कर्क भचक्र की चौथे स्थान पर आने वाली राशि है। यह चर राशि है, जल तत्व, विप्र वर्ण, स्त्री लिंगी होने से कर्क एक शुभ लग्न माना जाता है । इसका विस्तार चक्र 90 से 120 अंश के अन्दर पाया जाता है । इस राशि का स्वामी चन्द्रमा है । चिन्ह – केकड़ा व् इसके तीन त्रिकोण के स्वामी चन्द्रमा, मंगल और गुरु हैं, इसके अन्तर्गत पुनर्वसु नक्षत्र का अन्तिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा अश्लेशा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं। इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है की ये एक शुभ लग्न है ।
कर्क लग्न के जातक का व्यक्तित्व व् विशेषताएँ। :-
चंद्र लग्न व् जल तत्व होने से अनुमान लगाया जा सकता है की ऐसे जातक बहुत भावुक होते हैं । ये कल्पनाशील भी अपेक्षाकृत अधिक ही होते हैं । वैचारिक उधेड़बुन अपेक्षाकृत अधिक रहती है । यदि चन्द्रमा नीच राशि में स्थित हो तो ऐसा जातक आत्महत्या भी कर सकता है । चंद्र, मंगल या गुरु कुंडली में सही स्थित भी हों तो इनकी महादशा में अधिक लाभ मिलता है । कर्मक्षेत्र में मेहनत अधिक करनी पड़ सकती है! वैवाहिक जीवन में भी संतुष्टि कम ही मिलती है । जातक के पति / पत्नी सावंले हो सकते हैं । ऐसे जातक खुद को बुध्धिमान मानते हैं व् साथ ही उसका दिखावा भी करते हैं! थोड़ी सी सफलता मिलने पर घमंडी हो जाते हैं! यदि अहंकार से बचे रहें और हनुमान जी की साधना करते रहें तो निश्चित ही सफल होते हैं ।
कर्क लग्न के नक्षत्र:-
कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र का अन्तिम चरण, पुष्य नक्षत्र के चारों चरण तथा अश्लेशा नक्षत्र के चारों चरण से बनती है । इसका विस्तार चक्र 90 से 120 अंश के अन्दर पाया जाता है ।
लग्न स्वामी : चंद्र
लग्न चिन्ह : केकड़ा
तत्व: जल
जाति: विप्र ( ब्राम्हण )
स्वभाव : चर
लिंग : स्त्री संज्ञक
अराध्य/इष्ट : बजरंग बलि ( संकट मोचन – हनुमान )
कर्क लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह :-
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक गृह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक गृह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे , आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
चंद्र ग्रह :- लग्नेश है , अतः कुंडली का कारक गृह है ।
मंगल :- पांचवें , दसवें घर का मालिक है । अतः अति योगकारक है ।
गुरु :- छठे व् नवें घर का स्वामी है , अतः कारक गृह है ।
शुक्र :- चौथे व् ग्यारहवें का मालिक होने से सम गृह बनता है ।
कर्क लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह :-
सूर्य दुसरे घर का मालिक होने से मारक है ।
बुद्ध तीसरे व् बारहवें का मालिक होने से मारक गृह बनता है ।
शनि सातवें , आठवें का मालिक होने से व् लग्नेश का अति शत्रु होने से इस लग्न कुंडली में मारक होता है ।
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