी, दीर्घायु, पुत्रवान्, भाग्यवान्, सुखी, दानी, वाहनों का स्वामी एव आस्तिक होता है।

👉. पंचम भाव में शुक्र हो तो जातक विद्वान्, प्रतिभाशाली, वक्ता, कवि, पुत्रवान्, लाभयुक्त, व्यवसायी, शत्रुनाशक, उदार, दानी, सद्गुणी न्यायवान एवं आस्तिक होता है।

👉. पष्ठभाव में शुक हो तो जातक मितव्ययी, शत्रुनाशक स्त्रीप्रिय स्त्रीसुखहीन,बहुमित्रवान, वैभवहीन दुराचारी मूत्ररोगी दुखी एवं गुप्तरोगी होता है।

👉. सप्तमभाव में शुक्र हो तो जातक लोकप्रिय, धनिक, चिन्तित, विवाह के बाद भाग्योदय, साधुप्रेमी, स्त्री से सुख, कामी, भाग्यवान् गानप्रिय, विलासी, अल्पव्यभिचारी चंचल एवं उदार होता है।

👉. अष्टम भाव में शुक्र हो तो जातक ज्योतिषी, क्रोधी, मनस्वी, दुखी, गुप्तरोगी, पर्यटनशील, परस्त्रीरत, विदेशवासी, निर्दयी, गुप्तविद्याओं के प्रतिरुचि एवं रोगी होता है।

👉. नवम भाव में शुक्र हो तो जातक धर्मात्मा, राजप्रिय, पवित्रतीर्थ यात्राओं का कर्ता, दयालु, प्रेमी, गृहसुखी, गुणी, चतुर एवं आस्तिक होता है।

👉. दशम भाव में शुक्र हो तो जातक गुणवान्, दायालु, विलासी, ऐश्वर्यवान्, भाग्यवान्, न्यायवान् विजयी, गानप्रिय, धार्मिक ज्योतिषी एवं लोभी होता है।

👉. ग्यारहवें भाव में शुक्र हो तो जातक परोपकारी, लोकप्रिय, जौहरी, विलासी, वाहनसुखी, स्थिरलक्ष्मीवान्, धनवान् गुणज्ञ, कामी एवं पुत्रवान् होता है।

👉. बारहवें भाव में शुक्र होतो जातक धनवान्, परस्त्रीरत, बहुभोजी, शत्रुनाशक, मितव्ययी, आलसी, पतित, धातुविकारी, स्थूल एवं न्यायशील होता है।

Sunday, 21 July 2024

द्वादश भावों में शनि का फल

शनि को कृष्ण का अवतार माना जाता है , ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार जहाँ कृष्ण कहते हैं कि वे "ग्रहों में शनि" हैं। उन्हें शनिश्वर भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "शनि का देवता", और उन्हें किसी के कर्मों का फल देने का कार्य सौंपा गया है, इस प्रकार वे हिंदू ज्योतिषीय देवताओं में सबसे अधिक भयभीत हो गए हैं। वे अक्सर हिंदू देवताओं में सबसे गलत समझे जाने वाले देवता हैं क्योंकि कहा जाता है कि वे किसी के जीवन में लगातार अराजकता पैदा करते हैं, और पूजा करने पर उन्हें सौम्य माना जाता है।


👉. लग्न (प्रथम) में शनि मकर, कुम्म तथा तुला का हो तो धनाढ्य, सुखी, धनु और मीन राशियों में हो तो अत्यन्त धनवान् और सम्मानित एवं अन्य राशियों का हो तो अशुभ होता है।

👉. द्वितीय भाव में शनि हो तो जातक कटुभाषी, साधुद्वेषी, मुखरोगी, और कुम्म या तुला का शनि हो तो धनी, लाभवान् एवं कुटुम्ब तथा भ्रातृवियोगी होता है।

👉. तृतीय भाव में शनि हो तो जातक नीरोगी, विद्वान् योगी, मल्ल, शीघ्रकार्यकर्ता, समाचतुर, चंचल, भाग्यवानु शत्रुहन्ता, एवं विवेकी होता है।

👉. चतुर्थभाव में शनि हो तो जातक अपयशी, बलहीन, धूर्त, कपटी, शीघ्रकोपी, कृशदेही, उदासीन, वातपित्तयुक्त एवं भाग्यवान् होता है।

👉. पंचम भाव में शनि हो तो जातक आलसी, सन्तानयुक्त, चंचल, उदासीन, विद्वान, भ्रमणशील एवं बातरोगी होता है।

👉. षष्ठभाव में शनि हो तो जातक बलवान्, आचारहीन, व्रणी, जातिविरोधी, श्वासरोगी, कण्ठरोगी, योगी, शत्रुहन्ता भोगी एवं कवि होता है।

👉. सप्तम भाव में शनि हो तो जातक क्रोधी, कामी, विलासी, अविवाहित रहना या दुःखी विवाहित जीवन, धन सुखहीन, भ्रमणशील, नीचकर्मरत्, स्त्रीभक्त एवं आलसी होता है।

👉. अष्टम भाव में शनि हो तो जातक विद्वान् स्थूलशरीरी, उदार प्रकृति, कपटी, गुप्तरोगी, वाचाल, डरपोक, कुष्ठरोगी एवं धूर्त होता है।

👉. नवम भाव मे शनि हो तो जातक धर्मात्मा, साहसी, प्रवासी, कृशदेही, भीरु, आतृहीन, शत्रुनाशक रोगी वातरोगी, भ्रमणशील एवं वाचाल होता है।

👉. दशम भाव में शनि हो तो जातक विद्वान, ज्योतिषी, राजयोगी, न्यायी, नेता, धनवान्, राजमान्य, उदरविकारी, अधिकारी, चतुर, भाग्यवान् परिश्रमी, निरुपयोगी एवं महत्त्वाकांक्षी होता है।

👉. ग्यारहवें भाव में शनि हो तो जातक बलवान् विद्वान, दीर्घायु, शिल्पी, सुखी, चंचल, क्रोधी, योगाभ्यासी, नीतिवान् परिश्रमी, व्यवसायी, पुत्रहीन, कन्याप्रज्ञ एवं रोगहीन होता है।

👉. बारहवें भाव में शनि हो तो जातक आलसी, दुष्ट, व्यसनी, व्यर्थ व्यय करने वाला, अपस्मार, उन्माद का रोगी, मातुलकष्टदायक, अविश्वासी एवं कटुभाषी होता है।

Saturday, 13 July 2024

द्वादश भावों में राहु का फल

ज्योतिष में राहु ग्रह को एक पापी ग्रह माना जाता है। वैदिक ज्योतिष में राहु ग्रह को कठोर वाणी, जुआ, यात्राएँ, चोरी, दुष्ट कर्म, त्वचा के रोग, धार्मिक यात्राएँ आदि का कारक कहते हैं। जिस व्यक्ति की जन्म पत्रिका में राहु अशुभ स्थान पर बैठा हो, अथवा पीड़ित हो तो यह जातक को इसके नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ज्योतिष में राहु ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन मिथुन राशि में यह उच्च होता है और धनु राशि में यह नीच भाव में होता है।


👉. लग्न (प्रथम) में राहु हो तो जातक कामी, दुर्बल, मनस्वी, अल्पसन्तति युक्त, राजद्वेषी, नीचकर्मरत दुष्ट, स्तकरोगी, स्वार्थी एवं बात-बात पर सन्देह करने वाला होता है।

👉. द्वितीय भाव में राहु हो तो जातक संग्रहशील, अल्पधनवान्, कठोरभाषी, कुटुम्बहीन, अल्पसन्तति, मात्सर्ययुक्त एवं परदेशगामी होता है।

👉 तृतीय भाव में राहु हो तो जातक योगाभ्यासी, विद्वान्, व्यवसायी, पराक्रमशून्य, दृढ़विवेकी, अरिष्टनाशक, प्रवासी, दीर्घायु एवं बलवान् होता है।

👉. चतुर्थभाव में राहु हो तो जातक असन्तोषी, दुखी, अल्पभाषी, मिथ्याचारी, उदरव्याधियुक्त, कपटी, मातृक्लेशयुक्त एवं क्रूर होता है।

👉. पंचम भाव में राहु हो तो जातक शास्त्रप्रिय, कार्यकर्ता, भाग्यवान्, उदररोगी, मतिमन्द, कुल धननाशक, धनहीन, नीतिदक्ष एवं सन्तान के लिए अशुभ होता है।

👉. षष्ठभाव में राहु हो तो जातक शत्रुहन्ता, कमरदर्द पीड़ित, अरिष्टनिवारक, विदेशियों से लाभ, पराक्रमी, बड़े-बड़े कार्य करनेवाला, दीर्घायु, साहसी, घनी एवं प्रसिद्ध होता है।

👉. सप्तम भाव में राहु हो तो चतुर, लोभी, दुराचारी, दुष्कर्मी वातरोगजनक, भ्रमणशील, व्यापार से हानिदायक एवं स्त्रीनाशक होता है।

👉. अष्टम भाव में राहु हो तो जातक क्रोधी, व्यर्थभाषी, मूर्ख, उदररोगी, कामी, पुष्टदेही एवं गुप्तरोगी होता है।

👉. नवम भाव में राहु हो तो जातक प्रवासी, वातरोगी, व्यर्थ परिश्रमी, दुष्टबुद्धि, भाग्योदय से रहित, तीर्थाटनशील एवं धर्मात्मा होता है।

👉. दशम भाव में राहु हो तो जातक मितव्ययी, वाचाल, सन्ततिक्लेशी चन्द्रमा से युक्त राहु के होने पर राजयोग कारक अनियमित कार्यकर्ता एवं आलसी होता है।

👉. ग्यारहवें भाव में राहु हो तो जातक परिश्रमी, अल्पसन्तान, विदेशियों से धनलाभ, दीर्घायु, मन्दमति, लाभहीन, अरिष्टनाशक, व्यवसाययुक्त, कदाचित् लाभदायक एवं कार्य सफल करने वाला होता है।

👉. बारहवें भाव में राहु हो तो जातक विवेकहीन, कामी, चिन्ताशील, अतिव्ययी, सेवक, परिश्रमी, मूर्ख एवं मतिमन्द होता है।

Saturday, 6 July 2024

द्वादश भावों में केतु का फल

भारतीय ज्योतिष के अनुसार केतु ग्रह व्यक्ति के जीवन क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को प्रभावित करता है। राहु और केतु दोनों जन्म कुण्डली में काल सर्प दोष का निर्माण करते हैं। वहीं आकाश मंडल में केतु का प्रभाव वायव्य कोण में माना गया है। कुछ ज्योतिषाचार्यों का ऐसा मानना है कि केतु की कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण जातक यश के शिखर तक पहुँच सकता है। राहु और केतु के कारण सूर्य और चंद्र ग्रहण होता है।


भाव अनुसार प्रभाव 

👉. लग्न (प्रथम) में केतु हो तो जातक चंचल मूर्ख दुराचारी, भीरु तथा वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, घनी एवं परिश्रमी होता है।

👉. द्वितीय भाव में केतु हो तो जातक अस्वस्था, कटुवचन बोलने वाला, मुंह के रोग, राजभीरु एवं विद्रोही होता है।

👉. तृतीय भाव में केतु हो तो जातक चंचल, वायुजनित रोगों से पीड़ित, भाई बहन विहीन, धनी, व्यर्थवादी एवं भूतप्रेतभक्त होता है।

👉. चतुर्थ भाव में केतु हो तो जातक, कार्यहीन, चंचल, वाचाल एवं निरुत्साही होता है।

👉. पंचम भाव में केतु हो तो जातक वातरोगी, कुचाली, कुबुद्धि, सन्तान को नष्ट करता है, योगी, कुशाग्रबुद्धि एवं क्रोधी होता है।

👉. षष्ठभाव में केतु हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालू, अरिष्टनिवारक, सुखी, मितव्ययी, भूत प्रेतजनित रोगों से रोगी, दुर्घटना, दीर्घायु एवं धनी होता है।

👉. सप्तम भाव में केतु हो तो जातक मतिमन्द, मूर्ख, दुखद विवाहित जीवन, पति-पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद, शत्रुभीरु एवं सुखहीन होता है।

👉. अष्टम भाव में केतु हो तो जातक दुर्बुद्धि, स्त्रीद्वेषी, चालाक, दुष्टजनसेवी, तेजहीन, नीच, स्त्री की कुण्डली में पति के लिए अशुभ एवं अल्पायु होता है।

👉. नवम भाव में केतु हो तो जातक सुखाभिलाषी, व्यर्थपरिश्रमी अपयशी, दुःखी एवं 48 वर्ष के बाद भाग्योदय होता है।

👉. दशम भाव में केतु हो तो जातक अभिमानी व्यर्थ, परिश्रमशील मूर्ख, पितृद्वेषी, दुर्भागी, संन्यास लेना एवं योगी होता है।

👉. ग्यारहवें भाव में केतु हो तो जातक बुद्धिहीन, निजका हानिकर्ता, अरिष्टनाशक एवं वातरोगी होता है।

👉. बारहवें भाव में केतु हो तो जातक चंचल बुद्धि, धूर्त, ठग तांत्रिक, अतव्ययी निर्बल स्वास्थ्य, पागलपन, मोक्ष प्राप्ति, अविश्वासी एवं जनता को भूत-प्रेतों की जानकारी द्वारा ठगने वाला होता है।